New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 12 नवम्बर, 2022 02:26 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के ब्रांड सुशासन का आधार कुछ और नहीं बल्कि बिहार का बहुचर्चित 'जंगलराज' ही है. अगर नीतीश कुमार ने बिहार में लालू यादव और राबड़ी देवी के शासन को जंगलराज बता कर पेश नहीं किया होता तो उसके मुकाबले सुशासन का कोई नामलेवा भी नहीं होता.

ये जंगलराज की ही थ्योरी है जिसे एक बार गढ़ने के बाद नीतीश कुमार बार बार पेश करते आये हैं - और पाला बदल कर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के दो वाकयों को छोड़ दें तो हर चुनाव में नीतीश कुमार ने जंगलराज का ही राग गाया और बजाया है.

नीतीश कुमार के साथ साथ बीजेपी भी जंगलराज को जोर शोर से चुनावों में प्रचारित करती रही है - और 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव भी इसकी ताजातरीन मिसाल है. आलम ये रहा कि चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज बता रहे थे और नीतीश कुमार, लालू यादव के शासन काल में विकास के नाम पर उनके बच्चों की संख्या गिना रहे थे.

और वही सारी बातें चुनावों के बाद विधानसभा में जब तेजस्वी यादव ने याद दिलायी तो नीतीश कुमार भड़क उठे. हालांकि, तब ये कहना नहीं भूले कि तेजस्वी यादव उनके भाई जैसे दोस्त के बेटे हैं.

अब तो बिहार में राजनीति की गंगा उलटी ही बहने लगी है. पहली बार इसका नमूना 10 अगस्त को देखा गया जब एनडीए छोड़ कर महागठबंधन में आते ही नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव के गले मिलते और फिर गलबहियां करते देखे गये थे - और उससे भी बड़ा नमूना 9 नवंबर को नजर आया, जिसे देख कर हर कोई हैरान हो उठा है.

लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि नीतीश कुमार को हो क्या गया है? मानते हैं कि बीजेपी के पास कभी नीतीश कुमार जैसा नेता बिहार में नहीं रहा, लेकिन ये भी तो सच है कि नीतीश कुमार की राजनीति के पीछे बीजेपी का मजबूती से डटे रहना ही है. ये भी मान लेते हैं कि मोदी-शाह ने चिराग पासवान की मदद से जेडीयू की जड़ें काट कर रख दी, लेकिन सच तो ये भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी ताकत से नहीं जुटे होते तो नीतीश कुमार के लिए सत्ता में वापसी इस बार मुश्किल हो सकती थी.

ये तो नीतीश कुमार भी कहते रहे हैं कि बीजेपी के कहने पर ही वो चुनावों के बाद मुख्यमंत्री बने. 2017 में महागठबंधन छोड़ कर एनडीए में वापसी के बाद एक बार नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ इस अंदाज में जरूर की थी जिसमें मोदी-मोदी की नारेबाजी की गूंज सुनी जा सकती थी - लेकिन जिस तरीके से नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के जन्मदिन के मौके पर बिहार के ज्ञान भवन में ताली बजवायी है वो सबको हैरान करने वाला है.

तेजस्वी पर इतना प्यार क्यों उमड़ रहा है

बड़े दिनों बाद बिहार की राजनीति में एक तस्वीर ने हर किसी का ध्यान खींचा था - और वो थी नीतीश कुमार का तेजस्वी यादव को सरेआम गले लगाना. जो नजारा सबने देखा उसकी नींव तो ईद की इफ्तार पार्टी में ही रखी जा चुकी थी. हालांकि, तस्वीर तब काफी धुंधली लग रही थी. धीरे धीरे तस्वीर साफ भी होती गयी.

और वैसा ही दूसरा वाकया. बल्कि उसके मुकाबले कहीं बेहतर नजारा पटना के ज्ञान भवन में पंचायती राज तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के कार्यक्रम में दिखा. ये कार्यक्रम सहायक अध्यापकों और प्रखंड पंचायती राज पदाधिकारियों को नियुक्ति पत्र देने के लिए आयोजित किया गया था. नवनियुक्तों को संबोधित करते हुए ही नीतीश कुमार ने मौके पर मौजूद बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को जन्म दिन की बधाई भी दी.

nitish kumar, tejashwi yadav, narendra modiनीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की ताजा केमिस्ट्री में पॉलिटिक्स कितने फीसदी है

ये बधाई भी कोई आम बधाई नहीं थी. ऐसी बधाई नीतीश कुमार ने विरले ही किसी को दी होगी. सार्वजनिक तौर पर तो देखने को नहीं ही मिला है, कम से कम हाल फिलहाल के लिए तो यही कहा जाएगा.

ऐसा लगा जैसे नियुक्ति पत्र बांटते बांटते नीतीश कुमार का जोश अचानक हाई हो गया. वो आगे बढ़े और तेजस्वी यादव को गले लगा लिये. तेजस्वी यादव मुस्कुरा रहे थे. हो सकता है एक पल के लिए उनके मन में भी कुछ कुछ वैसा ही भाव आया हो जैसा संसद में राहुल गांधी के सामने से आकर गले मिलने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महसूस हुआ होगा. निश्चित तौर पर नीतीश कुमार से किसी को राहुल गांधी जैसी पोस्ट रिएक्शन की उम्मीद नहीं ही रही होगी.

गले मिलने के बाद नीतीश कुमार ने हॉल में मौजूद लोगों से तेजस्वी यादव को बधाई देने के लिए कहा. अचानक नीतीश कुमार की आवाज काफी ऊंची हो गयी थी. कुछ ज्यादा ही गर्मजोशी दिखाते हुए नीतीश कुमार ने लोगों से कहा, "जरा सब लोग हाथ उठाकर इनको बधाई दीजिये... सब लोग खड़ा होकर तेजस्वी जी को बधाई दीजिये."

नीतीश कुमार की अपील के बाद लोगों ने तालियां बजानी शुरू की तो पूरा हाल गुंजायमान हो उठा. लोग एक स्वर से तेजस्वी यादव को हैप्पी बर्थडे कहने लगे. ऐसा करने वालों में वे भी शुमार थे जिनको ऐन उसी वक्त नियुक्ति पत्र मिला था - जोश तो उनका भी हाई था ही, तालियों की गड़गड़ाहट में तेजी भी वैसी ही महसूस की गयी.

ये सब चल रहा था तभी तेजस्वी यादव भी झुके और अपनी तरह से सारा सम्मान उंड़ेलते हुए नीतीश के पैर छुए. पैर छूने की वैसी ही तस्वीर तेजस्वी यादव के घर से भी आयी है, जिसमें वो अपनी मां और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के पैर छू रहे हैं. बगल में तेजस्वी के बड़े भाई और कैबिनेट साथी तेज प्रताप यादव भी मौजूद हैं. बिहार आरजेडी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से वाकये का एक वीडियो क्लिप शेयर किया है - और उसे तेजस्वी यादव की बहन रोहिणी आचार्य ने भी रीट्वीट किया है. रोहिणी आचार्य फिलहाल अपने पिता लालू यादव को किडनी डोनेट करने के लिए खबरों की सुर्खियों में बनी हुई हैं.

और अचानक से नीतीश कुमार के लालू परिवार के प्रति सक्रिय और समर्पित हो जाने से ये सवाल भी स्वाभाविक है कि तेजस्वी यादव पर इतना प्यार क्यों उमड़ रहा है?

क्या विपक्ष नीतीश को भाव नहीं दे रहा है?

महागठबंधन का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद से ये भी देखने को मिला है कि नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों का हर अपडेट लालू यादव को देने लगे हैं. जब विपक्षी दलों के नेताओं से मिलने के लिए नीतीश कुमार पटना से दिल्ली निकल रहे थे तब भी और जब लौटे तब भी लालू यादव से ही सलाह मशविरा किया. और ऐसा करने के लिए खुद नीतीश कुमार को ही लालू यादव से मिलने जाना पड़ रहा था - क्योंकि लालू यादव तो तमाम बीमारियों से जूझ रहे हैं.

लालू यादव के साथ ही नीतीश कुमार दिल्ली में सोनिया गांधी से मिलने गये थे, लेकिन तब कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव प्रक्रिया चल रही थी और सोनिया गांधी ने उसी के बहाने मामला टाल दिया. बाद में मल्लिकार्जुन खड़गे भी जब पटना पहुंचे तो सोनिया गांधी की बात को ही अपने तरीके से आगे बढ़ाया था.

लेकिन उसके बाद तो कोई अपडेट आया नहीं. सोनिया गांधी से मुलाकात के आस पास ही नीतीश कुमार विपक्षी दलों की एक रैली में भी शामिल हुए थे - चौधरी देवीलाल की याद में हरियाणा के बुजुर्ग नेता ओम प्रकाश चौटाला ने बुलाई थी.

ये रैली एक हिसाब से सफल रही तो दूसरे हिसाब से असफल भी. एक तरफ जहां शरद पवार और सीताराम येचुरी जैसे विपक्षी दिग्गज रैली के मंच पर नजर आये, दूसरी तरफ ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे प्रधानमंत्री पद के दावेदार नेताओं ने झांकने तक की जहमत नहीं उठायी थी.

रैली से पहले ही राहुल गांधी कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू कर चुके थे. और अब तो जिस तरह से लोगों का रिस्पॉन्स मिल रहा है, कांग्रेस का भारत जोड़ो यात्रा से जोश हाई होना स्वाभाविक भी है. ऐसे में हो सकता है नीतीश कुमार को जो अपेक्षा रही हो, जमीन पर उतरती नजर नहीं आ रही हो.

अब कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके मल्लिकार्जुन खड़गे हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव में भी व्यस्त हो चुके हैं - और लगता है अपनी व्यस्तता के बहाने वो नीतीश कुमार को इंतजार भी करा रहे हैं जो नीतीश कुमार के लिए सबसे ज्यादा बेचैन करने वाला है.

नीतीश कुमार तो शुरू से ही कांग्रेस के नेतृत्व के कायल रहे हैं. महागठबंधन की पिछली पारी में भी वो कहा करते थे कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को ही विपक्ष का नेतृत्व करना चाहिये. लेकिन कांग्रेस के साथ भी अब नीतीश कुमार के संबंध 2015 जैसे नहीं बचे हैं, ऊपर से तेजस्वी यादव पहले के मुकाबले ज्यादा ताकतवर हो गये हैं.

हो सकता है नीतीश कुमार का ताजा व्यवहार परिस्थितियों के दबाव का साइड इफेक्ट हो - और अब नीतीश कुमार जो कुछ भी कर रहे हैं वो घबराहट और हड़बड़ी में हो रहा हो.

नीतीश कुमार चौतरफा घिर चुके हैं

कई ऐसे मुद्दे रहे हैं जिन पर नीतीश कुमार कभी बीजेपी के एजेंडे से इत्तेफाक नहीं रखते थे, लेकिन मजबूरी में धीरे धीरे सभी मुद्दों पर समझौता करते गये. नीतीश कुमार की मजबूरी उस दिन सबसे ज्यादा दिखी जब प्रधानमंत्री मोदी और बाकी बीजेपी नेता नारे लगा रहे थे - और बगल में मंच पर बैठे बैठे नीतीश कुमार मुस्कुरा रहे थे.

जैसे नीतीश कुमार ने बीजेपी का सपोर्ट हासिल करने के चक्कर में अपनी सेक्युलर छवि गंवा डाली, ठीक वैसे ही लालू परिवार से दोबारा हाथ मिला कर अपनी राजनीति का वो हिस्सा भी गवां चुके हैं जो जंगलराज का नाम लेकर सुशासन के नाम पर हासिल किया था - ऐसे में भला नीतीश कुमार की राजनीतिक को किस मोड़ पर देखा जाये?

जाहिर है नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में धीरे धीरे हाशिये पर पहुंचते जा रहे हैं. नीतीश कुमार के बूते ही तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति को कमांड करने लगे हैं - और ऐसी हैसियत बना चुके हैं कि लगता है जैसे जगह जगह नीतीश कुमार उनकी चापलूसी कर रहे हों.

नीतीश कुमार का ऐसा व्यवहार और ऐसी चापलूसी तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह या बीजेपी के किसी नेता के प्रति भी नहीं देखने को मिली है - क्या नीतीश कुमार ये सब पूरे होशो-हवास में कर रहे हैं या फिर कोई नया पैंतरा दिखाने वाले हैं.

इन्हें भी पढ़ें :

नीतीश कुमार 2024 में बीजेपी को कमजोर कर पाये तो भी बड़ी उपलब्धि होगी

इतिहास खुद को कैसे दोहराता है, ये नीतीश-तेजस्वी प्रकरण से समझिए

नीतीश कुमार का उपचुनावों से दूरी बना लेना भी कोई रणनीति है क्या?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय