New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 12 जुलाई, 2021 04:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के सौरव गांगुली (Saurav Ganguli) के घर जाकर बर्थडे विश करने के सियासी मतलब निकाले जाने के कारण तो हैं ही. ममता बनर्जी जन्मदिन की बधाई तो सौरव गांगुली को हर साल देती रही हैं, लेकिन पहली बार घर पहुंच जाने का फैसला किया. ममता बनर्जी ने ही एक बार कहा था कि जब राजनीति के लोग मिलेंगे तो बातें कैसे अलग होंगी, बातें तो राजनीतिक की होंगी ही.

पश्चिम बंगाल बीजेपी (BJP) अध्यक्ष दिलीप घोष ने भी बिना किसी लाग लपेट के त्वरित टिप्पणी कर डाली थी - 'भले ही ममता बनर्जी सौरव गांगुली के जन्मदिन पर गई हों लेकिन राजनेता राजनीति नहीं छोड़ सकते.'

बर्थडे के मौके पर सौरव गांगुली और ममता बनर्जी की मुलाकात को लेकर लगाये जा रहे कयासों को हवा देने में दिलीप घोष भी पीछे नहीं रहे - और सीधे सीधे बोल भी दिया - अगर तृणमूल कांग्रेस से सौरव गांगुली को राज्य सभा भेजा जाता है तो बीजेपी को कोई आपत्ति नहीं होगी.

हालांकि, अब खबर आ रही है कि सौरव गांगुली ने विनम्रता के साथ ममता बनर्जी का ऑफर ठुकरा दिया है. पहले खबर ये आयी थी कि ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस की खाली हुई राज्य सभा की दो सीटों में से एक पर सौरव गांगुली और दूसरी पर बीजेपी से कांग्रेस में पहुंचे - और अब तृणमूल कांग्रेस की तरफ रुख कर चुके शत्रुघ्न सिन्हा को भेजने का फैसला किया था. शत्रुघ्न सिन्हा के 21 जुलाई को टीएमसी ज्वाइन किये जाने की भी चर्चा चल रही है. बीजेपी में मोदी-शाह के खिलाफ बगावत करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा के एक पुराने साथी यशवंत सिन्हा तो पहले ही तृणमूल कांग्रेस का अध्यक्ष बन चुके हैं और अब राष्ट्रमंच के बैनर तले विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश में लगे हुए हैं.

वैसे भी जब केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी जैसी ताकतवर पार्टी नेतृत्व सौरव गांगुली को महत्व दे रहा हो, तो भला वो ममता बनर्जी के चक्कर में क्यों पड़ें? अगर ममता बनर्जी वास्तव में राजनीतिक मकसद से ही सौरव गांगुली के घर गयीं थी, तो इतना तो मालूम होना ही चाहिये था कि जब तक दिल्ली में तृणमूल कांग्रेस नेता की दस्तक जोरदार तरीके से महसूस नहीं की जाती - भला कोई भी क्यों भाव देगा और वो तो सौरव गांगुली ही हैं.

गांगुली टीएमसी का राज्य सभा सांसद क्यों बनें?

बर्थडे की बधाई देने से पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सौरव गांगुली से अस्पताल जाकर भी मुलाकात की थी. तब सौरव गांगुली की हार्ट अटैक हुआ था और वो अस्पताल में भर्ती हुए थे. तब तो सौरव गांगुली को देखने पश्चिम बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़ भी अस्पताल पहुंचे हुए थे.

ये तभी की बात है जब पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए चुनावी माहौल जोर पकड़ रहा था - और तबीयत खराब होने से कुछ ही दिन पहले सौरव गांगुली ने राजभवन जाकर राज्यपाल से मुलाकात की थी.

वो मुलाकात इसलिए भी खासी चर्चित हो गयी क्योंकि राज्यपाल से मिलने के ठीक बाद सौरव गांगुली दिल्ली पहुंचे और एक कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई. वो कार्यक्रम दिल्ली में बीजेपी के नेता रहे अरुण जेटली की मूर्ति के अनावरण का रहा. सौरव गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष होने के नाते पहुंचे थे और अमित शाह बीजेपी नेता होने की वजह से. वेन्यू क्रिकेट एसोसिएशन का रहा जिससे अरुण जेटली बरसों तक जुड़े रहे.

saurav ganguli, mamata banerjeeसौरव गांगुली को ममता बनर्जी की तरफ से राज्य सभा सदस्यता का ऑफर उनके लेवल का तो नहीं ही लगा होगा!

पहले जगदीप धनखड़ और फिर अमित शाह से मुलाकात के बाद सौरव गांगुली के बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा होने लगी, लेकिन न तो सौरव गांगुली और न ही बीजेपी की तरफ से किसी ने भी गोल मटोल बातों को छोड़ कर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया.

लेकिन तभी अचानक सौरव गांगुली की तबीयत खराब हो गयी. कई दिन अस्पताल में बिताने पड़े और फिर मामला टल गया. बीजेपी ने भी किसी को भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में ही चुनाव लड़ने का फैसला किया.

ममता बनर्जी के सौरव गांगुली को राज्य सभा का ऑफर दिये जाने की खबर भी सूत्रों के हवाले से ही आयी है - और सौरव गांगुली के ऑफर विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिये जाने की भी - अब तक न तो ममता बनर्जी की तरफ से ही और न ही सौरव गांगुली की तरफ से इस बारे में कोई आधिकारिक बयान आया है.

वैसे सौरव गांगुल को राज्य सभा भेजे जाने का ममता बनर्जी की तरफ से दिया गया ऑफर अपनेआप में ही बचकाना लगता है. बीजेपी नेतृत्व की तरफ से सौरव गांगुली को अब तक जितना महत्व मिलता आ रहा है, राज्य सभा उनके लिए जाना कोई मुश्किल है क्या? बीजेपी जब चाहे जहां से चाहे सौरव गांगुली को राज्य सभा भेज सकती है.

अगर सौरव गांगुली बीजेपी की तरफ से राज्य सभा जाते भी हैं तो वो सत्ता पक्ष के दबदबे के साथ कहीं भी खड़े होंगे - तृणमूल कांग्रेस की तरफ से गये तो जब जब डेरेक ओ ब्रायन बोलेंगे सदन के बहिष्कार के लिए एक इशारे का इंतजार करते रहना होगा.

दिल्ली में ममता का दखल बढ़ा तो गांगुली भी लोहा मानेंगे

ऐसा भी नहीं कि सौरव गांगुली बीजेपी नेताओं के आगे ममता बनर्जी को आगे भी ऐसा ही समझेंगे - ये तो सत्ता की हनक होती है जो वक्त के साथ अहमियत बदल देती है. मुमकिन है आज मोदी-शाह का दिल्ली में दबदबा है और कल ममता बनर्जी का भी हो सकता है.

ममता बनर्जी खुद भी इसी जुगाड़ में जुटी हैं कि कैसे दिल्ली की राजनीति में उनका दखल बढ़े. ममता बनर्जी ने अपना राजनीतिक भविष्य सुनिश्चित करने के लिए ही, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ कॉन्ट्रैक्ट 2026 तक के लिए बढ़ा दिया है - और वो लगातार काम में लगे हुए हैं.

अभी अभी ममता बनर्जी को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने के मकसद से ही प्रशांत किशोर ने तृणमूल कांग्रेस नेता के साथ तीन घंटे तक मीटिंग की है. ममता बनर्जी से इस मुलाकात से पहले वो शरद पवार से एक पखवाडें के भीतर तीन बार मिल चुके हैं - और दिल्ली में शरद पवार के ही घर पर यशवंत सिन्हा के संयोजकत्व में विपक्षी दलों के नेताओं की मीटिंग भी हो चुकी है. कांग्रेस को एंट्री नहीं दिये जाने के बाद कमलनाथ भी सोनिया गांधी के मैसेज के साथ शरद पवार से एक मुलाकात कर चुके हैं - और शरद पवार का बयान भी आ चुका है कि बगैर कांग्रेस के विपक्ष का कोई गठबंधन खड़ा करना मुनासिब ही नहीं है.

सौरव गांगुली की भी तो ममता बनर्जी की नयी मंजिल को लेकर सक्रियता पर नजर होगी ही. सौरव गांगुली ने भी सुना ही होगा कि कैसे ममता बनर्जी ने मोदी-शाह को चैलेंज किया था कि एक पैर से कोलकाता जीतेंगे और दो पैरों से दिल्ली. ये तब की बात है जब ममता बनर्जी के एक पैर में चोट के बाद प्लास्टर लगा हुआ था.

ममता बनर्जी के दिल्ली जीतने के दो अर्थ हुए. एक तो बीजेपी नेतृत्व को केंद्र की सत्ता से बेदखल करना - और दूसरा, लगातार तीन बार चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज होना.

2019 के आम चुनाव में भी ममता बनर्जी प्रधानमंत्री पद के विपक्षी खेमे के दावेदारों में से एक थीं - और विपक्ष के जो नेता तब उनके साथ खड़े नजर आये, एक बार फिर वो उनके साथ हो गये हैं. चुनावों के दौरान जब भी ममता बनर्जी दिल्ली दौरे पर होतीं विपक्ष के नेताओं के साथ लगातार मीटिंग हुआ करती. तब भी यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा को ममता के सपोर्ट में खड़े देखा जाता रहा - गूगल करने पर कई तस्वीरें भी मिल जाएंगी.

संभव है सौरव गांगुली को ममता बनर्जी के दिल्ली फतह की संभावना दिखे तो वो भी तृणमूल कांग्रेस नेता को वैसे ही भाव देने लगें जैसे अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रति उनकी श्रद्धा है - लेकिन उससे पहले ममता बनर्जी को ये विश्वास दिलाना होगा कि वो एक दिन जो सोच रही हैं कर के भी दिखा देंगी.

अभी तो ऐसा ही लगता है जैसे सौरव गांगुली भी ममता बनर्जी के साथ वैसे ही पेश आ रहे हैं जैसे बीजेपी नेतृत्व से. तमिलनाडु चुनाव से पहले अमित शाह के चेन्नई दौरे में रजनीकांत से मुलाकात की संभावना जतायी जा रही थी, लेकिन मुमकिन न हो पाया - और अब तो कमल हासन का हाल देखने के बाद रजनीकांत मन ही मन फूले न समा रहे होंगे.

इन्हें भी पढ़ें :

ममता बनर्जी के लिए सोनिया गांधी कुछ भी करें तो नुकसान राहुल गांधी का है

तीरथ सिंह रावत ने अलविदा कह दिया लेकिन पश्चिम बंगाल में क्या?

विपक्षी एकजुटता मोदी के खिलाफ है या राहुल गांधी के? नेता ममता, पवार या PK!

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय