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Updated: 18 जून, 2019 06:37 PM
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बिहार के मुजफ्फरपुर में इन दिनों Acute Encephalitis Syndrome (एईएस) यानी चमकी बुखार का कहर बरपा हुआ हुआ. अभी तक चमकी बुखार से करीब 63 बच्चों की मौत हो चुकी है. यह आंकड़ा गुरुवार तक का है और उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में ये और अधिक बढ़ सकता है. आपको बता दें कि इस साल जनवरी से लेकर अब तक कुल 179 संदिग्ध एईएस मामले सामने आ चुके हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि आखिर ये सिंड्रोम फैला कैसे? अगर बिहार सरकार द्वारा बुधवार को जारी की गई एडवाइजरी की मानें तो इसकी वजह है एक फल, लीची.

इस समय बिहार में 63 बच्चों की मौत का इल्जाम लीची पर लगा है. यूं तो कुछ लोग इसे महज सरकार की बहानेबाजी समझ रहे होंगे और मजाक उड़ा रहे होंगे, लेकिन इसके पीछे का जो तर्क है, अगर आप उसे समझ लेंगे तो सोचने पर मजबूर हो जाएंगे. लीची खाने की वजह से बच्चों के शरीर में जो रहा है, उसके चलते उनका दिमाग काम करना बंद कर दे रहा है और वह धीरे-धीरे मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं. केंद्र सरकार की ओर से 7 लोगों की एक टीम बुधवार को मुजफ्फरपुर पहुंची है और मौत की वजह की गहराई से जांच कर रही है.

लीची, बिहार, मौत, बच्चेबिहार में अब तक एईएस (AES) यानी चमकी बुखार से करीब 63 बच्चों की मौत हो चुकी है.

लीची खाने से हो रही बच्चों की मौत !

एईएस यानी एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम एक जहरीले तत्व की वजह से फैला है, जो लीची में पाया जा रहा है. मुजफ्फरनगर के आस-पास के इलाके में उगाई जाने वाली लीची में ये कुछ जहरीले तत्व पाए जा रहे हैं. मारे गए बच्चों में अधिकतर बेहद गरीब परिवारों से हैं, जो इन लीची के बागानों में सुबह से ही घूमते हैं और वहां से लीची खाते हैं. इनमें अधिकतर बच्चे कुपोषित होते हैं, जो इस बीमारी की चपेट में जल्दी आ रहे हैं.

शुगर लेवल कम होना इसे बना रहा खतरनाक

जो बच्चे पौष्टिक आहार नहीं ले रहे हैं या जिन्हें पेट भर खाना नहीं मिल पाता है उनके लिए ये लीची ही मौत की वजह बन जा रही है. ऐसे में बच्चों को हाइपोग्लाइसीमिया हो जा रहा है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लीची में मीथाइलीन साइक्लोप्रोपाइल ग्लाइसिन नाम तत्व पाया जाता है, जो शरीर में शुगर लेवल कम होने पर सीधे दिमाग पर असर डालता है. शुगर लेवल में कमी भूखे रहने या फिर पौष्टिक आहार ना मिलने की वजह से भी आ सकती है.

लीची से जुड़े इस तर्क पर वेल्लोर के एक रिसर्चर डॉक्टर टी जैकब का भी यही मानना है कि लीची में मौजूद जहरीले तत्व की वजह से बच्चों की मौत हो रही है. उन्होंने ये स्टडी बिहार सरकार से साथ मिलकर की है. उनकी रिपोर्ट में कहा गया है- 2013 में की गई सीडीएस () रिसर्च के अनुसार लीची के बीज में एक जहरीला तत्व होता है, जिसकी वजह से हापोग्लाईसीमिया हो जाता है, जिसके चलते शुगर लेवल गिर जाता है. हालांकि, कभी-कभी बच्चे लीची का बीज भी निगल जाते हैं.

एक स्थानीय रिसर्चर पर आधारित है पूरी स्टडी

ये पूरी थ्योरी बिहार के ही एक स्थानीय रिसर्चर की स्टडी पर आधारित है. मुजफ्फरपुर के श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर गोपाल शंकर साहनी ने ये रिसर्च की है. वह अस्पताल के पीडिएट्रिक्स डिपार्टमेंट के प्रमुख भी हैं. साहनी इस विषय पर 1995 से ही रिसर्च कर रहे हैं, जब इस बीमारी का पहला मामला सामने आया था. उनका कहना है कि यह बीमारी ह्यूमिडिटी के एक तय अनुपात से अधिक होने पर ही फैलती है. उनकी रिसर्च के अनुसार जब तापमान 38 डिग्री से ऊपर जाता है और ह्यूमिडिटी 65-80 डिग्री के बीच पहुंच जाती है तब ये बीमारी तेजी से फैलती है, क्योंकि ये स्थिति एईएस के लिए सबसे बेहतर होती है.

साहनी के अनुसार, '2015 में एईएस के 390 मामले सामने आए थे, जबकि 2014 में 1028 मामले सामने आए. इसके अलावा 2016 में सिर्फ एक मामला सामने आया और 2017 में 9 मामले दर्ज हुए. 2014 में ह्यूमिडिटी बहुत अधिक थी. लेकिन 2016, 2017 और 2018 में यह 10 फीसदी से 25 फीसदी के बीच में कम-ज्यादा होती रही. अब इस साल तापमान 42 डिग्री पार कर चुका है, जबकि ह्यूमिडिटी 65-70 फीसदी तक पहुंच गई है. यही वजह है कि इस पर फिर से एईएस अपने पैर पसार रहा है.'

कुछ लोग नहीं कर रहे इस थ्योरी पर भरोसा

वहीं दूसरी ओर, कुछ लोग इस लीची वाली थ्योरी को खारिज कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर ऐसा होता तो लीची की सेल भी गिर जाती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. उनका मानना है कि इस बीमारी की वजह लीची नहीं है, हां ये जरूर हो सकता है कि किसी वजह से लीची के जरिए कोई वायरस फैल रहा हो, जिस पर और अधिक रिसर्च की जरूरत है.

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