समाज | 2-मिनट में पढ़ें
औरतों की ग़ायब इच्छाओं के दौर में तमाम चीजें कचोटती हैं, जबरन निर्जला रहना भी...
तीज का त्योहार उस पर महिलाओं को व्रत रखते देखकर ख्याल आया कि, आस्था अपनी इच्छा पर रखी जाने वाली चीज है. पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की इच्छा गाहे-बगाहे गौण हो जाती है. कैसे मान लूं कि यह केवल आस्था की ही बात है? डर या ज़ोर-ज़बरदस्ती की नहीं?
समाज | एक अलग नज़रिया | 4-मिनट में पढ़ें
समाज | 7-मिनट में पढ़ें
एक्टर रत्ना पाठक शाह से सवाल ही नावाजिब हुए हैं, जवाब सुनकर हैरत कैसी!
बहुत काम कर के उम्र और अनुभव से बड़ी बूढी हैं. किन्तु आश्चर्य है पिंकविला रत्ना पाठक शाह से करवा चौथ का सवाल पूछता है. कायदे से सवाल तो धर्म परिवर्तन पर होना चाहिए था अथवा रोज़ों पर पूछना चाहिए कि क्या आप रोजा रखती हैं? अब अगर रत्ना पाठक कहें कि 'मैं पागल नहीं हूं जो इस रूढ़िवादिता में विश्वास कर महीने भर भूखी प्यासी रहूं ', तो आगे अल्लाह जी ही मालिक है.
समाज | 3-मिनट में पढ़ें
रत्ना पाठक को कोई हिंदू त्योहारों का महत्व समझाए वरना हमारी अक्ल पर ताले लगवाए!
ज़रा कोई रत्ना पाठक (Ratna Pathak) को पूछे कि बुर्क़े में क्या क्रांति हो रही है? बहूपत्नी विवाह वाले समुदाय में औरतें कितनी आज़ाद हैं? पीरियड आते ही उस क़ौम की लड़कियों की शादी करवा दी जाती है वो सऊदी अरब होता नहीं दिखता क्या? ख़ाली हिंदुओं के त्योहार से ही भारत सऊदी हो जाएगा?
समाज | 5-मिनट में पढ़ें
संस्कृति | 2.85 minutes watch-मिनट में पढ़ें
संस्कृति | 4-मिनट में पढ़ें







