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अगर जर्मनी में पठान की रिकॉर्डतोड़ बुकिंग हुई फिर क्यों 9 साल से फ्लॉप की झड़ी लगा रहे शाहरुख?

    • अनुज शुक्ला
    • Updated: 31 दिसम्बर, 2022 09:53 PM
  • 31 दिसम्बर, 2022 02:43 PM
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मुहावरा मशहूर है- खोदा पहाड़ निकली चुहिया. शाहरुख खान के रूप में जिस पहाड़ का प्रचार किया जा रहा है, उसे खंगालते हैं तो कुछ अलग नजर आता है. अगर वे इतने बड़े स्टार और ओवरसीज के बादशाह, गल्फ के किंग हैं तो उनकी फिल्मों के कारोबार में वह दिखता क्यों नहीं?

पठान की 'हेडलाइन हंटिंग' पीआर की जितनी तारीफ़ की जाए कम है. कहा जा सकता है कि पठान के प्रचार में दिल खोलकर पैसा खर्च किया जा रहा है और स्मार्ट लोग कम कर रहे हैं. फिल्म के कॉन्टेंट से लेकर प्रमोशनल एक्टिविटिज तक जो कुछ नजर आ रहा है- वह एक जबरदस्त रणनीति का हिस्सा है. कमाल की रणनीति. इसे देखकर समझा जा सकता है कि शाहरुख खान बॉलीवुड के इकलौते इंटरनेशनल अभिनेता हैं जिनकी साख का देश-विदेश की टिकट खिड़की पर कोई जवाब नहीं. ओवरसीज के घोषित किंग हैं. उनके महिमागान में फिल्म पत्रकारों ने इतने विशेषण ईजाद किए हैं अब तक कि लिखने बैठूं तो पन्ने कम पड़ने लगेंगे. जबकि हवा हवाई स्थापना से अलग जमीनी हकीकत यह है कि उनके तीन दशक पुराने करियर में एक भी फिल्म नजर नहीं आती जिसने ढाई सौ करोड़ की कमाई की हो. संभवत: बॉलीवुड के इतिहास में सबसे बड़े बैनर्स के साथ, सबसे ज्यादा महंगी फ़िल्में करने वाले शाहरुख के करियर में दो-तीन फ़िल्में भी नहीं हैं जिन्होंने 200 करोड़ से ज्यादा कमाई की हो.

कारोबारी लिहाज से शाहरुख के करियर में इकलौती फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस है जिसने देसी बॉक्स ऑफिस पर सबसे ज्यादा यानी 227 करोड़ का कलेक्शन निकाला था. एक तरह से टिकट खिड़की पर यही उनकी आख़िरी सफलता भी है. यह फिल्म उन्होंने रोहित शेट्टी के साथ की थी जिन्हें बॉलीवुड का 'मैजिकल मनी मेकर' कह सकते हैं. ऐसा मनी मेकर जो बॉलीवुड के पथरीले पहाड़ को चीरकर निकला है. चेन्नई एक्सप्रेस के बाद से शाहरुख की अब तक सिर्फ इकलौती 'रईस' दिखती है जो टिकट खिड़की पर सेमी हिट थी. किंग खान के ओवरसीज रिकॉर्ड को खंगाले तो साल 2015 में आई 'दिलवाले' सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्म है. इसने 25 करोड़ से कुछ ज्यादा कमाए थे.

यह भी रोहित की फिल्म थी. इसके बाद 'माई नेम इज खान' ने करीब 23 करोड़ ओवरसीज मार्केट में कमाए थे. बाकी फिल्मों का कलेक्शन 13 करोड़ से लेकर 14 लाख (सिर्फ 14 लाख और उससे भी कम)के बीच तक नजर आता है. इसमें भी 10 करोड़ से भी कम कमाने वाली फिल्मों की तादाद तो बेतहाशा है. फिल्म ट्रेड की एक सबसे विश्वसनीय वेबसाइट...

पठान की 'हेडलाइन हंटिंग' पीआर की जितनी तारीफ़ की जाए कम है. कहा जा सकता है कि पठान के प्रचार में दिल खोलकर पैसा खर्च किया जा रहा है और स्मार्ट लोग कम कर रहे हैं. फिल्म के कॉन्टेंट से लेकर प्रमोशनल एक्टिविटिज तक जो कुछ नजर आ रहा है- वह एक जबरदस्त रणनीति का हिस्सा है. कमाल की रणनीति. इसे देखकर समझा जा सकता है कि शाहरुख खान बॉलीवुड के इकलौते इंटरनेशनल अभिनेता हैं जिनकी साख का देश-विदेश की टिकट खिड़की पर कोई जवाब नहीं. ओवरसीज के घोषित किंग हैं. उनके महिमागान में फिल्म पत्रकारों ने इतने विशेषण ईजाद किए हैं अब तक कि लिखने बैठूं तो पन्ने कम पड़ने लगेंगे. जबकि हवा हवाई स्थापना से अलग जमीनी हकीकत यह है कि उनके तीन दशक पुराने करियर में एक भी फिल्म नजर नहीं आती जिसने ढाई सौ करोड़ की कमाई की हो. संभवत: बॉलीवुड के इतिहास में सबसे बड़े बैनर्स के साथ, सबसे ज्यादा महंगी फ़िल्में करने वाले शाहरुख के करियर में दो-तीन फ़िल्में भी नहीं हैं जिन्होंने 200 करोड़ से ज्यादा कमाई की हो.

कारोबारी लिहाज से शाहरुख के करियर में इकलौती फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस है जिसने देसी बॉक्स ऑफिस पर सबसे ज्यादा यानी 227 करोड़ का कलेक्शन निकाला था. एक तरह से टिकट खिड़की पर यही उनकी आख़िरी सफलता भी है. यह फिल्म उन्होंने रोहित शेट्टी के साथ की थी जिन्हें बॉलीवुड का 'मैजिकल मनी मेकर' कह सकते हैं. ऐसा मनी मेकर जो बॉलीवुड के पथरीले पहाड़ को चीरकर निकला है. चेन्नई एक्सप्रेस के बाद से शाहरुख की अब तक सिर्फ इकलौती 'रईस' दिखती है जो टिकट खिड़की पर सेमी हिट थी. किंग खान के ओवरसीज रिकॉर्ड को खंगाले तो साल 2015 में आई 'दिलवाले' सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्म है. इसने 25 करोड़ से कुछ ज्यादा कमाए थे.

यह भी रोहित की फिल्म थी. इसके बाद 'माई नेम इज खान' ने करीब 23 करोड़ ओवरसीज मार्केट में कमाए थे. बाकी फिल्मों का कलेक्शन 13 करोड़ से लेकर 14 लाख (सिर्फ 14 लाख और उससे भी कम)के बीच तक नजर आता है. इसमें भी 10 करोड़ से भी कम कमाने वाली फिल्मों की तादाद तो बेतहाशा है. फिल्म ट्रेड की एक सबसे विश्वसनीय वेबसाइट के रूप में मशहूर बॉलीवुड हंगामा के दो लिंक नीचे हैं. चाहें तो शाहरुख के फिल्मों की इंडिया और ओवरसीज रिकॉर्ड्स को चेक कर सकते हैं. सूचनाएं आपके हाथ में हैं. जरूरी नहीं कि सिर्फ अपने प्रवक्ताओं के मुंह से सुनी बात पर भरोसा करें.

जरूर पढ़ें: शाहरुख खान पैसे के दम पर कुछ भी खरीद सकते हैं पर कामयाबी नहीं

शाहरुख खान.

अब सवाल है कि जिसका बॉक्स ऑफिस औसत नजर आता है तो क्यों ना कहा जाए कि उनके चमकदार करियर में जो रोशनी दिखाई देती है असल में कुशल मैनेजमेंट की देन है. दुर्भाग्य से पिछले 9 साल से वह रोशनी भी फींकी नजर आती है. इसके उलट शाहरुख और उनकी पठान को लेकर मीडिया की रिपोर्टिंग देखें तो एक करिश्माई तस्वीर नजर आती है. क्या है यह? क्या यह सेकुलर बने रहने का दबाव है. मुझे बताइए मैं समझना चाहता हूं. मैं कन्फ्यूज हो गया हूं. मैं पब्लिक साउंड सुनता हूं. मैं इन्टेलेक्चुअल साउंड सुनता हूं. और फैक्ट को परखते हुए जिस नतीजे पर पहुंचता हूं- सड़कछाप भी उसे 'जाहिलपना' करार दे रहे हैं.

भारत में शाहरुख की फिल्मों का बॉक्सऑफिस लेखा-जोखा

ओवरसीज में शाहरुख की फिल्मों का बॉक्सऑफिस लेखा-जोखा

क्या यह पैसे और प्रबंधन का कमाल है जिसने शाहरुख को सुपरस्टार बनाया, तथ्यों का संकेत तो यही

पठान के प्रमोशन में इंटरनेशनल स्टार के रूप में शाहरुख को लेकर जो दावे किए जा रहे हैं-  आंकड़े उनकी हवा निकालने वाले हैं. अब सवाल है कि जब शाहरुख इतने बड़े स्टार हैं- और वह भी अंतराष्ट्रीय स्तर के- फिर उनकी फ़िल्में सिनेमाघरों में कमाई क्यों नहीं कर पातीं? पिछले 9 साल से वे लगातार असफलताओं का कीर्तिमान क्यों बनाते जा रहे हैं. बावजूद पठान का पीआर देखिए तो लगता है कि उन्होंने अतीत में न भूतो न भविष्यति टाइप का रिकॉर्ड बनाया हो. क्या यह पैसे और प्रबंधन का कमाल है? फिलहाल की फिल्म पत्रकारिता में इतनी अंधभक्ति रिपोर्टिंग कहीं नजर नहीं आएगी, जितनी शाहरुख के पक्ष में है. सेकुलर दिखने का ड्रामा बंद करो यार. तुम्हारी मूर्खता पर खुलकर हंसा भी नहीं जा सकता.

खैर. बेशरम रंग की वजह से पठान का जमकर विरोध हो रहा है. बायकॉट ट्रेंड के आधार पर यह लगभग तय माना जा रहा है कि जिस तरह का माहौल बना है- शाहरुख को नुकसान उठाना पड़ सकता है. मेकर्स में एक डर भी है. फिल्म की रिलीज में सिर्फ 25 दिन बचे हैं. मगर अब तक ट्रेलर लॉन्च नहीं हो पाया है. देश में एडवांस बुकिंग भी शुरू नहीं हुई है. बावजूद प्रबंधन का कमाल ऐसा है कि ट्रेलर से पहले ही पठान के कॉन्टेंट को फिल्म पत्रकारों ने ब्लॉकबस्टर करार दे दिया है. उन्हें इंटरनेशनल अभिनेता के रूप में प्रचारित किया जा रहा है. अभी हाल में किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था ने उन्हें दुनिया के टॉप अभिनेताओं की सूची में भी जगह दी. पठान की रिलीज से ठीक पहले यह सूची आई.

हेडलाइन हंटिंग पीआर का कमाल दिख रहा है

नहीं मालूम की देश में कितने लोगों को इस अंतरराष्ट्रीय संस्था के बारे में जानकारी होगी. कोई बता रहा कि शाहरुख ओवरसीज के बादशाह और खाड़ी के किंग हैं. कोई बता रहा कि उनकी फिल्म भारत में बायकॉट की वजह से भले थोड़ा कम कारोबार करे, मगर शाहरुख की फिल्म के नुकसान की भरपाई तो खाड़ी देशों से हो जाएगा. अन्य ओवरसीज मार्केट में भी जबरदस्त कमाई होगी. बॉलीवुड केंद्रित अंग्रेजी की तमाम वेबसाइट्स ने लगभग एक जैसी रिपोर्ट एक्सक्लूसिव और ब्रेकिंग के रूप में पब्लिश की. रिपोर्ट जर्मनी में पठान की एडवांस बुकिंग से जुड़ी है.

इससे तो यही पता चल रहा है कि शाहरुख का जर्मनी में भी तगड़ा फैन बेस है. फिल्म ट्रेड में दिलचस्पी रखने वाले समझ लें कि सिर्फ यूएस-यूके-कनाडा या ऑस्ट्रेलिया ही नहीं, बल्कि जर्मनी में भी बॉलीवुड का तगड़ा फैनबेस है. हो सकता है बॉलीवुड का ना भी हो, लेकिन जर्मनी 'शाहरुखमय' 'पठानमय' नजर आ रहा है फिलहाल. फ्रांस में भी होगा ही. वैसे भी दीपिका पादुकोण मशहूर फ्रेंच ब्रांड की राजदूत तो हैं ही. यह रिपोर्ट भी आने वाली होगी कि तमाम फ्रेंच पठान की रिलीज को लेकर मरे जा रहे हैं. पठान को लेकर तमाम खबरें देख लीजिए. यह 'हेडलाइन हंटिंग पीआर' का ही कमाल है कि शाहरुख के पक्ष में समूचा मीडिया माहौल बना रहा है. आप सोचिए कि जब सोशल मीडिया और फैक्ट चेक (मैं उपनिवेशों का टूल कहता हूं) भी नहीं रहा होगा तो क्या भसड होगी? फिलहाल ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जो तथ्यों से परे है.

क्या निर्माताओं ने मीडिया भी मैनेज कर लिया है?

रिपोर्ट्स में कोई सच्चाई है या प्रोपगेंडा- कुछ कहा नहीं जा सकता. लेकिन सूत्रों के हवाले से बताया गया कि जर्मनी में पठान की टिकटें एडवांस में हाथोंहाथ ली जा रही हैं. जर्मनी में 28 दिसंबर से एडवांस बुकिंग शुरू हुई. बर्लिन के सात थियेटर्स के लिए टिकट बेंचे गए. रिपोर्ट्स में बताया जा रहा कि सातों थियेटर्स में 25 जनवरी के शो ऑलमोस्ट फुल हैं. सोशल मीडिया के स्क्रीनशॉट और ट्वीट भी रिपोर्ट में इस्तेमाल किए गए हैं. अगर जर्मनी में पठान की हाइप ऐसी है तो फिल्म खाड़ी देशों, यूके, यूएस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया में सफलता के झंडे गाड़ देगी. भारत में भले फ्लॉप हो जाए निर्माताओं को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. बॉलीवुड और शाहरुख के लिए इससे अच्छी बात भला और क्या होगी.

मगर सबसे बड़ा सवाल है कि ओवरसीज स्टार शाहरुख की जब इतनी डिमांड है तो नौ साल में रिलीज होने वाली उनकी फ़िल्में बुरी तरह से पिटती क्यों रहीं? क्यों उनके खाते में चेन्नई एक्सप्रेस के अलावा दो सौ करोड़ी फ़िल्में नहीं हैं.

क्या नौ साल से शाहरुख की फ़िल्में विदेशों में रिलीज नहीं हो रही थीं. कोई बताएगा मुझे. क्या सच में किंग खान साबुन का झाग भर हैं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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