
रमेश ठाकुर
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समाज | 5-मिनट में पढ़ें

हिंदुस्तान के 'टॉयलेट मैन बिंदेश्वर पाठक' छोड़ गए संसार
पाठक का स्वच्छता आंदोलन स्वच्छता सुनिश्चित करता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकता है. ग्रामीण समुदायों तक इन सुविधाओं को पहुंचाने के लिए इस तकनीक को अब दक्षिण अफ्रीका की ओर भी बढ़ा दिया है. ऐसे व्यक्ति का यूं चले जाना, निश्चित रूप से बड़ा अघात है. उनके न रहने की क्षति को कोई पूरा नहीं कर सकता.समाज | 5-मिनट में पढ़ें

Seema-Sachin Love Story: सीमा की प्रेमकथा में उलझी जांच एजेंसियां
अगर सीमा हैदर पाकिस्तान की जासूस निकली तो इसके पीछे भारतीय खूफिया तंत्र की घोर लापरवाही मानी जाएगी. खूफिया एजेंसियों को छोड़ो, स्थानीय पुलिस और राज्य सरकार को भी भनक नहीं हुई. जैसे हाल हैं यूपी पुलिस, सुरक्षा एजेंसियों, लोकल इंटेलिजेंस और पुलिसिंग बीट के लिए सीमा की कहानी किसी भंयकर सिर दर्द से कम नहीं है.सियासत | 4-मिनट में पढ़ें

क्या केंद्र सरकार की तरफ से जनसंख्या रोकने का कारगर हथियार बनेगा UCC?
सरकार का स्लोगन ‘हम दो हमारे दो’ भी बढ़ती आबादी के समाने फीका पड़ चुका है. इसे कुछों ने अपनाया, तो कईयों ने नकारा? भारत के अलावा इथियोपिया-तंजानिया, संयुक्त राष्ट्र, चीन, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान, युगांडा, इंडोनेशिया व मिश्र भी ऐसे मुल्क हैं जहां की स्थिति भी कमोबेश हमारे ही जैसी है. लेकिन इन कई देशों में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए कानून अमल में आ चुके हैं.सियासत | 5-मिनट में पढ़ें

तो क्या संघ के सर्वे ने डाल दिए हैं पीएम मोदी के माथे पर चिंता के बल?
संघ ने अपने सर्वे में पाया है कि भाजपा के पास चुनाव जीतने के लिए इस वक्त एक ही सिंगल चेहरा है और वह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. तय है अगर 2024 में भाजपा नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करती है तो 180 सीटें जीत सकती है. अगर ऐसा नहीं होता है तो 30-35 सीटों पर सीधा नुकसान होगा.सियासत | 4-मिनट में पढ़ें

Karnataka Election Results 2023: भाजपा कब तक रहेगी मोदी ब्रांड पर निर्भर?
चुनावी पंड़ित कर्नाटक रिजल्ट के बाद समीक्षात्मक बयान देने लगे हैं कि क्या अब मोदी-शाह का दौर अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया है या फिर भाजपा कब तक मोदी ब्रांड पर निर्भर रहेगी. वहीं, कांग्रेस की जीत के बाद यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या अगले आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की राहें और मुश्किल होंगी?सियासत | 7-मिनट में पढ़ें

चीनी सामान की गारंटी नहीं, तो गीदड़-भभकी पर क्यों हों परेशान?
हमसे हजारों किलोमीटर दूर पर बैठे लोग पहले से तय हमारे स्थानों के नाम बदलने की बात करता है.इससे उनके दिमाग का दिवालियापन ही कहा जाएगा. ऐसे तो हमारी सरकार भी दिल्ली में बैठकर शंघाई का नाम ‘संघर्ष नगर’ रख देगी, तो क्या उससे उसका नाम संघर्ष नगर हो जाएगा. नाम तो नहीं बदलेगा. पर, उपहास जरूर उड़ेगा, जैसा इस वक्त चीन का उड़ रहा है.सियासत | 5-मिनट में पढ़ें

राजनीतिक पेचीदगी में क्यों फंसी सारस-आरिफ की मित्रता?
यूपी में आरिफ और सारस की दोस्ती ने सारस को बचाने के प्रयास में शांत हो चुके शासन-प्रशासन स्तर की कोशिशों में भी चेतना ला दी है. यूं कहें कि एक इंसान और एक पक्षी की दोस्ती की ललकार ऐसे फैली कि सबको गहरी नींद से जगा दिया. फिलहाल इस प्रकरण ने ‘सारस संरक्षण अभियान’ को फिर से हवा देने के साथ-साथ सियासत भी तेज हो गई है.समाज | 5-मिनट में पढ़ें

किसानों की कैसे हो कुदरत के कहर से बर्बाद हुई फसल की भरपाई?
बीते लगातार कुछ वर्षों से बेमौसम बारिश ने समूचे देश में कहर बरपाया हुआ है. बेमौसम बारिश तभी होती है, जब किसानों की फसलें खेतों में अधकची लहलहाती होती हैं. लगता है खेतीबाड़ी को किसी की नजर लग गई. क्योंकि फसलें खेतों में जब पककर खड़ी होती है. तभी, कुदरत का रौद्र रूप उन्हें उजाड़ देता है.सियासत | 5-मिनट में पढ़ें

ऑस्ट्रेलियाई स्कूली पाठ्यक्रमों में पंजाबी भाषा शामिल होना गर्व की बात तो है!
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने हाल में लागू की अपनी नई शिक्षा नीति में अब पंजाबी भाषा को भी जोड़ लिया है. उनके इस निर्णय को भारत सरकार और प्रत्येक भारतीयों ने खुलेदिल से सराहा है. ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने अपने सभी निजी व सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रमों में पंजाबी को पढ़ाने का फैसला किया है जो प्री-प्राइमरी से लेकर 12वीं तक के पाठ्यक्रमों में अब से पढ़ाई जाया करेगी.सियासत | 6-मिनट में पढ़ें

Russia Ukraine War: अंतर्विरोध संसार की देन है साल भर युद्ध का खींचना...
युद्व के बाद रूस के अंदरूनी हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं. बेरोजगारी और महंगाई की समस्या दिनों दिन बढ़ रही है. इसका प्रमुख कारण उन पर लगा आर्थिक प्रतिबंध है. ज्यादातर मुल्कों ने रूस के साथ आयात-निर्यात करना बंद कर दिया है. सिर्फ भारत एक ऐसा देश है जो राजी रखे हुए है.समाज | 5-मिनट में पढ़ें

बाल विवाह के खिलाफ समूचे हिंदुस्तान में असम जैसी मुहिम की दरकार है
बाल विवाह के खिलाफ असम सरकार द्वारा चलाया जा रहा अभियान चर्चा में है. ऐसे अभियान पहले भी विभिन्न राज्यों में खूब चले, लेकिन धीरे-धीरे कमजोर पड़े. पर मौजूदा मुहिम ने फिर से ताकत दी है, नई चेतना जगाई है. इसकी वजह से खलबली हिंदी पट्टी से लेकर पहाड़ी राज्यों तक मची हुई है.सियासत | 4-मिनट में पढ़ें
