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Updated: 18 जुलाई, 2018 05:16 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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देश के बंटवारे के वक्त भारत से पाकिस्तान जा रहे मुसलमान भाइयों को लगता था कि वे सीधे जन्नत में चले जा रहे हैं. वहां जाते ही बसरे की हूरें उनका स्वागत करेंगी. पर वहां पर इन्हें जन्नत की हकीकत जल्द ही समझ में आ गई. ये ही वे लोग थे जो पाकिस्तान के लिए चलाए गए सांप्रदायिक आंदोलन को खाद-पानी दे रहे थे. पर इन्हें वहां जल्दी ही दोयम दर्जे का नागरिक समझा ही नहीं जाने लगा, बल्कि उनकी औकात भी अच्छी तरह बता दी गई. यह स्थिति आजकल पाकिस्तान में नेशनल असेंबली (संसद) के लिए हो रहे आम चुनावों की कैंपेन में भी साफतौर पर दिखाई दे रही है. यूपी, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार वगैरह प्रान्तों से पाकिस्तान में गए लोगों को उधर 'मुहाजिर' कहा जाता है. मुहाजिरों में 70 फीसदी से अधिक आबादी तो यूपी वालों की ही है. इसलिए इन्हें 'यूपी वाला' भी कहा जाता है, जो पाकिस्तान में एक नस्लीय गाली है. सन 1947 के बाद मुहाजिर सिंध के शहर कराची और हैदराबाद में जाकर बसे थे. मुहाजिरों का कराची और सिंध में राजनीतिक दृष्टि से हमेशा से प्रभाव रहा है. कभी ये सिंध की सियासत को भी तय करते थे. पर अब वो बात नहीं रही.

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नजरअंदाज किया बड़े दलों ने

मुहाजिरों को अब वहां पर तीन बड़ी पार्टियों क्रमश: पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी), पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) और पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) ने पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है. वहां पर चुनाव आगामी 25 जुलाई को है, पर अभी तक उक्त तीनों दलों का कोई भी नेता मुहाजिरों के वोट मांगता नहीं दिख रहा है. स्थिति इतनी खराब है कि पीएमएल के नेता और प्रधानमंत्री पद के दावेदार शाहबाज शरीफ ने अपनी एक हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में व्यंग्यात्मक लहजे में यहां तक कहा कि 'वे पान खाने वाले कराची को लाहौर की तरह (खूबसूरत) बना देंगे.' जाहिर है, 'पान खाने वालों' से उनका इशारा यूपी, बिहार से जाकर बसे मुहाजिरों से ही था. वे जिस भाव से ये सब कह रहे थे, उसे देखकर समझ आ रहा था कि वहां पर अब मुहाजिरों की हालत वास्तव में बेहद खराब है.

शरीफ व्यंग्य कसते हुए कह रहे थे और तमाम पत्रकार उनकी बातें सुनकर ठहाके भी लगा रहे थे. भारत में तो किसी भी पार्टी का कोई नेता किसी समाज विशेष को लेकर इस तरह की अपमानजनक तथा नकारात्मक टिप्पणी करने के संबंध में सोच भी नहीं सकता. पर हाल तक देश के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ के अनुज शहबाज, जो खुद पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री थे, इस तरह की अशोभनीय टिप्पणी सरेआम कर रहे थे. इमरान खान भी मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी (एमक्यूएम) को 'हत्यारों की पार्टी' कहने से नहीं चूकते ये. वे भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे हैं. उन्हें सेना का समर्थन बताया जा रहा है, इसलिये उनका दावा भी मजबूत है. हालांकि, उनकी एक पूर्व पत्नी द्वारा उनके पांच नाजायज बच्चों को लेकर जो खुलासा हुआ है उससे मामला थोडा गर्माया हुआ है.

दरअसल, मुहाजिरों की इस बार स्थिति इसलिए और खराब है, क्योंकि उनके हितों के लिए संघर्ष करने वाली एमक्यूएम पार्टी अब तीन धड़ों में बंट चुकी है. इसके अलावा कई नेताओं ने देश भी छोड़ दिया है. इस बार एमक्यूएम उस जुझारू तरीके से चुनाव नहीं लड़ रही है, जिस तरह से वो अब तक लड़ा करती थी, अपने एकछत्र नेता अल्ताफ हुसैन के नेतृत्व में. इसकी शक्ति का क्षीण होना साफ तौर पर दिखाई दे रहा है.

एक बात तो माननी ही होगी कि पाकिस्तान सरीखे बंद और कट्टरपंथी अन्धविश्वासी समाज और घोर इस्लामिक देश में भी एमक्यूएम ने अपने धर्मनिरपेक्ष चरित्र को कुछ हद तक बचा कर रखा है. ये पाकिस्तान का कमोबेश एक धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल माना जा सकता है. फिलहाल यह सिन्ध सूबे का दूसरा सबसे बड़ा दल है, जिसके पास 130 में से 54 सीटें हैं. इसी तरह से यह पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में चौथी सबसे बड़ी पार्टी है. कराची में इसका आधार बहुत तगड़ा है. पर अब तो यह सब गुजरे दौर की बातें लग रही हैं.

इस बीच, एमक्यूएम के सभी धड़े दावा कर रहे हैं कि उन्हें अल्ताफ हुसैन का आशीर्वाद प्राप्त है. पर लंदन में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे अल्ताफ हुसैन तो खुलेआम चुनाव का बहिष्कार करने का आह्वान कर रहे हैं. इस बाबत उनका एक वीडियो इन दिनों खूब वायरल भी हो रहा है. उन्होंने प्रस्तावित चुनावों को जनरल इलेक्शन (आम चुनाव) न होकर 'जनरल्स' इलेक्शन (सेना प्रमुखों द्वारा प्रायोजित चुनाव) बताया है. उन्होंने कहा है कि यह चुनाव सेना के प्रमुख द्वारा आयोजित किए जाने हैं और परिणाम सेना के जनरलों की निगरानी में ही तैयार किए जाएंगे. वे जब बोलते हैं, तो लगता है कि मानो कोई ठेठ यूपी-बिहार का नेता ही बोल रहा हो. उनकी भाषा में यूपी की माटी की गंध है.

निराशा-अवसाद में मुहाजिर

मुहाजिरों का एक बड़ा तबका चुनावों को लेकर कतई उत्साहित नहीं है. इनकी सबसे बड़ी शिकायत यह है कि इनकी केन्द्र सरकार और सिंध सरकार की नौकरियों में भागेदारी तेजी से घटती ही चली जा रही है. केन्द्र सरकार की नौकरियों में ये अब मात्र दो फीसदी के आसपास रह गए हैं, जबकि सिंध सरकार की नौकरियों में ये सात-आठ फीसद हैं. हालांकि, ये पाकिस्तान की आबादी का लगभग 10 फीसदी हैं, सिंध की जनसंख्या का तो 22 फीसदी से कुछ अधिक हैं. पाकिस्तान की कुल आबादी वर्तमान में लगभग 21 करोड़ के आसपास है.

दरअसल पाकिस्तान में मुहाजिरों के साथ भेदभाव और अत्याचारों का क्रम तो जुल्फिकार अली भुट्टो के प्रधानमंत्रित्व काल से ही चल रहा है. उन्होंने 1970 में कराची में मार्शल लॉ लगवाकर इनका सरेआम कत्लेआम किया था. पर अब तो इनके लिए स्थितियां वास्तव में बेहद कठोर होती जा रही हैं. विगत वर्ष अल्ताफ हुसैन ने संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, नाटो और यहां तक कि भारत से मदद मांगी थी, ताकि मुहाजिरों के वजूद को खत्म होने से बचाया जा सके. एमक्यूएम के अमेरिका के शहर डलास (टेक्सास) में आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए अल्ताफ हुसैन ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान की पंजाबी बहुमत वाली आर्मी मुहाजिरों को फर्जी मुठभेड़ों में मार रही है.

अल्ताफ हुसैन ने डलास की सभा में बार-बार भारत का जिक्र किया. कहा था, 'मुहाजिर मूल रूप से भारत से हैं. इसलिए भारत को उनके हकों के लिए मानवीय आधार पर बोलना चाहिए.' अल्ताफ हुसैन ने अपने लंबे गर्मा-गर्म भाषण में पाकिस्तान सेना की 1971 की भारत से जंग में पराजय पर खिल्ली भी उड़ाई थी. इस कठोर टिप्पणी से तो पाकिस्तान की सरकार और सेना को आग लग गई है. बस तब से ही मुहाजिर सेना के निशाने पर हैं.

बहरहाल, इस आम चुनाव में एमक्यूएम (पाकिस्तान), एमक्यूएम (हकीकी) और पाकिस्तान सरजमीं पार्टी अपने को मुहाजिरों की खेवनहार बता रही हैं. हालांकि, इनका चुनाव प्रचार कमजोर और पिलपिला है. इनकी सभाओं में मुहाजिर भी पर्याप्त संख्या में नहीं जुटते. अब ये पाकिस्तान समाज का एक बेहद गरीब और असहाय तबका बन चुका है. ये अशिक्षा के भी शिकार हैं. पाकिस्तान में कई पीढ़ियां रहने के बाद भी इनकी हालत खराब ही है. ये अधिकतर कराची की गुज्जर नाला, ओरंगी टाउन, अलीगढ़ कॉलोनी, बिहार कॉलोनी और सुर्जानी इलाकों में जीवन बिताने को अभिशप्त हैं. यानी अभी तक न इनके मकान हैं न रोजगार, तो ये जिन ख्वाबों को लेकर पाकिस्तान गए थे, वे तो टूट चुके हैं. जन्नत के ख्वाब लेकर गए और सीधे जहन्नुम में पहुंच गए.

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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