सियासत | 3-मिनट में पढ़ें
काशी की टेंट सिटी का मकसद भोले के भक्तों की सेवा नहीं, अमीरों का विलास है!
बनारस में टेंट सिटी का निर्माण व्यापक स्तर पर किया गया है. बनारस में ऐसे कई होटल हैं जो लोकल बनारस के लोगों के द्वारा संचालित हैं जिसका उपयोग विदेशी मेहमान और हमारे देश के कई लोग घूमने के दौरान रुकने के लिए करते हैं पर अब ये काम भी पूंजी पति वर्ग करेगा.
समाज | 4-मिनट में पढ़ें
साम्यवाद की बकलोली कर कांवड़ियों को घेरने वाले समझ लें, कांवड़ उठाने के लिए भरपूर गूदा चाहिए!
साम्यवाद की बकलोली करने वाले कितनी जल्दी ये जता देते हैं कि मजदूर होना लानत है.अफसरशाही को कोसने वाले, वही बनने की बात कहते भी हैं तो किस तर्क से? एक आदमी जो कांवड़ में 120 किलो गंगाजल लेकर आया है, ये इसका गूदा है भई! और किसको पता कि ये पढ़ा लिखा नहीं है? क्या पढ़ाई लिखाई का ये मतलब है कि आदमी की लिमिट्स क्रॉस करने की कैपेबिलिटी खत्म हो जाए?
सोशल मीडिया | 5-मिनट में पढ़ें
Kaali Poster Controversy: काली विचित्र हैं या नहीं, लेकिन लीना 'विकृत' जरूर हैं!
विवादित काली फिल्म को बनाने वाली लीना मनिमेकलाई ने फिर से एक विवादित ट्वीट पोस्ट किया और कहा है कि, 'मेरी काली क्वीर हैं. वह पूंजीवाद को नष्ट करती हैं. लीना का ये ट्वीट करना भर था सोशल मीडिया पर लोगों को एक बार फिर से बहस का मौका मिल गया है. ट्वीट के बाद इतना तो साफ़ है कि लीना विकृत जरूर हैं.
सोशल मीडिया | 5-मिनट में पढ़ें
सोशल मीडिया | 5-मिनट में पढ़ें
ज्ञानवापी में शिवलिंग मिला, तो लोग 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' के नाम पर गंदगी क्यों फैलाने लगे?
ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) में मिले शिवलिंग (Shivling) को लेकर फैसला अदालतों को करना है. लेकिन, सोशल मीडिया (Social Media) पर ये कौन से लोग हैं, जो 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' के तहत खुद ही जज बनकर फैसला सुनाने बैठ गए हैं. हिंदू पक्ष के दावों को खारिज करने के लिए शिवलिंग के खतने से लेकर अपशब्दों की भरमार लगा दी गई है.
संस्कृति | 4-मिनट में पढ़ें
ज्ञानवापी पुनरुद्धार: अत्याचार का उपचार करना हमारा अधिकार भी, कर्त्तव्य भी
शंकराचार्य की प्रेरणा के बाद कई प्राचीन मंदिरों के घंटे पुनः बजने लगे. ऐसा इस देश ने बहुत बार देखा है. हमारे ज्ञान केंद्र और मंदिर छीने गए, अपवित्र हुए. लेकिन उचित समय आने पर उन्हें पुनर्प्रतिष्ठा मिली. हालांकि कभी प्रतिक्रिया स्वरूप दूसरे धर्म/पंथ को दंडित नहीं किया गया. बस अपनी पुनर्प्रतिष्ठा कर ली गई.
संस्कृति | 6-मिनट में पढ़ें
संस्कृति | 7-मिनट में पढ़ें
भगवान क्या हमारा सुख नहीं चाहते, जो उन्होंने सतयुग रोककर कलयुग ला दिया? एक विमर्श...
भगवान को हम रचयिता, ब्रह्मा, क्रीएटर के रूप में अपने हिसाब से, अपनी श्रद्धा से रीनेम कर सकते हैं. या, साइंसदानों के लिए सबसे आसान और पचाने योग्य शब्द है. सवाल ये है कि हम इंसान, जब भी सुख शांति की बात करते हैं, तब सिर्फ खुद को केंद्र में रखकर सोचते हैं. क्या हम इंसानों का सुख शांति से रहना ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सुख से रहना है?
संस्कृति | बड़ा आर्टिकल






