सियासत | 5-मिनट में पढ़ें
Tibet National Uprising Day: भारत के नजदीक हुई 2 कहानियां, जीत दोनों में भारत की हुई!
तिब्बती विद्रोह दिवस न केवल तिब्बत और दलाई लामा के लिए बल्कि चीन के खिलाफ भारत के लिए भी महत्वपूर्ण मुद्दा है. भारत एक ऐसा देश है जिसने हमेशा ही उन लोगों की मदद की. जिन्होंने उसकी तरफ देखा. तिब्बत की ही तरह भारत ने पूर्व में बांग्लादेश की भी मदद की है और कारण खासा रोचक है.
सियासत | 5-मिनट में पढ़ें
ऑस्ट्रेलियाई स्कूली पाठ्यक्रमों में पंजाबी भाषा शामिल होना गर्व की बात तो है!
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने हाल में लागू की अपनी नई शिक्षा नीति में अब पंजाबी भाषा को भी जोड़ लिया है. उनके इस निर्णय को भारत सरकार और प्रत्येक भारतीयों ने खुलेदिल से सराहा है. ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने अपने सभी निजी व सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रमों में पंजाबी को पढ़ाने का फैसला किया है जो प्री-प्राइमरी से लेकर 12वीं तक के पाठ्यक्रमों में अब से पढ़ाई जाया करेगी.
समाज | 7-मिनट में पढ़ें
विश्व हिंदी दिवस: कुछ खरी खरी सुनने सुनाने की जरूरत आन पड़ी है!
World Hindi Day 2023: हिंदी प्रतिष्ठित हो रही है. अब किसी की जुर्रत नहीं है कहने की कि यदि सुंदर पिचाई आईआईटी में हिंदी में परीक्षा देते तो क्या गूगल में टॉप पोस्ट पर होते? निःसंदेह होते. मल्टीनेशनल जायंट के लिए ज्ञान मायने रखता है और ज्ञान भाषा का मोहताज नहीं होता.
समाज | 6-मिनट में पढ़ें
समाज | 4-मिनट में पढ़ें
समाज | 3-मिनट में पढ़ें
हिंदी दिवस को एक और वर्ष बीत गया लेकिन आज भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है!
हिंदी दिवस भले ही ख़त्म हो गया हो लेकिन कहा यही जाएगा कि हम वो लोग हैं जो हिंदी में ही सोचते हैं, हिंदी ही पढ़ते और सुनते हैं, हिंदी ही लिखते हैं इसलिए कहीं न कहीं हमारी दिली इच्छायही है कि हमारा हिंदुस्तानी समाज हिंदी बोलने को ही प्राथमिकता दे और हर घर हिंदी, हर दर हिंदी नजर आये.
समाज | बड़ा आर्टिकल
Hindi Diwas 2022: हिंदुस्तान की अपनी राष्ट्र भाषा क्यों नहीं होनी चाहिए?
'हिन्दी संस्कृत की बेटियों में सबसे अच्छी और शिरोमणि है.' ये शब्द बहुभाषाविद और आधुनिक भारत में भाषाओं का सर्वेक्षण करने वाले पहले भाषा वैज्ञानिक जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन के हैं. नि:संदेह हिन्दी देश के एक बड़े भू-भाग की भाषा है. महात्मा गांधी ने हिन्दी को जनमानस की भाषा कहा था. वह कहते थे कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है.
समाज | बड़ा आर्टिकल
जिस 'देस' में कोस कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी, निःसंदेह हिंदी कॉमन है
हिंदी को लेकर एक वर्ग विशेष का विरोध कोई नयी बात नहीं है. ऐसे भी लोग हैं जो एक भाषा के ,रूप में हिंदी को हिंदू से जोड़ देते हैं. कह सकते हैं कि जो हम बोल रहे हैं, लिख रहे हैं, वह 'हिंदी' की जगह कुछ और नाम से जानी जाती तो शायद विरोध होता ही नहीं!
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