सियासत | 5-मिनट में पढ़ें
ये कैसी बातें करने लगे हम?
वह आलोचना अच्छी थी, क्योंकि वह किसी सकारत्मक मुद्दे से जुड़ी थी. इस आलोचना के आइने में गर्वीला भारत बार-बार अपना चेहरा देखता था और जरूरत के मुताबिक मेकअप करके आगे बढ़ता था. इस विमर्श में गोमांस, हिंदू-मुस्लिम झगड़े, घर वापसी, राजपोषित गुंडागर्दी उर्फ असहिष्णुता या मध्ययुग में वापसी वाले प्रतिगामी विचार नहीं थे.
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