सिनेमा | 4-मिनट में पढ़ें

मिशन मजनू-बॉर्डर से घृणा करने वाला PAK भी अवैध तरीके से पठान में 'भारत भक्ति' देख रहा है
शाहरुख खान की पठान किस तरह से देशभक्ति फिल्म कही जा सकती है- अगर पाकिस्तान में उसे सामूहिक रूप से देखा और दिखाया जा रहा है. पाकिस्तान में भारतीय फ़िल्में बैन हैं इसके बावजूद. वहां बॉर्डर जैसी फ़िल्में हमेशा बैन रही जिसे देशभक्ति फिल्म माना जाता है. यहां तक कि मिशन मजनू को भी एंटी नेशनल कहा जा रहा है.
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कौन शाहरुख खान? KGF के नाम पर पठान के प्रमोशन में उड़ाई गई अफवाह, निकला वर्ल्ड बेस्ट जोक!
केजीएफ़ के नाम पर शाहरुख खान और पठान को लेकर खूब प्रमोशनल अफवाह उड़ाई गई. केजीएफ के निर्माता से जब अफवाहों से जुड़े सवाल हुए उन्होंने खारिज कर दिया और कहा कि पठान का दक्षिण के सिनेमा पर कोई असर नहीं पड़ने जा रहा है. बयान शाहरुख के कुछ प्रशंसकों को शर्मसार करने वाला है.
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मोदी को अब शाहरुख खान ही चैलेंज कर सकते हैं, राहुल-अखिलेशों से ना हो पाएगा
अखिलेश यादव ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष के लिए वह चेहरा खोज लिया है- पिछले नौ साल से टॉर्च की रोशनी में जिसे खोजा जा रहा था. ये चेहरा है शाहरुख खान का. थकाऊ यात्रा के बाद यह चीज राहुल के लिए निराशाजनक हो सकती है, मगर देश में सकारात्मकता लाने के प्रयास में जुटे लोगों के लिए पठान की कामयाबी बहुत बड़ी बात है.
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अपने काम की बजाए प्लास्टिक सर्जरी पर बॉलीवुड ने ज्यादा फोकस किया, वर्ना आज ना होती ऐसी हालत!
बॉलीवुड को देखें तो यहां प्लास्टिक सर्जरी और तमाम हथकंडों से नायक या नायिका होने के मानदंड गढ़े गए. समीरा रेड्डी ने बॉलीवुड की पोल खोल दी है. मगर दक्षिण में नायक या नायिका के शरीर की बनावट कोई बड़ा सवाल नहीं है. पहले भी नहीं था. वहां आज भी कौशल ज्यादा बड़ी चीज है.
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पठान के साथ 'साइलेंट रेबिलियन' शाहरुख की एक सिनेमाई यात्रा तो पूरी हुई, अब आगे का खेल क्या है?
मैं हूं ना से पठान तक शाहरुख खान की फिल्मों में एक निरंतरता और कनेक्शन नजर आता है. ऐसा लगता है जैसे शाहरुख मुसलमानों की छवि बदलने निकले हैं लेकिन नई-नई चीजें भी स्थापित कर रहे हैं. बावजूद कि वह रत्तीभर भी भारत का विचार नहीं है लेकिन विजुअल के जरिए वह भागीरथ प्रयास करते तो दिखते हैं. शाहरुख सच में एक शांत विद्रोही ही हैं जैसा कि एक पत्रिका ने कवर छापकर बताया भी है.
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पठान पर आज ही नहीं 20 साल बाद भी बात होगी, सबसे जरूरी मुद्दों को नजरअंदाज करना नासूर बनेगा!
पठान रिलीज हो गई है. यह दुनिया के किसी भी देश की कहानी हो सकती है भारत की नहीं. फिल्म में जिस तरह से एजेंडाग्रस्त चीजों को दिखाया गया वह संप्रभुता के लिहाज से एक खतरनाक ट्रेंड है. दुनिया के किसी भी देश में कला के नाम पर ऐसा नहीं किया जा सकता. पठान में इंडिया फर्स्ट की बजाए मनी फर्स्ट है- दुर्भाग्य से किसी समीक्षक ने इस बिंदु पर विचार नहीं किया.
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