समाज | बड़ा आर्टिकल

प्रिये प्रियतमा, आज एकबार फिर तुम्हारी नगरी में हूं...
किसी बस स्टॉप पर बस के रूकने पर जब वो परचून वाला चढ़ता तो हमदोनों के ही जीभ लपलपा उठते थे और हमदोनों जी भरकर फिर अपना बचपन जीते. अबकी भी अभी उसी बस में बैठा हूं, पर अकेला. तुम नहीं हो साथ मेरे. पिछली सीट पर ही हूं और बस की उछल-कूद जारी है. पर इसबार बचपन नहीं, तुम्हारे साथ बिताए वो सारे पल जी रहा हूं.
समाज | एक अलग नज़रिया | बड़ा आर्टिकल
सोशल मीडिया | 5-मिनट में पढ़ें

पहले वार, फिर दुलार फिर से वही दुत्कार और प्रक्रिया बार बार... कहानी किसी एक महिला की नहीं है!
पहले वार, फिर दुलार फिर से वही दुत्कार और ये पूरी प्रक्रिया बार बार... आर्थिक, मानसिक शारीरिक शोषण की ये कहानी सिर्फ इंस्टाग्राम सेलिब्रिटी the.pixie.travels की नहीं है. तमाम महिलाएं / लड़कियां हैं जो एक कड़वे रिश्ते का सामना सिर्फ इसलिए कर रही हैं क्योंकि वो व्यक्ति जिसके साथ वो रिलेशनशिप में हैं उनके पास 'सॉरी' के रूप में एक मजबूत हथियार है.
समाज | 3-मिनट में पढ़ें

हाथों में गुलाब पकड़े प्रेम चतुर्दशी का प्रेममयी पदार्पण हो चुका है!
14 फरवरी नज़दीक आने को है और गुलाब अपनी ख़ुशबू से सबों को राग-द्वेश त्यागकर प्रेमराग फैलाने का संदेश दे रहा है. चाहे शाहजहां हो या दशरथ मांझी, प्रेम के इस पवित्र सप्ताह में फूहड़पन को त्यागकर आइए प्यार की इन प्रतिमूर्ति को याद करें और समूचे संसार के समक्ष एक ऐसा उदाहरण पेश करें जो आने वाली नस्लो के लिए एक मिसाल बनकर सामने आए.
समाज | एक अलग नज़रिया | 4-मिनट में पढ़ें

शादी से पहले और बाद के वैलेंटाइन डे में कितना अंतर होता है?
शादी से पहले प्रेमी अपनी जिस प्रेमिका की एक झलक पाने के लिए घंटों इंतजार करता था पति बनने के बाद अब वह वैलेंटाइन डे विश करना भी जरूरी नहीं समझता. यह बात वैसे प्रेमिका से पत्नी बनी लड़की भी समझ जाती है कि अब उसकी गृहस्थी शुरु हो चुकी है तो पहले वाला रोमांस नहीं रहेगा. वह भी स्तिथी के अनुसार, खुद को बदलने की कोशिश करने लगती है.
समाज | एक अलग नज़रिया | 3-मिनट में पढ़ें
समाज | 7-मिनट में पढ़ें

'स्मार्ट फोन मेरी तौबा'...पहले तुमने पर्दा उठाया फिर भेद खोल दिया!
विवाह सात जन्मों का बंधन ना भी मानें तो ये एक सोशल एग्रीमेंट तो है ही. दोनों के बीच तालमेल नहीं है तो तलाक का प्रावधान है. लेकिन संबंध में बने रहते दूसरे संबंध बनाना केवल अनैतिक ही नहीं बल्कि अपने सामाजिक दायित्वों से मुंह मोड़ना जैसा भी है.
समाज | एक अलग नज़रिया | 2-मिनट में पढ़ें
समाज | एक अलग नज़रिया | 5-मिनट में पढ़ें
