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Pathaan controversy: शाहरुख खान पैसे के दम पर कुछ भी खरीद सकते हैं पर कामयाबी नहीं

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 16 दिसम्बर, 2022 05:58 PM
  • 16 दिसम्बर, 2022 05:08 PM
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क्या लगता है- YRF शाहरुख के लिए एक अददा कामयाबी खरीदने में सफल होगा? पैसे की ताकत पर सबकुछ खरीदा जा सकता है. पैसे से इंटरनेट पर तस्वीर बदली जा सकती है. सिनेमाघर काा नहीं. यहां एक्टर्स की प्रतिभा दर्शकों को खींचती है. उनकी स्टाइल नहीं.

अगर शाहरुख खान की पठान सुपरफ्लॉप हो जाए तो? आशंका बहुत ज्यादा है. फ्लॉप की जिम्मेदारी किसकी होगी? बावजूद कि सोशल मीडिया पर एक तबका पठान का प्रमोशन ठीक उसी पिच पर कर रहा है, जिस पर मुंबई ड्रग केस में शाहरुख और उनके बेटे की बेदाग़ छवि गढ़ी जा रही थी. मामले को राजनीतिक रूप दिया गया था. इन 'उस्तादों' ने जघन्य आपराधिक आरोपों को हिंदू-मुस्लिम राजनीति का रूप दे दिया था. जो पुर्तगाल पर मोरोक्को की जीत को मुस्लिम उम्मा की जीत के जश्न के रूप में स्थापित कर सकते हैं तो उनके लिए दूसरी चीजें कोई मामूली बात नहीं. अच्छा हुआ कि फ्रांस जीत गया वर्ना तो सोशल मीडिया पर मोरोक्को की जीत से जो ब्रदरहुड निकलता कि चारों तरफ आज सिर्फ धुआं-धुआं ही दिखता. बावजूद यहां बात सिर्फ पठान की. फुटबॉल की नहीं.

अगर पठान फ्लॉप हो जाए तो नाकामी का दोष किसका होगा? असल में कुछ दिनों पहले ही नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बॉलीवुड की बर्बादी को लेकर तमाम बातें कही थीं. उनके कहने का मतलब था कि फिल्मों के फ्लॉप होने की एकमात्र वजह बेतहाशा बजट है. बजट असीमित इसलिए होता है कि 100 करोड़ी सुपरस्टार्स को साइन किया जाता है. यह भ्रष्टाचार है. 100 करोड़ी एक्टर्स की पूरी कलई डिजिटल के दौर में खुल चुकी हैं. आज जैसे रील्स और बाकी कंटेंट तेजी से फैल रहे हैं सारा इम्प्रेशन मिनट भर का रह गया है. एक मिनट में लोग हंसने लगते हैं, इमोशनल हो जाते हैं. रोते हैं. सबकुछ जल्दी हो रहा. दूसरी तरफ लाइव परफॉरमेंस बिगड़ चुका है. एक्टर्स अब सीखते नहीं. खुद को दोहराते हैं. एक फिल्म में एक्टर का काम पसंद आता है और दूसरी फिल्म से वह एक्सपोज होने लगता है. (उसके पास करने को कुछ बचता ही नहीं).

नवाज ने कहा था कि कोई फ़िल्म फ्लॉप हो ही नहीं सकती. यह फिल्मों का बेतहाशा बजट है जिसकी वजह से फ़िल्में पिट जाती हैं. तो मान लीजिए कि पठान अगर फ्लॉप हो जाती है तो जिम्मेदारी सिर्फ शाहरुख खान की ही होगी. पठान के लिए उन्होंने सबसे ज्यादा फीस ली है.

अगर शाहरुख खान की पठान सुपरफ्लॉप हो जाए तो? आशंका बहुत ज्यादा है. फ्लॉप की जिम्मेदारी किसकी होगी? बावजूद कि सोशल मीडिया पर एक तबका पठान का प्रमोशन ठीक उसी पिच पर कर रहा है, जिस पर मुंबई ड्रग केस में शाहरुख और उनके बेटे की बेदाग़ छवि गढ़ी जा रही थी. मामले को राजनीतिक रूप दिया गया था. इन 'उस्तादों' ने जघन्य आपराधिक आरोपों को हिंदू-मुस्लिम राजनीति का रूप दे दिया था. जो पुर्तगाल पर मोरोक्को की जीत को मुस्लिम उम्मा की जीत के जश्न के रूप में स्थापित कर सकते हैं तो उनके लिए दूसरी चीजें कोई मामूली बात नहीं. अच्छा हुआ कि फ्रांस जीत गया वर्ना तो सोशल मीडिया पर मोरोक्को की जीत से जो ब्रदरहुड निकलता कि चारों तरफ आज सिर्फ धुआं-धुआं ही दिखता. बावजूद यहां बात सिर्फ पठान की. फुटबॉल की नहीं.

अगर पठान फ्लॉप हो जाए तो नाकामी का दोष किसका होगा? असल में कुछ दिनों पहले ही नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बॉलीवुड की बर्बादी को लेकर तमाम बातें कही थीं. उनके कहने का मतलब था कि फिल्मों के फ्लॉप होने की एकमात्र वजह बेतहाशा बजट है. बजट असीमित इसलिए होता है कि 100 करोड़ी सुपरस्टार्स को साइन किया जाता है. यह भ्रष्टाचार है. 100 करोड़ी एक्टर्स की पूरी कलई डिजिटल के दौर में खुल चुकी हैं. आज जैसे रील्स और बाकी कंटेंट तेजी से फैल रहे हैं सारा इम्प्रेशन मिनट भर का रह गया है. एक मिनट में लोग हंसने लगते हैं, इमोशनल हो जाते हैं. रोते हैं. सबकुछ जल्दी हो रहा. दूसरी तरफ लाइव परफॉरमेंस बिगड़ चुका है. एक्टर्स अब सीखते नहीं. खुद को दोहराते हैं. एक फिल्म में एक्टर का काम पसंद आता है और दूसरी फिल्म से वह एक्सपोज होने लगता है. (उसके पास करने को कुछ बचता ही नहीं).

नवाज ने कहा था कि कोई फ़िल्म फ्लॉप हो ही नहीं सकती. यह फिल्मों का बेतहाशा बजट है जिसकी वजह से फ़िल्में पिट जाती हैं. तो मान लीजिए कि पठान अगर फ्लॉप हो जाती है तो जिम्मेदारी सिर्फ शाहरुख खान की ही होगी. पठान के लिए उन्होंने सबसे ज्यादा फीस ली है.

बेशरम रंग पर हंगामा बता रहा पठान की फिल्म का हाल सिनेमाघरों में बहुत ब्जुरा नहो सकता है.

200 करोड़ रुपये सितारों की फीस पर खर्च, निकलकर आया बड़ा शून्य, फ़िल्में तो फ्लॉप होनी ही हैं

पठान के लिए शाहरुख ने 100 करोड़ की फीस ली है. रिपोर्ट्स तो यही हैं. मजेदार यह है कि पिछले आठ साल में जीरो, जब हैरी मेट सेजल, रईस, डियर जिंदगी, फैन और दिलवाले उनकी आई फ़िल्में हैं. इसमें रईस के बॉक्स ऑफिस को छोड़ दिया जाए तो बाकी फ़िल्में बुरी तरह फ्लॉप हुईं. इसमें ऐसी कोई एक फिल्म भी नहीं है, जिसे लेकर यह कह दिया जाए कि भले ही वह फ्लॉप हो गईं, लेकिन शाहरुख का काम बहुत जोरदार था. जैसे सुपरफ्लॉप "रन" में विजय राज का काम आज भी लोगों को याद है. बावजूद कि लोगों को याद नहीं कि रन असल में महानायक अमिताभ बच्चन के सुपुत्र अभिषेक बच्चन के लिए बनाई गई थी. कुल मिलाकर कहने का मतलब यह कि जो फ़िल्में गिनाई गई हैं एक एक्टर के रूप में उनकी वजह से शाहरुख को कोई याद नहीं करना चाहेगा. समझ में नहीं आता कि आठ साल से जिस अभिनेता के अभिनय और फिल्मों का यह हाल है उसे कोई निर्माता 100 करोड़ रुपये किस आधार पर दे देता है?

पठान में 100 करोड़ फीस शाहरुख भाई को, 20 करोड़ जॉन अब्राहम, 15 करोड़ दीपिका पादुकोण को. कम से कम 15 करोड़ फीस निर्देशक ने भी ली ही होगी. सिर्फ चार लोगों की फीस पर निवेश 150 करोड़ रुपये है. फिल्म में और भी कलाकारों की फीस होगी. कह सकते हैं कि कम से कम 200-225 करोड़ तक पठान के लिए एक्टर्स की फीस पर खर्च हुए होंगे. इसके अलावा फिल्म बनाने के लिए दूसरे खर्च भी किए गए होंगे. शूट और ढेर सारा काम. अब सवाल है कि जिस फिल्म की लागत सितारों की फीस भर से 225 करोड़ तक जा सकती है अगर वह फ्लॉप हो जाती है तो उसमें दर्शकों का कोई दोष तो नहीं निकालना चाहिए. फिल्म का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है और इसके फ्लॉप होने की आशंका बहुत बढ़ गई है. बेशरम रंग गाना आने के बाद तो तीखा विरोध होने लगा है. कई लोगों को समझ ही नहीं आ रहा कि बेशरम रंग में है क्या आखिर. तारीफ़ क्यों हो रही है. क्या तारीफ़ धुन की हो रही है, शिल्पा की आवाज की हो रही है, दीपिका के बोल्ड अवतार या डांस की हो रही है.

दुर्भाग्य से बेशरम रंग में इन चीजों की तारीफ़ ही नहीं हो रही है. तारीफ़ शाहरुख की हो रही है. स्वाभाविक है कि 100 करोड़ उन्होंने लिए हैं तो तारीफ़ उनकी ही होगी. उनके लंबे बालों की तारीफ़ हो रही है. खुले पंजे से हवा में दुआ सलाम के लिए उठ रहे उनके हाथ और स्टाइल की हो रही है. और सबसे ज्यादा तारीफ़ उनकी कटावदार देह की हो रही है. इसी देह के लिए की गई उनकी मेहनत की भी तारीफ़ हो रही है. तो क्या इसे पर्याप्त माना जा सकता है कि पठान हिट हो ही जाएगी. और इसे देखने भर दर्शक सिनेमाघर चले आएंगे. किसी फिल्म में हीरोइन के छोटे कपड़ों या फिर इंटीमेट सीन्स पर क्या ही टिप्पणी करना. उसे अश्लील नहीं कहा जा सकता. क्योंकि बॉलीवुड में तो इससे भी मादक और उत्तेजक इंटीमेट सीन्स फिल्माए गए हैं. सर्दी में ठंड से परेशान बेहोश हीरोइन को बचाने के लिए बॉलीवुड फिल्मों में ना जाने कितने औचित्यहिन सीन्स फिल्माएं गए हैं. असल में है तो यह अश्लीलता ही जिसे कला के नाम पर यौन कुंठा भुनाने के लिए बॉलीवुड हमेशा से बेंचता रहा है. उत्तेजक दृश्य जानबूझकर बनाए जाते. कहानी की डिमांड नहीं होते वो.

हॉलीवुड के न्यूड सीन्स भी अश्लील नहीं लगते, मगर यहां सवाल कॉन्टेंट का है?

हॉलीवुड फिल्मों में तो न्यूड सीन्स आम बात हैं. मगर उन्हें देखकर कभी शर्म नहीं आती. टाइटैनिक का वह दृश्य याद करिए जिसमें नायक, नायिका की हूबहू न्यूड पेंटिंग बनाता है. आप परिवार के साथ भी फिल्म देख रहे होते हैं और दृश्य निकल जाते हैं लेकिन झिझक नहीं होती. बावजूद बेशरम रंग में परिवार संग नंगई देख मन असहज हो सकता है. अब किसी को अगर इसी में कलात्मकता दिख रही है तो क्या ही कहना. लेकिन इस कलात्मकता के नाम पर भी फिल्म का चलना बहुत मुश्किल है. इसलिए कि अब डिजिटल/ओटीटी के दौर में इससे कहीं ज्यादा खुले और प्राकृतिक दृश्य दर्शकों को बहुत सहज मिल रहे हैं. इंटरनेट की वजह से. एक जमाने में यह नहीं था. और उस दौर में हिंदी दर्शक भालू की तरह बालों के गुच्छे से सजी पुरुष छातियों के साथ-साथ पूरी तरह से नायकों की साफ़ सुथरी छातियां देखते रहे हैं. दीपिका के उत्तेजक स्टेप्स से भी मादक नायिकाएं बॉलीवुड की फिल्मों में नजर आ चुकी हैं. तो सवाल अश्लीलता और स्टाइल का नहीं, कॉन्टेंट का भी है.  

शाहरुख खान.

अच्छी बात है कि समीक्षक बेशरम रंग से असहज तो हैं. गाना है तो दीपिका का मगर शाहरुख के एंगल से शायद इसीलिए तारीफ़ की जा रही है. लंबे बाल, खुले पंजे से दुआ सलाम के लिए स्टाइल और कटावदार देह. क्या शाहरुख को इसीलिए 100 करोड़ रुपये दिए गए हैं. बेशरम रंग अगर पठान के कॉन्टेंट का टीजर है तो पूरी फिल्म में क्या होगा समझना मुश्किल नहीं है. पर शाहरुख की इन्हीं खूबियों को दिखाने के लिए यशराज फिल्म को कई सौ करोड़ खर्च करने की भला क्या जरूरत थी. जुबां केसरी के जरिए शाहरुख भाई तो रोज टीवी पर दुआ सलाम करते दिखते ही रहते हैं. कटावदार देह कबसे अभिनेता का गुण हुआ भाई? अगर यही एक्टिंग है और कटावदार देह के लिए 57 साल की उम्र में शाहरुख ने यहीं मेहनत की है फिर मिलिंद सोमन जैसे कटावदार देह वाले छैल छबीले नायकों को बॉलीवुड ने क्यों भगा दिया. मिलिंद तो 12 महीने रियाज करते ही रहते हैं.

मगर मसला यह नहीं है. कुछ लोगों को लगता है कि पैसे के दम पर सुपरस्टार बने रहेंगे. पीआर से लाइक खरीद लेंगे. व्यूज खरीद लेंगे. जो निर्माता अपनी फिल्मों पर 300-400 करोड़ खर्च कर सकते हैं, वह प्रायोजित समीक्षाएं क्यों नहीं खरीद सकते. तमाम समीक्षक बिछे पड़े हैं. घर सबको चलाना है. कोई समीक्षक कुछ पैसों के बदले लिख सकता है कि शाहरुख प्रतिभा से लैस एक्टर हैं. लेकिन अफसोस इस बात का है कि दर्शक सिनेमाघर किसी की कटावदार बॉडी या फिर सलाम में उठे उनके हाथ देखने क्यों जाएंगे बार-बार. आठ साल से शाहरुख की आई ऐसी कोई फिल्म नहीं है जिसमें एक्टर की विशेषताओं को लोगों ने देखा ना हो. शाहरुख के लिए यूं कामयाबी तो नहीं खरीदी जा सकती है. किसी फिल्म पर 400 करोड़ बर्बाद करने से अच्छा है कि वे सोशल मीडिया के लिए रील्स बनाए. उनके बहुत फ़ॉलोअर हैं. ऊपर वाले की कृपा से बहुत कमाई होगी. या फिर रिटायर होकर घर बैठ जाएं.

हिंदू बनाम मुस्लिम करने से उन्हें अच्छी चर्चा मिल सकती है. बिकिनी के रंग के जरिए जो बवाल मचाया गया शाहरुख की टीम उसमें कामयाब रही. दुर्भाग्य से सिनेमाघर यूट्यूब से बहुत अलग हैं. पैसे खर्च करके यूट्यूब पर गाने को हिट कराया जा सकता है, दर्शक इतने भर से सिनेमाघर नहीं जाते. पीआर के सस्ते हथकंडो से बाज आइए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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