संस्कृति | 3-मिनट में पढ़ें

नवाब मीर जाफर की मौत ने तोड़ा लखनऊ का आईना...
मीर जाफर अब्दुल्ला की मौत से पूरा लखनऊ सूना हो गया है. मीर जाफर अब्दुल्ला सिर्फ एक नाम नहीं था ये एक तहज़ीब थे,तहरीक थे, एक तारीख़ थे. वो लखनऊ के नवाबों की सांस्कृतिक विरासत संजोने वाले नवाबीन दौर के नुमाइंदे ही नहीं थे बहुत कुछ थे. वो शहर-ए-लखनऊ की पहचान थे. इतिहासकार, किस्सागो, रंगकर्मी और फिल्म कलाकार भी थे.
सिनेमा | बड़ा आर्टिकल

बॉलीवुड में उर्दू के लिए नसीरुद्दीन की चिंता और हिंदी पर एमके स्टालिन की आशंका क्यों एक जैसी है?
भारत में इस वक्त अलगाववाद का भाव लिए तमाम तरह के बयान आ रहे हैं. कुछ पर बात हो रही है कुछ पर नहीं. मगर उन्हें गौर से देखिए- तो सबमें एक तगड़ा कनेक्शन साफ़ नजर आता है. क्यों इसे नसरुद्दीन शाह और एमके स्टालिन के अलग-अलग बयानों से भी समझा जा सकता है, जो असल में एक ही है. लेकिन इस पर कोई बहस नहीं होगी. जैसे देश के शहरों को कर्बला बना देने पर बहस नहीं हुई.
सोशल मीडिया | 6-मिनट में पढ़ें

एक ही पीरियड में एक ही ब्लैक बोर्ड पर हिंदी और उर्दू! नीतीश कुमार से सोनू की डिमांड गलत नहीं है
बिहार के कटिहार के एक स्कूल में छात्रों को एक ही ब्लैकबोर्ड पर हिंदी और उर्दू सीखते देखा गया. वीडियो इंटरनेट पर वायरल है और वीडियो देखने के बाद कहा जा सकता है कि अगर 11 साल के इंटरनेट सेंसेशन सोनू कुमार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अच्छी शिक्षा की बात की है तो उसमें गलत कुछ भी नहीं है.
समाज | 3-मिनट में पढ़ें

...और इस तरह व्यवसायिकता ने हिंदी को सर्कस का शेर बना दिया
Hindi Diwas 2021 : हिन्दी अखबार और हिन्दी फिक्शन इंडस्ट्री (हिन्दी सिनेमा, टीवी धारावाहिक, विज्ञापन इत्यादि) हिन्दी भाषा के सबसे बड़े प्लेटफार्म हैं. इनकी व्यवसायिक हवस ने आसान और आम बोलचाल की भाषा को परोसने के नाम पर हिन्दी का बलात्कार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
सियासत | 7-मिनट में पढ़ें

3 कारण क्यों मुनव्वर राणा का विरोध केवल मुस्लिम नहीं बल्कि हर साहित्य प्रेमी को करना चाहिए!
तमाम लोगों की तरह शायर मुनव्वर राणा ने भी तालिबान का समर्थन करते हुए अपने दिल की भड़ास निकाली है. अब क्योंकि मुनव्वर राणा पब्लिक डोमेन से आते हैं और शायर हैं इसलिए 3 कारणों के जरिये समझिये कि उनके कहे का विरोध केवल मुसलमानों को नहीं, बल्कि हर साहित्य प्रेमी को क्यों करना चाहिए.
समाज | 7-मिनट में पढ़ें

Mirza Ghalib Death Anniversary: हर दौर, हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ लिख गए हैं ग़ालिब!
15 फरवरी आज ही वो दिन था जब 1869 में दिल्ली में उर्दू और फ़ारसी शायरी के स्तंभ मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib Death Anniversary) की रूह परवाज़ कर गयी. जिस तरह अपनी क़लम से ग़ालिब ने उर्दू / फ़ारसी शायरी को एक नई धार दी कहना गलत नहीं है कि मिर्ज़ा के साथ अंत हुआ एक ऐसे युग का जिसके सूत्रधार वो ख़ुद थे.
समाज | 5-मिनट में पढ़ें
समाज | बड़ा आर्टिकल

इस्मत चुगताई ने बुर्के को अक्ल पर न पड़ने दिया, उस हौसले को सलाम!
इस्मत चुगताई (Ismat Chungtai) का शुमार उन लेखकों में है जिनके लिखे पर हमेशा ही विवाद हुआ. अपनी कहानियों में हमेशा ही महिलाओं के हक़ की आवाज़ उठाने वाली इस्मत ने हमें बताया कि एक मजबूत औरत (Empowered Women) क्या होती है. उनको पढ़कर हमने जाना कि वास्तविक महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) होता क्या है.
समाज | 6-मिनट में पढ़ें
