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Updated: 08 दिसम्बर, 2021 04:52 PM
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तो क्या कांग्रेस के अच्छे दिन आने वाले हैं? क्या कांग्रेस निखरने या संवरने वाली है? ऐसा होगा यह कहना आसान हो सकता है. इसलिए कह रहे हैं कि जिस तरह की परिस्थितियां बन रही है उसमें कांग्रेस को निखरना ही होगा. संवरना ही होगा. वरना ख़त्म हो जाना होगा. आप कह सकते हैं क्या कोई नई परिस्थिति पैदा हुई है. यह तो BJP ने बहुत पहले कांग्रेस के सामने पैदा कर दी थी. यह सच है. BJP इतनी दूर निकल गयी दिखती है कि कांग्रेस को ऐसा लगता है कि हम अब सत्ता के लिए संघर्ष नहीं कर सकते हैं. मगर जब विपक्ष के रूप में अस्तित्व पर संकट आ जाए तो क्या तब भी कांग्रेस नींद से नहीं जागेगी. अब तक विपक्ष के रूप में जितने भी दल आ रहे हैं कांग्रेस उन्हें अपना सहयोगी मानती रही है भले ही वह कांग्रेस को मिटाकर सत्ता में आए हों. मगर पहली बार तृणमूल कांग्रेस या उनकी पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी ने कांग्रेस के सामने कांग्रेस के होने का संकट पैदा कर दिया है. अब तक माना जा रहा था कि कांग्रेस पर दुश्वारियां इतनी पड़ी है कि उन्हें आसान लगने लगी हैं और इसी आसान जीवन में उन्हें मज़ा आने लगा है. अब तो BJP के खिलाफ़ ग़दर के लिए कांग्रेस के नेताओं को विपक्ष के लोग बहादुर शाह ज़फ़र लायक़ भी नहीं समझने लगे हैं.

Mamata Banerjee, West Bengal, Assembly Elections, Congress, Sonia Gandhi, Rahul Gandhiजैसे हालात हैं माना यही जा रहा है कि ममता बनर्जी ही हैं जो कांग्रेस का डूबता जहाज बचा सकती हैं

ममता ने ये कहकर कि यूपीए नाम की कोई चीज नहीं है कांग्रेस से भ्रम छीन लिया है वर्ना यूपीए तो वाक़ई में नहीं था. शायद तृणमूल वह काम कर जाए जो काम गांव में ब्लैक एंड व्हाइट TV नहीं चलने पर कोई अनाड़ी कर जाता था. कभी-कभी रामायण और महाभारत चलते चलते टीवी बंद हो जाए तो कोई टीवी पर एक चांटा और मुक्का मारता था और टीवी का काला पटल चलचित्र बनकर जीवंत हो उठता था.

कहते हैं मनुष्य के ऊपर जब संकट अस्तित्व का जाता है तो वह अपना सर्वस्व लेकर मैदान में सर्वश्रेष्ठ के लिए निकल पड़ता है. बस बात इतनी सी है कि क्याममता बनर्जी के कांग्रेस दमन दूत प्रशांत किशोर और नौसिखिए भतीजे अभिषेक बनर्जी के हाथों मान मर्दन के बाद कांग्रेस पार्टी अपनी बची खुची हया के साथ उठ खड़ी होने की कोशिश में लगेगी.

कार्ल मार्क्स ने जब ने पूंजीवादी व्यवस्था का घोर विरोध किया था तो उसमें से सबसे मज़बूत तर्क था कि बुर्जुआ सर्वहारा का शोषण दो तरीक़ों से करता है. पहला परिश्रम और दूसरा पारितोषिक के ज़रिए और इन दोनों के लिए सर्वहारा के अंदर प्रतियोगिता की होड़ मचाते हैं. दुनिया भर में साम्यवादी व्यवस्था के पतनके बाद पूंजीवादी व्यवस्था एक सच्चाई है और यही सच्चाई मानव विकास की सफलता का सोपान भी है.

विकास एक समग्र अवधारणा है. लोग कहने लगे हैं कि विपक्ष के अंदर हाशिये पर धकियाए जाने के बाद कांग्रेस के नेताओं में बेचैनी है और इसी बेचैनी से ही कोई रास्ता भी निकलेगा. ममता बनर्जी ने जो कंपटीशन या चुनौती कांग्रेस के सामने रखी है वह कांग्रेस के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं के तौर पर देखा जाना चाहिए.

पर बड़ा सवाल है कि यह देखेगा कौन? सोनिया गांधी,राहुल गांधी, प्रियंका गांधी या फिर केसी वेणुगोपाल, अजय माकन ऐक एंटनी और पवन बंसल. मैं हमेशा से कहता हूं कि किसी भी राजनीतिक पार्टी के फलने फूलने और आगे बढ़ने के लिए नीति, नेता और नियत बहुत ज़रूरी है. राहुल गांधी को नीति के मोर्चे पर 100 में से 100 नंबर दिए जा सकते हैं.

मगर नेता का काम होता है नीति को आगे बढ़ाना. क्या नीति को आगे बढ़ाने के लिए राहुल गांधी के पास कोई प्लान है? राहुल गांधी ने अपने वैचारिक प्रतिबद्धता के मामले में सोवियत संघ के सबसे शानदार नेता मिखाइल गोर्बाचोव के जैसे व्यवहार करना शुरू कर देते हैं मिखाइल गोर्बाचोव ने प्रेसत्रोइका और ग्लासनवोस्त के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर इतना आगे बढ़ते चले गए कि सोवियत संघ का विघटन हो गया.

राहुल गांधी इससे बचना चाहिए. नेहरू जैसा वैचारिक प्रतिबद्धता अगर राहुल गांधी के पास है तो उनके पास प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जैसे लोगों की सोहबत की प्रतिबद्धता भी होनी चाहिए जिन्होंने अपने चाची के मृत्यु के बाद दाढ़ी और बाल कटाए बिना विदेश नहीं जाने के नेहरू के सलाह पर विदेश दौरे कोठुकरा दिया था.

आज के ज़माने में अगर इस पर बात करें तो कह सकते हैं कि राजेंद्र प्रसाद ने महज़ एक रूढ़िवादी परंपरा के लिए राष्ट्रहित को दांव पर लगा दिया था मगर यह देश ऐसा ही है और अगर इस देश में राहुल गांधी राज करने का सपना देख रहे हैं तो उन्हें ऐसा ही बनना पड़ेगा. बाबर ने जब हिंदुस्तान के धरती पर क़दम रखा था तो वह समझ गया था कि हिंदुस्तान पर राज कैसे किया जाएगा.

बाबर ने बाबरनामा में जो लिखा है उससे यह समझ में आता है कि उसने कहा है कि अगर हिन्दुस्तान पर राज करना है तो इस्लाम का हिन्दूकरण के ज़रिये ही राज किया जा सकता है न कि हिंदुओं के इस्लामीकरण करके. और औरंगजेब यह गलती नहीं करता तो शायद मुग़ल शासन का अंत भी नहीं हुआ होता.

कभी कभी राहुल गांधी की वैचारिक प्रतिबद्धता को देखकर लगता है कि वह गांधी नेहरू के हिंदुत्व से कहीं आगे निकल का मार्क्सवादियों के हिंदुत्व के घेरे में अपने आप को खड़ा कर लिया है. जब वह कहते हैं कि मैं अपनी लड़ाई ख़ुद लडूंगा, चाहे मेरे साथ कोई रहे ना रहे है ,मैं अकेले हीं लडूंगा, तो पूरी कांग्रेस पार्टी अकेले नज़र आती है.

राहुल गांधी ने शायद वह हिंदी कहावत नहीं पढ़ी होगी कि अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ता. दिल्ली में कांग्रेस के जानकार कहते हैं कि राहुल गांधी इन दिनों काफ़ी सीरियस थॉट में है. उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद अप्रैल में पूरी कांग्रेस को बदल देने वाले हैं. मगर लोग यहां भी डरे हुए हैं. उन्हें दुनिया के महानतम क्रिकेटर सचिन तेंदुलकरकी याद आ जाती है.

तेंदुलकर जब फेल होने लगे तो बदलाव के नाम पर फ़ास्ट बॉलर के नाम पर उन्होने रफ़्तार का नाम जॉनसन खोज निकाला और फिरकी का जादूगर नोएल डेविड ले आए. ये दोनों भारी असफल हुए और कप्तान के तौरपर भी असफल हुए. हालांकि यह तो बाद की बात है. कांग्रेस अध्यक्ष के लिए कांग्रेस के नेता अध्यक्ष नहीं खोज पा रहे हैं यह तो एकबात रही, मगर अहमद पटेल की जगह भी कोई दूसरा नेता नहीं खोज पा रहे हैं यह कांग्रेस की दयनीय स्थिति को दर्शाता है.

जब भी कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक होती है तो 70 पार नेता तोते की तरह रट लगा लगाने लगते हैं कि राहुल जी आप कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालो. इस बार के कार्यसमिति में तो एक नेता ऐसे ज़िद पर अड़ गया है कि अभी और यहीं कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की घोषणा कर दी जाए. नाराज़ राहुल गांधी ने कहा कि you can’t bully me. यानी मेरे साथ आप ऐसे ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं कर सकते हैं.

मैं इस बारे में सोचूंगा. उसके बाद कार्य समिति की बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि मुझे अध्यक्ष तो बनाना चाहते हो मगर पार्टी के अंदर untouchability की समस्या है. फिर उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की रोने की कहानी भी सुनाई. उसके बाद राहुल गांधी ने वहाँ बैठे कई नेताओं को कहा He is untouchable,He is also untouchable and he is also…

]इस तरहकर के उन्होंने 10 नेताओं के नाम बता दिए.  कार्य समिति की बैठक ख़त्म हो गई और बाहर आते हीं सभी नेता एक दूसरे से पूछ रहे थे कि राहुल जी untouchables and untouchability की मतलब क्या बता रहे थे. यक़ीन मानिए कांग्रेस कार्यसमिति में बैठे है ये सारे नेता आज भी इसका मतलब खोज रहे हैं.

फिर राहुल गांधी अपनी बातें जानता तक कैसे पहुंचा पाएंगे जब नेता ही नहीं समझ पा रहे हैं. कांग्रेस के लिए मात्र यही संकट नहीं है कांग्रेस के लिए संकट यह भी है कि उन्हें तेज तर्रार नेता नहीं बल्कि है वफ़ादार नेता चाहिए होता है. राजनीतिकी दो पीढ़ियां निकल गई मगर गांधी परिवार अंबिका सोनी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है.

पंजाब चुनाव के लिए एक सेनापति वह भी बनायी गई है. जब अस्तित्व का संकट हो तो वफ़ादारी के ख़िलाफ़ रिस्क लेना समझदारी होता है. अकबर के ख़िलाफ़ महाराणा प्रताप का जब सब कुछ दांव पर लग गया था तो उन्होंने अफ़ग़ान सरदार हाकिम ख़ान सूरी को अपना सेनापति बनाकर सूरी पर पर भरोसा जताया था.

क्योंकि खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा था जो बचा था सिर्फ़ पाने के लिए.कांग्रेस भी राजनीति के बियाबान में घास की रोटी हीं खा रही है इसलिए नौजवान नेताओं को श़क की नज़रों से देखने के बजाय उन पर भरोसा करना सीखना होगा. कांग्रेस को समझना होगा कि अशोक गहलोत का वक़्त अब हो गया है जनता सचिन पायलट की तरफ़ देख रही है.

कांग्रेस के जानकार भी बताते है कि कांग्रेस के वोटों के प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है और देश में महाराज 20 फ़ीसदी वोट कांग्रेस के पास बचे हैं. यह बड़ा संकट नहीं है. 20 फ़ीसदी को 40 फ़ीसदी में बदला जा सकता है.मगर उसे बदलने वाला नेता चाहिए.

गोवा में तृणमूल कांग्रेस और आप पार्टी इसलिये अपना जगह खोज रही है क्योंकि गोवा के लोगों में BJP यह बात बैठाने में सफल हो गयी है कि अगर पिछली बार की तरह कांग्रेस सत्रह-अठारह सीटें भी जीतेंगी और BJP सात -आठ सीटें जीतेगी तो भी कांग्रेसियों को तोड़ कर BJP सरकार बना लेगी. कांग्रेस को इसमिथ्य प्रवंचनाओं को तोड़ना हीं होगा.

यह संकट वोट का संकट नहीं है यह संकट भरोसे का संकट है. बिहार, बंगाल, ओड़िसा और मध्यप्रदेश में कोई नेता दिख नहीं रहा है जिसके कंधे पर अगले पाँचसाल का प्लान तैयार हो. पिछले चुनावों में केरल ने इज़्ज़त बचायी थी और इसबार ऐसा लगता है कि केरल भी हाथ से जाता रहेगा. अब सारा भरोसा तमिलनाडु में DMK पर है कि शायद कुछ सीटें दिलवा दे.

उत्तर प्रदेश में अखिलेश और मायावती तो कांग्रेस को गठबंधन लायक़ तक नहीं मानते. शायद अगली बार से तेजस्वी भी ना मानें. महाराष्ट्र में शरद पवार के खैराती बड़प्पन पर कांग्रेस सत्ता में है. गुजरात में पिछली बार हीं भारी सत्ता विरोधी लहर के बावजूद जनता कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर पाई. हो सकता है कि पंजाब में जीत के बाद राहुल गांधी को इसका श्रेय देते हुए उन्हें फिर से एक बार अध्यक्ष बना दिया जाए मगर इतने भर से कांग्रेस में जान नहीं फूंकने वाला है.

फिर सवाल उठता है कि तब कैसे कह रहे हैं कि कांग्रेस का दिन संवरने वाला है. फिर कैसे निखारेगी कांग्रेस. मेरा मानना है कि पूंजीवादी सिद्धांत से हीं होगा. डार्विन के फिटेस्ट फ़ॉर सर्वाईवल के नज़रिए से जब प्रतिद्वंद्विता मज़बूत विपक्षी पार्टी के लिए चरम पर आएगी तो सुधरने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.

सत्ता आती दिख नहीं रही है तो कांग्रेस में उत्साह भी कम है मगर विपक्षी पार्टी का तगमा भी जाता रहे तो सवाल सर्वाईवल का हीं है. हो सकता है कि तबतक भंवर जितेंद्र सिंह जैसे राहुल गांधी के पीटे हुए प्यादे भी पीट-पीट कर बाहर हो जाएं. उत्तरप्रदेश चुनाव की हार के बाद प्रियंका गांधी भी फ़ुर्सत और हरकत में आ जाएंगी.

कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की मांग के आगे चले हुए कारतूस कांग्रेसी नेताओं को झुकना होगा. प्रियंका गांधी की भूमिका कांग्रेस में बढ़ेगी. प्रियंका वैचारिक प्रतिबद्धता के अलावा अपने व्यवहारिकता के लिए जानी जाती है या कह लीजिए कि दिखाई देती है. इसकी कमी कांग्रेस में दिखाई देती है.

करिश्माई नेतृत्व और व्यवहारिक नीति मिलकर कांग्रेस में बैठी कमी प्रियंका दूर कर सकती है. इसलिए कहा जा रहा है और UP चुनाव बाद कांग्रेस में बहुत कुछ बदलने वाला है एक लोकतंत्र के लिए इससे ज़्यादा अच्छी बात नहीं हो सकती है कि ममता दीदी की चुनौती के बाद जनता में उम्मीद जगी है कि हम एक मज़बूत विपक्ष के साथ जीने जा रहे हैं.

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