समाज | एक अलग नज़रिया | 3-मिनट में पढ़ें
समाज | 5-मिनट में पढ़ें
कंडोम को 'छतरी' कहने वाला समाज औरतों के 'ऑर्गेज़म' कहने, और चाहने पर तो बौखलाएगा ही
रोटी, कपड़ा, मकान व्यक्ति की बुनियादी ज़रूरते हैं. भूख, प्यास, मूत्र, मल और संभोग जैविक जरूरतें हैं. प्राथमिकता के हिसाब से पहले जैविक जरूरतें पूरी होनी चाहिए. होती भी है. लेकिन सिर्फ पुरुषों की. महिलाओं तक आते आते आखिरी ज़रूरत को 'गंदी बात' कह के ख़ारिज कर दिया जाता है.
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