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Updated: 17 दिसम्बर, 2021 06:01 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के साथ भी कांग्रेस नेतृत्व वैसा ही सलूक करने लगा है जैसा अब तक अरविंद केजरीवाल के साथ होता आया है - 14 दिसंबर से पहले सोनिया गांधी की तरफ से बुलायी जाने वाली बैठकों में ममता बनर्जी शामिल होती रहीं और अरविंद केजरीवाल को विपक्षी खेमे से बाहर न रखने की सलाह देती रही हैं.

विपक्ष की बैठकें तो हाल फिलहाल राहुल गांधी भी बुलाते रहे हैं, खासकर ममता बनर्जी के नये सिरे से राष्ट्रीय स्तर पर एक्टिव होने के बाद - लेकिन राहुल गांधी की तुलना में कपिल सिब्बल के बर्थडे पर विपक्षी नेताओं की जमघट ज्यादा दमदार नजर आयी थी.

सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने विपक्षी नेताओं की जो बैठक बुलायी थी, ज्यादा अहम इसलिए भी हो जाती है क्योंकि ममता बनर्जी के यूपीए के अस्तित्व को खारिज कर दिये जाने के बाद हुई है - और एनसीपी नेता शरद पवार (Sharad Pawar) की हिस्सेदारी मीटिंग को और भी खास बना देती है.

शरद पवार फिलहाल ममता बनर्जी और सोनिया गांधी के बीच कनेक्टिंग लिंक बने हुए हैं और दोनों नेताओं के लिए अलग अलग जरूरत बन गये हैं. सोनिया गांधी के लिए तो शरद पवार सिर्फ ममता बनर्जी को कमजोर करने के लिए साधन भर हैं, लेकिन ममता बनर्जी के लिए तो वो बंगाल से बाहर बहुत बड़े सपोर्ट सिस्टम हैं.

ये ठीक है कि शरद पवार ने महाराष्ट्र में कांग्रेस को छोड़ कर एनसीपी-शिवसेना के गठजोड़ को मजबूत करने की सलाह पर चुप्पी साध ली थी, फिर भी ममता बनर्जी ने मीडिया के सामने यूपीए को लेकर बयान दे डाला था. शरद पवार इसे भी नजरअंदाज कर सकते थे, लेकिन गोवा में एकमात्र एनसीपी विधायक को तृणमूल कांग्रेस के शिकार बना लेने को भला कैसे बर्दाश्त कर पाते.

शरद पवार के पूरी तरह साथ न देने से गुस्से में लाल ममता बनर्जी ने गोवा में एनसीपी को झटका देकर सबक सिखाने की कोशिश की. शरद पवार को तो ममता को अपनी हदें समझाने के लिए बस मौके का इंतजार रहा होगा, सोनिया गांधी का न्योता मिलते ही शरद पवार 10, जनपथ पहुंच गये - आखिर ममता बनर्जी को भी संदेश तो देना ही था.

ममता को ताकत का एहसास दिला रही हैं सोनिया गांधी

सोनिया गांधी की तरफ से बुलायी गयी विपक्षी दलों की मीटिंग पर इरफान ने एक कार्टून बनाया है. कार्टून में सोनिया गांधी और एनसीपी नेता शरद पवार को बात करते दिकाया गया है - और मीटिंग के अंदर की बात कुछ ऐसे बतायी गयी है कि ममता बनर्जी को मनाने पर बात हुई है.

फिर, कार्टून में, शरद पवार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पूछते देखे जा सकते हैं, 'क्यों ना प्रशांत किशोर से बात कर लें?'

ममता ने मोल ली दुश्मनी: कार्टून हों या व्यंग्य कभी हवा में नहीं होते. पहले फैक्ट होता है, फिर एक पंचलाइन. प्रशांत किशोर से बात करने की सलाह भी तथ्यों के काफी करीब है - और काफी हद तक ये कार्टून मीटिंग के छोटे से आंखों देखे हाल जैसा ही है.

sonia gandhi, sharad pawar, mamata banerjeeसोनिया गांधी ने तो अभी ममता की क्रिया पर प्रतिक्रिया जतायी है - अभी तो बहुत कुछ बाकी है

अरविंद केजरीवाल को लेकर गांधी परिवार को चाहे जितनी भी चिढ़ रही हो, लेकिन ममता बनर्जी के साथ ऐसा नहीं रहा है और ममता बनर्जी भी सोनिया गांधी को हमेशा ही सम्मान देती आयी हैं. शरद पवार के साथ मुलाकात से पहले ऐसा पहली बार देखा गया जब ममता बनर्जी मीडिया के सवाल पर भड़क गयीं - हर बार मिलना क्यों जरूरी है... संविधान में लिखा है क्या?

ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी की नाराजगी तो पहले ही मोल रखी थी, गोवा में एनसीपी के अकेले विधायक चर्चिल अलेमाओ को अपने पाले में मिला कर सोनिया-पवार दोनों को ही दुश्मन बना लिया है. आगे भले ही सुलह हो जाये, लेकिन अभी तो यही हाल है.

10, जनपथ का दबदबा कम नहीं हुआ: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरफ से 10, जनपथ पर बुलायी गयी विपक्षी दलों की मीटिंग में शरद पवार के अलावा सीपीएम नेता सीताराम येचुरी और नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला भी शामिल हुए.

डीएमके और शिवसेना का भी प्रतिनिध्व रहा. डीएमके की तरफ से टीआर बालू और शिवसेना की तरफ से संजय राउत ने हाजिरी लगायी. बताते हैं कि सोनिया गांधी ने मीटिंग में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन को भी बुलावा भेजा था, लेकिन दोनों की जगह संजय राउत और टीआर बालू को भेजा गया था.

प्रतिनिधित्व के हिसाब से देखें तो राहुल गांधी की तरफ से बुलायी जाने वाली विपक्ष की बैठकों में भी प्रतिनिधित्व तो दिखायी पड़ता था, लेकिन बड़े नेता दूरी बना लेते रहे. राहुल गांधी ने जुलाई में ममता बनर्जी के दिल्ली दौरे के समय एक बार संसद परिसर और फिर कंस्टीट्यूशन क्लब में ब्रेकफास्ट मीटिंग बुलायी थी.

मीटिंग में ममता बनर्जी को बुलाया ही नहीं गया था और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ तो कांग्रेस के पहले से ही ऐसा रवैया रहा है, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये भी है कि समाजवादी पार्टी और बीएसपी का भी कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ. सोनिया गांधी इससे पहले जो मीटिंग बुलायी थी, उसे लेकर भी सपा-बसपा ने ऐसा ही रुख अपनाया था. हो सकता है, ये सब यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के चलते हुए हो.

ममता बनर्जी ने हाल ही में कहा था कि अगर अखिलेश यादव कहेंगे तो वो मदद के लिए तैयार हैं - और प्रतिक्रिया में समाजवादी पार्टी के नेता की तरफ से भी स्वागत भाव ही जताया गया था. हालांकि, जरूरी नहीं कि अखिलेश यादव के स्टैंड का ममता बनर्जी की मौजूदगी या उनको मीटिंग से दूर रखने के मामले से कोई वास्ता हो भी.

मीटिंग में राहुल गांधी के साथ साथ राज्य सभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद थे. राहुल गांधी को राज्य सभा के 12 सांसदों के निलंबन के खिलाफ एक्टिव देखा गया है. जिस दिन सोनिया गांधी ने मीटिंग बुलायी थी, उसी दिन राहुल गांधी ने विपक्षी सदस्यों का निलंबन रद्द करने की मांग के साथ मार्च निकाला था.

हर क्रिया पर प्रतिक्रिया ऐसी ही होती है: विपक्षी खेमे में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच तकरार की शुरुआत तो ममता बनर्जी की ही तरफ से हुई है. बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने शरद पवार से लंबी मुलाकात की और उसके बाद विपक्ष की ताबड़तोड़ बैठकें बुलायी जाने लगीं.

जैसे ही कांग्रेस को दरकिनार किये जाने की भनक लगी तत्काल प्रभाव से एक्टिव हो गयी. लेकिन ममता बनर्जी से बात करने की जगह कांग्रेस नेतृत्व ने शरद पवार से संपर्क करने का फैसला किया. गांधी परिवार का संदेश लेकर कमलनाथ निकले और शरद पवार से मुलाकात के फौरन बाद साफ हो गया. शरद पवार ने बयान जारी किया - कांग्रेस के बगैर विपक्ष का कोई फोरम कारगर नहीं हो सकता.

जब ममता बनर्जी शरद पवार से मिलने मुंबई गयीं तो वहां भी कांग्रेस को ऐसी कोशिशों से दूर रखने की सलाह दी, लेकिन पवार चुप ही रहे. हां, ज्यादा देर नहीं लगी और शिवसेना के मुखपत्र सामना ने पवार के मन की पूरी बात छाप दी.

क्रोनोलॉजी को समझें तो पहले ममता बनर्जी ने ही कांग्रेस को दूर रखना शुरू किया. फिर कांग्रेस ने शरद पवार को साध लिया - और ममता किनारे हो गयीं. बस इतनी सी ही तो बात है.

क्या ममता बनर्जी कमजोर पड़ने लगी हैं

पूरी विपक्षी कवायद का मकसद अगले आम चुनाव यानी 2024 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करना है. कांग्रेस नेतृत्व तो 2014 के बाद से ही ऐसी कोशिशों में जुटा हुआ है, लेकिन ममता बनर्जी के प्रयासों में इसी साल तेजी आयी है.

हो सकता है ये प्रशांत किशोर का आकलन हो या कोई छिपी हुई निजी रणनीति, जिसकी बदौलत ममता बनर्जी को भी लगने लगा कि कांग्रेस प्रधानमंत्री पद पर राहुल गांधी के रिजर्वेशन को सुनिश्चित करने के लिए विपक्ष में सबको साथ लेने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. ममता बनर्जी के सामने सबसे बड़े उदाहरण अरविंद केजरीवाल ही रहे हैं.

ममता बनर्जी ने बीजेपी को चैलेंज करने के लिए आगे बढ़ने से पहले कांग्रेस को ही टारगेट करना शुरू कर दिया. पहले सोनिया गांधी से हर बार की मुलाकात को गैर जरूरी बताया, फिर यूपीए के अस्तित्व को ही खारिज कर दिया - ममता बनर्जी आगे तो बढ़ती गयीं, लेकिन विपक्ष के बाकी साथी अपनी जगह से आगे बढ़ने को राजी नहीं हुए.

ममता से बिछड़ते जा रहे साथी: जिस अरविंद केजरीवाल को लेकर ममता बनर्जी कांग्रेस नेतृत्व से हमेशा ही दो-दो हाथ करती रहीं, वो तो लगता है जैसे पहले ही पल्ला झाड़ चुके हों. गोवा में तृणमूल कांग्रेस के असर को नकारने की एक वजह जरूर लगती है - आम आदमी पार्टी 2017 से गोवा में पांव जमाने की कोशिश कर रही है और अब ममता बनर्जी भी उसमें हिस्सेदारी बांटने पहुंच गयी हैं.

लेकिन अरविंद केजरीवाल की तरफ से ये बताया जाना की ममता बनर्जी की शरद पवार से मुलाकात या विपक्षी मुहिम को लेकर कोई बात नहीं हुई, हैरान करता है. अरविंद केजरीवाल ज्यादा कुछ तो नहीं कहते, लेकिन बातों से ऐसा लगता है जैसे वो भी दूरी बना कर चल रहे हों.

अरविंद केजरीवाल की ही तरह तेजस्वी यादव का बयान भी काफी महत्वपूर्ण लगता है और ये ममता बनर्जी के खिलाफ जाता है. तेजस्वी यादव का कहना है कि पश्चिम बंगाल चुनाव में उनकी पार्टी आरजेडी ने तृणमूल कांग्रेस का सपोर्ट किया था, लेकिन केंद्र में वो कांग्रेस को समर्थन देने के पुराने स्टैंड पर कायम हैं.

तेजस्वी यादव आंकड़े पेश कर सोनिया गांधी के आगे ममता बनर्जी की हैसियत भी बता देते हैं. ममता बनर्जी के यूपीए वाले बयान को खारिज करते हुए तेजस्वी कह रहे हैं कि देश में करीब 200 ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस और बीजेपी में सीधी लड़ाई है. ममता-पवार मुलाकात में भी अभिषेक बनर्जी ने ऐसी 250 सीटों का जिक्र किया था, जिस पर एनसीपी नेता ने भी सहमति जतायी थी.

पवार के मन में क्या चल रहा है: शरद पवार कांग्रेस को विपक्षी लूप से दूर रखने के ममता के प्रस्ताव पर खामोश रह जाते हैं - और सोनिया गांधी के बुलाने पर मीटिंग में पहुंच जाते हैं, जबकि मालूम होता है कि ममता बनर्जी को दूर रखा जाने लगा है.

सोनिया की मीटिंग को लेकर शरद पवार का कोई बयान अभी नहीं आया है, लेकिन एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक का कहना है कि शरद पवार, कांग्रेस और टीएमसी सहित सभी विपक्षी ताकतों को एक मंच पर लाने का प्रयास करेंगे. शिवसेना सोनिया गांधी और राहुल गांधी को यूपीए को मजबूत करने की सलाह देने लगी है. ये भी शरद पवार के बयान का ही एक्सटेंशन समझा जाना चाहिये.

आखिर शरद पवार के मन में क्या चल रहा है - और वो ममता बनर्जी या कांग्रेस के बगैर नहीं बल्कि साथ लेकर चलने के स्टैंड पर ही कायम हैं या फिर कुछ और सोच रहे हैं. कांग्रेस और ममता बनर्जी दोनों ही विपक्ष का नेतृत्व अपने हाथ में चाहते हैं - लेकिन शरद पवार खुद के लिए भी तो कुछ सोच ही रहे होंगे!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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