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Updated: 14 अगस्त, 2019 10:42 PM
अरिंदम डे
अरिंदम डे
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पाकिस्‍तान के राष्ट्रपति आसिफ अल्वी ने कहा कि भारत ने शिमला समझौता तोड़ा है. अब उसके खिलाफ जिहाद हो सकता है. तो 1947 से अब तक क्या हो रहा था? 1999 में कारगिल में क्या हुआ था? पाकिस्तान तो अपने शहीदों की लाश उठाने भी नहीं आया. अभी भी सीमा पे 4-6 बॉर्डर एक्शन टीम वाले पड़े हुए हैं. फौज की शहादत तो स्वीकार कर नहीं सकते, जिहाद करने चले हैं.

ठीक ही है, कम से कम अपनी बौखलाहट में यह तो मान लिया कि कश्मीर में शरारत के पीछे पाकिस्तान ही है, हमेशा से था. वैसे तो जगजाहिर है पर इकबाल-ए-जुर्म अलग ही मज़ा देता है. पाकिस्तान ने सिर्फ भारत ही में जिहाद की आग नहीं लगाई, पूरे एशियाई महादेश में कहीं भी कोई आतंकी हलचल हो तो उससे कहीं न कहीं पाकिस्तान की कड़ी जुड़ी होती है- श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल. अब नॉन स्टेट एक्टर के नाम पे कब तक काम चलाएंगे?

आतंक और आतंकी पाकिस्तान के लिए बेशकीमती सियासी मोहरे हैं. इसका इस्तेमाल सिर्फ भारत के खिलाफ ही नहीं होता. ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल जैसे कई रंगमंचों में इनका नाटक हमेशा जारी रहता है. सिर्फ भारत ही नहीं यह सारे पड़ोसी भी पाकिस्तान की हरकतों से तंग आ चुके हैं. अब समय है कि इसके खात्मे की शुरुआत हो.

pakistan imran khanआतंक और आतंकी पाकिस्तान के लिए बेशकीमती सियासी मोहरे हैं

पाकिस्तान ने वैसे अमेरिका का भी इस्तेमाल ही किया है. पहले भारत से खतरे के नाम पर हथियार और आर्थिक मदद ऐंठी, और आजकल अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान से करार की कीमत रखी है कश्मीर में अमरीका का दख़लंदाजी. अमेरिका ने मना कर दिया तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और आज राष्ट्रपति की जुबां फिसलने लगी है, वैसे नियत में तो हमेशा ही से खोट था. हर बार जवाब मिला है. करारा जवाब मिला है लेकिन पाकिस्तान तो पाकिस्तान ही है.

दुनिया भर में नंबर लगा लगा के खान साहेब को तो इतना पता लग ही गया होगा कि बहुत सारे मुल्क उनके साथ खड़े नहीं हैं. उस तरफ कोई कश्मीरी खड़ा नहीं है. उनकी बात नहीं हो रही है जिन्होंने सात दशक से राजनीति के नाम पर कश्मीर पर राज किया है. 'आज़ादी' की आग में कश्मीर के नौजवानो को झोंका है और अपनी दुकान चलाई है. ऐसे अभी भी हैं, और आगे भी रहेंगे. यह कश्मीर के युवाओं के हाथ में राइफल, पत्थर और आखीर तक मौत देंगे. अगर कश्मीर नहीं जला, उसके युवाओं को काम मिल गया, उनमें बौखलाहट खत्म हो गई, तो उनकी दुकान कैसे चालू रहेगी? आईएसआई का एजेंडा कैसे बिकेगा? हम उन कश्मीरियों की बात कर रहे हैं जिनका रोज़ी रोटी दशकों के आतंकवाद के चलते लगभग खत्म हो गई है. उन स्कूली बच्चों की बात हो रही है जिनकी आंखों में उम्मीद नहीं- इन 'आज़ादी' के ठेकेदारों ने सिर्फ खौफ दिया है. एक पुलिस और फौज छोड़ के कोई खास नौकरियां नहीं बची हैं. यह किया है धारा 370 ने इतने सालों से. खौफ, मुफलिसी और मौत बांटी है.

कश्मीर में कश्मीरियों को बराबर का मौका देने की दिशा में धारा 370 का हटाना सिर्फ पहला कदम था. आगे जो दूरी 70 साल में बनी है, उसको मिटने में तो कुछ वक़्त ज़रूर लगेगा. लेकिन एक दिन कश्मीर देश के ताज जैसा ही चमकेगा, थोड़ा इंतज़ार कीजिये.

इतना प्यार है धारा 370 से तो अपनी तरफ क्यों नहीं लागू करवा लेते? या बलोचों को या फिर पश्तूनों को क्यों नहीं 'स्पेशल स्टेटस' दे देते? मुज़फ़्फ़राबाद में?? नहीं?? नहीं कर पाएंगे, आप सिर्फ खौफ बेचते है, हक़ नहीं.

रही इमरान खान साहब की या उनका प्रेजिडेंट साहब की धमकी तो पाकिस्तान वही करेगा जो वह हमेशा से करता आया है. आतंक का कारखाना कयामत तक चलता रहेगा. सवाल यह है कि कयामत कितनी दूर है?

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लेखक

अरिंदम डे अरिंदम डे @arindam.de.54

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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