New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 17 नवम्बर, 2022 06:28 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

चिराग पासवान (Chirag Paswan) के लिए फिलहाल सबसे अच्छी बात ये है कि लोक जनशक्ति पार्टी में सुलह के आसार नजर आने लगे हैं. जाहिर है बीजेपी की भूमिका बड़ी ही होगी. आखिर बीजेपी नेताओं ने ही तो आगे बढ़ कर लोक जनशक्ति पार्टी को पूरी तरह टूटने से बचाया भी था. ये ठीक है कि चिराग पासवान और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस वाले गुट को चुनाव आयोग ने अलग अलग निशान और नाम दे दिया था.

चिराग पासवान की एनडीए में वापसी का रास्ता तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के महागठबंधन में जाते ही साफ हो गया था. बीजेपी की तरफ से दिक्कत वाली बात भला क्या हो सकती थी, बीजेपी ने तो बस नीतीश कुमार की नाराजगी से बचने के लिए बिहार चुनाव के बाद चिराग पासवान के सामने नो एंट्री का वर्चुअल बोर्ड लगा दिया था.

एनडीए में वापसी को लेकर चिराग पासवान, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी कर चुके हैं, लेकिन अंतिम मुहर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से मुलाकात और फिर उनके ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद ही लग सकेगी.

एक तरफ ये सब चल ही रहा है, और ऐन उसी वक्त चिराग पासवान का जोर बिहार की राजनीति पर कुछ ज्यादा ही महसूस हो रहा है. एक इंटरव्यू में बिहार का मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर तो चिराग पासवान ने मन की पूरी बात ही सुना डाली थी.

बिहार को लेकर चिराग पासवान का इरादा लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के 'बिहार बचाओ आंदोलन' में भी साफ तौर पर देखा जा सकता है. ये आंदोलन चिराग पासवान बिहार के आरा से शुरू करने जा रहे हैं - 17 नवंबर से. लोक जनशक्ति पार्टी के ट्विटर हैंडल से बताया गया है कि आरा में पिछले 9 दिनों में हुई 9 हत्याओं के विरोध में ये आंदोलन किया जा रहा है. बताते हैं कि चिराग पासवान आरा में पदयात्रा करने जा रहे हैं.

आगे का तो नहीं मालूम लेकिन आरा की पदयात्रा से तो यही लगता है कि चिराग पासवान वास्तव में बिहार की राजनीति पर ही फोकस करना चाहते हैं. एलजेपी-आर की तरफ से बताया गया है कि चिराग पासवान पहले पीड़ित परिवारों से मुलाकात करेंगे और फिर भोजपुर जिला मुख्यालय से यात्रा की शुरुआत करेंगे.

और इसी बीच पशुपति कुमार पारस की तरफ से भी चिराग पासवान को तकरार भरे लहजे में संदेशे भेजे जा रहे हैं. चाचा पारस का कहना है कि अगर भतीजे चिराग ने सार्वजनिक तौर पर माफी मांग ली तो दोनों के बीच सुलह हो सकती है - थोड़ा आगे बढ़ कर समझने की कोशिश करें तो चाचा के भतीजे का नेतृत्व स्वीकार करने में भी संकोच कम हो गया है ऐसा लगता है. मान कर चलना होगा ये सारी कवायद बीजेपी के सौजन्य से ही हो रही होगी.

रही बात चिराग पासवान के बिहार पर जोर की तो सवाल ये है कि क्या वो नीतीश कुमार की जगह लेने की कोशिश में जुटे हुए हैं - फिर तो सवाल ये भी होगा कि बीजेपी को चिराग पासवान की मंशा मंजूर भी होगी क्या?

एनडीए में वापसी का पहला कदम

एनडीए में बने रहने या बाहर हो जाने को लेकर कभी भी न तो चिराग पासवान की तरफ से और न ही बीजेपी नेतृत्व के तरफ से साफ तौर पर या फिर आधिकारिक रूप से कुछ कहा गया था - बिहार चुनाव के दौरान जब नीतीश कुमार इस बात पर अड़ गये कि लोगों को साफ किया जाये कि चिराग पासवान का स्टेटस क्या है, तो बस इतना ही बताया गया कि एनडीए में कौन कौन लोग हैं - और उनमें चिराग पासवान का नाम नहीं था.

chirag paswan, nitish kumar, narendra modiनीतीश कुमार तो नहीं, लेकिन चिराग पासवान चाहें तो हिमंत बिस्वा सरमा जरूर बन सकते हैं.

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से ऐसे संकेत दे दिये गये तो बिहार बीजेपी के नेता अपने अपने हिसाब से समझाने की कोशिश करने लगे कि चिराग पासवान चुनावों में एनडीए के साथ नहीं हैं - और तभी चिराग पासवान ने भी इस मुद्दे पर हथियार डाल दिये, हालांकि, जो कुछ हो रहा था उसके लिए चिराग पासवान ने बीजेपी को नहीं बल्कि नीतीश कुमार को ही पूरी तरह जिम्मेदार बताया था.

चुनाव बाद राम विलास पासवान की राज्य सभा सीट और जब मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल होनी थी उसके पहले भी चिराग पासवान को काफी उम्मीदें होंगी. जैसे चिराग पासवान चाहते थे कि पिता वाली राज्य सभा सीट उनकी मां को मिल जाती, बिलकुल वैसे ही चिराग पासवान को मोदी कैबिनेट में पिता वाली जगह की भी उम्मीद रही ही होगी - लेकिन कुछ भी न मिला. कुछ तो नीतीश कुमार की वजह से और कुछ बीजेपी ने अपनी वजह से राजनीति कर डाली.

बहरहाल, नीतीश कुमार के विरोधी खेमे में चले जाने के बाद बीजेपी को नये सिरे से चिराग पासवान की सुधि आयी है. जरूरत भी है. चिराग पासवान बिहार में एक मजबूत वोट बैंक के नेता तो हैं ही. ये ठीक है कि हाल फिलहाल चिराग पासवान को उपचुनावों में कामयाबी नहीं मिली है, लेकिन बिहार का पासवान वोटर उनको खारिज कर दिया हो, ऐसी बात तो अब तक नहीं ही दिखी है.

अमित शाह से मुलाकात को लेकर हाल ही में एक इंटरव्यू में चिराग पासवान का कहना रहा, 'मैंने अमित शाह के साथ 50 मिनट तक अलग-अलग मुद्दों पर बात की... अपनी सभी चिंताओं को उनके सामने रखा... आने वाले लोक सभा और विधानसभा चुनाव को लेकर भी हमने चर्चा की है.'

एनडीए में वापसी को लेकर चिराग पासवान का पक्ष है कि अभी कई मुद्दों पर बात होनी बाकी है. बोले, 'अभी चर्चा चल रही है... उपचुनाव से पहले अपने समर्थन को लेकर हमने घोषणा की... उपचुनाव में समर्थन जरूर दिया है, लेकिन गठबंधन को लेकर अभी कई बातें हैं जिन पर चर्चा होनी है - और उसके बाद ही हम औपचारिक घोषणा करेंगे.'

एनडीए में फिलहाल रामविलास पासवान की पार्टी का एक हिस्सा बना हुआ है - राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी. पशुपति कुमार पारस वाले गुट को चुनाव आयोग से यही नाम मिला है. पारस को ही संसदीय दल के नेता के तौर पर स्पीकर ओम बिड़ला ने झगड़े के वक्त ही मान्यता दे दी थी. फिर पारस को मोदी कैबिनेट में भी शामिल कर लिया गया था.

चिराग से किस बात की माफी चाहते हैं पारस: पशुपति कुमार पारस का कहना है, '... हमारी सलाह के बावजूद चिराग पासवान का अकेले चुनाव लड़ने का उनका फैसला गलत था... मैं चिराग के साथ अपनी पार्टी का विलय करने की तभी सोच सकता हूं जब वो अपनी उस गलती के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगें.'

एनडीए में चिराग पासवान की वापसी का पशुपति कुमार पारस ने स्वागत किया है, कहते हैं - ' वो बीजेपी नेता नित्यानंद राय थे, जिन्होंने चिराग को एनडीए में वापस लेने के बारे में मुझसे बात की थी... मेरी स्वीकृति के बाद ही चिराग ने मोकामा और गोपालगंज उपचुनावों में बीजेपी के लिए प्रचार किया.'

एक चर्चा चिराग पासवान के हाजीपुर से चुनाव लड़ने को लेकर भी चली थी और पशुपति कुमार पारस को सबसे ज्यादा आपत्ति इसी बात पर है. असल में हाजीपुर ही रामविलास पासवान का संसदीय क्षेत्र हुआ करता था, जब 2019 में वो चुनाव नहीं लड़े तो ये सीट अपने भाई के हवाले कर दी थी.

चिराग पासवान तो 2014 से ही जमुई से सांसद हैं, लेकिन पिता के बाद अब वो चाहते हैं कि हाजीपुर का खुद प्रतिनिधित्व करें - ऐसा करने का बड़ा मैसेज भी जाएगा. और पशुपति कुमार पारस के लिए राजनीतिक संकट जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी.

पशुपति कुमार पारस अपनी तरफ से स्थिति पूरी तरह स्पष्ट करने की कोशिश की है, 'चिराग जमुई से चुनाव लड़ेंगे, जहां से वो मौजूदा सांसद हैं... वो हाजीपुर से कैसे चुनाव लड़ सकते हैं? मैं हाजीपुर से मौजूदा सांसद हूं... और 2024 में फिर से उसी सीट से चुनाव लड़ूंगा.'

लगे हाथ पशुपति कुमार पारस ने चिराग पासवान को दो टूक संदेश देने की भी कोशिश की है, 'चिराग, रामविलास पासवान की संपत्ति के वारिस हो सकते हैं - लेकिन उनकी राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी मैं हूं.'

चिराग तो बिहार पर ही फोकस हैं

बिहार के सीमांचल दौरे में ही अमित शाह ने सूबे को लेकर बीजेपी का स्टैंड साफ करने की कोशिश की थी. नीतीश कुमार और लालू परिवार के बारे में जो कुछ कहना था, कहे ही लेकिन उससे ज्यादा जोर बीजेपी की बिहार में स्थिति को लेकर किये गये दावे पर रही.

अमित शाह ने अपनी तरफ से साफ साफ बता दिया कि 2025 में बीजेपी का ही मुख्यमंत्री बनेगा. इससे पहले अमित शाह बिहार में एनडीए की बात किया करते थे, लेकिन अब सिर्फ बीजेपी की बात कर रहे हैं. जब तक अमित शाह की तरफ से कोई नया बयान नहीं आता, चिराग पासवान एनडीए से आउट ही माने जाएंगे - या फिर उसका कोई और मतलब निकाला जा सके तो बात और है.

आरा से चिराग पासवान बिहार बचाओ यात्रा तो शुरू करने जा ही रहे हैं, मालूम नहीं किस आधार पर वो बिहार में मध्यावधि चुनाव की संभावना भी जताने लगे हैं. वैसे साल भर पहले तो चिराग पासवान ने ऐसी मांग भी रखी थी.

रोहतास जिले में आयोजित एक समारोह में पहुंचे चिराग पासवान ने एक पब्लिक मीटिंग भी की थी. नीतीश कुमार पर अंग्रेजों की तरह बिहार के लोगों को बांटने का आरोप तो लगाया ही, जितना बुरा भला हो सकता था चुन चुन कर बोले भी - और जिस तरह का दावा किया वो भी हैरान करने वाला लगा क्योंकि ये बात चिराग पासवान की एनडीए में वापसी की चर्चा के बीच सुनने को मिल रही है.

लोगों से मुखाबित होकर चिराग पासवान बोले, 'बिहार में मध्यावधि चुनाव होना तय है... क्योंकि जिस तरह से पूरे प्रदेश में अराजकता का माहौल है, ऐसे में लोक सभा के चुनाव के साथ ही विधानसभा का चुनाव बिहार में होना तय है.'

क्या चिराग पासवान को बीजेपी नेतृत्व की तरफ से कोई बड़ा संकेत मिला है क्या? या फिर यूं ही हवाई फायर कर रहे हैं. बात तो ऐसी है ही कि चर्चा तो होगी ही.

हाल ही में एक इंटरव्यू में चिराग पासवान ने जिस तरह की बातें की, साफ लगता है कि अब वो बिहार को लेकर काफी गंभीर हो चुके हैं. एक सवाल के जवाब में चिराग पासवान कहते हैं, 'बिहार के कारण ही मैं राजनीति में आया... बिहार के लोगों को मार खाते हुए देखा... शिवसेना के लोग जिस तरह से बिहारियों के साथ बर्ताव करते थे... देखने के बाद ही मैंने फैसला किया कि मैं अपने राज्य वापस जाऊंगा और उसकी अस्मिता और गरिमा के लिए काम करूंगा... यकीनन मेरी प्राथमिकता राज्य की राजनीति है.'

चिराग पासवान की बातों से ही स्थिति और साफ होती है, 'जिस दिन बिहार में हमारी सरकार होगी उस दिन इसे सही मायने में विकसित राज्य बनाने की तरफ काम करेंगे, - और मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर कहते हैं, 'मुख्यमंत्री बनने देने का मौका जनता के हाथ में है... जनता मौका देगी तो यकीनन बनेंगे.'

संभावनाएं क्या बनती हैं?

ऐसा तो कतई नहीं लगता कि बीजेपी कितना भी मजबूर हो बिहार में दूसरा नीतीश कुमार तो बनाने से रही. ये बीजेपी ही है जिसने शुरू से नीतीश कुमार को सपोर्ट किया और वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहे - बल्कि, 2020 के चुनाव के बाद तो खुद नीतीश कुमार ने ही सरेआम कबूल किया था कि बीजेपी के कहने पर ही वो मुख्यमंत्री बनने को राजी हुई. असल में जेडीयू की सीटें काफी कम आयी थीं, लिहाजा सब कुछ बीजेपी की मर्जी पर ही निर्भर करता था.

पंजाब में भी 2022 के चुनाव में बड़ा मौका था. बीजेपी चाहती तो कैप्टन अमरिंदर सिंह को नीतीश कुमार जैसी भूमिका में लाकर सत्ता पर कब्जे की कोशिश कर सकती थी. मौका इसलिए भी रहा क्योंकि कांग्रेस हथियार डाल चुकी थी - और आम आदमी पार्टी अभी तैयारी ही कर रही थी. फिर भी बीजेपी ने इंतजार करने का ही फैसला किया.

ऐसे में एक ही उपाय बचता है या तो चिराग पासवान खुद ऑफर कर दें कि वो बीजेपी ज्वाइन करना चाहते हैं, या फिर बीजेपी ऐसे हालात पैदा कर दे कि राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए चिराग पासवान के पास कोई विकल्प न बच पाये - ऐसी सूरत में ही, हिमंत बिस्वा सरमा के मिसाल कायम करने के बाद, संभावना बनती है कि चिराग पासवान बिहार के मुख्यमंत्री बन सकें.

इन्हें भी पढ़ें :

चिराग और उद्धव को दर्द तो मोदी-शाह ने ही दिया है, और दवा भी देना चाहते हैं

तेजस्वी पर नीतीश इतने मेहरबान क्यों हैं - ऐसी चापलूसी तो कभी मोदी की भी नहीं की

2024 के लिए अमित शाह का 'संपर्क फॉर समर्थन' सीजन 2 का ट्रेलर देखा आपने?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय