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Updated: 02 अक्टूबर, 2016 11:46 AM
खुशदीप सहगल
खुशदीप सहगल
  @khushdeepsehgal
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पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में 28-29 सितंबर की रात को सर्जिकल स्ट्राइक्स पर हमारे देश की ओर से आधिकारिक तौर पर जो जानकारी दी गई, उस पर यकीन नहीं करने की कोई वजह नहीं है. पीओके में आतंकवादियों के 6 ठिकाने ध्वस्त किए गए और 'डबल डिजिट' में आतंकवादी मारे गए.

पाकिस्तान इस बारे में क्या कह रहा है, वो मायने नहीं रखता. पाकिस्तान सरकार और वहां की फौज का 28-29 सितंबर की रात के बारे में इतना ही कहना है कि LOC पर क्रॉस बॉर्डर फायरिंग हुई थी, जिसमें दो पाकिस्तानी सैनिक मारे गए. जहां पाकिस्तान का आधिकारिक स्टैंड ये है तो वहां का विपक्ष कुछ और ही राग अलाप रहा है. 30 सितंबर की रात को लाहौर से 40 किलोमीटर दूर पाकिस्तान के विपक्षी नेता इमरान खान की बड़ी रैली हुई.

इमरान ने 'भ्रष्टाचार' का मुद्दा उठाते हुए नवाज शरीफ कोको सत्ता से हटाने के लिए मुहिम छेड़ रखी है. इस रैली में इमरान के सहयोगी नेता शेख रशीद ने नवाज शरीफ पर आरोप लगाया कि इमरान की मुहिम को नाकाम बनाने के लिए सरहद पर तनाव गढ़ा गया है.खैर, पाकिस्तान में विपक्ष क्या कह रहा है, उससे क्या लेना? हमारे देश का विपक्ष इस मामले में मजबूती से एकजुट होकर सरकार के साथ खड़ा है.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि बीते ढाई साल में पहली बार उन्होंने प्रधानमंत्री लायक कोई काम किया. दो देशों के बीच तल्ख रिश्ते हों तो एक दूसरे के दावों को काटना और अपने हिसाब से तस्वीर पेश करना स्वाभाविक प्रक्रिया है, इसमें असामान्य जैसा कुछ नहीं है.

भारत की तरफ से कहा गया है कि सबूत के तौर पर सर्जिकल स्ट्राइक्स की वीडियोग्राफी मौजूद है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा. जरूरत पड़ने पर ही जारी किया जाएगा.

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 भारत का अभी सबूत सार्वजनिक न करने का फैसला कितना सही? 

भारत सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक्स की वीडियोग्राफी को फिलहाल जारी नहीं करने का फैसला किया है तो इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं. ये भी हो सकता है कि पाकिस्तान ने जब खुद ही स्टैंड लिया है कि सर्जिकल स्ट्राइक्स हुई ही नहीं तो वो LOC पर ऐसी कोई हिमाकत नहीं करेगा जिससे कि तनाव और बढ़े. ये स्थिति भारत को सूट करती है. ऐसे में सर्जिकल स्ट्राइक्स के सबूत पेश किए जाते हैं तो पाकिस्तान की सरकार और फौज पर वहां के आवाम की ओर से जवाबी कार्रवाई के लिए फिर दबाव बढ़ेगा.

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पाकिस्तान जहां कह रहा है कुछ नहीं हुआ वहीं संयुक्त राष्ट्र जा कर शिकायत भी कर रहा है कि भारत तनाव बढ़ा रहा है. संयुक्त राष्ट्र भी इसी लाइन पर चल रहा है कि एलओसी पर भारत की ओर से ऐसा कुछ नहीं किया गया है जिसका संयुक्त राष्ट्र नोटिस ले. संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के प्रवक्ता स्टीफ़ान दुजारिक ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र के सैन्य प्रेक्षक दल ने भारत और पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर कोई गोलीबारी सीधे तौर पर नहीं देखी है.

दुजारिक के मुताबिक सीजफायर के इन कथित उल्लंघन के बारे में खबरों से जानकारी मिली है. प्रेक्षक दल उस सिलसिले में संबंधित अधिकारियों से बातचीत कर रहा है. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र का सैन्य प्रेक्षक दल भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर 1971 में लागू किए गए संघर्ष विराम की निगरानी करता है.

वहीं, बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत सैय्यद अकबरउद्दीन ने संयुक्त राष्ट्र के दावों को ख़ारिज करते हुए कहा, 'जो तथ्य हैं वह किसी के देखने या न देखने से बदल नहीं जाते हैं और न ही किसी के मानने या न मानने से सच बदल जाता है. जो तथ्य हैं वह तो तथ्य ही रहते हैं और हमने तथ्य सामने रख दिए हैं और हम उसी पर कायम हैं.'

जिस तरह का घटनाक्रम चल रहा है, उसमें हो सकता है कि भारत की ओर से आधिकारिक तौर पर जल्दी ही सर्जिकल स्ट्राइक्स को लेकर और विस्तृत जानकारी दी जाए लेकिन इसके सबूत के तौर पर कोई वीडियोग्राफी या फोटोग्राफ्स जारी किए जाएंगे, इसकी संभावना कम ही है.

पीओके में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक्स के रोमांच में देश में दो और बातों पर कम ही ध्यान गया. सर्जिकल स्ट्राइक्स के कुछ ही घंटे बाद राष्ट्रीय राइफल्स का जवान चंदू बाबूलाल चव्हाण एलओसी पार कर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चला गया और वहां गिरफ्तार कर लिया गया. भारत की ओर से बयान दिया गया कि ये जवान आर्मी पोस्ट पर तैनात था और गलती से एलओसी पार कर गया और उसका सर्जिकल स्ट्राइक्स से किसी तरह का जुड़ाव नहीं था.

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि अपने जवान को वापस लाने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है. मीडिया में सूत्रों के हवाले से ऐसी रिपोर्ट भी आई कि चंदू बाबूलाल चव्हाण की सीनियर अधिकारी से बहस हुई थी और इसी के बाद वो नाराजगी में अपने हथियार के साथ एलओसी पार कर दूसरी तरफ चला गया. वहां पहुंचते ही पाकिस्तानी सैनिकों ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

सरहद पर जिस तरह का तनाव है, उसमें इस बात की संभावना कम ही है कि भारतीय जवान को पाकिस्तान आसानी से भारत के हवाले कर दे. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान चंदू बाबूलाल चव्हाण का हवाला देकर अपने हिसाब से कोई फर्जी कहानी गढ़े और उसे भारतीय जवान के कबूलनामे पर आधारित बताए.

पाकिस्तान उसी कहानी को यूएन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का प्रयास भी कर सकता है. इस घटनाक्रम के अलावा एक और बात हुई थी. 'द क्विंट' नाम की वेबसाइट ने उरी आतंकी हमले के ठीक एक दिन बाद 20 सितंबर को भी एलओसी पार जाकर भारतीय सेना के ऐसे ही 'सर्जिकल स्ट्राइक' के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की थी. लेकिन तब भारतीय सेना की और से उस रिपोर्ट का खंडन कर दिया गया था.

वेबसाइट के मुताबिक तब उस रिपोर्ट पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं और कुछ लोगों ने खबर की सत्यता पर भी सवाल उठाए. जबकि वेबसाइट ने कहा कि वो अपनी रिपोर्ट पर कायम है. इसके लिए उसकी ओर से भारत के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट रणबीर सिंह के गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए बयान का हवाला भी दिया- 'डीजीएमओ ने गुरुवार को बताया कि पाक अधिकृत कश्‍मीर में आतंकवादी कैंप को बर्बाद करने के लिए सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक किए गए हैं. ऐसा ही एक स्ट्राइक 28-29 सितंबर की रात को हुआ, जिसमें कई आतंकवादियों को मार गिराया गया.'

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वेबसाइट ने दावा किया है उसने नए हालात में फिर से पड़ताल कर 20 सितंबर को भारतीय सेना के एलओसी पार जाकर ऑपरेशन करने की स्टोरी को दुरुस्त पाया. हालांकि उसमें तथ्यात्मक कुछ त्रुटियां थी जिसे अब सुधार दिया गया है. वेबसाइट के मुताबिक पहले उसने 20 सितंबर के ऑपरेशन में स्पेशल फोर्स के पारा 2 के जवान शामिल बताए थे, जबकि हकीकत में पारा 9 के जवानों ने इसमें हिस्सा लिया था. वेबसाइट की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया था कि पीओके में स्थित तीन आतंकवादी कैंपों पर हमला किया गया था, जिसमें 10 से 12 आतंकवादियों को ढेर कर दिया गया था. हमारे जवानों को पूरे ऑपरेशन में कोई नुकसान भी नहीं हुआ था.

'द क्विंट' की सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट के मुताबिक हमारे जवान 20 सितंबर को पीओके की सीमा में 8 से 13 किलोमीटर तक अंदर गए थे. जब तक पाकिस्तान के हुक्मरानों को इस ऑपरेशन की जानकारी मिलती, तब तक काफी देर हो चुकी थी. तब ऐसी भी रिपोर्ट आई थी कि पाकिस्तान ने पूरे इलाके को 'नो फ्लाई जोन' घोषित कर दिया था. कुछ देर बाद पाकिस्तान की तरफ के उस इलाके में एफ-16 विमान की कई उड़ानें भरने की बातें भी कही गई थीं.

वेबसाइट की रिपोर्ट में सूत्रों से ऐसी जानकारी मिलने की बात कही गई थी कि उस ऑपरेशन के बाद मनसेहरा और मुजफ्फराबाद में बाकी बचे आतंकवादी कैंप को खत्म कर दिया गया या फिर वहां से हटा लिया गया था.

उस रिपोर्ट में 20 सितंबर की जिस घटना का हवाला दिया गया था, उसका भारत की ओर से आधिकारिक तौर पर खंडन किया गया, इसलिए उसे सच ना भी माना जाए, लेकिन एक बात हैरान करने वाली है. जिस तरह रिपोर्ट में 20 सितंबर के ऑपरेशन का जिक्र किया गया, कमोवेश वैसा ही सब कुछ 28-29 सितंबर की रात को सर्जिकल स्ट्राइक्स के दौरान भी हुआ. और इसकी जानकारी खुद डीजीएमओ ने गुरुवार को बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दी.

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,सबूतों का सार्वजनिक करना जरूरी है क्या?

ऐसे हालात में सवाल कुछ और भी है. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने में मोदी सरकार की कूटनीति अभी तक कारगर साबित हुई है. अब कश्मीर पर पाकिस्तान के झूठे विलाप को सुनने वाला अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कोई नहीं है. पाकिस्तान जिस तरह अब भारत के सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी बता रहा है, भारत पर तनाव बढ़ाने का आरोप लगा रहा है, इस पर उसे विश्व मंच पर बेनकाब करने के लिए भी मोदी सरकार के पास अच्छा मौका है.

भारत सरकार को सोचना है कि वो 28-29 सितंबर की रात को जो एलओसी के पार जाकर जो कुछ हुआ, उसके सबूतों को लेकर किस हद तक जाकर पारदर्शिता अपनाई जा सकती है. जाहिर है सेना की रणनीति या हितों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है, लेकिन दुनिया को विश्वसनीयता का संदेश देने के लिए सीमा में रह कर अगर कुछ सबूत सार्वजनिक किए जा सकते हैं तो उन्हें अवश्य किया जाना चाहिए.

ऐसा किया जाता है तो पाकिस्तान अपने मिथ्याप्रचार में नंगा होगा और मोदी सरकार का कद और बढ़ेगा, देश में भी और दुनिया में भी.

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लेखक

खुशदीप सहगल खुशदीप सहगल @khushdeepsehgal

लेखक आजतक में न्यूज़ एडिटर हैं

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