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Scoop Web series Review: मीडिया के वर्तमान स्वरूप का सहज आईना है स्कूप
आजकल हेडलाइन मैनेजमेंट के नाम पर सनसनीखेज शब्दों का इस्तेमाल आम है, प्रश्नवाचक मुद्रा में अनर्थ करने की स्वतंत्रता जो है. वेब सीरीज की बात करने के पहले हाल ही में हुई ह्रद्य विदारक रेल दुर्घटना की रिपोर्टिंग की बानगी देखिए- एक नामी गिरामी महिला पत्रकार ने, जिनके पति भी फेमस और वेटरेन पत्रकार हैं और एक बड़े मीडिया हाउस से जुड़े हैं, इस रेल दुर्घटना को कत्लेआम, हत्याकांड निरूपित कर दिया.
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मीडिया की नासमझी है कि एससी के हवाले से जो नहीं हुआ उसे भी आदेश बता दिया!
आदर्श स्थिति होती कि मीडिया खेद प्रकट करती और कहती कि उनके गलत विश्लेषण की वजह से न्यायमूर्ति को स्पष्टीकरण देना पड़ा, 'न्यायाधीश वर्मा स्टे के दायरे में नहीं आएंगे क्योंकि 'योग्यता- सह-वरिष्ठता' का पालन करने पर भी उनकी पात्रता है.
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हंगामाखेज नहीं, समाधानमूलक हो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
The Fourth Pillar of Democracy: संचार का उद्देश्य समस्याओं का समाधान देना रहा है. संचार क्षेत्र के अधिष्ठाता देवर्षि नारद की संचार प्रक्रिया एवं सिद्धांतों को जब हम शोध की दृष्टि से देखते हैं तब भी हमें यही ध्यान आता है कि उनका कोई भी संवाद सिर्फ कलह पैदा करने के लिए नहीं था.
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