• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सिनेमा

आपके पास इज्जत है दौलत है शोहरत है ताकत है, लेकिन स्किल कहां से लाओगे शाहरुख बाबू?

    • आईचौक
    • Updated: 10 जनवरी, 2023 07:52 PM
  • 10 जनवरी, 2023 07:52 PM
offline
शाहरुख खान की पठान का ट्रेलर आ चुका है. पठान का ट्रेलर देखने के बाद सोशल मीडिया पर तमाम सवालों की चर्चा हो रही है. बहस में आ रहे तमाम सवालों को आईचौक ने पहले ही कई विश्लेषणों में परखा था. आइए चीजों को फिर से समझते हैं...

पठान का ट्रेलर आ चुका है. अब ट्रेलर को लेकर क्या ही कहा जाए? आई चौक ने तो 100 शब्दों में ही समीक्षा करना बेहतर पाया. कंप्यूटर पर बनी रा-वन अब भी शाहरुख खान की कम्प्यूटर पर बनी तमाम फिल्मों से बेहतर है. बच्चे आज भी रा-वन को टीवी पर बहुत चाव से देखते हैं. जब वह फिल्म आई थी तब या उसके बाद भले दक्षिण मक्खी, आई, अपरिचित और 2.0 जैसी फ़िल्में कम्यूटर और मनुष्य की बुद्धि के कमाल से बना रहा था- बावजूद किन्हीं वजहों से हिंदी का दर्शक रा-वन से कनेक्ट नहीं हो पाया. शाहय्द वह बांद्रा के समाज को केंद्र में रखकर बनाई गई थी. रा- वन की दुनिया दर्शकों को बहुत नकली लगी. जैसे अभी तमाम प्रतिक्रियाएं पठान की दुनिया को लेकर हैं. कुछ भी कह भी रहे कि ये कहानी किस दुनिया और समाज की है?

भारतीय सिनेमा की जो चीजें दक्षिण से निकलकर दुनियाभर में ट्रेंड कर रही हैं, पठान में कुछ भी नहीं है. पठान का ट्रेलर देखने के बाद सहज ही लगता है कि शाहरुख ने कैसे बॉलीवुड में इतना लंबा वक्त गुजार दिया? वह भी बादशाह की तरह. शाहरुख के पूरे करियर में चेन्नई एक्सप्रेस (रोहिट शेट्टी का निर्देशन) के अलावा दूसरी फिल्म नहीं है जिसने टिकट खिड़की पर 200 करोड़ या उससे ज्यादा कमाए हों. बावजूद वह एक ब्रांड ही नजर आते हैं. और उनके संघर्ष और उपलब्धियों की कहानियां तो माशा अल्ला हैं. क्या शाहरुख का स्टारडम नकली तरीके से गढ़ा (थोपा) गया.

जो भी हो, लेकिन शाहरुख की कमाई वैसी नहीं दिखती- जैसे रजनीकांत ने कमाया. कमल हसन ने कमाया. मोहनलाल ने कमाया. अल्लू अर्जुन ने कमाया. अजय देवगन ने कमाया. यश ने कमाया. सुरिया ने कमाया. ऋषभ शेट्टी जैसे दर्जनों ने कमाया. तमाम 'ऐतिहासिक' नैरेटिव से अलग जब शाहरुख का करियर देखते हैं तो कई बार लगता है कि किंग खान का करियर नेचुरल तो नहीं है. क्या वह शोहरत और ताकत...

पठान का ट्रेलर आ चुका है. अब ट्रेलर को लेकर क्या ही कहा जाए? आई चौक ने तो 100 शब्दों में ही समीक्षा करना बेहतर पाया. कंप्यूटर पर बनी रा-वन अब भी शाहरुख खान की कम्प्यूटर पर बनी तमाम फिल्मों से बेहतर है. बच्चे आज भी रा-वन को टीवी पर बहुत चाव से देखते हैं. जब वह फिल्म आई थी तब या उसके बाद भले दक्षिण मक्खी, आई, अपरिचित और 2.0 जैसी फ़िल्में कम्यूटर और मनुष्य की बुद्धि के कमाल से बना रहा था- बावजूद किन्हीं वजहों से हिंदी का दर्शक रा-वन से कनेक्ट नहीं हो पाया. शाहय्द वह बांद्रा के समाज को केंद्र में रखकर बनाई गई थी. रा- वन की दुनिया दर्शकों को बहुत नकली लगी. जैसे अभी तमाम प्रतिक्रियाएं पठान की दुनिया को लेकर हैं. कुछ भी कह भी रहे कि ये कहानी किस दुनिया और समाज की है?

भारतीय सिनेमा की जो चीजें दक्षिण से निकलकर दुनियाभर में ट्रेंड कर रही हैं, पठान में कुछ भी नहीं है. पठान का ट्रेलर देखने के बाद सहज ही लगता है कि शाहरुख ने कैसे बॉलीवुड में इतना लंबा वक्त गुजार दिया? वह भी बादशाह की तरह. शाहरुख के पूरे करियर में चेन्नई एक्सप्रेस (रोहिट शेट्टी का निर्देशन) के अलावा दूसरी फिल्म नहीं है जिसने टिकट खिड़की पर 200 करोड़ या उससे ज्यादा कमाए हों. बावजूद वह एक ब्रांड ही नजर आते हैं. और उनके संघर्ष और उपलब्धियों की कहानियां तो माशा अल्ला हैं. क्या शाहरुख का स्टारडम नकली तरीके से गढ़ा (थोपा) गया.

जो भी हो, लेकिन शाहरुख की कमाई वैसी नहीं दिखती- जैसे रजनीकांत ने कमाया. कमल हसन ने कमाया. मोहनलाल ने कमाया. अल्लू अर्जुन ने कमाया. अजय देवगन ने कमाया. यश ने कमाया. सुरिया ने कमाया. ऋषभ शेट्टी जैसे दर्जनों ने कमाया. तमाम 'ऐतिहासिक' नैरेटिव से अलग जब शाहरुख का करियर देखते हैं तो कई बार लगता है कि किंग खान का करियर नेचुरल तो नहीं है. क्या वह शोहरत और ताकत की वजह से है. नीचे सब हेडिंग्स को क्लिक कर चीजें विस्तार से समझ सकते हैं.

पठान का एक सीन जो अब तक ना जाने कितनी फिल्मों में दोहराया जा चुका है.

पैसे के दम पर कुछ भी खरीद सकते हैं पर कामयाबी नहीं

आप शाहरुख खान हैं और सात साल से एक अदद कामयाबी की तलाश में हैं. सात साल से आपने टिकट खिड़की पर रिकॉर्डतोड़ फ्लॉप फ़िल्में वह भी नंबर लगाकर डिलीवर की हैं. बावजूद कोई ना कोई यशराज फिल्म्स जैसा बैनर अपने इतिहास की एक सबसे महंगी फिल्म आपके साथ बनाने को तैयार है. ऐसा सबके साथ नहीं होता. आप उसके काबिल हैं भी हैं क्या? शमशेरा में रणबीर कपूर को देखिए और अब पठान के ट्रेलर में शाहरुख को देखिए. लेखक, निर्देशक, हीरोइन, कैरेक्टर आर्टिस्ट आदि ट्रेंडिंग टैलेंट पैसे से खरीद सकते हैं. पर सवाल है कि कामयाबी तो नहीं खरीदी जा सकती ना. कामयाबी तो स्किल की वजह से मिलेगी. खराब को अच्छा बताकर अब नहीं बेंचा जा सकता. पहले चीजों पर एकाधिकार था और प्रतिस्पर्धा में लोग नहीं थे तब खराब चीजें भी प्रचार से बेंच ली जाती थीं. अब असंभव है.

पठान भाड़ में जाए- शाहरुखों का क्या, उन्हें कैसी फ़िक्र, रोना तो यशराजों का है

पठान को लेकर जिस तरह का विरोध है और जिस तरह से उसका ट्रेलर बेदम नजर आया- फिल्म के भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है. सोशल मीडिया पर तमाम समीक्षाओं में तो लोग साफ-साफ कह भी रहे हैं. खैर यह फिल्म भी फ्लॉप हो जाए तो कम से कम शाहरुख को कोई नुकसान नहीं होने वाला है. चर्चा है कि उन्होंने 100 करोड़ की सैलरी पठान के लिए ली है. उल्टा पठान की वजह से उनका नाम जिस तरह से चर्चा में रहा- वह ऐतिहासिक है. ऐसी चर्चाएं कारोबारी, राजनीतिक, सामजिक फ्रंट पर भुनाई जा सकती हैं. वैसे भी ये ज़माना बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा टाइप का है. पठान पिट गई तो यशराज जरूर फ़िक्र कर सकते हैं. पठान से पहले भी फ़िल्में पिटीं. जिनकी फ्लॉप हुई वे चिंता में होंगे. शाहरुख तो लगातार फ़िल्में कर ही रहे हैं. पठान के बाद भी उनके पास जवान और डंकी है. शाहरुख के लिए निर्माताओं की कमी नहीं है. निर्माता 300-400 करोड़ लगाकर फ़िल्में बनाने को तैयार हैं.

शाहरुख को अब खुल कर करें राजनीति

शाहरुख में जबरदस्त राजनीतिक संभावनाएं हैं. पठान ने साबित किया कि वे तमाम राजनेताओं से बेहतर परफॉर्म कर सकते हैं. वे जिस तरह से मुद्दे उठाते हैं, और उसे पब्लिक स्फियर में लाते हैं- ईमानदारी से देखा जाए तो उसका कोई जवाब नहीं. कायदे से उनकी जगह बॉलीवुड नहीं लोकसभा या राज्यसभा है. शाहरुख वहां होंगे तो चीजों को समझने में आसानी होगी और वे अभी भी जो बात सीधे-सीधे कह नहीं पाते हैं- राजनीति में फ्री हैंड होंगे. वहां खुलकर कह सकते हैं. फ़िल्मी हीरो की बजाए उनमें राजनीतिक अपील ज्यादा है. मौजूदा वक्त में एक धुरी के बड़े नेता बन सकते हैं.

रितिक-शाहरुख की एक सैलरी में 'गोलू' ऋषभ 5 कांतारा बनाकर करोड़ों कमा सकते हैं

पैसा बड़ा या काम. बड़ा सवाल है यह. दक्षिण को देखते हैं तो लगता है कि वहां काम बड़ा है. वहां केजीएफ़ 2 की एडिटिंग के लिए किसी अनुभवहीन किशोर को भी हायर किया जा सकता है. वह कमाल के रिजल्ट भी देता है. लेकिन बॉलीवुड के मामले में पैसा बड़ा है. यहां एक टैलेंट बनाने के किए कई टैलेंट खरीदने पड़ते हैं. पठान के ट्रेलर भर से समझा जा सकता है कि बॉलीवुड में अभी भी दौलत, इज्जत, शोहरत और ताकत ज्यादा बड़ी चीज है. 15 करोड़ में बनी कांतारा ने 450 करोड़ कमाए थे. देखना अब यह है कि 100 करोड़ फीस लेने वाले शाहरुख पठान के जरिए क्या निकालते हैं.

जर्मनी में पठान की रिकॉर्डतोड़ बुकिंग हुई फिर क्यों 9 साल से फ्लॉप की झड़ी लगा रहे शाहरुख

पठान का भारत में विरोध हो रहा है. बावजूद जर्मनी जैसे देशों में बेहतरीन फीडबैक है. बर्लिन के तो सभी सिनेमाघर ओपनिंग डे पर हाउसफुल हैं. वैसे भी शाहरुख ओवरसीज का स्टार कहे जाते हैं. बात दूसरी है कि ओवरसीज मार्केट में उनकी चार फ़िल्में भी नहीं हैं जिन्होंने 15-20 करोड़ के ऊपर कमाया हो. यह भी हो सकता है कि पठान शाहरुख के करियर के बिल्कुल आखिर में ओवरसीज को लेकर बॉलीवुड के पक्ष में नया ट्रेंड बनाए. बर्लिन में तो पठान का ब्लॉकबस्टर ट्रेंड दिख रहा है. बाद बाकी 9 साल से शाहरुख के खाते में फ्लॉप की झड़ी नजर आती है और कोई ओवरसीज सपोर्ट में नहीं दिखता.

सुनील शेट्टी पहले यह बताएं- बॉलीवुड में, एक प्रतिशत में ड्रगिस्ट कौन-कौन हैं

अभी हाल ही में बिना पठान और शाहरुख खान का जिक्र किए सुनील शेट्टी ने एक कार्यक्रम में बॉलीवुड के खिलाफ बायकॉट ट्रेंड का विरोध किया था. उन्होंने पीएम से इसे रोकने की अपील भी की थी. उनके कहने का आशय था कि बॉलीवुड अच्छी फ़िल्में बनाता है मगर विरोध की वजह से फ्लॉप हो रही हैं. सुनील शेट्टी को एक बार जरूर पठान का ट्रेलर देखना चाहिए. ट्रेलर देखने के बाद उनकी राय जरूर बदल जाएगी. शायद उन्होंने सालभर में हिंदी बेल्ट से भारतीय सिनेमा को हुई रिकॉर्डतोड़ कमाई को भी क्रॉस चेक नहीं किया होगा. हिंदी बेल्ट में इससे ज्यादा ब्लॉकबस्टर नहीं दिखेंगी जितना कि साल 2022 में निकलकर आए. दक्षिण की फिल्मों ने भी तो हिंदी बेल्ट में ही कमाई की और प्रतिस्पर्धा में कमाई की.

बॉलीवुड-साउथ में फर्क क्या है

पठान का ट्रेलर और उसके साथ हाल के कुछ महीनों में सुपरहिट रही दक्षिण की किसी भी फिल्म का ट्रेलर उठाकर देख लेना चाहिए. यह बहस लंबे वक्त से है कि दोनों इंडस्ट्री में फर्क क्या है? पठान के ट्रेलर को देखकर कोई भी दर्शक खुद चीजों में अंतर पकड़ सकता है.

अखंडा के मर्दाना डॉयलॉग के आगे फीका पठान

पठान के ट्रेलर से पहले तेलुगु की अखंडा को भी हिंदी बेल्ट में डबकर रिलीज किया जा रहा है. वह भी सालभर बाद. 20 जनवरी को. अखंडा का ट्रेलर आते ही उसके दमदार संवाद लोगों की जुबान पर है. दुर्भाग्य से पठान में एक भी ऐसा संवाद नहीं है जो लोगों की जुबान पर चढ़ा हो जिसपर पब्लिक मीम्स बना फरही हो. अखंडा मास एंटरटेनर है जिसने 150 करोड़ से ज्यादा सिर्फ तेलुगु बॉक्स ऑफिस पर ही कमाए थे. पठान को मास एंटरटेनर ही कहा जा रहा. बावजूद कि उसमें मास एंटरटेनिंग एलिमेंट नजर ही नहीं आ रहे. ना तो संवादों में और ना ही दृश्यों में.

पठान और अखंडा में ये पांच चीजें गौर करने लायक हैं

बॉलीवुड में कई फ़िल्में फ्लॉप हुई लेकिन उसी दौरान बॉलीवुड की ही कई फिल्मों ने सफलता के कीर्तिमान गढ़े. इसका मतलब है कि कहीं ना कहीं कॉन्टेंट की भूमिका है. पठान और अखंडा का ट्रेलर केस स्टडी है कि दर्शक असल में क्या पसंद कर रहे हैं और क्या नहीं. आखिर दक्षिण के मेकर्स दर्शकों से कनेक्ट करने के लिए किन चीजों पर काम कर रहे और बॉलीवुड किस चीज को लगातार नजरअंदाज कर रहा है. अगर किसी फिल्म में कोई ऐसी चीज नहीं है जो दर्शक को कनेक्ट करे तो वह क्यों किसी फिल्म को देखना और उसपर पैसे बर्नाड करना पसंद करेगा. वह भी तब जब उसके आसपास कॉन्टेंट की कमी नहीं है. मेकर्स जरूर सिनेमा किसी पॉलिटिकल एजेंडा के तहत से बनाते होंगे. मगर दर्शकों का इकलौता एजेंडा मनोरंजन ही है.

नवाजुद्दीन सिद्दीकी गलत नहीं 100 करोड़ फीस लेने वाले एक्टर्स ने बर्बाद किया बॉलीवुड

काफी हद तक नवाजुद्दीन की बात सही नजर आती है. अगर 100 करोड़ फीस लेने वाला कोई एक्टर है (शाहरुख या सखे कुमार जो भी हों) तो उसका काम भी कम से कम 100 करोड़ कमाने जैसा होना चाहिए. पठान के किसी विजुअल में शाहरुख में 100 करोड़ वाला एक्स फैक्टर तो नहीं दिखा. ईमानदारी की बात यही है.

क़तर में दीपिका के कपड़ों ने साफ कर दिया, बेशरम रंग पठान को चर्चा में लाने की 'शाहरुखिया' ट्रिक है

शाहरुख की पठान के प्रमोशन में सामजिक/राजनीतिक फ्रंट पर संवेदनशील चीजों का इस्तेमाल किया गया. एक तरह से उसी तरह ध्रुवीकरण का सहारा लिया गया जैसा वोट के लिए राजनीतिक दल करते हैं. बावजूद कि ट्रेलर के कॉन्टेंट ने साफ़ कर दिया कि चीजें शाहरुख के पक्ष में माहौल बनाने की बजाए उन्हें नुकसान पहुंचा गई है. अब विक्टिम कार्ड से सुर्खियां बटोरी जा सकती है सक्सेस नहीं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    सत्तर के दशक की जिंदगी का दस्‍तावेज़ है बासु चटर्जी की फिल्‍में
  • offline
    Angutho Review: राजस्थानी सिनेमा को अमीरस पिलाती 'अंगुठो'
  • offline
    Akshay Kumar के अच्छे दिन आ गए, ये तीन बातें तो शुभ संकेत ही हैं!
  • offline
    आजादी का ये सप्ताह भारतीय सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया है!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲