समाज | बड़ा आर्टिकल
प्रिये प्रियतमा, आज एकबार फिर तुम्हारी नगरी में हूं...
किसी बस स्टॉप पर बस के रूकने पर जब वो परचून वाला चढ़ता तो हमदोनों के ही जीभ लपलपा उठते थे और हमदोनों जी भरकर फिर अपना बचपन जीते. अबकी भी अभी उसी बस में बैठा हूं, पर अकेला. तुम नहीं हो साथ मेरे. पिछली सीट पर ही हूं और बस की उछल-कूद जारी है. पर इसबार बचपन नहीं, तुम्हारे साथ बिताए वो सारे पल जी रहा हूं.
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जो लोग कहते हैं कि पुरुष सैक्रिफाइस नहीं करते हैं, वे झूठ बालते हैं
यह धारणा गलत है कि सारा त्याग लड़कियां करती हैं. ऐसा कहने वाले शायद किसी जिम्मेदार शादीशुदा पुरुष से नहीं मिले हैं. पुरुष भी त्याग करते हैं. कभी बहन, कभी पत्नी, कभी मां तो कभी बेटी के लिए वो भी कुर्बानियां देते हैं. वो परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए दिन रात काम करते हैं.
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दिल्ली में 10 साल के बच्चे के साथ गैंगरेप, लड़कों का यह दर्द कौन समझेगा?
दिल्ली के सीलमपुर इलाके में एक 10 साल के बच्चे के साथ तीन लोगों ने गैंगरेप किया है. इस जमाने ने लड़कों को मजबूती की संज्ञा देकर कठोर बना दिया. इतना कठोर की वे अपने दर्द को जमाने के सामने लाने से डरते हैं. वे अपने आंसुओं को गालों पर गिरने से पहले ही आंखों में पी जाते हैं.
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रिलेशनशिप में लड़कों की इन 7 आदतों से लड़कियां हो जाती हैं निराश, उनसे बना लेती हैं दूरी
प्यार में पड़े कुछ लड़के किसी बात पर अपनी प्रेमिका से कहते हैं तुम रहने दो, मैं देखता हूं. पहली बार उनके मुंह से यह बात सुनकर लड़की को लगता है कि वे कितने केयरिंग है. मगर हर बार जब लड़की को यही लाइन सुनने को मिलती है तो वह समझ जाती है कि लड़का उसकी परवाह नहीं करता, बल्कि उसे असक्षम समझता है.
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