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Updated: 13 अक्टूबर, 2022 03:31 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) किसी माहिर खिलाड़ी की तरह ही सधी हुई चालें चल रहे हैं और तत्काल प्रभाव से उसका असर भी नजर आने लगा है. मुश्किल ये है कि अशोक गहलोत की गुगली की दशा और दिशा राहुल गांधी समझ ही नहीं पाते - और हिट विकेट हो जाते हैं.

अभी अभी अशोक गहलोत ने अपने एक कदम से कांग्रेस नेतृत्व को खुश कर दिया था - भारत जोड़ो यात्रा से प्रेरित राजस्थान में एक एलिवेटेड रोड को भारत जोड़ो मार्ग नाम देकर. लेकिन फिर दुनिया के नंबर 2 रईस उद्योगपति गौतम अदानी से हाथ मिलाकर अचानक राहुल गांधी को उनके राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर ला दिया.

'इन्वेस्ट राजस्थान 2022' कार्यक्रम से अशोक गहलोत और गौतम अदानी (Gautam Adani) की साथ साथ हंसते मुस्कुराते और हाथ मिलाते तस्वीरें सोशल मीडिया पर आने के बाद से बीजेपी और उसके समर्थक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर टूट पड़े.

अशोक गहलोत ने गौतम अदानी के साथ की तस्वीरें खुद तो ट्विटर पर शेयर किया ही, तारीफों के पुल भी बांध दिये. ये वही गौतम अदानी हैं जिनका नाम लेकर राहुल गांधी 2019 के पहले से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार किये हुए हैं. अदानी के साथ राहुल गांधी की जबान पर दूसरा नाम मुकेश अंबानी का होता है - और 'सूट बूट की सरकार' से लेकर 'चौकीदार चोर है' जैसे नारों के जरिये वो अपने मन की बात सुनाते रहे हैं.

सोशल मीडिया को लेकर भले ही कहा जाता रहा हो कि लोग कुछ भी लिखते रहते हैं. किसी को भी ट्रोल कर देते हैं. कई बार सच भी सोशल मीडिया पर ट्रोल होता है, और झूठ के बारे में क्या ही कहा जाये? दिलचस्प बात ये है कि अशोक गहलोत और गौतम अदानी की मुलाकात को लेकर लोगों ने जो लिखा है, वो काफी हद तक सही भी लगता है. अदानी और राजस्थान के मुख्यमंत्री की मुलाकात को लेकर कुछ लोग गहलोत और गांधी परिवार के बीच बढ़ती दूरियों के रूप में देख रहे हैं, जबकि कई लोग कह रहे हैं कि गौतम अदानी को इन्वेस्टर समिट में बुलाकर अशोक गहलोत ने गांधी परिवार को सख्त संदेश देने की कोशिश की है.

और फटाफट राहुल गांधी का रिएक्शन आ जाने के बाद तो लोगों की बात और भी सटीक लग रही है. प्रेस कांफ्रेंस में गौतम अदानी को लेकर राहुल गांधी की बातें सुन कर तो ऐसा लगता है जैसे अब तक के स्टैंड से यू-टर्न ले लिया हो.

क्या ये अशोक गहलोत के दबदबे का असर है? क्या राहुल गांधी धीरे धीरे अशोक गहलोत की राजनीतिक चालों में उलझते जा रहे हैं? ये संकेत तो साफ है कि राजस्थान में कांग्रेस के भीतर तो सचिन पायलट के रास्ते बंद होते लग रहे हैं, लेकिन अशोक गहलोत आखिर कौन सी राह अख्तियार कर चुके हैं?

गहलोत का जादू तो चल ही गया!

कांग्रेस अध्यक्ष की हनक बड़ी होती है या कांग्रेस के किसी मुख्यमंत्री की? सत्ता की ताकत हमेशा ही बड़ी होती है, लेकिन शर्तें भी लागू हैं. ऐसा तभी हो सकता है, जब पार्टी बेबस हो. वरना, कैप्टन अमरिंदर सिंह मिसाल हैं, कैसे कांग्रेस नेतृत्व ने दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया - ये बात अलग है कि वो खुद को भी मिट्टी में मिलने से नहीं रोक सकी. पंजाब चुनाव 2022 के नतीजे तो यही कह रहे हैं. अब तो ये स्टेटस तभी बदलेगा जब नया चुनाव होगा और नतीजे भी अलग आयें.

ashok gehlot, rahul gandhi, gautam adaniअशोक गहलोत तो राहुल गांधी को उलझाते ही जा रहे हैं.

अशोक गहलोत ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद ठुकराने का फैसला क्यों सही था? अशोक गहलोत ने पहले तो कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सोनिया गांधी का ऑफर भी हल्के में ही लिया था. उनको लगा कि राहुल गांधी को मनाने के नाम पर दायें बायें करके वो निकल लेंगे. जब ये लगा कि वो कांग्रेस अध्यक्ष बन कर भी राजस्थान के मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं तो वो तैयार भी हो गये, लेकिन तभी दिग्विजय सिंह ने बहस आगे बढ़ा दी कि कांग्रेस में तो एक व्यक्ति, एक पद का ही फॉर्मूला चलेगा - और फिर राहुल गांधी ने बोल दिया कि एक बार कमिटमेंट हो गया तो वो किसी की नहीं सुनने वाले हैं.

यही वो वक्त था जब अशोक गहलोत ने अपने आगे के कई कदमों की रणनीति तैयार कर ली. राजस्थान में विधायकों के गदर के लिए सोनिया गांधी से माफी मांग लेना भी उसी रणनीति का हिस्सा रहा. आपने देखा ही, किस तरह अशोक गहलोत हाथ से लिखा नोट लेकर सोनिया गांधी से मिलने गये थे.

फिर राजस्थान पहुंच कर भी अपनी बातों और एक्शन से कांग्रेस नेतृत्व को ऐसे ही संकेत देने की कोशिश कर रहे थे कि वो हथियार नहीं डालने वाले हैं. कांग्रेस में रहते कभी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी गांधी परिवार पर ऐसी ही तरकीबों से दबाव डालने की कोशिश की थी. 2019 के हरियाणा चुनाव से पहले भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी प्रेशर पॉलिटिक्स का ही सहारा लिया था - और भूपेश बघेल तो कांग्रेस और नेतृत्व की हर कमजोरी का पूरा ही फायदा उठाने लगे हैं.

राहुल गांधी तो भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी जब तब गौतम अदानी की जिक्र करते ही रहे हैं. और राहुल गांधी की तरह सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी कहने लगी हैं कि मोदी सरकार सिर्फ दो लोगों के लिए काम करती है. सिर्फ दो उद्योगपतियों को सरकार फायदा पहुंचाने की कोशिश करती है, बाकी पूरे देश को उसके हालत पर छोड़ दिया जाता है.

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी राहुल गांधी कह रहे थे, दुनिया का दूसरा सबसे अमीर शख्स भारत से है... ये कैसे हो सकता है कि दुनिया का दूसरा सबसे अमीर आदमी एक भारतीय है - और देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर है?

लेकिन अब राहुल गांधी के सुर बदल गये हैं. आखिर ये अशोक गहलोत के जादू का असर नहीं तो क्या है? और अशोक गहलोत ने गौतम अदानी के बहाने जो बयान दिया है उसके दायरे में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह तक आ जाते हैं.

राजस्थान में आयोजित निवेशकों के सम्मेलन में अशोक गहलोत तारीफ तो गौतम अदानी की कर रहे थे, लेकिन उसका साइड इफेक्ट तो सीधे राहुल गांधी तक पहुंच रहा था, 'गुजराती हमेशा से बहुत सक्षम रहे हैं... यहां तक कि आजादी से पहले भी... महाराष्ट्र-गुजरात हमेशा आर्थिक रूप से समृद्ध रहा है... आपका राज्य अच्छी स्थिति में था... अब हम सुनते हैं कि गौतम अदानी दुनिया के दो सबसे अमीर लोगों में शामिल हैं.'

और ये दो लोग ही हैं जो राहुल गांधी निशाने पर हमेशा रहते हैं. असल में राहुल गांधी दो लोगों का नाम लेकर केंद्र की मोदी सरकार को टारगेट करते हैं और बेरोजगारी के मुद्दे पर अपने स्टैंड को सही साबित करने की कोशिश करते हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि अशोक गहलोत के अदानी कार्ड खेल जाने के बाद राहुल गांधी ने अपने स्टैंड में संशोधन कर लिया है. अब राहुल गांधी दो उद्योगपतियों पर अपने पोजीशन को लेकर सफाई दे रहे हैं कि वो कॉर्पोरेट नहीं, बल्कि मोनोपॉली के खिलाफ हैं.'

भारत जोड़ो यात्रा के एक महीना पूरे होने पर बुलायी गयी प्रेस कांफ्रेंस में जब अशोक गहलोत और गौतम अदानी की मुलाकात को लेकर सवाल पूछा गया तो कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अपनी तरफ से टालने की कोशिश की, लेकिन राहुल गांधी पहले से तैयार होकर आये थे. लिहाजा अपनी बात साफ तौर पर रखी, उनकी बातों को अलग तरीके से परिभाषित किया जा सकता है.

अदानी-अंबानी पर राहुल गांधी का नया स्टैंड: राहुल गांधी ने मीडिया को बताया, 'मिस्‍टर अदानी ने राजस्‍थान को ₹60,000 करोड़ का प्रस्‍ताव दिया है... ऐसा ऑफर कोई भी मुख्‍यमंत्री ठुकरा नहीं सकता... असल में ये किसी भी मुख्यमंत्री के लिए ऐसा प्रस्ताव ठुकराना ठीक भी नहीं है.'

लगे हाथ राहुल गांधी ने अपनी बात सही साबित करने के लिए अलग अलग तरीके से समझाने की भी पूरी कोशिश की. बोले, मैं न बिजनेस के खिलाफ हूं, न कॉर्पोरेट के खिलाफ... मैं कैपिटल के केंद्रीकरण के खिलाफ हूं.'

बोले, 'मेरा विरोध इस बात को लेकर है कि बीजेपी की सरकार दो-तीन लोगों को हिंदुस्‍तान के सभी कारोबार में एकाधिकार हासिल कर लेने का मौका दे रही है... मैं इसके खिलाफ हूं.'

राजस्थान में अदानी के निवेश को लेकर राहुल गांधी ने साफ साफ अपना स्टैंड भी बताया, 'अगर राजस्‍थान की सरकार ने मिस्टर अदानी को गलत तरीके से बिजनेस दिया, तो मैं उसके बिलकुल खिलाफ हूं... मैं खड़ा हो जाऊंगा... अगर ऐसा नहीं है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है.'

अशोक गहलोत कांग्रेस के नये 'कैप्टन' बन रहे हैं

वो दिन भी ज्यादा दूर नहीं जब अशोक गहलोत भी कांग्रेस नेतृत्व के सामने नये 'कैप्टन' नजर आने लगेंगे, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह. अब तो कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.

कांग्रेस के पंजाब संकट के दौर में कैप्टन वाली स्थिति में सचिन पायलट हुआ करते थे, जबकि अशोक गहलोत, नवजोत सिंह सिद्धू की तरह मजे ले रहे थे. अब सब कुछ बदल चुका है. बदलने से मतलब ये कि सचिन पायलट को तब के नवजोत सिंह सिद्धू वाली जगह मिल चुकी है - और अशोक गहलोत गांधी परिवार के खिलाफ संजीदगी से बगावत कर पुराने कैप्टन अमरिंदर की राह चल पड़े हैं.

अशोक गहलोत असल में तब के कैप्टन अमरिंदर के मुकाबले अब भी बेहतर स्थिति में हैं. पंजाब में एक झटके में सारे ही विधायक कैप्टन के खिलाफ चले गये थे, राजस्थान के कांग्रेस विधायक अशोक गहलोत के एक इशारे पर दिल्ली के 10, जनपथ तक हिला कर रख दे रहे हैं.

विपक्ष की हालत तो पंजाब जैसी ही राजस्थान में भी है. जो हाल अकाली दल से अलग होने के बाद बीजेपी का पंजाब में हो गया था, राजस्थान में वसुंधरा राजे ने आलाकमान की नाक में दम कर रखा है. राजस्थान में बीजेपी मोदी-शाह बनाम वसुंधरा की लड़ाई में बुरी तरह उलझी हुई है - अगर ये झगड़ा जल्दी खत्म नहीं होता तो पलड़ा कांग्रेस का भारी रह सकता है.

कैप्टन तो मजबूरी में चूक गये थे. गांधी परिवार के एकतरफा फैसलों से मुकाबले का उनके पास कोई तरीका नहीं बचा था, लेकिन अशोक गहलोत पहले ही संभल गये हैं. वो जानते थे कि कांग्रेस की भाई-बहन की जोड़ी यानी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा मिल कर राजस्थान में भी पंजाब जैसा ही हाल कर देंगे - और ये सब सोच समझ कर ही अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी तक ठुकरा डाली है.

सचिन तो बनने से रहे, गहलोत बने रहेंगे: अशोक गहलोत शुरू से ही मनमानी करते आ रहे थे. आगे के लिए लड़ाई के लिए अब और भी कारगर हथियार चाहिये. किस्मत का खेल देखिये कि गौतम अदानी के रूप ब्रह्मास्त्र ही मिल गया है.

अब भी अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी, अशोक गहलोत से इस्तीफा मांगेंगे तो जवाब उनका पुराना ही हो सकता है, लेकिन असर गहरा होगा - 'राजस्थान में कांग्रेस खत्म हो जाएगी.'

और फिर अशोक गहलोत ये भी समझाएंगे कि अदानी ग्रुप के निवेश से युवाओं को रोजगार देकर वो सत्ता में कांग्रेस की वापसी करा सकते हैं - और इस तरह सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का गांधी परिवार का सपना, सपना ही रह जाएगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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