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Updated: 17 जुलाई, 2018 06:55 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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जिस समय बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जय प्रकाश सिंह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर जुबानी हमले कर रहे थे, तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि इसका उन्हें कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. पार्टी सुप्रीमो मायावती ने राहुल गांधी को अपशब्द कहने पर जय प्रकाश को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. अब सोचने की बात है कि क्या बसपा में लोकतंत्र नहीं है? कोई विपक्षी पार्टी या उससे होने जा रहे गठबंधन के खिलाफ अपनी बात नहीं रख सकता है? वहीं दूसरी ओर, ये भी देखा जा सकता है पार्टी अपनी रणनीति को सर्वोपरि रखती है और आने वाले चुनावों के मद्देनजर एक सख्त कदम उठा सकती है. खैर, ये बात बसपा की थी, इसलिए मायावती ने एक झटके में अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष को निकाल बाहर किया, लेकिन क्या कांग्रेस में भी ऐसा कुछ होता है? या हो सकता है?

राहुल गांधी पर की थी विवादित टिप्पणी

जय प्रकाश ने राहुल गांधी के मां-बाप पर विवादित टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था- 'अगर राहुल गांधी राजीव गांधी पर चला जाता तो एक बार को राजनीति में सफल हो जाता, लेकिन वो अपनी मां पर चला गया, वो विदेशी है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि राहुल गांधी कभी भारतीय राजनीति में सफल नहीं हो सकता.'

मायावती ने बताया कल्चर के विरुद्ध

मायावती ने साफ-साफ कहा कि जय प्रकाश सिंह ने राहुल गांधी के खिलाफ टीका-टिप्पणी करते हुए काफी अनर्गल बातें कही हैं, जो पार्टी के कल्चर के विरुद्ध है. इन सबका बसपा से कोई लेना देना नहीं है, ये जय प्रकाश की खुद की सोच है. यह सब पार्टी की नीतियों के विरुद्ध होने की वजह से नवनिर्वाचित राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जय प्रकाश को बर्खास्त कर दिया गया है.

क्या कांग्रेस भी ऐसा करती?

आपको याद ही होगा एक बार सलमान खुर्शीद ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी पर मुसलमानों के खून के दाग हैं, जिस पर राहुल गांधी ने कहा था कि यह उनके अपने विचार हैं, बावजूद इसके वह सलमान खुर्शीद का बचाव करेंगे. उन्होंने साफ किया था कि पार्टी में सबकी अलग-अलग राय हो सकती है. मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह और शशि थरूर जैसे लोगों को विवादित बयानों के बावजूद पार्टी में रहना ये दिखाता है कि कांग्रेस पार्टी के कायदे कानून बसपा जैसे सख्त नहीं है. जैसे बसपा ने राहुल गांधी के खिलाफ बोलने वाले नेता को पार्टी से निकाल बाहर किया, जरूरी नहीं कि कांग्रेस भी ऐसा कुछ करती. हर पार्टी अपने हिसाब से चीजों के प्राथमिकता देती है. जय प्रकाश के मामले में बसपा ने पार्टी की रणनीति को प्राथमिकता दी है.

भाजपा और बसपा की सख्ती में फर्क

देखा जाए तो जैसे सख्ती बसपा सुप्रीमो मायवती ने गलत बयानबाजी के खिलाफ दिखाई है, वैसी सख्ती भाजपा में भी देखी गई है, लेकिन दोनों में थोड़ा फर्क हो जाता है. बसपा में मायावती ही सर्वोपरि हैं, यानी जो वह कहेंगी, वही होगा. वहीं दूसरी ओर, भाजपा में सारा कंट्रोल किसी एक शख्स के हाथ में नहीं है. ऐसे में अगर भाजपा का कोई नेता पार्टी के खिलाफ बयानबाजी करता भी है तो उसे पार्टी से निकाला तो नहीं जाता, लेकिन जाहिर तौर पर किनारे जरूर कर दिया जाता है. यानी पार्टी उसके बयानों से खुद को अलग कर देती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से किसी को पार्टी से निकालने जैसा ही है. शत्रुघ्न सिन्हा इसके जीते-जागते उदाहरण हैं.

मायावती ने इस रणनीति के तहत निकाला जय प्रकाश को

यूं तो यह बात माथा ठनका सकती है कि आखिर विपक्षी पार्टी के खिलाफ किसी नेता की बयानबाजी पर बसपा ने उस नेता को क्या निकाला? अब थोड़ा आगे की सोचिए. मध्य प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं. कुछ समय में लोकसभा चुनाव भी सिर पर होंगे. ऐसे में, बसपा ये अच्छे से समझती है कि भाजपा को टक्कर देने के लिए वह अकेली काफी नहीं होगी. मायावती ने पार्टी की रणनीति को सर्वोपरि रखते हुए जय प्रकाश को निकाल दिया है. मायावती नहीं चाहती हैं कि भविष्य में गठबंधन की संभावनाएं उनके किसी नेता की वजह से पानी में मिल जाएं. वैसे भी मायावती काफी समय से सत्ता से बाहर हैं और वह किसी भी तरीके से सत्ता में वापसी की संभावनाएं तलाश कर रही हैं.

जय प्रकाश जैसी बयानबाजी करने वाले नेता को पार्टी से निकालना बसपा के लिए अनुशासन है. वहीं दूसरी ओर इस तरह बयानबाजी से पार्टी की छवि को नुकसान होने के बावजूद उन्हें पार्टी में ही रखना कांग्रेस के लिए लोकतंत्र जैसा हो जाता है. हालांकि, किसी की गलत बयानबाजी के बावजूद उसे पार्टी से न निकालने के पीछे वाकई सबको बोलने की आजादी देना है या फिर कोई मजबूरी, तो कहा नहीं जा सकता. लेकिन जो काम बसपा ने किया है, वह सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए एक अच्छा संदेश है. गलत बयानबाजी भले ही पार्टी के खिलाफ हो या विपक्षी पार्टी के खिलाफ, ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए.

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