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बॉलीवुड-साउथ में फर्क क्या है, इन तस्वीरों से भी समझ सकते हैं कि लोगों की चर्चा का विषय क्या है?

    • आईचौक
    • Updated: 08 जनवरी, 2023 02:19 PM
  • 08 जनवरी, 2023 02:19 PM
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योगी से चर्चा में सुनील शेट्टी ने कहा कि बॉलीवुड की फ़िल्में दुनिया में भारत की पहचान बढ़ाती हैं. सवाल है कि किस भारत की पहचान? करण जौहर के भारत की या फिर राजमौली के भारत की पहचान. बॉलीवुड दक्षिण के सिनेमा से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा और अनर्गल तर्क देकर ब्लेम गेम खेलता दिख रहा है. अब ब्लेम गेम का ज़माना गया.

अभी बिल्कुल हाल में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से फ़िल्मी सितारों की एक मीटिंग हुई. मीटिंग मुंबई में थी और यहां सुनील शेट्टी बतौर 'बॉलीवुड' प्रतिनिधि बायकॉट ट्रेंड के खिलाफ अपनी बात रखते नजर आए. उन्होंने जो कहा वह बॉलीवुड के रवैये से पूरी तरह अलग था. असल में यह वही बॉलीवुड है जो कुछ साल पहले खराब कॉन्टेंट पर दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया पर घमंड से भरा नजर आता था. सितारे लगभग तंज भरे अंदाज में कहते थे कि अगर आपको हमारी फ़िल्में ठीक नहीं लगती तो मत देखो. जबरदस्ती तो नहीं है. ये कुछ साल पहले का सीन था. तब समाज का एक धड़ा बॉलीवुड से असहमत होता तो था, पर दर्ज नहीं करा पाता था. और उसके पास विकल्प भी कहां थे. कुछ संगठन हिंसा तक का सहारा लेते थे. कुछ फिल्मों का तो सिर्फ इस बिना पर विरोध हुआ कि कहानी में हिंदू हीरो से मुस्लिम हीरोइन प्रेम भी कैसे कर सकती है. ऐसा भी नहीं है कि इसके उलट कहानियों पर विरोध नहीं हुए.

हिंसक प्रदर्शन और तोड़फोड़ तक हुए हैं. फ़िल्में नहीं चलने दी जाती थीं. लेकिन तब जिस फिल्म के खिलाफ ऐसा होता- उसकी कारोबारी सफलता तय हो जाती. मेकर्स ने भी इसे पीआर का बढ़िया जरिया बना लिया. कॉन्टेंट में ऐसा कुछ ना कुछ जानबूझकर रखा जाने लगा जो सामजिक विरोध की जमीन तैयार करें. अभी भी है. चूंकी फिल्म कारोबार देश का इकलौता बिजनेस है जहां सबकुछ पैसे और संसाधन से तय होता है. मनमाने तरीके से तय होता है. सवाल ही नहीं कि बॉलीवुड के मुनाफे में हिस्सेदारी लेने वाला मीडिया उसके खिलाफ कुछ बोले. हालत तो यह हो गई कि बैनर से किसी फिल्म को मिलने वाली तारीफ़ तय होती है. जनता भौचक रह जाती कि किसी कूड़ा फिल्म को कोई समीक्षक 5 में से 4.5 रेट कैसे दे सकता है? और इस बात पर भी परेशान होती कि जो फिल्म जोरदार कमाई कर रही है भला समीक्षकों ने उसे किस बिना पर 5 में से 1 रेट दे दिया. आइचौक पर बने रहेंगे तो जल्द ही बॉलीवुड के इसी प्रबंधकीय कौशल पर कुछ ना कुछ पढ़ने को जरूर मिलेगा.

बॉलीवुड को खुश होना चाहिए, लोग शालीनता से लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे...

अभी बिल्कुल हाल में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से फ़िल्मी सितारों की एक मीटिंग हुई. मीटिंग मुंबई में थी और यहां सुनील शेट्टी बतौर 'बॉलीवुड' प्रतिनिधि बायकॉट ट्रेंड के खिलाफ अपनी बात रखते नजर आए. उन्होंने जो कहा वह बॉलीवुड के रवैये से पूरी तरह अलग था. असल में यह वही बॉलीवुड है जो कुछ साल पहले खराब कॉन्टेंट पर दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया पर घमंड से भरा नजर आता था. सितारे लगभग तंज भरे अंदाज में कहते थे कि अगर आपको हमारी फ़िल्में ठीक नहीं लगती तो मत देखो. जबरदस्ती तो नहीं है. ये कुछ साल पहले का सीन था. तब समाज का एक धड़ा बॉलीवुड से असहमत होता तो था, पर दर्ज नहीं करा पाता था. और उसके पास विकल्प भी कहां थे. कुछ संगठन हिंसा तक का सहारा लेते थे. कुछ फिल्मों का तो सिर्फ इस बिना पर विरोध हुआ कि कहानी में हिंदू हीरो से मुस्लिम हीरोइन प्रेम भी कैसे कर सकती है. ऐसा भी नहीं है कि इसके उलट कहानियों पर विरोध नहीं हुए.

हिंसक प्रदर्शन और तोड़फोड़ तक हुए हैं. फ़िल्में नहीं चलने दी जाती थीं. लेकिन तब जिस फिल्म के खिलाफ ऐसा होता- उसकी कारोबारी सफलता तय हो जाती. मेकर्स ने भी इसे पीआर का बढ़िया जरिया बना लिया. कॉन्टेंट में ऐसा कुछ ना कुछ जानबूझकर रखा जाने लगा जो सामजिक विरोध की जमीन तैयार करें. अभी भी है. चूंकी फिल्म कारोबार देश का इकलौता बिजनेस है जहां सबकुछ पैसे और संसाधन से तय होता है. मनमाने तरीके से तय होता है. सवाल ही नहीं कि बॉलीवुड के मुनाफे में हिस्सेदारी लेने वाला मीडिया उसके खिलाफ कुछ बोले. हालत तो यह हो गई कि बैनर से किसी फिल्म को मिलने वाली तारीफ़ तय होती है. जनता भौचक रह जाती कि किसी कूड़ा फिल्म को कोई समीक्षक 5 में से 4.5 रेट कैसे दे सकता है? और इस बात पर भी परेशान होती कि जो फिल्म जोरदार कमाई कर रही है भला समीक्षकों ने उसे किस बिना पर 5 में से 1 रेट दे दिया. आइचौक पर बने रहेंगे तो जल्द ही बॉलीवुड के इसी प्रबंधकीय कौशल पर कुछ ना कुछ पढ़ने को जरूर मिलेगा.

बॉलीवुड को खुश होना चाहिए, लोग शालीनता से लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे हैं

खैर, पहले के विरोध की तुलना में अब सोशल मीडिया ने फर्क पैदा किया है. लोग ज्यादा जिम्मेदार हुए हैं और हिंसक नहीं दिख रहे. यह बड़ी बात है. शालीनता से विरोध किया जा रहा है. इसी बायकॉट ट्रेंड को लेकर सुनील शेट्टी ने मुंबई में योगी से कहा कि आप पीएम मोदी से कहें. आपके कहने से फर्क पड़ेगा. हमें खराब कहा जा रहा है. ड्रगिस्ट कहा जा रहा है. लेकिन बॉलीवुड के सबलोग वैसे नहीं है. एक तरह से उन्होंने कहना चाहा कि बायकॉट में जो नैरेटिव खड़ा किया गया उसकी वजह से बॉलीवुड को नुकसान पहुंच रहा है और उसके पीछे पीएम मोदी, सीएम योगी जैसे नेता ही हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारत को अगर बाहर के देशों से और भारतीयता से किसी ने जोड़ा है तो वो है हमारा संगीत, हमारी कहानियां हैं. उनका बड़ा योगदान है. बावजूद कि योगी उनकी बातों से सहमत हुए और माना कि बॉलीवुड लोगों की रोजी रोजगार का जरिया है.

करण जौहर और राजमौली में किसे भारत का प्रतिनिधि कहा जाएगा.

पहली बात तो यह कि सोशल मीडिया पर अहिंसक विरोध ने समाज और बॉलीवुड के बीच एक पुल तैयार कर दिया है. लोगों की बात पहुंच रही है. अब लोगों को शांत करने के लिए सफाई आते दिख रही है. पहले आम लोगों की आवाज बांद्रा के महलों में रहने वाले फ़िल्मी सितारों तक नहीं पहुंच पाती थी. या उसका कोई असर नहीं था. तब व्यवस्था एकतरफा और पूरी तरह से नियंत्रण में थी. तब वे कहते थे- जिसे ना देखना हो, वह हमारी फ़िल्में मत देखे. दक्षिण के सिनेमा और ओटीटी ने लोगों को विकल्प दे दिया. ना देखने का. इसी के नतीजे में बॉलीवुड की फ़िल्में फ्लॉप हो रही हैं. और सिर्फ वही फ़िल्में फ्लॉप हो रही हैं जिसे दर्शक पसंद नहीं कर रहे हैं. सिर्फ आमिर खान की ही नहीं, अक्षय कुमार की भी फ़िल्में फ्लॉप हुई हैं. लेकिन बॉलीवुड की फ़िल्में हिट भी तो हुई हैं.

बॉलीवुड प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा तो कुतर्क गढ़ रहा है

द कश्मीर फाइल्स, भूल भुलैया 2, ऊंचाई, दृश्यम 2 और भेड़िया सुपरहिट रही हैं. इनके अलावा पुष्पा, केजीएफ़-2, आरआरआर और कांतारा जैसी आधा दर्जन से ज्यादा दक्षिण की फिल्मों ने हिंदी बेल्ट में जोरदार कमाई की. अपने कॉन्टेंट के बूते. केजीएफ़ 2 हिंदी में सर्वाधिक कमाई करने के मामले में दूसरी फिल्म बन गई है. अगर बॉलीवुड के किसी भी बेहतरीन साल को देखा जाए तो जितनी फ़िल्में हिट होती हैं उससे कहीं ज्यादा साउथ और बॉलीवुड की फ़िल्में निकली हैं. इसमें हॉलीवुड को भी रखा जा सकता है. लेकिन वही फ़िल्में हिट हुई हैं जिनके कॉन्टेंट में दम था. अब दर्शकों को तो फ़ोर्स नहीं किया जा सकता कि वे सिर्फ बॉलीवुड की ही फ़िल्में देखें. उनकी मर्जी आखिर टिकट पर वे अपनी कमाई खर्च कर रहे हैं.

सुनील शेट्टी चाहते हैं कि योगी दर्शकों को फ़ोर्स करें कि वह शाहरुख खान या बॉलीवुड के दूसरे सितारों की फिल्म देखे. क्या यह तार्किक है. यह तो प्रतिस्पर्धा है. कोई इंडस्ट्री मेहनत करके आगे बढ़ रही है. उत्तर से दक्षिण का समाज संवाद कर रहा है. बॉलीवुड को भी चाहिए कि वह भी दक्षिण में प्रतिस्पर्धा के लिए जाए. जा ही रहे हैं. और ऐसे राज्यों में जहां भाजपा का सारा नहीं है. बावजूद फिल्म फ्लॉप हो रही है तो इसका मतलब साफ है कि आपके कॉन्टेंट में दम नहीं है. आप जुगाड़ चाहते हैं. खैर.

बॉलीवुड और उसके ज्यादातर लोग भारत के सांस्कृतिक दूत नहीं, वह दक्षिण है  

सुनील शेट्टी ने दुनिया में भारतीयता के प्रसार में बॉलीवुड की फिल्मों का जिक्र किया? अब उनसे पूछा जाए कि कैसे- तो जवाब नहीं दे पाएंगे. लेकिन इंटरनेट की वजह से अब लोगों के पास ज्यादा सवाल भी हैं और उनके ज्यादा जवाब भी. सुनील शेट्टी जब बॉलीवुड का दुखड़ा रोते हुए भारतीयता के प्रसार की बात कर रहे थे शायद उसी के आसपास या उससे कुछ पहले- न्यूयॉर्क में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर बनी आरआरआर के लिए न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक्स सर्कल ने एसएस राजमौली को बेस्ट डायरेक्टर का पुरस्कार दिया. अवॉर्ड सेरेमनी की तस्वीरें वायरल हैं. वजह राजमौली का पहनावा. वे पारंपरिक परिधान में हैं. धोती कुर्ता और अंगवस्त्रम. उनकी पत्नी भी उनके साथ थीं जो साड़ी में हैं.

राजमौली भारत में आमतौर पर पश्चिमी ड्रेस ही पहने नजर आते हैं. लेकिन दूसरे देशों में उन्होंने अपने फिल्म के कॉन्टेंट की तरह अपने पहनावे से संस्कृति का दर्शन करवाया. क्या बॉलीवुड के सितारों ने राजमौली की तरह कभी मौजूदगी दर्ज कराई? नहीं कराई. उन्हें यह पिछड़ापन और शर्मनाक लगता है. दुनिया में लगभग सभी देशों के लोग विदेशी मंचों पर अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ पहुंचते हैं. सिवाय बॉलीवुड के. अब सवाल है कि भारतीयता का कैसा प्रसार किया गया?

सुनील शेट्टी को बताना चाहिए कि पिछले तीन दशक में बॉलीवुड की कितनी फिल्मों के कॉन्टेंट ने भारतीयता का प्रचार-प्रसार किया? दक्षिण कर रहा है. और स्वाभाविक रूप से कर रहा है. छवि बिगाड़ते हुए नहीं. उसी भारतीयता का जादू हिंदी बेल्ट या समूचे देश में दक्षिण के सिनेमा का जादू है. यह वही कॉन्टेंट है जिसकी वजह से 15 करोड़ में बनी कांतारा 450 करोड़ कमाती है और दुनिया उसे देखकर हैरान है. आरआरआर या राजमौली के किसी भी सिनेमा को दुनिया ने इसी भारतीयता की वजह से हाथोंहाथ लिया था. और आमिर खान भी दंगल या लगान बनाकर ही वहां पहचाने गए.

बताइए पठान में कौन सा भारत है? बॉलीवुड ने समझने में बहुत देर कर दी. बांद्रा का समाज भारत का समाज नहीं हो सकता. बावजूद कि वह भी स्वच्छदता और स्वतंत्रता से रह सकता है. बॉलीवुड और उसकी फ़िल्में विदेशों में वैसे ही दिखी हैं जैसे ऊपर की तस्वीर में करण जौहर नजर आते हैं. करण जौहर किसका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं वही बता सकते हैं. बॉलीवुड भारत का दूत हो ही नहीं सकता. उसे विरोध से घबराने की जरूरत नहीं है. वे जिनके लिए फ़िल्में बना रहे होंगे वे जरूर देखने आते होंगे. तभी तो फ्लॉप फ़िल्में भी 25-50 करोड़ कमा ही रही हैं.

बॉलीवुड को कुतर्क गढ़ने से बचना चाहिए. ये इंटरनेट की दुनिया है. एक-दूसरे के ज्यादा करीब है. ज्यादा ग्लोबल है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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