
सरिता निर्झरा
लेखिका महिला / सामाजिक मुद्दों पर लिखती हैं.
सिनेमा | 5-मिनट में पढ़ें
सोशल मीडिया | 6-मिनट में पढ़ें

Bipasha Basu pregnancy photoshoot मातृत्व का उत्सव है, इस बदलाव को चीयर्स
मां बनना सुखद ही नहीं बल्कि स्त्री पुरुष के रिश्ते को एक अलग ताकत देता है, जिसका उत्सव तो बनता है. जब होने वाले पिता के रूप में करन ग्रोवर और मां बनने जा रही बिपाशा बसु (Bipasha Basu) दोनों ही इससे ख़ुशी पा रहे तो हम और आप दाल-भात में मूसलचंद क्यों बने हैं?सोशल मीडिया | 6-मिनट में पढ़ें

'पुरुष प्रधान समाज में निर्लज्ज औरतें...' मुकेश खन्ना जी का लड़कों को ज्ञान हैरान करने वाला है!
मुकेश खन्ना को लड़कों की चिंता है. सही है. लेकिन उन्होंने ये बिना जाने कहा कि, जब तक घर का कुलदीपक इंटरनेट पर ऐसी निर्लज्ज लड़कियों को खंगालेगा नहीं, वो उसकी खिड़की पर दस्तक न देंगी. लेकिन क्या है न कि शक्तिमान की भी उम्र अब हो गयी है.समाज | 7-मिनट में पढ़ें

एक्टर रत्ना पाठक शाह से सवाल ही नावाजिब हुए हैं, जवाब सुनकर हैरत कैसी!
बहुत काम कर के उम्र और अनुभव से बड़ी बूढी हैं. किन्तु आश्चर्य है पिंकविला रत्ना पाठक शाह से करवा चौथ का सवाल पूछता है. कायदे से सवाल तो धर्म परिवर्तन पर होना चाहिए था अथवा रोज़ों पर पूछना चाहिए कि क्या आप रोजा रखती हैं? अब अगर रत्ना पाठक कहें कि 'मैं पागल नहीं हूं जो इस रूढ़िवादिता में विश्वास कर महीने भर भूखी प्यासी रहूं ', तो आगे अल्लाह जी ही मालिक है.सिनेमा | 5-मिनट में पढ़ें

शमशेरा जैसी फिल्मों का पिटना बॉलीवुड में बदलाव की दस्तक तो नहीं?
'द फिल्म इस डिफरेंट' कहने से फिल्म अलग नहीं होगी. ये समझना ज़रूरी है. जादू बॉलीवुड के पिटारे में तब तक नहीं आएगा जब तक स्टार को छोड़ कर कलाकार का गर्दा नहीं उड़ेगा. बॉलीवुड के तथाकथित गुटों को समझना होगा कि अब बदलाव के दौर में बदलने और थोड़ा दिमाग लगाने का समय आ गया है.सियासत | 4-मिनट में पढ़ें
समाज | 6-मिनट में पढ़ें

Kaali Poster Controversy: अभिव्यक्ति की आज़ादी पर केवल हिन्दू धर्म की बलि क्यों?
धर्म का प्रेम, जूनून बन किस किस रूप में आता है इसके बारे में अब तो बताने की आवश्यकता नहीं है. हिन्दू धर्म तो यूं भी अपने देश में पुराने समय से रौंदे जाने के लिए बना है. इसका मखौल बाहर वालों से ज्यादा अपनों ने उड़ाया है. अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर केवल हिन्दू देवी-देवता ही क्यों?सिनेमा | 5-मिनट में पढ़ें

नुसरत की 'जनहित में जारी' फिल्म देखना जनहित के लिए जरूरी है!
सवा सौ करोड़ से ऊपर की आबादी वाले देश में देश में सेक्स और कंडोम जैसे शब्द खुले में बोलना बेशर्मी समझी जाती है. ऐसे में डायरेक्टर जय बसंतू की नुसरत भरूचा स्टारर 'जनहित में जारी' इसलिए भी देखी जानी चाहिए क्योंकि तमाम मुद्दे हैं जिनपर अब तक पर्दे पड़े थे उन्हें फिल्म में बड़ी ही शालीनता के साथ दिखाया गया है.सियासत | 6-मिनट में पढ़ें

Udaipur Murder Case: सेक्युलरिज्म के नाम पर ऐसे छला और मारा जा रहा है हिंदू...
सोशल मिडिया पोस्ट को आपत्तिजनक मानते हुए इस्लामिक कट्टरपंथ से सराबोर दो मुस्लिम युवकों ने उदयपुर के एक दर्जी कन्हैया लाल की हत्या कर दी. हिंदुस्तान सकते में हैं लेकिन बोलने की हिम्मत नहीं हो रही कि मारने वाले इस्लाम धर्म के कट्टरवादी हैं. ये खुलकर कहने में जाने कौन सा डर है?सिनेमा | 7-मिनट में पढ़ें

निर्मल पाठक की घर वापसी - ज़मीन से जुडी भारत की तस्वीर!
निर्मल पाठक की घर वापसी - यह सीरीज़ न नकारात्मकता के अंधकार वाली है, न ही सकारात्मकता का एक्सेसिव डोज़. बस जो है जैसा है वैसा आपके सामने है. एक ऐसी सीरीज है जो कहानी के इर्द-गिर्द घूमती है. हर किरदार उस कहानी को जीता हुआ मालूम होता है. एक पूरा जिगसॉ पज़ल है जिसका हर किरदार बिल्कुल सही फिट हुआ है और मध्य में है कहानी - कहानी निर्मल पाठक की.समाज | 5-मिनट में पढ़ें

पश्चिम बंगाल में सिद्ध हुआ कि सबसे बड़ी मर्दाना कमज़ोरी है 'अहम्'!
बाहर काम कर के आया पुरुष एक प्याली गरम चाय पूरे हक़ से मांगता है. वहीं बाहर से काम कर के आयी स्त्री घर से दूर रहने के अपराध बोध को लिए हुए आती है और दोगुने जोश से घर में खटती है ताकि कोई उस पर लापरवाही, पैसों की अकड़ का इलज़ाम न लगा पाए. और कहीं ये ताना-बाना बिगड़ जाए, तो उसकी जान के भी लाले हैं.ह्यूमर | 5-मिनट में पढ़ें
