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Updated: 26 सितम्बर, 2022 01:21 PM
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अमित शाह (Amit Shah) के बिहार दौरे से पहले ही चर्चा शुरू हो चुकी थी कि बीजेपी का चुनावी अभियान (BJP Campaign) सीमांचल से शुरू होने जा रहा है - और ऐसा सोचने वालों को अमित शाह ने निराश भी नहीं किया है. बल्कि, ऐसा ट्रेलर दिखाया है जिससे बिहार में बीजेपी समर्थकों का जोश तत्काल प्रभाव से हाई महसूस होने लगा होगा.

बिहार के संदर्भ में ही सही, लेकिन अमित शाह ने खुद ही ट्रेलर शब्द का जिक्र किया है. जंगलराज की चर्चा छेड़ने के बाद अमित शाह ने कहा कि '2024 का चुनाव तो ट्रेलर होगा... 2025 में पूरी पिक्चर दिखेगी.'

भले ही अमित शाह ने ट्रेलर और पिक्चर का इस्तेमाल बिहार के लिए किया है, लेकिन आप थोड़ा ध्यान दें तो अमित शाह के दिखाये ट्रेलर में ही बीजेपी की 2024 की पूरी फिल्म भी देख सकते हैं. हां, इसके लिए आपको आस पास की घटनाओं को आपस में जोड़ कर देखना होगा. कड़ियों को क्रम से जोड़ना होगा - और क्रोनोलॉजी को भी ठीक से समझना होगा.

2019 के संपर्क फॉर समर्थन अभियान में भी अमित शाह का जोर राष्ट्रवाद के एजेंडे और हिंदुत्व की राजनीति के इर्द गिर्द ही नजर आया था. आम चुनाव से साल भर पहले ही अमित शाह ने मई, 2018 में पूर्व आर्मी चीफ जनरल दलबीर सिंह सुहाग से मुलाकात कर बीजेपी के संपर्क फॉर समर्थन अभियान शुरू किया था. इस बार सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाके में किशनगंज के काली मंदिर में विधिवत पूजा पाठ कर अमित शाह ने साफ कर दिया है कि जहां कहीं भी विपक्ष अलग माहौल बनाने की कोशिश करेगी, बीजेपी हिंदूत्व की राजनीति को ही बढ़ावा देगी.

2019 के आम चुनाव से पहले बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा होल्ड जरूर कर लिया था, लेकिन वो राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति के रास्ते ही आगे बढ़ी और सफल भी रही. अब तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर बनने भी लगा है - अगले आम चुनाव (General Election 2024) की बीजेपी कैसे तैयारी कर रही है, अमित शाह के बिहार दौरे से समझना थोड़ा आसान हो जाता है.

सीमांचल इलाके में पहुंच कर भी अमित शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाया है और अपने वोटर को भरोसा दिलाया है कि लोगों को डरने की कतई जरूरत नहीं है क्योंकि यहां नरेंद्र मोदी की सरकार है. मतलब, लोग नीतीश कुमार के महागठबंधन में चले जाने के बाद से ये न सोचें की डबल इंजिन की सरकार की सारी सुविधायें खत्म हो गयी हैं.

और अमित शाह के ठीक बाद 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बातों बातों में सर्जिकल स्ट्राइक की याद दिला कर अपने सबसे करीबी साथी को कॉम्प्लीमेंट करते हैं. मोदी कहते हैं, 'मैं सिर्फ दो शब्द कहूंगा, लेकिन मुझे पता है... आपका जोश चार गुना ज्यादा बढ़ जाएगा... ये दो शब्द हैं - सर्जिकल स्‍ट्राइक.... हमारे देश में अमृत महोत्सव का जो अभियान चल रहा है उसे हम पूरे मनोयोग से सेलीब्रेट करें... अपनी खुशियों को सबके साथ साझा करें.'

बिहार के लिए ट्रेलर और पिक्चर की बात कर अमित शाह ने अपनी तरफ से ये भी साफ कर दिया है कि आने वाले दिनों में कौन बीजेपी के साथ हो सकता है, और कौन नहीं. कतई नहीं.

लेकिन इसी बीच खबर ये भी आ रही है कि कैसे अकाली दल एनडीए में लौटना चाह रहा है. कैसे राज ठाकरे को भी बहाने से बीजेपी का सहयोगी बनाने की कोशिशें परदे के पीछे तेजी से चल रही हैं - और कैसे एकनाथ खडसे से लेकर अशोक चव्हाण तक इकरार और इनकार का खेल खेल रहे हैं.

अमित शाह के संपर्क में कौन कौन है?

2019 से पहले बीजेपी के मन में कुछ समय तक एक आशंका थी, लेकिन जल्दी ही पार पा लिया था. अगर मन में कोई डर नहीं होता तो अमित शाह मुंबई में मातोश्री और फिर अनुप्रिया पटेल से मिलने मिर्जापुर तक नहीं गये होते - और फिर पटना जाकर नीतीश कुमार से मिलने की कोई जरूरत नहीं थी.

amit shah2024 के लिए अमित शाह की मुहिम में काफी राजनीतिक उठापटक देखने को मिल सकती है.

2019 में बहुमत के साथ मोदी सरकार की वापसी के बावजूद साल के आखिर तक महाराष्ट्र में शिवसेना का साथ छूट गया - और अभी अभी नीतीश कुमार ने भी मोदी-शाह के साथ वैसा ही व्यवहार किया है जैसा उद्धव ठाकरे ने किया था. उद्धव ठाकरे से तो बदला पूरा हो चुका है, कुछ कसर बाकी है उसमें बीजेपी नेतृत्व लगा हुआ है, नीतीश कुमार के साथ क्या सलूक होना है ये अभी सामने आना बाकी है.

अभी तो एनडीए में बीजेपी के सहयोगी दलों के नाम पर कुछ नेता ही बचे हैं. शिवसेना से पहले पहले चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और अकाली दल के भी अलग हो जाने के बाद नीतीश कुमार की जेडीयू ही एनडीए में बड़ी क्षेत्रीय पार्टी के रूप में बची थी. गठबंधन साथियों के रूप में अब पार्टियों की जगह नेताओं के नाम लिये जा सकते हैं - एकनाथ शिंदे, चिराग पासवान और पशुपति नाथ पारस, रामदास आठवले जैसे नेता. उत्तर भारत जैसी ही हालत दक्षिण और नॉर्थ ईस्ट में देखी जा सकती है.

जरूरी नहीं कि 2024 के लिए संपर्क फॉर समर्थन के दूसरे सीजन में पहले की ही तरह सब कुछ देखने को मिले ही. नये सीजन में कुछ नयी चीजें भी देखने को मिल सकती हैं. जैसे पिछले सीजन में रूठे सहयोगियों को मनाने की कोशिश रही. साथ में समाज के अलग अलग वर्गों के प्रभावशाली शख्सियतों से संपर्क कर उनका समर्थन हासिल करने के साथ साथ उनसे भी लोगों से संपर्क कर समर्थन दिलाने की अपेक्षा रही - ये तो लगता है नये बीजेपी के अभियान के नये सीजन में भी जारी रखा जाने वाला है. लेकिन सहयोगियों के प्रति नजरिया बदला हुआ हो सकता है.

खबरें ऐसी आ रही हैं कि अमित शाह से इस दौरान कई लोग संपर्क भी कर रहे हैं. कुछ ऐसे भी लोग हैं जो संपर्क के बावजूद ये कह कर खारिज कर रहे हैं कि बात करना गुनाह है क्या? गुनाह तो नहीं है, लेकिन बातें भी शिष्टाचार मुलाकातों जैसी लगें तो मतलब तो निकाले ही जाएंगे.

नीतीश कुमार विपक्षी खेमे में चले गये हैं और ममता बनर्जी के रंग ढंग अलग ही देखे जा रहे हैं. हो सकता है ये सब कांग्रेस से उनकी चिढ़ और टीएमसी को विपक्ष से अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण हो रहा हो. ऐसा इसलिए लग रहा है क्योंकि संघ की तारीफ के बाद ममता बनर्जी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फैन होती जा रही हैं. हां, अमित शाह से अब भी दुश्मनी दिखा रही हैं - अब कुछ तो होना चाहिये न दिखाने के लिए. है कि नहीं?

घर वापसी तो बीजेपी को पसंद है ही: बिहार की भरी सभा में अमित शाह ऐलान करते हैं, 'हमने अपने पूर्व सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ भविष्य के किसी भी गठबंधन के लिए सभी दरवाजे बंद कर दिये हैं.'

जख्म हरे हैं. गुस्सा ताजा ताजा है. चीजों के नॉर्मल होने में वक्त तो लगता ही है. कृषि कानूनों के मुद्दे पर एनडीए छोड़ कर चले जाने वाले अकाली दल ने फिर से संपर्क साधा है - और ऐसा तब हो रहा है जब कैप्टन अमरिंदर सिंह पहले ही बीजेपी में पहुंच चुके हैं.

अमरिंदर सिंह की भी उम्र हो चली है. ऐसे में वो बीजेपी के लिए अकाली दल की जगह तो नहीं ही ले सकते. पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में कैप्टन का प्रदर्शन देखने के बाद तो ऐसा ही लगता है. चूंकि कैप्टन और बीजेपी नेतृत्व कई मुद्दों पर सहमत होता है, लिहाजा साथ हो लिये हैं - और बीजेपी से ज्यादा जरूरत तो कैप्टन और उनके परिवार को सपोर्ट की है.

पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के सरकार बना लेने के बाद राजनीतिक समीकरण काफी बदल गये हैं. बीजेपी तो देर सवेर अपना हिसाब बैठा ही लेगी, सबसे ज्यादा संकट तो अकाली दल के सामने खड़ा हो गया है.

ऐसे में सुखबीर बादल का अमित शाह से मिलना संकेत तो घर वापसी के ही दे रहा है. नीतीश कुमार के मामले में भले ही अभी चिढ़ मची हुई हो, लेकिन अकाली दल को लेकर गुस्सा तो ठंडा हो ही गया होगा. अगर बीजेपी ने पंजाब में अकेले कुछ सीटें जीत ली होतीं तो भी शायद दिक्कत हो सकती थी, लेकिन दो सीटें पाने के बाद अपनी ताकत तो पता चल ही गयी होगी.

ज्यादा कुछ तो नहीं लेकिन कैप्टन अमरिंदर के बाद अकाली दल से गठबंधन कर बीजेपी पंजाब में कांग्रेस की जगह लेने की कोशिश तो कर ही सकती है - सुखबीर बादल की घर वापसी के रास्ते में बहुत मुश्किलें तो नहीं आनी चाहिये.

थोड़ा इकरार भी, थोड़ा इनकार भी: अमित शाह के संपर्क में कुछ और भी नेताओं के आने की बात धीरे धीरे सामने आ रही है - हालांकि, पूछ जाने पर ये नेता न तो ठीक से इकरार कर पा रहे हैं, न ही इनकार कर पा रहे हैं.

महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस से तंग आकर एनसीपी में चले गये एकनाथ खड़से के अमित शाह से संपर्क करने की खबर आयी है. जैसे ही एकनाथ खड़से के अमित शाह से मिलने की चर्चा शुरू हुई एनसीपी की तरफ से भी सफाई पेश की जाने लगी.

असल में बीजेपी नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने एक पब्लिक रैली में ही बता डाला था कि एकनाथ खड़से ने हाल ही में अमित शाह से मुलाकात की है. फिर तो एकनाथ खड़से के बीजेपी में लौटने की ही चर्चा चल पड़ी.

एनसीपी नेता एकनाथ खड़से इस बात से साफ इनकार किया है कि बीजेपी में वापसी का उनका कोई इरादा है - लेकिन ये जरूर माना है कि फोन पर अमित शाह से बात हुई थी. कहते हैं, 'गृह मंत्री से किसी के बात करने पर कोई पाबंदी नहीं है. हालांकि, जिस पार्टी ने मेरा सपोर्ट किया है और साथ दिया है, उसे छोड़ने का कोई इरादा नहीं है.'

एनसीपी प्रवक्ता महेश तापसे ने भी एकनाथ खड़से के बीजेपी ज्वाइन करने को लेकर कहा कि ऐसी खबरों में कोई सच्चाई नहीं है. ये सब तो सच से परदा उठने तक सुनने को मिलता ही रहता है, बाकी सच कभी न कभी तो सामने आएगा ही. तब तक इंतजार कर लेते हैं.

ऐसा ही इनकार और इकरार का मामला महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को लेकर भी है. हाल ही में अशोक चव्हाण और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस गणेश दर्शन के लिए गये थे - और तभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के ओएसडी आशीष कुलकर्णी के घर पर दोनों की मुलाकात हो गयी.

एकनाथ खड़से की ही तरह अशोक चव्हाण के भी बीजेपी ज्वाइन करने की चर्चा शुरू हो गयी और उनको सफाई देनी पड़ी है. उनका कहना है कि वो तो भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा लेने जा रहे हैं. ऐसे देखें तो कांग्रेस छोड़ने से पहले गुलाम नबी आजाद भी प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ को लेकर कांग्रेस दफ्तर में बैठकर मीडिया के सामने सोनिया गांधी का बचाव कर रहे थे.

राज ठाकरे भी हैं संपर्क में - वाया शिंदे सेना

जैसे बिहार में नीतीश कुमार ने IMIM विधायकों को आरजेडी ज्वाइन करा दिया था, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और एमएनएस नेता राज ठाकरे के बीच कुछ दिनों से ऐसा ही संपर्क बना हुआ बताया जा रहा है - इस संपर्क अभियान में सीधे सीधे बीजेपी तो नहीं लग रही है, लेकिन बात बन गयी तो घुमा फिरा कर साथ ही माना जाएगा.

एकनाथ शिंदे के शिवसेना से बगावत के बाद से राज ठाकरे और उनके बीच कई बार संपर्क हो चुका है - और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस तो एक बार मनसे नेता के घर भी हो आये हैं. पहले ये भी खबर आयी थी कि महाराष्ट्र सरकार में राज ठाकरे को दो मंत्री पद भी ऑफर किये गये हैं.

कुछ देर तक राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे के भी मंत्री बनने की चर्चा रही, लेकिन फिर ऐसी बातों को झुठला दिया गया. अब जो बात पता चली है उसमें ये सहमति तो बन ही चुकी है कि साथ आना है, लेकिन राज ठाकरे की अपनी शर्तें भी हैं. ये शर्तें ही पेंच फंसा रही हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के इनसाइड ट्रैक कॉलम में कूमी कपूर लिखती हैं, गणेशोत्सव के आखिरी दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने राज ठाकरे से बात की थी ताकि कॉर्पोरेशन चुनावों से पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के साथ गठबंधन को फाइनल किया जा सके.

बताते हैं कि राज ठाकरे चाहते हैं कि उनकी पत्नी शर्मिला ठाकरे को राज्य सभा भेजने का इंतजाम किया जाये. इतना ही नहीं राज्य सभा में शर्मिला ठाकरे को शिवसेना के बागी गुट का नेता भी बनाया जाये. बेटे अमित ठाकरे के लिए राज ठाकरे 2024 में लोक सभा टिकट के लिए हामी भरवाना चाहते हैं. अगर अमित ठाकरे जीत जाते हैं तो उनको बागी शिवसेना का लोक सभा में नेता बनाया जाये. हां, अमित ठाकरे के लोक सभा पहुंच जाने के बाद शर्मिला ठाकरे राज्य सभा से इस्तीफा भी दे सकती हैं.

कंपनी भले दिवालिया हो गयी हो या होने की कगार पर हो लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे की ब्रांड वैल्यू तो है ही, लिहाजा जम कर बारगेन भी कर रहे हैं. एकनाथ शिंदे अगर शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत के दावेदार बनना चाहते हैं तो ये सब तो करना ही पड़ेगा - एकनाथ शिंदे की मुश्किल तो कम होने का नाम ही नहीं ले रही है, उद्धव ठाकरे से पीछा छुड़ाया तो बाल ठाकरे की विरासत पर राज ठाकरे ने दावा ठोक दिया है.

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