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Updated: 30 सितम्बर, 2016 06:30 PM
आर जगन्नाथन
आर जगन्नाथन
  @TheJaggi
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अभी तक तो सिर्फ बातें ही बातें थी. लेकिन गुरुवार 29 सितंबर को भारतीय सेना ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी कैंपों पर सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए बड़ी संख्या में आतंकवादियों को मार गिराया. इस स्ट्राइक में पाकिस्तानी सेना के कुछ जवान भी मारे गए. इस हमले को अंजाम देने में भारतीय सेना ने महज नियंत्रण रेखा को नहीं पार किया. सेना ने देश की राजनीतिक नेतृत्व द्वारा अभी तक उसपर थोपी गई ‘रणनीतिक रेखा’ को भी लांघ लिया.

इस रणनीतिक रेखा का आशय कुछ न करते हुए पाकिस्तान समर्थित जिहादियों के खिलाफ सुरक्षात्मक रवैया अपनाने का था. इसे लांघने की स्वीकृति देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने उस वादे को पूरा कर दिया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि उरी हमले के गुनहगारों को सजा जरूर दी जाएगी. उरी हमले में सेना के 18 जवान शहीद हुए थे.

सेना का यह हमला पाकिस्तान के प्रति हमारे दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव है. इसे हम मोदी सिद्धांत (डॉक्ट्राइन) की संज्ञा दे सकते हैं जिसका मकसद पाकिस्तान के खिलाफ पूर्ण युद्ध के फैसले से पहले की रणनीतिक कार्रवाई है. यह नीति पाकिस्तान की उस नीति का मुंह तोड़ जवाब देने के लिए है जहां वह जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैय्यबा जैसे आतंकी संगठनों का इस्तेमाल कर भारत को हजारों घाव देकर लहूलुहान रखना चाहता है. और खासतौर पर यह नीति हमारी उसी पुरानी नीति को लांघना है जिसके तहत हम कायरता और न्यूक्लियर खतरे के डर से ग्रस्त देश थे.

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जरा इस कार्रवाई के निहितार्थ पर गौर करें-

1. भारत ने पाकिस्तान के न्यूक्लियर हमले के झांसे और ब्लैकमेल को धता कर दिया. यह झांसा पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने कार्रवाई के महज 24 घंटे पहले देने की कोशिश की थी.

2. नियंत्रण रेखा जिसे भारतीय सेना और एयर फोर्स के दबाव के बावजूद कारगिल युद्ध के समय भी नहीं पार किया गया था, उसे अंतत: पार कर लिया गया है. यह कार्रवाई इस दावे के साथ की गई कि यह आतंकवाद के खिलाफ पाक अधिकृत कश्मीर और न कि पाकिस्तान में अंजाम दी गई. लिहाजा, वाजपाई की खींची रेखा को भी इस कार्रवाई से लांघ लिया गया.

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 नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ

3. अब भारत ने स्वीकार कर लिया है कि इस कार्रवाई के बाद उसे पाकिस्तान से और अधिक आतंकी वारदातों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि यह मानना गलत होगा कि पाक अधिकृत कश्मीर में सेना के इस ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान चुप बैठेगा. पाकिस्तानी सेना की ‘पंजाबी मर्दानगी’ इस बात को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती. बहरहाल मोदी सिद्धांत इस बड़े खतरे को मोल लेने के पक्ष में है क्योंकि अभी तक ऐसे हमलों का जवाब न देने के चलते ही पाकिस्तान लगातार नए-नए हमलों को अंजाम देता रहा है. इस नीति से कम से कम पाकिस्तान को इन आतंकी हमलों की कीमत अदा करना पड़ेगी. लिहाजा, भारत को अब अपने शहरों और खासतौर पर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के एक नए दौर के लिए तैयार रहना होगा. इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तान कश्मीर घाटी की मौजूदा स्थिति का फायदा उठाते हुए सेना के पीछे युद्ध का एक और फ्रंट खोलने की पूरी कोशिश करेगा.

4. नियंत्रण रेखा पर कार्रवाई और मौजूदा सरकार का सार्क अधिवेशन बहिष्कार और सिंधु जल समझौते का रिव्यू करने का फैसला भी पुरानी नीतियों से अलग है. भारत अब पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार को शांति के रास्ते पर आगे बढ़ने में सक्षम नहीं पाती. इसीलिए कोझिकोड की जनसभा से प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान की अवाम से सीधा संवाद करते हुए गरीबी, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भारत से लड़ने की चुनौती दी. प्रधानमंत्री मोदी का यह निष्कर्ष उचित है कि पाकिस्तान की तथाकथिक सरकार से वार्ता करना महज समय की बर्बादी करना है क्योंकि वहां वास्तविक सत्ता कहीं और है. लिहाजा, नियंत्रण रेखा की यह कार्रवाई पाकिस्तानी अवाम को यह बताने के लिए थी कि यह उनकी अपनी सेना की गलत नीतियों का नतीजा है. अब यह नीति भले काम न करे लेकिन यह कोशिश करने की जरूरत थी.

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5. अंत में, शायद सबसे महत्वपूर्ण परिधि मानसिक स्तर पर लांघी गई है. जहां भारत ने हमेशा अपने वैश्विक लक्ष्यों को पाने के लिए एक आदर्श किरदार अदा करने की कोशिश की है. इन लक्ष्यों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता और न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में शामिल होना है. इन दोनों कोशिशों को चीन ने बाधित कर रखा है. लिहाजा, नियत्रंण रेखा लांघ कर भारत ने दुनिया को साफ कर दिया है कि अब उसे ऐसे आदर्श किरदार की जरूरत नहीं जिसका नतीजा बढ़ते हुए आतंकी हमले हों. इसके अलावा यह इस एहसास का भी सूचक है कि कोई महान शक्ति महज सबको खुश रखने की नीति पर चलकर महान नहीं बनती. वह महान महज आर्थिक और सैन्य क्षमता को बढ़ाकर बनती हैं. यही चीन का महान शक्ति बनने का कारण है और अब प्रधानमत्री मोदी को अहसास हो चुका है कि दुनिया ताकत को सलाम करती है कमजोरी को नहीं.

मोदी सरकार ने यह हमला करने के लिए समय भी ऐसा चुना है जब वैश्विक बयार राज्य प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ है. और इस वक्त विश्व की बड़ी शक्तियां भी यूरोप और पश्चिम एशिया में आतंकवाद के खिलाफ अपना-अपना युद्ध लड़ रही हैं. लिहाजा वह भी भारत की ऐसी किसी कार्रवाई में तब तक दख्लंदाजी नहीं करेगा जब तक वह पूर्ण युद्ध के लक्षण न दिखा दे.

अब यह कोई इत्तेफाक नहीं कि ऐसी कार्रवाई से ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा से क्षुब्ध समुदाय को विकास का सीधा फायदा पहुंचाने के लिए मुस्लिम पंचायत (प्रोग्रेसिव पंचायत) कार्यक्रम की शुरुआत की. इस कदम से मोदी सरकार ने देश में मुस्लिम कट्टरपंथ के पनप रहे खतरे को सीधे संबोधित करने का कदम उठाया है.

जाहिर है यह मोदी सिद्धांत के शुरुआती दिन हैं. इसकी असली चुनौती तब सामने आएगी जब आतंकवाद में इजाफा देखने को मिलेगा. इस सिद्धांत को दुरुस्त करने का मौका आधारित होगा इस हमले पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया पर. लिहाजा नतीजों के आधार पर इस सिद्धांत को लगातार सुधारने की जरूरत रहेगी. लेकिन एक बात आइने की तरह साफ है कि नियंत्रण रेखा पर यह कदम भारत-पाकिस्तान के रिश्ते में अब किसी मखमली दस्ताने की तरह न होकर एक फौलादी हाथ की तरह है. यह कदम सुरक्षात्मक न होकर सुरक्षात्मक-रक्षात्मक है.

(य‍ह लेख सबसे पहले हफिंगटन पोस्ट पर प्रकाशित हुआ है)

लेखक

आर जगन्नाथन आर जगन्नाथन @thejaggi

एडिटर, स्वराज्य

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