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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 22 अक्टूबर, 2022 07:21 PM
कन्हैया कुमार
कन्हैया कुमार
  @kanhaiya.prasar
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सियासत और शतरंज हर किसी को समझ में नहीं आता, दोनों में काफी समानताएं हैं. जैसे शतरंज में सैनिक से लेकर हाथी, घोड़ा, वजीर और राजा समेत कई किरदार होते हैं वैसे ही सियासत में भी कई किरदार होते हैं. कहते हैं सियासत करना शतरंज खेलने से ज्यादा मुश्किल होता है और उतना ही खतरनाक. देश के मौजूदा गृहमंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता अमित शाह शतरंज के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं. जाहिर है शह और मात के खेल का उनका तजुर्बा सियासत में भी दिख जाता है. उनकी सियासत कैसी है, ये देश की तमाम विपक्षी पार्टियों से बेहतर कोई नहीं बता सकता. जब से केन्द्र की राजनीति में आए हैं तब से लगता है समूचे विपक्ष ने या तो समाधी ले ली है या फिर घर बैठे सत्ता में आने का इंतजार कर रही है. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी का क्या हाल है ये किसी को बताने की जरूरत नहीं है और इन सब के पीछे कौन है ये भी किसी को बताने वाली बात नही है.

1964 में मुंबई के एक संपन्न गुजराती परिवार में जन्मे अमित शाह, देश की राजनीति में आज इसलिए भी सफल हैं क्योंकि उनकी शुरुआती जिंदगी गांव में बीती थी. वो गांव को समझते हैं, शायद इसलिए देश की राजनीति में भाजपा लगातार सफल होती जा रही है. कभी बीजेपी के बारे में कहा जाता था कि ये तो शहरी पार्टी है. आज भारत का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा हो जहां कमल नहीं खिला है, इसमें अमित शाह की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता.

बहुत कम लोगों को मालूम है कि अमित शाह की मां कुसुम बा गांधीवादी थीं. बेटे को विरासत में लाइब्रेरी दे गईं जिसमें कुरान, बाइबिल समेत हजारों किताबें रखी हैं. सोलह साल की उम्र तक वे अपने गांव, मान्सा में ही रहे और वहीं से स्कूली शिक्षा प्राप्त की. अमित शाह का पैतृक घर हेरिटेज बिल्डिंग में शुमार है. बाद में अहमदाबाद आ गए और कम उम्र में आरएसएस से जुड़ाव हो गया. 1982 में जब शाह कॉलेज में थे तो पहली बार उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से हुई, 1983 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इसके बाद कांरवा बढ़ता चला गया.आज एक देश का प्रधानमंत्री तो दूसरा देश का गृहमंत्री है. गृह मंत्री रहते अमित शाह के तीन तलाक,आर्टिकल 370 और एनआरसी पर लिए फैसले को ऐतिहासिक कहा जाए तो इसमें कुछ भी गलत नहीं.

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बात तब की है जब केशुभाई पटेल गुजरात के सीएम हुआ करते थे. तब नरेन्द्र मोदी को सुपर सीएम कहा जाता था. ये बात केशुभाई को परेशान करने लगी थी. उन्होंने मोदी को गुजरात से बाहर दिल्ली भिजवा दिया. पीएम मोदी 7 साल तक गुजरात से बाहर रहे थे. अमित शाह तब केशुभाई की सरकार में मंत्री थे लेकिन इस दौरान वहां की सारी बातें मोदी तक पहुंचाया करते थे. केशुभाई से ज्यादा उनकी वफादारी पीएम मोदी के लिए थी.

अमित शाह की एक बड़ी पुरानी आदत है. विश्व हिंदू परिषद से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले शाह तभी से रोजाना डायरी लिखते हैं. उनकी ये आदत आज भी बनी हुई है. शाह डॉक्युमेंटेशन में भी बहुत यकीन करते हैं. उनकी योजना है कि बीजेपी के हर बड़े नेता के जीवन से जुड़े किस्सों और विचारों को सुरक्षित किया जाए. 2014 के चुनाव से पहले तक अमित शाह का नाम बहुत कम लोग जानते थे. खासकर राष्ट्रीय राजनीति में वो उतने चर्चित तो नहीं ही थे जितनी 2014 के बाद उनकी चर्चा होने लगी. बहुत कम लोगों को पता होगा कि अमित शाह की अबतक की सियासत में लाल कृष्ण आडवाणी का बड़ा योगदान रहा है. या यूं कह सकते हैं कि आडवाणी और वाजपेयी की राजनीति को देखते-देखते शाह ने राजनीति की वो सारी बारीकियां सीख ली जिससे सत्ता को हासिल भी किया जा सकता है और हारने वाले का स्वाभिमान भी तोड़ा जा सकता है.

लाल कृष्ण आडवाणी 1989 का लोकसभा चुनाव गुजरात के गांधीनगर से लड़ रहे थे. और उनके चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी अमित शाह को दी गई. अमित शाह, साल 2009 तक इस जिम्मेदारी को निभाते रहे. इतना ही नहीं शाह, वाजपेयी के भी चुनाव प्रभारी बनाए गए. गुजरात की राजनीति में अमित शाह की औपचारिक एंट्री गुजरात प्रदेश वित्त निगम के अध्यक्ष के रूप में हुई थी. उन्होंने निगम का पूरी तरह से कायाकल्प कर दिया. अमित शाह देश में राजनीति के चाणक्य बन चुके हैं लेकिन इस चाणक्य का सफर इतना आसान भी नहीं रहा.

अमित शाह ने अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढाव भी देखे हैं. साल 2010 में फर्जी एनकाउंटर के मामले में अमित शाह का नाम आया और उनको जेल भेज दिया गया. इसके बाद 2015 में CBI की एक विशेष अदालत ने इस एनकाउंटर केस में अमित शाह को बरी कर दिया. इस दौरान उन्हें कुछ दिनों तक गुजरात से बाहर भी रहना पड़ा था. जिसे लेकर अक्सर विपक्षी उनपर हमला करते हैं. जेल में बंद होने के दौरान शाह ने गीता का जमकर अध्ययन किया था. वह दूसरे कैदियों को भी गीता का पाठ सुनाते थे. अहमदाबाद से बॉयोकेमिस्ट्री में बीएससी करने वाले शाह अपने पिता के प्लास्टिक कारोबार को संभालने लगे थे, फिर स्टॉक मार्केट में कदम रखा और शेयर ब्रोकर के रूप में काम करने लगे.लेकिन राजनीति में आने के बाद अमित शाह हमेशा के लिए यहीं के हो गए.उनकी संगठन क्षमता की तारीफ करते विरोधी भी नहीं थकते.

अमित शाह की छवि एक सख्त नेता की है. उनपर मुसलमान विरोधी होने का आरोप भी लगता रहता है. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि शाह के कई करीबी दोस्त मुसलमान ही हैं.और तो और एक प्रभावशाली मौलाना से भी उनकी गहरी दोस्ती है. अक्सर दोनों साथ बैठकर खाना खाते हैं. बचपन में क्रिकेट खेलने के शौकिन अमित शाह पर परिवार का काफी असर है. संघवी कॉलेज के ग्राउंड में वो क्रिकेट खेलते थे शायद इसलिए राजनीति में आने के बाद उनकी नजर गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन पर पड़ी जिसके बाद में वो अध्यक्ष भी रहे. आज उनके बेटे जय शाह बीसीसीआई के सेक्रेटरी हैं. जब आर्थिक तंगी से उबरने में देश के लोग दान दे रहे थे तो अमित शाह के नाना ने मेहसाना जिले में सबसे ज्यादा सोना दान में दिया था.अमित शाह खाने के भी शौकिन आदमी हैं. उनके पसंदीदी जायके की बात की जाए तो उन्हें भाजीपांव खाना बेहद पसंद है.

अमित शाह के बारे में कहा जाता है कि वो मीडिया को ज्यादा पसंद नहीं करते. खासतौर पर टीवी मीडिया. फोन भी कम ही लेते हैं पत्रकारों के. जबकि कार्यकर्ताओं से सीधे बात करते हैं. अध्यक्ष बनने से पहले तक अपना फोन कॉल खुद उठाते थे. गुजरात के गलियारों की मानें तो शाह ने मोदी के पीएम बनने की भविष्यवाणी 1990 में ही कर दी थी. तब दोनों अहमदाबाद रेलवे स्टेशन के पास एक रेस्तरां में बैठे हुए थे. अमित शाह के बचपन के दोस्त उन्हें पूनम के नाम से बुलाते हैं. आज भी पूनम का नाम सुनते ही अमित शाह समझ जाते हैं कि कोई उनके गांव माणसा से आया है. अमित शाह के दादा, नगर सेठ हुआ करते थे जिनकी कुर्सी राजा के बगल में रहती थी.

देखा जाए तो 2014 तक अमित शाह ने भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को यह दिखा दिया था कि वह कोई साधारण नेता नहीं हैं बस उन्हें एक बड़े मौके की तलाश है. और यह मौका भी अमित शाह को बहुत जल्दी ही मिल गया. बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उनको राष्ट्रीय महासचिव बनाकर 80 सांसदों वाले उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया.अमित शाह ने इस मौके को भुनाया और यूपी का राजनीतिक समीकरनण ऐसा बदला कि अब वहां भाजपा प्रचंड बहुमत से सरकार बनाती है और कभी राज्य में अपना सिक्का जमाने वाली पार्टियां बीएसपी और सपा हाशिये पर हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी. अमित शाह ने वो कर दिखाया था जो अब से पहले यूपी में किसी नेता ने नहीं किया था. शाह एकदम से राष्ट्रीय फलक पर छा गए. अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष बनाया गया और वो मोदी के बाद बीजेपी के सबसे ताकतवर नेता बन गए. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में गृह मंत्री बनाए गए.गृहमंत्री के रूप में उनके फैसलों ने केन्द्रीय नेतृत्व को बतला दिया कि वो न केवल संगठन को मजबूत करने में दक्ष हैं बल्कि एक नेता के रूप में वो कई असाधारण फैसले भी ले सकते हैं. अमित शाह की कामयाबी को देखते हुए उन्हें पीएम मोदी के तीसरे आंख के रूप में पुकारा जाने लगा.

दुनिया में जब कोरोना का कहर बरपा. भारत में भी इसका असर पड़ा, कोरोना के हजारों मामले सामने आ रहे थे. एक वक्त ऐसा था कि दिल्ली में रोजाना मौतों की संख्या बढ़ती जा रही थी. तब अमित शाह आगे आए. दिल्ली सरकार और एमसीडी के साथ मिलकर एक कमिटी बनाई, अस्पतालों के दौरे किए और नतीजा ये हुआ कि दिल्ली में कोरोना का कहर काफी हद तक कम हो गया.

अमित शाह और उनकी पत्नी भगवान सोमनाथ के भक्त हैं. सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट में शामिल होने को अमित शाह एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं. संगठन में अमित शाह की कामयाब के कई राज हैं. एक राज तो ये है कि उन्होंने देशभर के बीजेपी कार्यकर्ताओं को सलाह दी है कि वे मार्क्स, समाजवाद, इस्लाम और ईसाइयत के बारे में जमकर पढ़े. उनका मानना है कि बहस में टिके रहने और अपनी विचारधारा को सही साबित करने के लिए कार्यकर्ताओं को ये काम करना जरूरी है.ताकि विरोधी को जवाब दिया जा सके,उसे हराया जा सके.

बीजेपी को अपने सबसे अच्छे दिन में पहुंचाने वाले अमित शाह ज्योतिष को बहुत मानते हैं. अक्सर खादी कपड़ों में ही दिखाई देते हैं ये विरासत भी उन्हें मां से ही मिली है. उनकी मां ने खादी पहनने के लिए उन्हें प्रेरित किया था. और ये हमेशा के लिए उनके बेटे पूनम की आदत बन गई.बंगाल की बात हो या दक्षिण के राज्यों की अमित शाह हर जगह बीजेपी की उपस्थिति को लगातार बढ़ा रहे हैं और कामयाबी भी हासिल कर रहे हैं. गुजरात और हिमाचल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.और अमित शाह की तैयारी अभी से ही दिखने लगी है.गुजरात में वैसे भी किसी दूसरी पार्टी का जीतना शेर के मुंह से शिकार छीनने जैसा है. और ये इतना आसान नहीं है.

गुजरात में पतंग उड़ाने का बड़ा चलन है. पतंग को हर कोई नहीं उड़ा पाता. इसमें हाथों की कलाकारी और हवा का रुख दोनों में तालमेल बैठाना पड़ता है. अमित शाह रणनीति बनाने के मामले में किसी भी नेता से कहीं आगे निकल चुके हैं,जमीनी तौर पर वो अपने काम को अंजाम देते हैं. भारतीय राजनीति में कांग्रेस के बाद शायद ही कोई पार्टी हुई है जो इतनी ताकतवर बनकर उभरी है. कांग्रेस लगातार सिमटती जा रही है, कमजोर होती जा रही है. राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा भले ही कर रहे हों लेकिन उनकी इस यात्रा से बीजेपी को कई खास नुकसान होता नहीं दिख रहा है. पीएम मोदी भले ही कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देते हों लेकिन उसे पूरा करने का काम अमित शाह कर रहे हैं.

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लेखक

कन्हैया कुमार कन्हैया कुमार @kanhaiya.prasar

लेखक आजतक में पत्रकार हैं.

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