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समाज
| 6-मिनट में पढ़ें
आर.के.सिन्हा
@RKSinha.Official
हिन्दी में क्यों लुढ़क रहे हैं यूपी के छात्र
उत्तर प्रदेश में बोर्ड परीक्षा के दौरान छात्रों का हिंदी में फेल होना ये बता देता है कि उत्तर प्रदेश में शिक्षा का स्तर और उसपर सरकार का रवैया कैसा है.
समाज
| 7-मिनट में पढ़ें
बिलाल एम जाफ़री
@bilal.jafri.7
डॉ.केदारनाथ सिंह : गमछे-तौलिए, दो जूतों के बीच की बातों को पकड़ लेने वाला भावुक कवि
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह हमारे बीच नहीं रहे. उनकी कुछ कविताओं को पढ़िये और जानिये आज के इस दौर में हमें क्यों और किन कारणों के चलते उन्हें और उनकी कविता को याद रखना चाहिए.
समाज
| बड़ा आर्टिकल
बिलाल एम जाफ़री
@bilal.jafri.7
बाबा नागार्जुन : वो जनकवि जिसने, रोज़ी-रोटी, सूअर, कटहल और जन-गण-मन तक सब पर लिखा
हम अपने आस पास, बहुत सारी चीजों को देखते हैं और उन्हें नकारते या नजरअंदाज करते हुए निकल जाते हैं मगर एक कवि ऐसा नहीं कर पाता वो भी तब जब वो बाबा नागार्जुन जैसा कवि हो, जिसने आम आदमी के बीच बैठकर उनकी पीढ़ा को महसूस किया और उनकी व्यथा को जिया हो.
समाज
| 7-मिनट में पढ़ें
अनूप मणि त्रिपाठी
@anoopmani.tripathi.9
लेखनी! अब वो बस आत्महत्या करना चाहती है...
हाल फिल्हाल के दिनों में लेखकों का दोहरा चरित्र है वो असल जीवन में कुछ और हैं मगर अपने लेखन में आदर्शवादिता की बातें करते हैं. जब लेखक कलम उठाए तो इस जिम्मेदारी के साथ कि वो अपने प्रति खुद कितना ईमानदार है.
समाज
| 4-मिनट में पढ़ें
राठौर विचित्रमणि सिंह
@bichitramani.rathor
निराला : मानवता का सबसे सजग कवि जो बिन लाग लपेट लिखता था
छायावाद के प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का शुमार हिन्दी साहित्य के उन कवियों में है जिनकी कलम में जहां एक तरफ व्यवस्था के प्रति आक्रोश था तो वहीं दूसरी तरफ जो बिना किसी लाग लपेट के वास्तविकता को दर्शाना जानती थी.
संस्कृति
| 3-मिनट में पढ़ें
सौरभ रंजना सोनकर
@SaurabhAlfaazJaisy
साहित्य बदलता है, हिन्दी साहित्य बिल्कुल बदल रहा है
परिवर्तन समाज का नियम है और यही नियम साहित्य के क्षेत्र में भी लागू होता है. इसे हम स्वीकार तो कर सकते हैं, मगर इस शर्त के साथ कि, जिसे आज समाज द्वारा स्वीकार किया जा रहा है. ये कल उतना ही प्रभावी रहेगा जितना ये आज है.
समाज
| 7-मिनट में पढ़ें
बिलाल एम जाफ़री
@bilal.jafri.7
नरक में हों या स्वर्ग में, व्यवस्था पर परसाई के व्यंग्य आज भी बेजोड़ हैं
दुनिया के पागलों को शुद्ध पगला और भारत के पागलों को आध्यात्मिक मानने वाले हरिशंकर परसाई वो लेखक हैं जिन्होंने भारत के राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य को देखा और उसे हू-ब-हू हमारे सामने पेश किया.
समाज
| 7-मिनट में पढ़ें
बिलाल एम जाफ़री
@bilal.jafri.7
महंगी जींस, ब्रांडेड शर्ट और जूते, रे-बैन के चश्मे संग मैंने देखे हैं प्रेमचंद के बताए गांव
कोरे स्टेटस सिम्बल और 'लोग क्या कहेंगे' सरीखी भावना के चलते आज लोगों ने हिन्दी और हिन्दी साहित्य से दूरी बना ली है. ऐसे में ये बेहद जरूरी हो जाता है कि हम उन लोगों के बारे में जानें जिन्होंने हिन्दी साहित्य को सींचा और उसे संवारा.
समाज
| 4-मिनट में पढ़ें
नरेंद्र सैनी
@narender.saini
साहित्य 2015: झटपट किताबों के फेर में उलझी रही हिंदी
2015 का हिंदी साहित्य बोले तो झटपट साहित्य... ऐसा साहित्य जो खुद के लिए लिखा गया, खुद के बारे में कहा गया और आत्ममोह से जुड़ा रहा, जिसे भावों के ज्वार उठने पर एक झटके में लिखा गया.