
रीवा सिंह
riwadivya
लेखिका पेशे से पत्रकार हैं जो समसामयिक मुद्दों पर लिखती हैं.
समाज | 4-मिनट में पढ़ें

क्यों समाज महिलाओं को हर समय बेहद खास बनाने पर तुला है?
समाज आज यह बताने में व्यस्त है कि महिलाएं बहुत ख़ास हैं और हमारी लड़ाई ही इसी बात की है कि हमें ख़ास नहीं बनना, सामान्य बनना है. इतना सामान्य कि हम कुछ हासिल कर लें तो मोटिवेशन के नाम पर तालियां न पीटी जाएं. इतना सामान्य कि आप हमारे लिये कुछ करके यह न गाते फिरें कि हमने अपनी बेटी के लिये ऐसा किया. इतना सामान्य कि हम अपने निर्णयों को आख़िरी मानना सीख लें और समाज का मुंह न ताकें जो हमें ट्युटोरियल दे.सिनेमा | 2-मिनट में पढ़ें

इंडस्ट्री में रखकर चीजों को कैसे बैलेंस करना है? सीखना हो तो करीना से सीखिए!
बॉलीवुड में करीना किसी डीवा की तरह हैं और ये बात यूं ही नहीं है. भले ही उन्होंने फ़िल्में बहुत ज्यादा नहीं की हों लेकिन जिस तरह उन्होंने पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में बैलेंस बनाया और जो किया डंके की चोट पर किया उससे इंडस्ट्री की अन्य एक्ट्रेस को प्रेरणा लेनी चाहिए.सिनेमा | 2-मिनट में पढ़ें

'बेशर्म रंग' में दीपिका ने ऑब्जेक्टिफाई होने के अलावा और किया क्या है?
दीपिका ने ऑब्जेक्टिफ़ाय होने के अलावा बेशर्म रंग में कुछ नहीं किया. रौनक, रोशनी और रंग पर तो सबका हक़ है न! इसपर बहस करेंगे तो क्राफ्ट पर कब बात करेंगे? शाहरुख़ हरदिल अज़ीज़ हैं लेकिन उम्र की एक अपनी ख़ूबसूरती होती है, गरिमा होती है. उम्र के मुताबिक किरदार चुनना उन्हें और निखारेगा. सीनियर बच्चन प्रत्यक्ष प्रमाण हैं.समाज | 2-मिनट में पढ़ें
समाज | 3-मिनट में पढ़ें

गर जो चॉइस है तो हिजाब में निकली सैकड़ों लड़कियां कॉलेज पहुंचते जीन्स-टॉप में नहीं आतीं!
हिजाब अगर चॉइस होती तो घर से हिजाब में निकली सैकड़ों लड़कियां कॉलेज पहुंचते-पहुंचते सलवार-कुर्ता या जीन्स-टॉप में नहीं आ जातीं. हिजाब अगर चॉइस होती तो माहसा अमीनी को सिर न ढंकने के लिये डिटेन नहीं किया जाता. लड़कियां हिजाब पहनना इतना ही पसंद करतीं तो आज उसे आग नहीं लगा रही होतीं.समाज | 3-मिनट में पढ़ें

उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या कर कट्टरता को हेरोइज़्म की तरह प्रदर्शित किया गया!
उदयपुर में कन्हैयालाल की निर्मम हत्या के बाद कर्फ़्यू लग गया, इंटरनेट सेवाएं बाधित रहीं ताकि शान्ति बरती जाए. उस समाज में कोई कहां से शान्ति ढूंढेगा जहां धर्म के नाम पर मारपीट, लिन्चिंग और अब ऐसे क़त्ल होने लगे हों. उस क़ातिल को आप क्या सौहार्द का पाठ पढ़ायेंगे जिसे अपने जघन्य कृत्य पर ज़रा भी अफ़सोस न हो!ह्यूमर | 3-मिनट में पढ़ें

ज़रा-सी बारिश और दिल्ली का बावर्ची बन खाने पर अत्याचार करना अलग किस्म का गुनाह है!
दिल्ली में बारिश का होना भर था. वो पब्लिक जो बीते कई दिन से भीषण गर्मी की मार झेल रही थी बड़ी राहत महसूस कर रही है. ऐसे में जैसे ही हम सोशल मीडिया का रुख करते हैं तो वहां एक अलग ही तरह का नजारा है और हर आदमी शेफ बना हुआ है जो कई तरह की अतरंगी डिशेज के अविष्कार में अपनी ऊर्जा खंपा रहा है.समाज | 2-मिनट में पढ़ें

गुजरे साल कोरोना में मदद कर नाम कमाने वाला भारत फिर अराजक बन गया है!
गुजरे साल कोरोना के दौर में हमने लोगों को एक दूसरे की मदद करते देखा जबकि इस साल स्थिति दूसरी है. ठीक एक वर्ष बाद का भारतवर्ष रामनवमी के उपलक्ष्य में रैलियां निकाल रहा है. राम को वर्चस्व का सूचक घोषित करने पर अमादा है. राम के नाम पर उपद्रव कर रहा है. उज्ज्वल भगवे रंग को दूसरों के लिये भय का पर्याय बना रहा है.समाज | 2-मिनट में पढ़ें
सियासत | 3-मिनट में पढ़ें

कश्मीरी पंडित डिजिटल इण्डिया का कीवर्ड नहीं, ज़िंदा लोग हैं जिनसे सभी ने मुंह फेरे रखा है!
The Kashmir Files के बाद कहना गलत नहीं है कि कश्मीरी पंडित एक नाज़ुक व बेहद संवेदनशील विषय है जो कहीं सिर्फ़ मार्केटिंग स्ट्रैटेजी बनकर न रह जाए. सिर्फ़ दुखी होकर खानापूर्ति नहीं की जा सकती, आप विपक्ष में नहीं हैं जो कुछ कर नहीं सकते. कश्मीरी पण्डित डिज़िटल इण्डिया का कोई कीवर्ड नहीं है, वे ज़िंदा लोग हैं जिनसे सभी ने मुंह फेरे रखा.सियासत | 2-मिनट में पढ़ें

The Kashmir Files: कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर हमें हिंदू-मुसलमान में बंटकर बात करने की क्या जरूरत है?
The Kashmir Files की रिलीज के साथ ही पूरा देश भावों में बह गया है. लेकिन जब हम फिल्म देखकर आएं तो कुछ बहुत जरूरी बातें हैं. जिनका ख्याल हमें रखना चाहिए. यदि उन बातों पर हम ध्यान दें तो एक देश के रूप में हम हिंदुस्तान को टूटने से बचा सकते हैं.सियासत | 2-मिनट में पढ़ें
