प्रकाश जैन
@prakash.jain.5688
Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .
समाज | 5-मिनट में पढ़ें
सोशल मीडिया | 5-मिनट में पढ़ें

हर स्मार्टफोन एक बम है जिसकी सेफ्टी पिन किसी फ्रॉड के हाथ में है!
हम खूब एन्जॉय कर रहे हैं, चीजें आसान होती दिख रही हैं, लेकिन स्मार्टफोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया कब किस मुसीबत में डाल देंगे, रिस्क आपका है. वो कहते है ना एट योर ओन रिस्क. अब तो ऑनलाइन फ्रॉड (Cyber Fraud) एक सच्चाई है. कब, कौन और कैसे शिकार हो जाएगा, कहना मुश्किल है.सियासत | 9-मिनट में पढ़ें

धर्म और धर्म ग्रंथों के खिलाफ छिड़ी लड़ाई किस दिशा में जा रही है?
कल के माहौल और आज के में कॉमन है पॉलिटिकल हैंड. कल हैंड कम थे, आज वे मल्टीप्लाई कर गए हैं. इसीलिए माहौल ज्यादा खराब है. और सारा कुछ हो रहा है फ्रीडम ऑफ़ स्पीच के नाम पर. बात न्याय प्रणाली की करें तो चीजें कूल नहीं रख पा रही हैं अदालतें!समाज | 5-मिनट में पढ़ें

नैरेटिव जो भी हो, लेकिन देश तो बदला है और जबर्दस्त बदला है
प्रथम दृष्टया किसी को अपने विचारों के लिए जेल में नहीं डाला जाना चाहिए, न उस पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए; खासकर उन विचारों के लिए जो केवल सोशल मीडिया पर जाहिर किए गए हों. हम एक जीवंत लोकतंत्र के बाशिंदे हैं, यदि कट्टर हैं भी तो चमड़ी मोटी होनी चाहिए.इकोनॉमी | 4-मिनट में पढ़ें
सिनेमा | 6-मिनट में पढ़ें

Gandhi Godse Ek Yudh: पठानिया शोर में गुम हो गई संतोषी की प्रयोगात्मक कृति!
फिल्म 'गांधी गोडसे: एक युद्ध' पर आरोप था कि ये महात्मा गांधी के विचारों को नकारते हुए गोडसे का महिमामंडन करती है. हालांकि ऐसा कुछ है ही नहीं, उल्टे फिल्म गांधी की महानता ही सिद्ध करती है. यदि कहें कि विपक्षी मांग मुख़र होती तो फिल्म को फायदा पहुंचता बॉक्स ऑफिस के लिहाज से; अतिश्योक्ति नहीं होगी.सिनेमा | 5-मिनट में पढ़ें

पूरा बॉलीवुड पठानिया हो गया है!
शाहरुख़ खान की हालिया रिलीज फिल्म पठान का हिट होना बनता ही है, ढेरों ट्विस्ट जो हैं पठान की यात्रा में. व्यूअर्स को एंगेज रखने के लिए. हैट्स ऑफ टू टू सिद्धार्थ आनंद फॉर दोज एंगेजिंग ट्विस्ट्स. बाकी जो विवाद फिल्म को लेकर है वो बेकार है. विरोध करने वालों को फिल्म देखनी चाहिए.सियासत | 5-मिनट में पढ़ें

बैन किये जाने से 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' का मकसद पूरा होता नजर आ रहा है!
दुनिया का नियम है जब भी किसी चीज पर बैन लगता है पब्लिक उसे हाथों हाथ लेती है. और बीबीसी यही तो चाहती थी कि पीएम मोदी पर बनी उनकी इस डॉक्यूमेंट्री पर भारत की मौजूदा सरकार ओवर रियेक्ट करे. बाकी माना ये भी जा रहा है कि फैन से BBC और डॉक्यूमेंट्री को फायदा ही मिलेगा.सियासत | 5-मिनट में पढ़ें

Surgical Strike: दिग्विजय सिंह से किनारा क्यों नहीं करते राहुल गांधी?
कांग्रेस का उद्धेश्य यदि चुनावों में सफलता प्राप्त करना है तो 'चुनाव देवता' बलि की मांग कर रहे हैं. इस वक्त आदर्श स्थिति बनी है कि जनाधार खो चुकी कांग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह की बलि दे दे. इसके बाद दिग्विजय सिंह को भी संतोष करना चाहिए, क्योंकि उनकी बलि के बाद कहा जाएगा जिंदा हाथी लाख का मरा सवा लाख का.समाज | 5-मिनट में पढ़ें

सवाल उठने ही वाले हैं, न्यायालय ने हिंदू आस्था पर मोहर जो लगा दी है!
गुजरात की एक कोर्ट के एक न्यायमूर्ति ने जिस प्रकार गोवंश का महिमा मंडन किया है, निर्णय के न्यायोचित होने पर संदेह पैदा कर देता है. इस मायने में कि कहीं विश्वास और आस्था के वश उन्होंने पूर्वाग्रह तो नहीं पाल लिया था आरोपी अमीन के लिए?सियासत | 4-मिनट में पढ़ें

राम रहीम को पेरोल देना क्या न्याय व्यवस्था का राजनीतिकरण नहीं है?
राम रहीम को आजीवन पैरोल ही दे दो ना. माना कोई उसकी पैरोल के खिलाफ अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाएगा. लेकिन अदालत स्वतः संज्ञान तो ले ही सकती है. बलात्कारी और हत्यारे को स्पष्ट राजनैतिक स्वार्थ के लिए यूं जब तब पैरोल दे दिया जाना क्या न्याय व्यवस्था का राजनीतिकरण नहीं है?समाज | 5-मिनट में पढ़ें
