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Updated: 22 अक्टूबर, 2022 04:39 PM
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मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को कांग्रेस का अध्यक्ष इसलिए नहीं बनाया गया है क्योंकि वो दलित (Dalit Politics) समुदाय से आते हैं. दलित समुदाय से उनका होना कांग्रेस के लिए एक प्लस प्वाइंट जरूर है - लेकिन कांग्रेस को भी शायद ही कोई उम्मीद हो कि मल्लिकार्जुन खड़गे की वजह से दलित समुदाय के लोग कांग्रेस की तरफ लौटने लगेंगे.

मल्लिकार्जुन खड़गे तो वैसे भी तब जाकर सीन में आये जब अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी न छोड़ने के लिए पैंतरेबाजी की - और सोनिया गांधी तक ये मैसेज भी पहुंचा दिया कि राजस्थान के मामले में तो उनको कभी रबर स्टांप नहीं ही बनाया जा सकेगा.

ये तो सभी जानते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं ताकि बीजेपी नेताओं की मिसाइलें सीने पर झेल सकें - राहुल गांधी डंके की चोट पर कह सकें कि कांग्रेस ने चुनाव के जरिये अपना अध्यक्ष चुना है - और उसके नाम में कोई गांधी नहीं लगा है.

ये एक तरीके से मल्लिकार्जुन खड़गे को आगे कर राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने काम करने का नया तरीका खोजा है - निश्चित तौर पर बीजेपी कांग्रेस को टारगेट करने के नये तरीके पर काम कर रही होगी.

जिस तरीके से मायावती (Mayawati) ने मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाने के लिए हमला बोला है, बीजेपी के लिए ऐसा करना संभव तो था नहीं, लेकिन ये भी मान कर चलना होगा कि मायावती ने कांग्रेस के फैसले पर सवाल उठा कर बीजेपी के लिए आगे का रास्ता थोड़ा आसान तो कर ही दिया है.

मायावती के बयान के पीछे कौन?

लॉकडाउन के दौरान दिल्ली से घर लौटने वाले दिहाड़ी मजदूरों के लिए जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने बसें भेजी थी तो बीजेपी से पहले रिएक्शन मायावती का ही आया था. राहुल गांधी जब दिल्ली के एक पुल पर घर लौटने वाले एक मजदूर परिवार से जाकर मुलाकात की और उनके जाने का इंतजाम किया तो भी मायावती हद से ज्यादा खफा नजर आयीं.

mayawati, malllikarjun khargeमायावती ने एक बार फिर कांग्रेस को मौका दे दिया कि वो बीएसपी नेता को बीजेपी का प्रवक्ता बोल सके.

यूपी की सीमा पर राजस्थान से बसें भेज दिये जाने से दिक्कत तो योगी आदित्यनाथ की सरकार को हो रही थी, लेकिन बयानबाजी मायावती की तरफ से चल हो रही थी. ऐसी ही प्रतिक्रिया मायावती की तरफ से कई बार देखने को मिली - और फिर एक दिन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने मायावती को बीजेपी का अघोषित प्रवक्ता घोषित कर ही दिया.

मल्लिकार्जुन खड़गे को लेकर आये मायावती के बयान पर अपनी प्रतिक्रिया में कांग्रेस नेता अशोक बसोया ने प्रियंका गांधी की ही लाइन दोहरायी है - और मायावती को भी कांग्रेस की तरफ से ऐसी ही प्रतिक्रिया की अपेक्षा रही होगी.

मायावती ने मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष बनाये जाने को कांग्रेस की छलावे की राजनीति करार दिया है. वो पूछ रही हैं, क्या ये छद्म राजनीति नहीं है? मायावती का कहना है कि कांग्रेस अपने अच्छे दिनों में दलितों की परवाह नहीं करती - और बुरे दिनों में दलितों को आगे कर देती है.

मायावती का कहना है, लोग पूछते हैं कि क्या यही है कांग्रेस का दलितों के प्रति वास्तविक प्रेम? मायावती का आरोप है कि कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को बलि का बकरा बनाया है - वैसे मायावती की ये बात गलत तो नहीं लगती, लेकिन ऐसा दलित राजनीति के प्रसंग में सही नहीं माना जा सकता.

दलित राजनीति में कांग्रेस के हाथ लगा सिफर

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे से कहीं ज्यादा दलितों की फिक्र तो शशि थरूर के कैंपेन में देखी गयी. शशि थरूर लगातार बता रहे थे कि जो वोटर कांग्रेस को छोड़ कर जा चुका है, उसे वापस लाने के प्रयास किये जाने चाहिये.

ये तो अच्छा हुआ कि शशि थरूर चुनाव हार गये, वरना सबसे ज्यादा दिक्कत तो कांग्रेस की तरफ से वो मायावती के लिए ही पैदा करने वाले थे - न तो मल्लिकार्जुन खड़गे और न ही अब तक राहुल गांधी या सोनिया गांधी की बातों से अब तक कभी लगा कि किसी का सीधा मकसद दलित राजनीति ही है. अब अगर मल्लिकार्जुन खड़गे की बदौलत दलित समुदाय कांग्रेस का रुख करता है तो सोने में सुगंध वाली बात ही समझी जाएगी.

2017 के राष्ट्रपति चुनाव में दलित राजनीति हावी रही - और तब कांग्रेस ने अपना सबसे बड़ा पत्ता मीरा कुमार के नाम पर चला था. राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तब भी सोनिया गांधी ने काफी मेहनत की थी, लेकिन विपक्षी खेमे के सभी नेताओं की शिकायत यही रही कि संपर्क करने में बहुत देर कर दी.

कांग्रेस तब भी आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल से दूरी बना कर चल रही थी, फिर भी आम आदमी पार्टी ने मीरा कुमार को ही वोट दिया था - और विपक्षी खेमे में होने के बावजूद नीतीश कुमार ने बीजेपी के उम्मीदवार के साथ जाने का फैसला किया. सोनिया गांधी की भनक तो तभी लग गयी थी जब नीतीश कुमार उनके लंच से दूर रहे - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से आयोजित डिनर में पहुंच गये. ये तभी की बात है जब नीतीश कुमार महागठबंधन को छोड़ कर एनडीए में शामिल हो गये थे - और एक बार फिर यू टर्न ले चुके हैं.

लेकिन दलित राजनीति में कांग्रेस का सबसे बड़ा दांव पंजाब चुनाव से पहले लगा था, जब कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाये जाने के बाद कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. कांग्रेस हाल मलती रह गयी और अरविंद केजरीवाल ने चुनाव जीत कर भगवंत मान को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया.

अब कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया है लेकिन बहुत ज्यादा उम्मीदें तो गांधी परिवार को भी होंगी, ऐसा नहीं लगता. हां, पंजाब चुनाव में सोनिया गांधी की अपेक्षा अलग रही होगी, लेकिन एक के बाद एक गलत फैसलों ने पहले ही पत्ता साफ कर रखा था - चुनाव नतीजे तो बस औपचारिकता रहे.

एक कार्यक्रम में राहुल गांधी ने दावा किया था कि यूपी चुनाव 2022 में कांग्रेस की तरफ से मायावती को मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया गया था, लेकिन वो बीजेपी के डर से तैयार नहीं हुईं. मायावती ने राहुल गांधी के दावे का जोरदार तरीके से खंडन किया था.

लेकिन यूपी चुनाव ही नहीं, आजमगढ़ उपचुनाव में भी यही समझ में आया कि मायावती बीजेपी के लिए जीत का रास्ता बना रही हैं - क्योंकि मायावती ने गुड्डू जमाली जैसा मुस्लिम उम्मीदवार नहीं खड़ा किया होता तो समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव को हरा पाना दिनेशलाल यादव निरहुआ के लोहे के चने चबाने जैसा ही होता.

खड़गे से तो कांग्रेस को भी कम ही उम्मीद होगी

अब अगर बात 2024 के आम चुनाव की हो कांग्रेस के लिए भले ही पूरे देश का दलित वोटर महत्व रखता हो, लेकिन मायावती का दायरा तो मुख्यतौर पर उत्तर प्रदेश तक ही सिमटा हुआ है. हो सकता है, कुछ राज्यों में मायावती हाथ आजमाने की कोशिश करें, लेकिन लोक सभा चुनाव में संभावना तो नहीं के बराबर ही है.

वो तो 2019 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके मायावती से लोक सभा की 10 सीटें झटक लीं, लेकिन 2024 में तो रिजल्ट 2014 जैसा ही हो सकता है - जीरो बैलेंस. जब यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी का एक उम्मीदवार चुनाव जीत पाता है, तो भला लोक सभा में क्या उम्मीद की जाये?

देश भर में लोक सभा की 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं - और उनमें से 17 संसदीय सीटें उत्तर प्रदेश में हैं. यूपी की 17 में से सिर्फ दो सीट बीएसपी के पास है, जबकि एक सीट अपना दल के हिस्से में, बाकी सारी सीटें बीजेपी के खाते में दर्ज हैं. बीजेपी के कुल 14 दलित सांसद हैं उत्तर प्रदेश से.

पंजाब में कुल चार सुरक्षित संसदीय सीटें हैं जिनमें तीन कांग्रेस के पास और एक बीजेपी के पास है. पंजाब का जिक्र यहां इसलिए कर रहे हैं क्योंकि मायावती ने विधानसभा चुनाव में वहां अकाली दल के साथ चुनावी गठबंधन किया था.

2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीएसपी का भी एक विधायक बना था, लेकिन सवा साल बाद ही जब विश्वास मत की बारी आयी तो वो अपने इलाके में घूमता रहा और बाद में उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.

कर्नाटक में लोक सभा की चार सीटें सुरक्षित कैटेगरी में रखी गयी हैं - और सभी फिलहाल बीजेपी के हिस्से में हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के हिस्से में कितने दलित वोट खींच कर ला पाते हैं अभी किसी को भी कोई उम्मीद नहीं है - वैसे भी आम चुनाव से पहले तो मल्लिकार्जुन खड़गे की अग्नि परीक्षा विधानसभा चुनाव में होनी है.

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