सियासत | 4-मिनट में पढ़ें

क्या केंद्र सरकार की तरफ से जनसंख्या रोकने का कारगर हथियार बनेगा UCC?
सरकार का स्लोगन ‘हम दो हमारे दो’ भी बढ़ती आबादी के समाने फीका पड़ चुका है. इसे कुछों ने अपनाया, तो कईयों ने नकारा? भारत के अलावा इथियोपिया-तंजानिया, संयुक्त राष्ट्र, चीन, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान, युगांडा, इंडोनेशिया व मिश्र भी ऐसे मुल्क हैं जहां की स्थिति भी कमोबेश हमारे ही जैसी है. लेकिन इन कई देशों में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए कानून अमल में आ चुके हैं.
सियासत | 6-मिनट में पढ़ें

9 साल, 9 फैसले, वे जो मोदी को बनाते हैं 'मोदी'
हाल ही में हमारी सांस्कृतिक धरोहरों और हमारी आध्यात्मिक पहचान को समेटे हुए स्थापित हुई नई संसद ने ये एहसास और पुख्ता किया है. नई संसद में पूरे विधि विधान से राजदंड सेंगोल की स्थापना ने ये एहसास भी करा दिया है कि राजधर्म के पालन में मोदी पीछे हटने वाले नहीं, फिर चाहे कितनी भी चुनौतियां सामने क्यों न आएं.
सियासत | बड़ा आर्टिकल

राहुल गांधी ने तो कैम्ब्रिज में मोदी सरकार को कश्मीर पर सर्टिफिकेट ही दिया है
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (Cambridge University Lecture) में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने एक आतंकवादी से मुलाकात का किस्सा सुनाया है. ऐसा क्यों लगता है जैसे जमीनी हालात से वाकिफ होने के बाद वो मोदी सरकार की कश्मीर नीति (Modi Kashmir Policy) के दुरूस्त होने की तस्दीक कर रहे हों!
सियासत | 6-मिनट में पढ़ें

राहुल गांधी की कैंब्रिजीय कहानियों की जमीन कहां है?
भारत में दिए गए राजनीतिक भाषणों की तर्ज परकैंब्रिज में राहुल गांधी ने अपने सामान्य निरर्थक विचारों और झूठे दावों के साथ माहौल बनाने की कोशिश की हो. लेकिन वो अपनी ही कही बातों में कुछ ऐसा उलझे कि कहानी सुनने वाले लोगों के लिए कहानी के सिरे पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया.
सियासत | बड़ा आर्टिकल

राहुल गांधी न्यायपालिका और मीडिया को लेकर पूर्वाग्रह से भरे हुए क्यों हैं?
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) कुछ छात्रों को सुनने की कला सिखाने लंदन गये थे, लेकिन वो समाचार सुनने की भी जहमत नहीं उठायी जिसमें चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ऐसा फैसला सुनाया है जिसने मोदी सरकार (Narendra Modi) को खामोश कर दिया है.
समाज | 5-मिनट में पढ़ें
सियासत | 4-मिनट में पढ़ें

बजट तो बैलेंस लेकिन निर्मला समझें रसोई वाली समस्या अभी भी जस की तस है!
नए बजट में बजट में जितनी भी योजनाओं को लागू करने की बात कही गई है उन्हें ईमानदारी से अमल में लाया जाए. क्योंकि कई योजनाएं ऐसी होती हैं, साल बीत जाने तक शुरू नहीं होती. ये हर पिछले बजट में होता आया है, इसमें ऐसा ना हो, ऐसी सबको उम्मीदें हैं.
सियासत | बड़ा आर्टिकल

9 राज्यों और 2024 के आम चुनाव को देखते हुए बनाया गया है ये बजट
जानकार कहते हैं कि मध्यम वर्ग की होने वाली कमाई की तुलना में मंहगाई का बोझ भी बढ़ा है. इसलिए सरकार द्वारा 2023-24 में कड़वी दवाई पिलाने की उम्मीद कम दिखाई दे रही थी. पर यह भी सोचने वाली बात है कि यदि सरकार के पास पैसा नहीं आएगा तो लोक लुभावन काम या विकास की रफ्तार को कैसे संतुलित कर पाएगी.
सियासत | 6-मिनट में पढ़ें
