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Updated: 16 जनवरी, 2023 07:30 PM
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सत्तर के दशक का आशा ताई का गाना कितना प्रासंगिक है - 'परदे में रहने दो, पर्दा ना उठाओ, पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा !' स्मार्ट फोन तभी तक स्मार्ट है जब तक आपके अपने हाथों में हैं. ज्यों ही दूसरे के हाथ लगा, बेवफा हो जाता है और आपके भेद खोल देता है. और अब तो स्मार्टफोन की बेवफाई जगजाहिर है. हाल ही नामचीन बॉलीवुड की हस्तियों को बेवजह फंसा दिया. पति-पत्नी हो या प्रेमी प्रेमिका, दोनों के बीच दरार डालने का काम खूब अंजाम दिया है स्मार्टफोन ने. याद होगा शायद दो साल ही बीते होंगे जब सुना था एक सम्मानित पत्नी ने फ्लाइट में सोये पति के स्मार्टफोन में ताकझांक कर ली और फिर जो तूफ़ान खड़ा किया कि फ्लाइट वापस वहीं ले जानी पड़ी जहां से उड़ी थी. तकरीबन उसी साल अक्टूबर 2020 में एक अन्य खबर ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. कर्नाटक की एक 17 वर्षीया लड़की को ऑनलाइन क्लास के लिए पिता का फोन इस्तेमाल करते वक्त उसके विवाहेतर संबंध का पता चला व उसका और उसकी कथित प्रेमिका का एक अंतरंग वीडियो मिला. लड़की की मां ने पति के खिलाफ मामला दर्ज कराया और कार्रवाई की मांग की . पुलिस के लिए धर्मसंकट था चूंकि अडल्ट्री के लिए वह शख्स के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर सकती थी क्योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले ही सेक्शन 497 को समाप्त कर के विवाहेतर संबंधों को स्वीकृति जो दे डाली थी.

Mobile, Husband, Wife, Girlfriend, Boyfriend, Relationship, Divorce, Illicit Relationship, Bollywoodआज दो लोगों के बीच रिश्तों में खटक की एक बड़ी वजह मोबाइल फ़ोन भी है

हां, जनाब का खुलासा तब हो जाता जब क़ानून था तो सजा हो सकती थी. पुलिस इनफार्मेशन एंड टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के तहत कार्यवाही अवश्य कर सकती थी बशर्ते दूसरी औरत बयान देती कि महाशय ने वीडियो धोखे से बनाया था. तब दंपत्ति की शादीशुदा जिंदगी 18 सालों की थी और बालिग़ होने को आये उनके दो बच्चे भी थे. पति डिफेंसिव थे चूंकि एक्सपोज़ हो गए थे लेकिन पत्नी इस कदर ओफ्फेंसिव थी कि वह सेपरेशन चाहती थी. पता नहीं आज क्या स्थिति है ! हालांकि उस समय दोनों के बीच समझौते के लिए मध्यस्थता भी शुरू हो गई थी.

चूंकि बात निकली है तो थोड़ी बातें कर ही लें. ऐसा लगता है कि महिला सशक्तिकरण के अतिउत्साह में आकर ही माननीय सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 को समाप्त कर के विवाहेतर संबंधों को स्वीकृति दे दी थी. कहा गया कि पत्नी अपने पति की जागीर नहीं है, इसलिए वह शादीशुदा हुई तो क्या हुआ ? फिर केस फॉर जेंडर इक्वलिटी भी है. लेकिन जिस पतिव्रता पत्नी का पति इस कृत्य में लिप्त होगा, उस महिला का क्या ?

फैसला क्या उस पत्नी को भी सशक्त बनाता है जिसने कभी व्याभिचार नहीं किया, पति के साथ हर पत्नी धर्म निभाया, बच्चों की देखभाल करते करते दिन-महीने-साल निकाल दिए ? जिम्मेदारियों के बोझ तले यह पता ही नहीं चला कि उसके हाथों की मेहंदी कब बालों में आ गयी ! उम्र के ढलान पर जब वह अनाकर्षक लगने लगी, तब पति को किसी अन्य महिला का साथ पाने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट का सहारा मिल गया.

विवाह सात जन्मों का बंधन ना भी मानें तो ये एक सोशल एग्रीमेंट तो है ही. एग्रीमेंट बिज़नेस में भी होते हैं जिसमें दोनों पक्ष किन्हीं बातों के लिए एक दूसरे से बंधे होते हैं और एग्रीमेंट टूटते भी हैं आपसी रजामंदी से. लेकिन जब तक एग्रीमेंट से बंधे हैं तब तक यकीनन कोई भी पक्षकार किसी तीसरे या चौथे के साथ उन्हीं बातों के लिए नहीं बंधता है और यदि बंधना ही है तो उसके लिए एग्रीमेंट में प्रावधान है या नहीं सुनिश्चित करता है. यही स्थिति तो शादी के साथ है.

अगर दोनों पार्टनर के बीच तालमेल नहीं हो पाता है तो भी तलाक का प्रावधान है. लेकिन संबंध में बने रहते हुए दूसरे संबंधों की स्थापना करना केवल अनैतिक ही नहीं बल्कि अपने सामाजिक दायित्वों से मुंह मोड़ने जैसा भी है. सुप्रीम कोर्ट ने पति पत्नी को सिर्फ स्त्री पुरुष मान लिया. लेकिन क्या भूल नहीं कर दी क्योंकि पति पत्नी किन्हीं मासूमों के पेरेंट्स भी हैं जिनकी परवरिश करने की समवेत जिम्मेदारी दोनों की है ? कोई संतान नहीं चाहती कि उसके माता पिता किसी विवाहेतर संबंधों में गुप्त रूप से शामिल हों.

लॉजिक और साथ ही तमाम उदाहरण भी विपरीत दिए जा सकते हैं लेकिन क्या दावा कर सकते हैं कि कहीं किसी संबंधित पक्ष में टीस ना रही हो ? हमारे आस पास हज़ारों ऐसे सम्बन्ध हमे देखने को मिल जाते हैं जिस पर ख़ामोशी अख्तियार कर ली जाती है, किसी को सज़ा नहीं दी जाती है, लेकिन कम से कम इन पर एक पर्दा रखा जाता है. इनके बारे में कभी भी खुलेआम बातें नहीं होती हैं. अनैतिक सम्बंधों को खुलकर जीने की इजाजत देना सामाजिक ढांचे को विकृत करने का प्रयास है.

कम से कम अभी तक कानून भीरु लोगों में भय तो था. इस भय की आड़ में पति-पत्नी एक दूसरे के साथ एडजस्ट करने की कोशिश करते हैं और कुछ समय के बाद एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं.सुप्रीम कोर्ट से कैसे इत्तफाक करें जब वह मानता है कि विवाहेतर संबंध शादी को खराब नहीं करते हैं ? भई ! पार्टनर तलाक ले ले ना ; कानून इजाजत देता ही है. खराब शादी या लाइक डिसलाइक की बिना पर विवाहेतर सम्बन्ध को कैसे रख सकता है ? अगर ऐसा ही होना है तो मैरिज रजिस्ट्रेशन का क्या महत्व रह जायेगा ?

शादी और लिव इन का फर्क ख़त्म हो जायेगा. संतान की उत्पत्ति, उसकी परवरिश और संपत्ति के बंटवारे को लेकर क्या समस्याएं नहीं होंगी ? विवाहेतर संबंधों में क्षणिक संतोष भर ही हो सकता है , स्थायित्व तो हो ही नहीं सकता. इसीलिए परदा गिरा रहे , उसी में भलाई है. जहाँ पर्दा उठा है या उठाया गया है , अक्सर परिणाम खराब ही हुए हैं. उदाहरण कई हैं जिनका जिक्र करना प्राइवेसी के हिसाब से लाजिमी नहीं हैं.

लेकिन आज के इस खुले दौर में नैतिकता की परिभाषा ही बदल गयी हैं. नैतिकता-अनैतिकता अब पब्लिक स्पेस की बात नहीं है बल्कि व्यक्तिगत हो गयी है. जो कइयों की नजर में अनैतिक है वही संबंधित लोगों, मसलन पार्टनर्स और उनके परिवार, की नजर में या तो सही है या उन्होंने स्वीकार कर लिया है. कुल मिलाकर "एडल्ट्री" की परिभाषा ही बदल गयी है. और अब तो ऑनलाइन तमाम वेबसाइट हैं इस ओपन कल्चर को बढ़ावा देने के लिए ! जो कल पति ने पत्नी को धोखा दिया या पत्नी ने पति को धोखा दिया कहलाता था, वो आज कॉमन है और कुछ एक सामाजिक सर्कल में सोशल स्टेटस सिंबल सा है.

तभी तो प्रगतिशील या विचारवान शादीशुदा लोगों के लिए 'एश्ले मैडिसन इंडिया' खूब सक्रिय हो रहा है. स्लोगन ही है लाइफ इज़ शार्ट, हैव एन अफेयर या कहें चार दिनों की जिंदगी है, संबंध बना लो! एक आंकड़ा है इसी वेबसइट के यूजर का - दिल्ली में 39000 , मुंबई में 35000 , चेन्नई में17000, हैदराबाद , बैंगलोर और पुणे में बारह बारह हजार! और भी कई हैं डेटिंग ऍप्स की नाम पर.

इसी वेबसाइट के एक सर्वे के मुताबिक़ शादीशुदा 87 फीसदी महिलाओं और 81 फीसदी पुरुषों ने अवैध संबंध रखने का दावा किया है. सिर्फ 81 फीसदी पुरुष अपने संबंधों को गुप्त रख पाए थे, जबकि 92 फीसदी महिलाएं अपने संबंध गुप्त रख रही थीं. सर्वे में पाया गया कि 76 फीसदी विवाहित महिलाएं इसे अनैतिक नहीं मानती और 47 फीसदी संबंध कारोबारी दौरों पर हुए. 62 फीसदी पुरुषों और 52 फीसदी महिलाओं के विवाहेतर संबंध उनके वर्कप्लेस पर बने.

गजब गजब के सर्वे करती है या करवाती है ये डेटिंग साइट ; शायद इसका निहित स्वार्थ ही है. तभी तो कोरोना काल में #स्टेहोम की मज़बूरी को भी नहीं बख्शा. 'जिलियन फ्लिन' की किताब पर आधारित डेविड फिंचर की फिल्म "गॉन गर्ल" की याद आ जाती है और शायद अब सच्चाई ही बन रही है कि पति पत्नी एक दूसरे के अफेयर को जानते हैं और कारण कोई भी हो सकता है जिस वजह से साथ साथ हैं और साथ साथ रहेंगे भी. मसलन बच्चे हैं या फिर प्रॉपर्टी का बंटवारा हो जाएगा या कुछ और !

अच्छी बात ही है ना मियां बीबी दोनों ही भले लोग हैं, क्यों लड़ाई झगड़ा करें ? या फिर कहीं ना कहीं संतुष्टि मिलती है कि एक दूसरे से बदला ले रहे हैं. अंत में एक अपने ही आइडल बॉस का खुलासा शेयर करने से रोक नहीं पा रहा हूँ स्वयं को. अनजाने ही अपने आइडल का मेल बॉक्स चेक कर बैठा था और जो पाया शॉकिंग था ! लिप्तता जिसके साथ थी , वह भी वर्कप्लेस कलीग थी. कुल मिलाकर यह बहुत मुश्किल दौर है, जिसमें इंसान का असली चेहरा पता करना बहुत कठिन है.

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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