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Updated: 24 मई, 2023 06:29 PM
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हकीकत में वो बंदा पीसी सोलंकी है जिसने नाबालिग लड़की से रेप के आरोपी आसुमल को जेल भिजवाकर सजा दिलाई थी. सिर्फ बंदे का नाम लेकर फिल्म ने इशारा भर किया है और कहते हैं ना इशारों को अगर समझों, सो एक और इशारा हमने भी कर दिया. समझ गए ना आसुमल वही बदनाम कथावाचक है जिसका नाम ना ही लें तो अच्छा है, पुण्य है. बाबा के दुर्भाग्य से घृणित कुकृत्य का मामला दर्ज होकर सिद्ध भी हुआ, विधि विधान से सजा भी हुई ; सर्वविदित है. लेकिन माता पिता के अपनी नाबालिग बेटी से बाबा के यौन शोषण का केस दिल्ली के कमलानगर थाने में दर्ज कराने से लेकर बाबा की गिरफ्तारी, बाबा के भक्तों का भड़कना, मामला रफादफा कराने की घृणित कोशिशों, गवाहों पर हमलों और हत्याओं का सिलसिला, न्याय के एक अदने से बंदे का बड़े बड़े वकीलों की जिरहों को धराशायी करने और अंततः आरोपी बाबा को सजा सुनाये जाने तक की यात्रा से रूबरू कराता कोर्ट रूम ड्रामा इस कदर बेहतरीन है कि हर किसी के लिए देखकर एक्सपीरियंस करना बनता ही है.

Manoj Bajpai, Sirf EK Bandaa Kaafi Hai, Asaram Bapu, Lawyer, Film Review, Bollywood, Sexual Harassmentसिर्फ एक बंदा काफी है में एक बार फिर मनोज बाजपेयी अपनी एक्टिंग का जलवा दिखाने में कामयाब हुए हैं 

क्या ही अच्छा होता फिल्म पहले थियेटरों में रिलीज़ हुई होती ! परंतु कैसे होती ? अतिरंजना जो नहीं है. ड्रामा होते हुए भी ड्रामेटिक जो नहीं है जबकि इवेंट्स ऐसे हैं जिनके लिए क्रिएटिव फ्रीडम लेते हुए उन्हें एक्सोटिक बनाया जा सकता था. सच्ची घटना से प्रेरित एक अच्छी कहानी पर सधी हुई फिल्म के लिए पूरी टीम मसलन निर्माता, निर्देशक, लेखक, तकनीकी लोग, कलाकार सभी प्रशंसा के पात्र है. करीब सवा दो घंटे तक व्यूअर बंध सा जाता है.

कहानी सोलंकी की है तो कहानी पर बनी फ़िल्म का दारोमदार सोलंकी बने मनोज वाजपेयी के पर ही है. मनोज के लिए तो क्या कहें, एज ए क्रिटिक जलन ही होती है कि कभी वे अंडर-परफ़ॉर्म करेंगे भी ताकि नुक़्ताचीनी की जा सके. हालांकि फिल्म में ज्यादातर कोर्ट सीन ही हैं, फिर भी मनोज ने किरदार के कई शेड्स को बखूबी उकेरा है. वे एक काबिल और ईमानदार वकील के अलावा एक मां के बेटे भी हैं और एक बेटे के पिता भी हैं.

स्कूटर से अपने बेटे को स्कूल छोड़ते हुए अदालत जाते एक अदने से बंदे के रूप में प्रतिभाशाली वकील सोलंकी को क्या खूब जिया है उन्होंने ! बाबा की पैरवी कर रहे नामचीन वकीलों से प्रभावित ज़रूर होते हैं, लेकिन उनके नतमस्तक होते हुए भी अपने तर्कों की धार से उन्हें चुप भी करा देते हैं. मनोज की बॉडी लैंग्वेज हिंदुस्तान के किसी भी निचली या सेशन कोर्ट के वकीलों सरीखी ही है जिनमें से कभी कोई डार्क हॉर्स के रूप में उभर ही आता है.

ऑन ए लाइटर नोट एक जूनियर वकील भारी पड़ गया जेठमलानी और स्वामी सरीखे दिग्गजों पर जिनके समक्ष तो निचली अदालतों के जज भी झुक से जाते हैं. बाबा के डिफेंस में नामचीन वकीलों की फ़ौज के किरदारों में सभी एक्टर मय लोकल वकील के रोल में विपिन शर्मा भी जमते हैं . अन्य कलाकार भी ठीक हैं खासकर विक्टिम लड़की के रोल मे जो भी एक्ट्रेस है, अपने भाव प्रवण अभिनय से प्रभावित करती है.

कुल मिलाकर कमियां, हैं भी तो, बताने का कोई औचित्य ही नहीं है. बस, जी 5 का सब्सक्रिप्शन नहीं है तो जुगाड़ कर लीजिये और देख डालिये. एक तरफ मनोज वाजपेयी की दमदार एक्टिंग और दूसरी तरफ बेहतरीन संवादों की बदौलत कोर्ट रूम भिड़ंत और अन्य प्रसंग भी व्यूअर्स को बंधे रखते हैं मसलन बेटे का पिता से कहना, ‘you are excited like a kid buddy.'...

वकील सोलंकी के रोल में मनोज वाजपेयी की हताशा,'क़ानून के हाथ इतने लंबे नहीं है कि अमेरिका तक पहुंच जाएं... बेटे सोलंकी को निभा रहे मनोज का मां से कहना,'सच ,जो छोटी सी बच्ची ने लाकर मेरे हाथों में सौंप दिया, उसे दुनिया के सामने नहीं ले जा पाया तो किस भगवान की पूजा करूंगा मैं ? और अंत करें जब मां बचपन में रटाई दिनकर की कविता स्मरण कराते हुए हिम्मत बांधती है, 'सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, विघ्नों को गले लगाते हैं, कांटों में राह बनाते हैं !

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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