
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
लेखक पुस्तकों और फिल्मों की समीक्षा करते हैं और इन्हें समसामयिक विषयों पर लिखना भी पसंद है.
ह्यूमर | 3-मिनट में पढ़ें

बच्चों को ‘सेरेलेक’ कितना देना है से लेकर कुत्तों के बिस्किट तक अपने पास ज्ञान भरपूर है!
आज का जैसा माहौल है लोगों के पास इतना ज्ञान है कि वो संभाले नहीं संभल रहा. ऐसे लोगों को सिर्फ मौका चाहिए ये अपनी ज्ञान की छींटें हर जगह बिखेर देते हैं. चूंकि हर आदमी हर मामले का एक्सपर्ट है तो हमें भी यही चाहिए कि जिन लोगों से हमें बिन मांगा ज्ञान मिल रहा है उन्हें हमें इसे वापस भी करना चाहिए.समाज | 4-मिनट में पढ़ें

साम्यवाद की बकलोली कर कांवड़ियों को घेरने वाले समझ लें, कांवड़ उठाने के लिए भरपूर गूदा चाहिए!
साम्यवाद की बकलोली करने वाले कितनी जल्दी ये जता देते हैं कि मजदूर होना लानत है.अफसरशाही को कोसने वाले, वही बनने की बात कहते भी हैं तो किस तर्क से? एक आदमी जो कांवड़ में 120 किलो गंगाजल लेकर आया है, ये इसका गूदा है भई! और किसको पता कि ये पढ़ा लिखा नहीं है? क्या पढ़ाई लिखाई का ये मतलब है कि आदमी की लिमिट्स क्रॉस करने की कैपेबिलिटी खत्म हो जाए?समाज | 5-मिनट में पढ़ें

Kanhaiya Lal की मौत के बाद लोग इधर-उधर मुंह कर रहे हैं और पैरेलल यूनिवर्स एक्टिव हो गया है!
फ्रांस में किसी ने कार्टून बनाकर मज़ाक बनाया था तो उसकी ऑन स्पॉट गर्दन काट दी गई थी. काटने वाले के अरबी पापा भी ऐसे इधर-उधर देखने लगे थे जैसे कुछ हुआ ही नहीं. अभी फिर उदयपुर में पसंद की बात न करने पर गर्दन कटी है. बेशर्मी से ज़िम्मेदारी भी ली गई है. अब फिर कुछ पापा लोग इधर-उधर मुंह कर रहे हैं. पैरेलल यूनिवर्स फिर एक्टिव हो गया है.ह्यूमर | 3-मिनट में पढ़ें

भूल भुलैया 2 की तुलना KGF 2 से... मजाक भी हद में रहे तो अच्छा है!
भूल भुलैया 2 रिलीज हुए अभी वक़्त ही कितना हुआ है? फिल्म की तुलना साउथ सुपर हिट फिल्म KGF 2 से हो रही है. फिल्म अच्छी है या बुरी इसपर कुछ कहना जल्दबाजी है लेकिन जैसे ट्रेंड हैं उन्हें देखकर लग रहा है कि साउथ फिल्म्स कुछ ज़्यादा ही कामयाब हो रही हैं इसलिए इस गिरी पड़ी फिल्म को हथेली लगाई जा रही हैं. इसकी हाइप बनाई जा रही है.ह्यूमर | 3-मिनट में पढ़ें

फिर 'दयालु' औरंगजेब के लिए सभा में तालियां बजीं जो अब तक बज रही हैं!
मुगलिया सल्तनत के सबसे विवादित पात्रों में से एक औरंगजेब के समर्थक लगातार उसकी शान में कसीदे पढ़ रहे हैं. ऐसे लोगों का प्रयास यही है कि किसी भी सूरत में औरंगजेब को एक ही समय में महान और दयालु दोनों दर्शा दिया जाए और इसके लिए औरंगजेब समर्थक किसी भी सीमा पर जाने को तैयार हैं.संस्कृति | 6-मिनट में पढ़ें
ह्यूमर | 3-मिनट में पढ़ें

बस डर है कि 'विमल' के दाने-दाने जैसी 'केसरी' न हो जाए अपने कानपुर की मेट्रो!
कानपुर में मेट्रो आने के बाद लोगों की एक बड़ी आबादी है जो दूर-दूर से घूमने और सेल्फी लेने के लिए मेट्रो के अंदर आ रही है और माहौल किसी जलसे जैसा है. अब जबकि लोग आ ही रहे हैं तो कानपुर वालों से बस इतनी गुज़ारिश है कि इसे विमल केसरी के रंग में न रंगे तो अच्छा है.ह्यूमर | 6-मिनट में पढ़ें

Roy Sullivan वो जिससे बादल और बिजली ने मौज खूब ली फिर अगली बार के लिए जिंदा छोड़ा!
जीवन है तो मुसीबतें हैं. लेकिन हमारे बीच ऐसे तमाम लोग हैं. जिनपर जब मुसीबत आती है तो वो उसे झेल नहीं पाते और फिर निराश होते हैं और टूट जाते हैं. ऐसे लोगों को Roy Sullivan के बारे में जरूर जानना चाहिए, रॉय की कहानी जहां हंसाती है.. तो वहीं ये भी बताती है कि मुसीबतें आएंगी लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि इंसान को ज़िन्दगी जीनी छोड़ देनी चाहिए.संस्कृति | 7-मिनट में पढ़ें

भगवान क्या हमारा सुख नहीं चाहते, जो उन्होंने सतयुग रोककर कलयुग ला दिया? एक विमर्श...
भगवान को हम रचयिता, ब्रह्मा, क्रीएटर के रूप में अपने हिसाब से, अपनी श्रद्धा से रीनेम कर सकते हैं. या, साइंसदानों के लिए सबसे आसान और पचाने योग्य शब्द है. सवाल ये है कि हम इंसान, जब भी सुख शांति की बात करते हैं, तब सिर्फ खुद को केंद्र में रखकर सोचते हैं. क्या हम इंसानों का सुख शांति से रहना ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सुख से रहना है?समाज | 3-मिनट में पढ़ें

आखिर कैसे छठ पर हमने बिहारियों का नहीं, अपना मजाक बनाया है?
न्यूक्लियर फैमिलीज़ बनाते बनाते हम इतने परमाणु हो गए हैं कि पूजा पाठ क्रिया कार्य में भी सारे परिवार को इकट्ठा करना बंद कर दिया है. इसके ठीक उलट, छठ पर गांव गयी एक मित्र के द्वारा पता चला कि करीब चालीस पचास परिवार के सदस्यों के साथ वह छठ मना रही है. इतने लोग तो हमारी पूरी गली में इकट्ठे करने मुश्किल हैं. इतने रिश्तेदार मैंने इकट्ठे साथ कब देखे थे, मुझे याद नहीं.स्पोर्ट्स | 6-मिनट में पढ़ें

भारत में खेलना फिर खिलाड़ी का देश के लिए मेडल लाना आसान तो किसी सूरत में नहीं है!
ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन के बात तरह तरह की बातें उठ रही हैं ऐसे में ये बताना बहुत जरूरी है कि किसी खिलाड़ी को मेडल दिलवाना किसी नेता के बस की बात नहीं है.मेडल का सीधा सच्चा संबंध उस खिलाड़ी से है जो चलते टाइमर पर निगाह टिकाए अपनी बारी का इंतज़ार करता हुआ नर्वस हो रहा है.टेक्नोलॉजी | 2-मिनट में पढ़ें