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पठान भाड़ में जाए- शाहरुखों का क्या, उन्हें कैसी फ़िक्र? रोना तो यशराजों का है!

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 27 दिसम्बर, 2022 11:55 PM
  • 27 दिसम्बर, 2022 07:25 PM
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कोई फिल्म फ्लॉप होने से शाहरुख को नहीं बल्कि उनके निर्माताओं को नुकसान पहुंचता है. अगर फ्लॉप से उन्हें नुकसान पहुंचता तो वे बर्बाद हो गए रहते. एक तरह से बेशरम रंग जैसे विवाद ही शाहरुख की ताकत हैं. और बॉलीवुड में ऐसे विवाद क्रिएट करने की लंबा चौड़ा इतिहास रहा है.

सिद्धार्थ आनंद के निर्देशन और यशराज फिल्म्स के निर्माण में बनी पठान का अभूतपूर्व विरोध देखा जा सकता है. याद नहीं आता कि रिलीज से पहले, यहां तक कि ट्रेलर आने से भी पहले किसी बॉलीवुड फिल्म का ऐसा विरोध हुआ हो. समझा जा सकता है कि रिलीज के वक्त या बाद में कैसा माहौल रहेगा. जबकि इसी साल बायकॉट ट्रेंड में फंसी ब्रह्मास्त्र और लाल सिंह चड्ढा के खिलाफ भी रिलीज से एक महीना पहले इतना जबरदस्त विरोध देखने को नहीं मिला था. सोशल मीडिया पर शाहरुख खान के खिलाफ तमाम आरोप सामने आते ही जा रहे हैं. ना जानें कितने गड़े मुर्दे कब्रों से बाहर निकलकर चीखने-चिल्लाने लगे हैं. विरोध में अनगिनत मीम्स, एक्टर के बयान वायरल हैं. बेशरम रंग आने के बाद जो बवाल मचा- उनके कई इंटरव्यू के टुकड़े पुराने टुकड़े भी खूब वायरल हुए हैं.

ऐसे ही एक टुकड़े में शाहरुख को कहते सुना जा सकता है कि "बड़े बोल तो नहीं बोलूंगा. हवा से थोड़े हिलने वाला हूं. हवा से झाड़ू हिलती है." असल में तब स्टारडम के नशे में चूर एक्टर कहना चाहता है कि ऐसे विरोध से शाहरुख जैसे पहाड़ का कुछ नहीं होने वाला. असल में यह जवाब कोमल नाहटा के साथ इंटरव्यू में आया था. नाहटा ने उनसे पूछा था कि आपको लगता है कि उस सोशल बायकॉट से आप लोगों का नुकसान हुआ? बावजूद कि यह शाहरुख का ही बयान है. मगर इसका पठान या उसके विरोध से कोई संबंध नहीं. करीब सात साल पुराना इंटरव्यू है यह. आगे जिक्र होगा कि उस विरोध का नतीजा क्या रहा? फिलहाल बात विरोध और उससे होने वाले नुकसान की. यानी शाहरुख जैसे सितारों पर किसी विरोध से कुछ असर पड़ता भी है क्या? और असर पड़ता है तो किस पर? शाहरुख जैसे सितारों के लिए कैसे इस तरह के विरोध, एक तरह से उन्हें फायदा पहुंचाते हैं.

शाहरुख खान.

शाहरुख को यह बात बेहतर पता है. इसीलिए वे कहते हैं-...

सिद्धार्थ आनंद के निर्देशन और यशराज फिल्म्स के निर्माण में बनी पठान का अभूतपूर्व विरोध देखा जा सकता है. याद नहीं आता कि रिलीज से पहले, यहां तक कि ट्रेलर आने से भी पहले किसी बॉलीवुड फिल्म का ऐसा विरोध हुआ हो. समझा जा सकता है कि रिलीज के वक्त या बाद में कैसा माहौल रहेगा. जबकि इसी साल बायकॉट ट्रेंड में फंसी ब्रह्मास्त्र और लाल सिंह चड्ढा के खिलाफ भी रिलीज से एक महीना पहले इतना जबरदस्त विरोध देखने को नहीं मिला था. सोशल मीडिया पर शाहरुख खान के खिलाफ तमाम आरोप सामने आते ही जा रहे हैं. ना जानें कितने गड़े मुर्दे कब्रों से बाहर निकलकर चीखने-चिल्लाने लगे हैं. विरोध में अनगिनत मीम्स, एक्टर के बयान वायरल हैं. बेशरम रंग आने के बाद जो बवाल मचा- उनके कई इंटरव्यू के टुकड़े पुराने टुकड़े भी खूब वायरल हुए हैं.

ऐसे ही एक टुकड़े में शाहरुख को कहते सुना जा सकता है कि "बड़े बोल तो नहीं बोलूंगा. हवा से थोड़े हिलने वाला हूं. हवा से झाड़ू हिलती है." असल में तब स्टारडम के नशे में चूर एक्टर कहना चाहता है कि ऐसे विरोध से शाहरुख जैसे पहाड़ का कुछ नहीं होने वाला. असल में यह जवाब कोमल नाहटा के साथ इंटरव्यू में आया था. नाहटा ने उनसे पूछा था कि आपको लगता है कि उस सोशल बायकॉट से आप लोगों का नुकसान हुआ? बावजूद कि यह शाहरुख का ही बयान है. मगर इसका पठान या उसके विरोध से कोई संबंध नहीं. करीब सात साल पुराना इंटरव्यू है यह. आगे जिक्र होगा कि उस विरोध का नतीजा क्या रहा? फिलहाल बात विरोध और उससे होने वाले नुकसान की. यानी शाहरुख जैसे सितारों पर किसी विरोध से कुछ असर पड़ता भी है क्या? और असर पड़ता है तो किस पर? शाहरुख जैसे सितारों के लिए कैसे इस तरह के विरोध, एक तरह से उन्हें फायदा पहुंचाते हैं.

शाहरुख खान.

शाहरुख को यह बात बेहतर पता है. इसीलिए वे कहते हैं- हवा से थोड़े हिलने वाला हूं. हवा से झाड़ू हिलती है. या अभी कोलकाता में उन्होंने लगभग इसी अंदाज में बयान दिया कि उनके जैसे पॉजिटिव लोग खराब हालात के बावजूद जिंदा हैं. वे विक्टिम कार्ड ही खेल रहे थे. हमेशा की तरह बस उनके शब्द चयन अलग हो जाते हैं. विरोधी विचार के सत्ता में होने का एक दबाव तो रहता ही है. वे यहां पठान के बहाने एक राजनीतिक एज ही ले रहे थे. जैसा राजनीतिक एज सात साल पहले ले रहे थे जिसमें उन्होंने झाड़ू वाला तर्क सामने रखा था.  शाहरुख जैसे सितारों का दर्शन- बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा

असल में पठान के फ्लॉप होने पर शाहरुख को सच में कोई नुकसान नहीं होने वाला. शाहरुख एक्टर भर नहीं हैं, बल्कि एक ब्रांड हैं. कारोबारी ब्रांड भी हैं और राजनीतिक ब्रांड भी हैं. उनके कुछ प्रशंसक तो उन्हें "दुबई ब्रांड" भी कहते हैं. जैसे आमिर खान को उनके कुछ प्रशंसक "तुर्की ब्रांड" कहते हैं. खैर, हाल की कुछ रिपोर्ट्स में शाहरुख की नेटवर्थ 770 मिलियन डॉलर पता चली. उसी रिपोर्ट में यह भी पता चला कि वे हर साल बड़े आराम से 38 मिलियन डॉलर कमा लेते हैं. यह हालत तब है जब शाहरुख ने 2018 में जीरो के बाद कोई हिट फिल्म नहीं दी. जीरो भी नाकाम फिल्म थी. इससे पहले पिछले आठ साल में उनका करियर ग्राफ देखें तो "रईस" को छोड़कर उन्होंने टिकट खिड़की पर सिलसिलेवार हादसे ही दिए हैं. बावजूद उनकी कारोबारी या राजनीतिक छवि पर कहीं कोई बट्टा लगता नहीं दिखा है.

उन्हें एमके स्टालिन भी हाथों हाथ लेते हैं. ममता बनर्जी भी उनका स्वागत करने पहुंचती हैं और कार का दरवाजा खोलकर उन्हें ससम्मान उतारती हैं. गले भी लगाती हैं. कांग्रेस तो हमेशा लाल कालीन बिछाए नजर आती है. इतना सम्मान अमर सिंह की कृपा से उत्तर प्रदेश में सिर्फ अमिताभ बच्चन और उनके परिवार को ही मिला. या फिर इतना सम्मान तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति में तमाम अभिनेताओं ने बटोरा. बॉलीवुड में खान तिकड़ी के अलावा ऐसा सम्मान किसी को नहीं मिला. तो इधर, आजकल जो सम्मान पाते दिख रहे हैं वे उसी पुरानी राजनीतिक नर्सरी की देन हैं. खैर, बात मुद्दे पर. अगर फिल्मों के फ्लॉप होने से शाहरुख की आर्थिक और राजनीतिक हैसियत पर कोई कोई असर पड़ता तो वे भला आज की तारीख में 38 मिलियन डॉलर सालाना कैसे कमा रहे होते? फ़िल्में शाहरुख को एक (कु) चर्चा देती हैं. शाहरुख इन्हीं फिल्मों के जरिए कुचर्चाओं को जन्म देते हैं. इन कुचर्चाओं से राजनीतिक ध्रुवीकरण करते हैं. एक तरह से बंटवारा करते हैं और उनके बयानों से किस राजनीति को फायदा मिलता है यह शायद ही बताने की जरूरत पड़े. यह हालत सिर्फ शाहरुख खान भर की नहीं है. सलमान खान, आमिर खान, जावेद अख्तर, फरहान अख्तर, नसीरुद्दीन शाह या फिर हाल ही में ऋचा चड्ढा फजल को भी इसमें रख सकते हैं. नवाजुद्दीन सिद्दीकी या आदिल हुसैन जैसे अभिनेताओं को ऐसा बयान देते हुए सुना है कभी? वे भला किससे रत्तीभर कम हैं. क्या वे सेलिब्रिटी नहीं हैं?

बेशरम रंग तीन दशक पुराने एक ट्रेंड में प्रयोग भर है

शाहरुखों को पता है कि उनके बयान का असर सीधे जमीन तक किस तरह होता है और उसपर प्रतिक्रिया से जो बंटवारा जो कारोबार होता है उसका मुनाफा क्या है?  यह बहुत पुरानी बात नहीं है. 90 के दशक में राममंदिर आंदोलन के बाद सिलसिला शुरू हुआ. और उदारवाद के असर में. नई संपन्नता के दायरे में. यही वह समय है जब खान सितारों की त्रयी (शाहरुख-सलमान- आमिर) अचानक से बॉलीवुड की अग्रपुरुष बन गई. सिर्फ उनकी बादशाहत दिखती है. और ऐसा भी नहीं है कि इन तीनों के रोम रोम से अभिनय टपक रहा हो. असल में 90 के बाद बॉलीवुड ने अपना दर्शन बदला. दर्शन वही- बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा. बेशरम रंग उसी कड़ी के तहत एक प्रयोग भर है. पिछले तीन दशक में सितारों का पीआर देखें, फिल्मों का कॉन्टेंट देखें तो इसी फ़ॉर्मूले पर हर फिल्ममेकर और स्टार चलता नजर आ जाएगा. विवाद तैयार किए जाते हैं. बज बनाए जाते हैं. चर्चाएं खड़ी कर दी जाती हैं. अभी कुछ साल पहले तक जब सोशल मीडिया बहुत पॉपुलर नहीं था- संसाधनों की वजह से बॉलीवुड चीजों को अपने तरीके से हांक लेता था. जैसा नैरेटिव वह चाहे. काफी हद तक मुख्यधारा की मीडिया में अभी भी. खराब कॉन्टेंट भी तमाम तरह के हौवा खड़ा करके बेंच दिया जाता था और उसे समाज की सोच करार दिया जाता था.

वह सूचनाओं पर एकाधिकार वाला ज़माना था. लेकिन सोशल मीडिया ने बॉलीवुड के खेल को पलट दिया है. अब सूचनाओं के तमाम स्रोत हैं जिनपर किसी का एकाधिकार नहीं है. और बायकॉट जैसे अभियान में एक-दूसरे को नहीं जानने वाले भी तमाम मुद्दों पर एकमत हो रहे हैं. उनकी राय एक हो रही है. वे समान मुद्दों पर संगठित हैं. आवाज में आवाज मिला रहे हैं. आज की तारीख में बायकॉट एक आंदोलन की तरह नजर आता है. पठान के खिलाफ असल में यह आंदोलन ही है. आंदोलन शाहरुख के खिलाफ है. बावजूद कि इससे शाहरुख का सिर्फ इतना नुकसान हो सकता कि उनकी एक और फिल्म पिट जाए. बावजूद कि वे फायदे में ही रहेंगे.

शाहरुख को पठान के लिए 100 करोड़ रुपये मिल चुके हैं. शाहरुख जैसे सितारे फिल्मों के लाभ में हिस्सा भी लेते हैं. अब पठान में उनकी कोई साझेदारी है या नहीं इस बारे में कुछ पता नहीं चल पाया है अभी तक. तो मान लेते हैं कि यह यशराज की ही फिल्म है. पठान फ्लॉप होती है तो नुकसान सिर्फ यशराज फिल्म्स का होगा. यशराज फिल्म्स को यह नुकसान भी सिर्फ शाहरुख की वजह से होगा किसी और वजह से नहीं. शाहरुख जैसे सितारों को तो पसंद है कि किसी ना किसी रूप में राजनीतिक रूप से उनकी चर्चा होती रहे. वे मनमानी चीजें करते हैं. निर्माताओं के निवेश को लेकर उन्होंने कभी जवाबदारी नहीं दिखाई. उदाहरण के लिए साल 2015 में रोहित शेट्टी ने शाहरुख को लेकर बड़े स्केल पर "दिलवाले" बनाई थी. केंद्र में मोदी आ चुके थे. शाहरुख ने गैरजिम्मेदारी के साथ खुद के मुस्लिम होने का दुखड़ा रोया. सिर्फ एक साल की सत्ता में भाजपा के आने के बाद उन्होंने असहिष्णुता का आरोप लगाया था. खैर, माफी भी मांग ली थी. जैसे हाल में ऋचा चड्ढा फजल ने पहले गलवान पर सेना का मजाक उड़ाया. और माफी मांग ली. जैसे सलमान ने एक आतंकी पर ट्वीट किया और बाद में डिलीट कर दिया. और भी ऐसे ही करते हैं.

आठ साल में फ़िल्में फ्लॉप हुईं बावजूद शाहरुख की आर्थिकी पर कोई फर्क क्यों नहीं पड़ा?

असहिष्णुता पर स्वाभाविक था कि जब शाहरुख जैसी हैसियत का आदमी भी दूसरी सरकार की सत्ता में, महज साल भर में- विक्टिम महसूस करने लगे और असहिष्णुता का रोना रोने लगे तो लोग उसे कैसे पचा सकते हैं? विरोध हुआ और जबरदस्त हुआ. किंग खान का "झाड़ू हिलाने वाला बयान" उसी विरोध पर आया था. शाहरुख तो नहीं हिले, लेकिन झाड़ू हिली. शाहरुख तो फीस लेकर निकल चुके थे तब भी और एक राजनीतिक एजेंडा सेट कर दिया. मगर नुकसान सिर्फ रोहित शेट्टी को हुआ. रोहित को शोमैन कहा जाता है. बावजूद उनकी फिल्म फ्लॉप हो गई. उन्हें भारी नुकसान हुआ. बाद में रोहित ने सार्वजनिक रूप से ठीकरा शाहरुख पर फोड़ा. और हमेशा के लिए उनके साथ रिश्ते अलग कर लिए. अब तक तो यही दिखा है. शाहरुख का भला क्या नुकसान हुआ? पिछले आठ-दस साल में उनकी करीब आधा दर्जन फ़िल्में तबाह हुई हैं. शाहरुख का भला क्या नुकसान हुआ? बावजूद कि पिछले आठ साल में उनकी नेटवर्थ में वृद्धि ही नजर आती है. तो क्यों ना माना जाए कि जो विवाद हुए बदले में निर्माताओं ने भले नुकसान झेला पर शाहरुख को एक विचारधारा का सुपरस्टार बनाए रखा. उन्हें एक छवि और व्यापक चर्चा मिली. बिना मेहनत किए. यह चर्चा आदिल हुसैन या नवाजुद्दीन सिद्दीकी नहीं बटोर सकते कभी. क्योंकि वे स्किल की वजह से अभिनेता बने हैं हथकंडों की वजह से नहीं. उन्हें शर्म आएगी ऐसा करते हुए. उनका जमीर इजाजत नहीं देगा. और बोलेंगे भी तो ऐसा नहीं है कि आप ध्रुवीकरण का आरोप लगा दें.

आज की तारीख में शाहरुख दर्जनों ब्रांड का प्रचार करते हैं. इस मामले में भी वे महंगे सितारे हैं. उनका अपना प्रोडक्शन हाउस है. नाना प्रकार के कारोबार हैं. उनके जबरदस्त राजनीतिक मित्र हैं. एक आईपीएल टीम की फ्रेंचाइजी भी है उनके पास. कहने का मतलब यह कि शाहरुख की दुकानदारी खूब बढ़िया चल रही है. पठान भी फ्लॉप हो जाए तो किंग खान की सेहत पर कोई नुकसान नहीं होने वाला. जितना विरोध होगा, उनकी राजनीतिक पूछ उतनी ही बनी रहेगी और उनका अपना कारोबार चलता रहेगा. शाहरुख को और क्या चाहिए. हां, कोई निर्माता जरूर सड़क पर आ सकता है. यशराजों को जरूर नुकसान हो सकता है. लेकिन हर कोई रोहित शेट्टी भी नहीं होता. समझ नहीं आता कि सिलसिलेवार असफलताओं के बावजूद यशराज जैसे बैनर, आर्थिक तौर पर कैसे इतना मजबूत बने रहते हैं? उन्हें कहां से बैकअप या साहस मिलता है कि लगातार डिजास्टर देने वाले बुढऊ एक्टर को लेकर तकनीक के सहारे 100 करोड़ देकर फ़िल्में बनाते रहते हैं.

दुर्भाग्य से पठान ऐसी ट्रिक पर बनी है जिसका ज़माना बीत चुका.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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