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Updated: 03 नवम्बर, 2018 03:05 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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दिल्ली की हवा इन दिनों काफी अधिक प्रदूषित हो चुकी है. हालात ये हैं कि यहां की हवा बेहद खराब की कैटेगरी में पहुंच चुकी है. डॉक्टरों ने सलाह तक दे डाली है कि बिना मास्क के बाहर ना निकलें. लेकिन उनका क्या जो मास्क पहन ही नहीं सकते... जो अपना दर्द हमसे बयां भी नहीं कर सकते... जिनकी खबरें न तो मीडिया में आती हैं, ना ही सोशल मीडिया में... यहां बात हो रही है पक्षियों और अन्य जीवों की. जी हां, सिर्फ इंसान ही नहीं हैं, जो दिल्ली के प्रदूषण से परेशान हैं, बल्कि पक्षी और अन्य जीवों के लिए तो यह प्रदूषण जानलेवा बन चुका है. अब तो दिल्ली में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण की ओर से 1 नवंबर से 10 नवंबर तक के लिए ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान भी लागू कर दिया है, जिसमें प्रदूषण फैलाने वाली तमाम गतिविधियों पर प्रतिबंध रहेगा.

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वायु प्रदूषण से मरते पक्षी

1992 के दौरान मैक्सिको में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ चुका था. यहां तक कि यूनाइटेड नेशन्स ने उसे दुनिया का सबसे प्रदूषत शहर कह दिया था. हालात ये थे कि अक्सर ही आसमान में उड़ती चिड़िया के मरकर गिरने की खबरें सामने आने लगी थीं. दिल्ली एनसीआर के हालात भी कुछ वैसे ही होते जा रहे हैं. 2010 में देखा गया था कि दिल्ली-एनसीआर में पहले की तुलना में सिर्फ 20 फीसदी पक्षी बचे थे. बाकी पक्षी या तो मर गए, या फिर प्रदूषण की वजह से ये जगह छोड़कर कहीं और चले गए. अब तो प्रदूषित हवा से मरने वालो लोगों की संख्या सालाना 30 लाख तक पहुंच चुकी है, जबकि एड्स से मरने वाले भी इससे कम हैं. दुनियाभर में पक्षियों की करीब 10,000 प्रजातियां पाई जाती थीं और 2016 के अनुसार उनमें से करीब 400 प्रजातियां गायब हो चुकी हैं. इनके गायब होने के लिए बहुत सारे फैक्टर जिम्मेदार हैं, लेकिन प्रदूषण भी इनमें से एक अहम फैक्टर है. पक्षी, खासकर छोड़ी चिड़ियां बेहद मासूम होती हैं और अगर उन्हें साफ हवा नहीं मिलती तो या तो वह उस जगह को छोड़ देती हैं या फिर मर जाती हैं.

ध्वनि प्रदूषण भी है खतरनाक

सड़क पर सरपट दौड़ती गाड़ियों से निकलता धुआं तो खतरनाक है ही, उनका शोर भी मासूम पक्षियों का दम घोंटने के लिए काफी है. कोलोराडो यूनिवर्सिटी ने 3 साल एक स्टडी की और इस बात का पता लगाया कि अधिक शोर से पक्षियों को परेशानी होती है. शोर की वजह से वह ना तो आपस में बातचीत कर पाती हैं, ना ही प्रजनन के लिए एक दूसरे को आकर्षित. अगर शोर बहुत अधिक हो जाता है और पक्षी उससे दूर नहीं जा पाते तो अक्सर वह मर भी जाते हैं. चीन में जब गौरैया को मारने का मिशन सा चलाया जा रहा था तो दूतावात में छुपे गौरैया के झुंड को मारने के लिए कई दिनों तक दूतावास के बाहर ड्रम पीटे गए थे. दूतावास में छिपा गौरैया का झुंड सिर्फ ड्रम की तेज आवाज सुन-सुन कर ही मर गया. शहरों में गाड़ियों और उनके हॉर्न की आवाज भी ड्रम पीटने जैसी ही है. इसमें भी या तो पक्षी किसी शांत इलाके में चले जाते हैं या फिर शोर को सहन नहीं कर पाने की वजह से मर जाते हैं.

छोटे जानवर भी मर रहे

पेस्ट कंट्रोल और कीटों से बचाव के लिए आजकल खेती में कई तरह के कैमिकल इस्तेमाल किए जाने लगे हैं. इन कैमिकल से भी जानवरों को नुकसान हो रहा है. 1940 से 1960 के दौरान मच्छरों से निजात पाने के लिए डीडीटी का छिड़काव किया जाता था. इससे जानवरों को सबसे अधिक नुकसान होता है. बहुत सारे देशों में तो इसे बैन भी किया जा चुका है, लेकिन भारत में अभी भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. जब जानवरों पर डीडीटी के प्रभाव का अध्ययन किया गया तो पता चला कि इससे जानवरों के नर्वस सिस्टम, लिवर, किडनी और इम्यून सिस्टम पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है. अब मच्छरों से निजात पाने का दूसरा विकल्प ढूंढ़ने की जरूरत है, वरना मच्छरों का तो पता नहीं, लेकिन कई जानवर हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे.

प्रदूषित पानी ले रहा जान

प्रदूषण से सिर्फ हवा में उड़ने वाले पक्षी ही नहीं, बल्कि पानी में रहने वाली मछलियां और अन्य जीव भी अपनी जान गंवा रहे हैं. फैक्ट्रियों से निकलने वाले जहरीले पदार्थों से झीलों, नदियों, नालों और यहां तक कि समुद्र में भी प्रदूषण फैल रहा है. प्लास्टिक की वजह से समुद्री जीवों की जान खतरे में है. ऑस्ट्रेलिया की मुंडोर्क यनिवर्सिटी और इटली की सिएना यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने कहा है कि माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवों के लिए बहुत ही हानिकारक हैं, क्योंकि इसमें हानिकारिक कैमिकल होते हैं. इतना ही नहीं, प्लास्टिक खाने से बहुत सारी मछलियां, यहां तक कि व्हेल भी मर जाती हैं.

प्रदूषण का इंसानों पर तो बुरा असर पड़ता ही है, लेकिन जानवरों पर और भी बुरा असर होता है. इंसान तो ये पता कर सकता है कि जो हवा वह सांस के जरिए ले रहा है वह प्रदूषित तो नहीं. जैसा कि इन दिनों दिल्ली की हवा प्रदूषित हो चुकी है तो मास्क पहनने की सलाह दी गई है, लेकिन जानवरों और पक्षियों को ये बात कैसे समझाई जाए? वह कैसे समझें कि हवा प्रदूषित है. पानी में जहरीले पदार्थ होने का पता इंसान तो लगा सकते हैं, लेकिन पानी में रहने वाली मछलियां खुद को इस जहर से कैसे बचाएं? अंजाम ये होता है कि इंसानों की गलतियों का खामियाजा न सिर्फ हम इंसान भुगतते हैं, बल्कि पक्षियों और जानवरों को तो इसकी कीमत अपनी जान तक देकर चुकानी पड़ती है.

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