New

होम -> समाज

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 02 अगस्त, 2021 09:04 PM
प्रदीप कुमार
प्रदीप कुमार
  @2175488646036357
  • Total Shares

तकरीबन दो साल से दुनिया एक वायरस जनित महामारी ‘कोविड-19’ से जूझ रही है. इतना वक्त बीत जाने के बाद भी अभी भी वैज्ञानिकों के बीच इस बात पर जद्दोजहद चल रही है कि कोरोना वायरस आखिर आया कहाँ से? इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? यह कोई प्राकृतिक प्रकोप है या मानव-निर्मित आपदा? अभी तक इसको लेकर कोई मुकम्मल तस्वीर नहीं बन पाई है. हालांकि महामारी के शुरुवाती दौर में इसके स्रोत को लेकर काफी बहसें हुईं. उस वक्त कहा गया कि यह समय कोरोना से सबको एकजुट होकर लड़ने का है, ना कि आरोप-प्रत्यारोप और विवाद पैदा करने का. इस वजह से यह बहस धीमी पड़ गई और ठीक से तहकीकात नहीं की जा सकी.

अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी बार-बार वायरस के फैलाव में चीन के प्रयोगशालाओं की भूमिका का जिक्र करते रहे. हालांकि महामारी के शुरुवात से ही ट्रंप के उल-जुलूल बयानों के ट्रैक रिकॉर्ड की वजह से उनकी इस बात को भी अंतराष्ट्रीय मीडिया और तर्कशील लोगों ने कोई खास तवज्जो नहीं दिया.फरवरी और मार्च 2020 में दो प्रतिष्ठित साइंस जर्नलों लैंसेट और नेचर मेडिसीन में प्रकाशित चिट्ठीनुमा शोधपत्रों में दावा किया गया कि यह वायरस प्राकृतिक क्रमिक विकास का परिणाम है, इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं कि यह किसी देश की लैब में बना है या उसमें कोई जेनेटिक इंजिनियरिंग की गई है.

China, Coronavirus, Covid 19, Jinping, Disease, Death, Investigationकोरोना के आगमन के बाद से ही चीन विश्व पटल पर आलोचनाओं का सामना कर रहा है

उक्त शोधपत्रों के मुताबिक, अगर ये वायरस लैब निर्मित होता तो सिर्फ-और-सिर्फ इंसानों के जानकारी में आज तक पाए जाने वाले कोरोना वायरस के जीनोम सीक्वेंस से ही इसका निर्माण किया जा सकता. मगर जब कोविड-19 के जीनोम को अब तक के ज्ञात जीनोम सीक्वेंस से मैच किया गया तब वह एक पूर्णतया प्राकृतिक और अलग वायरस के तौर पर सामने आया.

वैज्ञानिकों द्वारा कहा गया कि चमगादड़ से किसी इंटरमिडिएट जीव के जरिए कोरोना वायरस का प्रसार वुहान के उस ‘वेट मार्केट’ में हुआ है, जहां जंगली पशुओं के मांस की खरीद-फरोख्त होती है. इस तरह कुछ समय के लिए यह विवाद थम-सा गया. यह भी कहा गया कि कोविड-19 उसी वायरस फैमिली का सदस्य है.

जिसके अंदर कई सार्स-कोरोना वायरस व मेर्स कोरोना वायरस आते हैं जिनमें से ज़्यादातर चमगादड़ में पाए जाते हैं और वह किसी बिचौलिए जीव के जरिए पहले भी इंसानों को संक्रमित कर चुके हैं. 2012 का मर्स फ्लू ऊंटों से इंसानों में फैला और इसका केंद्र सऊदी अरब था. 2009 का बहुचर्चित स्वाइन फ्लू मैक्सिको में शुरू हुआ और वह सुअरों के मांस भक्षण की वजह से हम इंसानों तक पहुंचा.

एचआईवी और इबोला वायरस के बारे में भी ऐसे ही सिद्धांत प्रचलित हैं. मई 2021 तक, ‘प्राकृतिक तरीकों से कोरोना वायरस की उत्पत्ति’ को ही ज्यादा बल मिलता रहा लेकिन इसके बाद यह मामला सामने आया कि जिन वैज्ञानिकों ने लैंसेट और नेचर मेडिसीन में चिट्ठी लिखकर कोरोना वायरस के किसी लैब लीक होने की संभावनाओं को नकार दिया था.

उनमें से कई वैज्ञानिकों के तार कोरोना वायरस में आनुवांशिक फेरबदल के ‘गेन ऑफ फंक्शन’ अनुसंधान से जुड़े हुए थे. कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर अमेरिकी जांच एजेंसियों की एक खुफिया रिपोर्ट के सामने आने के बाद, बहस में तेजी आ गई है. जिसके मुताबिक वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के कुछ शोधकर्ता चीन द्वारा दिसंबर 2019 में कोविड-19 की आधिकारिक घोषणा से पहले ही कोरोना वायरस जैसी ही रहस्यमय बीमारी से बीमार पड़ गए थे.

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के स्रोत की तहक़ीक़ात के लिए चीन के कई प्रांतों और वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की दोबारा जांच करने का प्रस्ताव रखा था, जिसे चीन ने सिरे से नकार दिया है. सवाल यह उठता है कि आखिर चीन जांच में सहयोग क्यों नहीं कर रहा है? जबकि विज्ञान और मानवता के हित में सच्चाई का सामने आना बेहद जरूरी है.

न सिर्फ इस सवाल के जवाब के लिए कि जिस वायरस ने अब तक 35 लाख से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया उसकी उत्पत्ति कैसे हुई, बल्कि इस जानकारी से भविष्य में ऐसी किसी महामारी को फैलने से रोकने के लिए मुकम्मल कदम उठाने में भी सहायता मिलेगी. हालांकि जब तक हमारे पास इससे जुड़े पर्याप्त साक्ष्य या डेटा न हो, तब तक हमें प्राकृतिक उत्पत्ति और लैब निर्मित, दोनों ही अवधारणाओं को गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए.

फिलहाल वैज्ञानिकों के एक तबके द्वारा यह आशंका जताई जा रही है कि चीन में स्थित वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी नामक प्रयोगशाला से दुर्घटनावश लीक हो गया होगा. गौरतलब है कि वुहान के ही वेट मार्केट में इस वायरस का पहला मामला सामने आया था, जो वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी से महज कुछ ही दूर है. जो लोग लैब से वायरस लीक होने का दावा कर रहें हैं, उनका मानना है कि कोरोना वायरस इसी प्रयोगशाला से निकलकर वेट मार्केट में फैल गया होगा.

इस आशंका का आधार है- गेन ऑफ फंक्शन रिसर्च. यह रिसर्च किसी प्राकृतिक वायरस में जेनेटिक फेरबदल करके उन्हें और ज्यादा संक्रामक बनाने से जुड़ा है. वुहान का लैब बायोसेफ्टी लेवल चार या बीएसएल-4 प्रयोगशाला है. इस तरह के प्रयोगशालाओं में सबसे खतरनाक रोगाणुओं और विषाणुओं पर बेहद सुरक्षित तरीके से शोध किया जाता है फिर भी मानवीय भूलचूक से लीक की गुंजाइश से इंकार नहीं किया जा सकता है.

कोविड-19 फैलाने वाले वायरस (बीटा-कोरोना वायरस) की जिन चमगादड़ों के वायरस से समानता की बात की जा रही है उनकी रिहाइश दक्षिण-पश्चिम चीन के युन्नान प्रांत की गुफाओं में है. ऐसे में अगर वायरस के संक्रमण के शुरुवाती मामले युन्नान में सामने आते तो इसके प्राकृतिक तौर पर फैलने के दावों की पुष्टि हो जाती. लेकिन इस महामारी के शुरुवाती शिकार बने युन्नान प्रांत से डेढ़ हजार किलोमीटर दूर वुहान प्रांत के लोग.

गौरतलब है कि बीटा-कोराना वायरस जिन चमगादड़ों में पाया जाता है वे अधिकतम 50 किलोमीटर तक ही उड़कर जा सकते हैं. लब्बोलुबाब यह है कि ये चमगादड़ उड़कर भी युन्नान से वुहान तक की 1500 किलोमीटर की लंबी दूरी को तय नहीं कर सकते. सवाल उठता है कि तो फिर यह वायरस युन्नान से वुहान तक कैसे पहुंचा?

इसी सवाल के जवाब में कई साईंटिफ़िक और कॉन्सपिरेसी थ्योरिज सामने आई. इन्हीं में से एक है- लैब लीक की थ्योरी. कहा जा रहा है चीन में बैट वुमेन के नाम से मशहूर वायरोलॉजिस्ट शी हेंगली के नेतृत्व में साल 2012-13 में युन्नान प्रांत के 276 चमगादड़ों के मल का सैंपल लेकर उसे वुहान लैब भेजा गया था.

वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी में शी और उनकी टीम द्वारा चमगादड़ों से प्राप्त बीटा-कोरोना वायरस को जेनेटिक ढंग से बदलकर उसकी मनुष्य में हानि पहुंचाने की क्षमता को बढ़ाया जा रहा था यानी गेन ऑफ फंकशन रिसर्च किया जा रहा था. उसके बाद इसका इंसानी कोशिकाओं के आधार पर तब्दील चूहों पर परीक्षण किया जा रहा था जिससे पता चल सके कि वायरस के स्पाइक प्रोटीन में बदलाव करके इंसान में अधिक संक्रमित करने की क्षमता देकर वायरस को कैसे और ज्यादा खतरनाक बनाया जा सकता है.

लैब-लीक थ्योरी के समर्थकों के मुताबिक इसी गेन ऑफ फंक्शन रिसर्च के दौरान कोरोना वायरस लैब से दुर्घटनावश लीक हो गया और वुहान से निकलकर धीरे-धीरे सारी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया.

अगर यह वायरस वास्तव में किसी लैब से फैला है, तो यह जैव सुरक्षा (बायोसेफ्टी) का मसला है. इसकी पुष्टि होने के बाद पता चल सकेगा कि प्रयोगशाला में सुरक्षा बढ़ाने के लिए और क्या इंतजाम किए जा सकते हैं. महामारी विज्ञानियों का मानना है कि जब भी कोरोना जैसी कोई बड़ी महामारी आती है, तो उसके छोटे से छोटे पहलू की भी गहराई से जांच-पड़ताल की जानी चाहिए.

कई बार छोटी-छोटी जानकारियां भी फायदेमंद होती हैं और उनसे बीमारी का उपचार और उसके रोकथाम का तरीका मिल सकता है. बहरहाल, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच ही कोरोना वायरस के लैब लीक या नैचुरल ओरजिन के प्रश्न पर पूर्णविराम लगा सकता है और यह बगैर चीन के सहयोग के संभव नहीं है.

ये भी पढ़ें -

केरल में कोरोना की 'तीसरी लहर' आई, जानिये ये किसे दिखाई नहीं दे रही है

पढ़ाई के लिए इस टाइम-टेबल को भले ड्रामा कहिये, लेकिन बनाया बहुत खूब है

कोरोना की वजह से क्यों झड़ने लगे ज्यादा बाल! जानिए...  

लेखक

प्रदीप कुमार प्रदीप कुमार @2175488646036357

लेखक साइंस ब्लॉगर हैं और विज्ञान से ही जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय