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आपबीती: दिल्ली मेट्रो की इस 'नाइंसाफी' से पुरुष समाज आहत है!
हम इस बात को नकार नहीं सकते कि उत्पीड़न का सबसे ज़्यादा शिकार इस समाज में महिलाएं होती हैं, और यह सच है, लेकिन यह भी गलत नहीं है कि महिलाएं अपनी आवाज समय-समय पर उठाती रहती हैं. उनके साथ लोग जुड़ भी जाते है, लेकिन पुरुषों के साथ ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है जब कोई पुरुष अपने लिए आवाज उठाता है या लोग उसका साथ देते हैं.
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सुप्रीम कोर्ट के बदले रुख से स्पष्ट है, गे कपल की विवाह की चाहत अधूरी ही रहेगी...
हां, सामाजिक संरचना में समलैंगिकों को वे सहूलियतें ज़रूर मिल जायेंगी जिनसे वे वंचित हैं. ऑन ए लाइटर नोट कहें, अन्यथा न लीजिएगा, साजन बिना सुहागन ही सुहाग के फायदे मिल जाएंगे. बिलकुल 'ना' से तो थोड़ा 'हां' हो रहा है तो फ़िलहाल संतोष करें.
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बीवियों को किनारे करने में तो जीत ही जाएंगी सपा की वंदना...
राजधानी लखनऊ मेंमेयर सीट के लिए सपा ने कमजोर समाज की मजबूत आवाज़ बनने वाली वंदना मिश्रा को अपना प्रत्याशी घोषित करने के बाद भाजपा की मुश्किल बढ़ा दी हैं. वंदना ब्राह्मण हैं और भाजपा इस जाति के वोट को अपना सुरक्षित वोट मानकर यूपी में पिछड़ी जातियों के चेहरों को एहमियत ज्यादा देती रही है.
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कान पर रीछ जैसे बाल और फिर धोखे से 27 औरतों से शादी... सच बात है, पैसे में दम तो बहुत है!
ओडिशा के फर्जी डॉक्टर ने क्या किया, क्या नहीं वो एक अलग बात है. मगर उन 27 औरतों के जज्बे को जरूर सलाम रहेगा जिन्होंने इससे शादी की. कमाल की बात ये है कि इन औरतों को रुपए तो दिखे लेकिन डॉक्टर साहब के कान पर रीछ की तरह लगे बाल नहीं. क्लियर हो गया पैसा ही बोलता है. पैसे में ही दम है.
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