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Updated: 18 जून, 2021 10:34 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने मोदी सरकार के खिलाफ अपने मिशन 2024 का इरादा तो पहले ही साफ कर दिया था, प्रशांत किशोर का कॉनट्रैक्ट एक्सटेंड कर अगर किसी को शक शुबहा रहा वो भी दूर कर दिया है.

प्रशांत किशोर ने मुंबई जाकर शरद पवार के साथ लंबी मीटिंग भी कर डाली है. तीन घंटे की वो मीटिंग ये भी बताती है कि शरद पवार की भी ममता बनर्जी के नये मिशन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है.

ममता बनर्जी के नुमाइंदे बन कर प्रशांत किशोर ऐसी ही मुलाकातें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और हेमंत सोरेन सहित गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों के साथ भी करने वाले हैं.

अभी के लेवल पर तो नहीं, लेकिन प्रशांत किशोर ने ऐसी मुलाकातें नीतीश कुमार की मदद के लिए भी की थी. यहां तक कि नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ देने के बाद लालू परिवार से नये सिरे से संपर्क की खबरें भी तो ऐसी ही कहानी कह रही थीं.

एनडीए में लौटने से पहले नीतीश कुमार काफी दिनों बाद वैसी ही कोशिशों में जुटे थे जैसे 2013 के पहले के उनके प्रयास रहे. तब तक जब तक कि बीजेपी ने नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी नहीं घोषित कर दिया - और फिर गुस्सा होकर नीतीश कुमार ने एनडीए से ही नाता तोड़ लिया.

नीतीश कुमार को लेकर अब भी संशय की एक स्थिति बनी ही रहती है कि मालूम नहीं कब वो पलटी मार लें. ये तो जगजाहिर है कि नीतीश कुमार को महागठबंधन से भी ज्यादा घुटन एनडीए में हो रही है. खासकर बिहार विधानसभा 2020 के बाद से.

प्रशांत किशोर से ममता बनर्जी की पहली मुलाकात भी नीतीश कुमार के 2015 वाले शपथग्रहण के मौके पर बतायी जाती है. हालांकि, उसके बाद होने वाले पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए प्रशांत किशोर तैयार नहीं हुए थे. ये तो 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के ममता बनर्जी से 18 संसदीय सीटें झटक लेने के बाद उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी ने प्रशांत किशोर को तृणमूल कांग्रेस की चुनावी मुहिम के लिए राजी कर लिया. अब तो अभिषेक बनर्जी को भी तृणमूल कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया है - और उनके अस्पताल दौरे के बाद मुकुल रॉय भी घरवापसी कर चुके हैं. ये सब एक साथ होना तो यही बता रहा है कि सारे वाकये के पीछे प्रशांत किशोर की कोई न कोई भूमिका तो है ही.

अब इसे संयोग कहें या कुछ और कि नीतीश कुमार के ही साथी रहे प्रशांत किशोर की मदद से ममता बनर्जी वही अधूरा मिशन आगे बढ़ा रही हैं - फर्क सिर्फ ये है कि ये सब वो नीतीश कुमार नहीं बल्कि अपने लिये कर रही हैं - और नजर 2024 में चुनाव के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है.

'जैसे को तैसे' वाली स्टाइल में जवाब दे रही हैं ममता बनर्जी

ममता बनर्जी सरकार पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा की तोहमत से अभी उबर भी नहीं पायी है कि देवाशीष आचार्य की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत नये बवाल का इशारा कर रही है. देवाशीष आचार्य नाम के इस व्यक्ति ने 2015 में एक कार्यक्रम में ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को सरेआम थप्पड़ जड़ दिया था.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बुरी तरह जख्मी देवाशीष को को कुछ लोग मिदनापुर के तमलुक जिला अस्पताल लाये और भर्ती कराने के बाद चले गये - और वहीं देवाशीष की मौत हो गयी. देवाशीष के परिवार वालों ने हत्या का आरोप लगाया है. बताते हैं कि अपने दो दोस्तों के साथ देवाशीष बाइक पर निकले थे. अभी तीनों चाय पी रहे थे कि देवाशीष के पास किसी का फोन आया और वो अकेले मिलने चले गये. उसके बाद मौत कैसे हुए, पुलिस इसी बात की छानबीन कर रही है.

देवाशीष की मौत पर बवाल की आशंका इसलिए है क्योंकि 2020 में वो बीजेपी ज्वाइन कर लिये थे. पहले से ही बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या का आरोप लगाने वाली बीजेपी इस घटना के बाद, कहने की जरूरत नहीं और आक्रामक ही होगी.

mamata banerjee, abhishek banerjee, prashant kishorममता बनर्जी ने प्रशांत किशोर को उनके कॅरियर का सबसे मुश्किल टास्क थमा दिया है

पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी की विधायकों के साथ गवर्नर से मुलाकात चर्चा में तो और वजहों से रही, लेकिन मीटिंग में मुद्दा राज्य में कानून व्यवस्था का ही रहा. विधायकों से मिलने के बाद राज्यपाल जगदीप धनखड़ दिल्ली रवाना हो गये, लेकिन उससे पहले एक पत्र लिख कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हिंसा के मामलों पर चुप्पी साध लेने और हिंसा पीड़ितों के पुनर्वास के लिए कोई कदम न उठाने का भी आरोप लगाया था - राज्यपाल ने वो पत्र ट्विटर पर भी शेयर किया था.

दिल्ली दौरे में राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति सहित कई नेताओं से मुलाकात की है - और ऐसा लगता है कि उनके कोलकाता लौटने के बाद ममता सरकार और बीजेपी के बीच टकराव का जो नया दौर होगा वो पहले से ज्यादा तेज हो सकता है.

ममता बनर्जी और केंद्र की मोदी सरकार के बीच के हालिया टकराव को देख कर तो ऐसा ही लगता है जैसे बीजेपी को तृणमूल कांग्रेस उसी की भाषा में जवाब देने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है - फिल्म स्टार मिथुन चक्रवर्ती से हुई पश्चिम बंगाल पुलिस की पूछताछ इसका सबसे बड़ा सबूत है.

मिथुन चक्रवर्ती से उनके बर्थडे के मौके पर बंगाल पुलिस की पूछताछ ने कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह के घर पर छापेमारी की याद दिला दी. तब वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और जिस दिन सीबीआई ने रेड डाली उस दिन उनके बेटी की शादी का कार्यक्रम चल रहा था.

मिथुन चक्रवर्ती से पुलिस की पूछताछ को नारदा स्टिंग केस में तृणमूल कांग्रेस नेताओं से सीबीआई की पूछताछ से जोड़ कर भी देखा जा सकता है. मतलब साफ है. ममता बनर्जी जहां कहीं भी मुमकिन होगा बीजेपी के साथ वैसे ही बदला लेने वाली हैं जैसे केंद्रीय एजेंसियां ममता बनर्जी या उनके करीबियों के साथ पेश आएंगी. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले सीबीआई के अफसर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की पत्नी से भी पूछताछ कर चुकी है.

मिथुन चक्रवर्ती से कोविड 19 के प्रकोप के चलते कोलकाता पुलिस ने वर्चुअली पूछताछ की. तब वो पुणे में थे. दरअसल, मिथुन चक्रवर्ती के खिलाफ विवादास्पद बयान देने को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज करायी गयी थी. एफआईआर के खिलाफ मिथुन चक्रवर्ती ने हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था, लेकिन अदालत ने जांच में सहयोग करने की हिदायद दी थी. बीजेपी ज्वाइन करते वक्त मिथुन चक्रवर्ती ने कोबरा होने की बात कही थी - और मानिकपुरा में एक फिल्म का डायलॉग बोला था - ‘मारबो एखने लाश पोरबे शोशाने’, जिसका मतलब हुआ, 'मारूंगा यहां तो लाश श्मशान में गिरेगी'.

साथ ही, ममता बनर्जी ने नंदीग्राम में बीजेपी उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी के हाथों हुई शिकस्त को भी कलकत्ता हाई कोर्ट में चैलेंज कर दिया है - और मामले की सुनवाई की अगली तारीख 24 जून मुकर्रर हुई है.

ममता की नजर 2024 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर

ममता बनर्जी ने पहले तो प्रशांत किशोर को विधानसभा चुनावों तक के लिए ही हायर किया था, लेकिन अब तृणमूल कांग्रेस और उनके I-PAC का कॉन्ट्रैक्ट 2026 तक बढ़ा दिया गया है - 2026 यानी अगले विधानसभा चुनाव तक. समझने वाली बात ये है कि उससे पहले 2024 का आम चुनाव भी होगा और अब ममता बनर्जी, प्रशांत किशोर की सलाहियत की मदद से दिल्ली के लिए जंग छेड़ चुकी हैं.

ये तो पहले ही साफ हो चुका था कि ममता बनर्जी अपनी राजनीतिक विरासत भतीजे अभिषेक बनर्जी को सौंप सकती हैं - अब अभिषेक बनर्जी को तृणमूल कांग्रेस का महासचिव बनाया जाना और अगले विधानसभा चुनाव तक प्रशांत किशोर का ठेका बढ़ाया जाना आगे की कहानी अपनेआप कह रहा है.

ऐसे में प्रशांत किशोर 2024 में ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाने और 2026 में अभिषेक बनर्जी को पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनाने के काम में लग गये हैं - और मिशन को अंजाम देने के लिए तैयारी भी तरीके से की जा रही है.

खबर आ रही है कि विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी बीजेपी को उत्तर प्रदेश में टक्कर देने की भी तृणमूल कांग्रेस में तैयारी चल रही है. अभी तो यही मालूम हुआ है कि ममता बनर्जी की पार्टी कुछ यूपी की कुछ सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.

ममता बनर्जी यूपी में किन सीटों पर उम्मीदवार उतारती हैं देखना होगा. देखना ये भी होगा कि ममता बनर्जी ये चुनाव अकेले ही लड़ती हैं या यूपी में किसी विपक्षी पार्टी के साथ मिलकर?

तृणमूल कांग्रेस का इरादा ऐसे ही दूसरे राज्यों में भी चुनाव लड़ने का है - त्रिपुरा में तो पता चला है कि प्रशांत किशोर की टीम पहले से ही तृणमूल कांग्रेस के लिए काम शुरू कर चुकी है. त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होने में अभी काफी देर है - 2023 में जब बीजेपी सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही होगी तो ममता बनर्जी वैसी चुनौती देने की तैयारी में हैं जैसे अभी अभी बीजेपी ने बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को दिया था.

और खास बात ये है कि ये सिर्फ विधानसभा चुनाव तक ही सीमित नहीं रहने वाला है, बल्कि तृणमूल कांग्रेस की तैयारी निकायों और पंचायत चुनावों के साथ साथ स्थानीय स्तर पर होने वाले चुनाव लड़ने की भी है.

ये सब तो यही बता रहा है कि जैसे अमित शाह बीजेपी के स्वर्णिम काल के लिए पंचायत से पार्लियामेंट तक सत्ता हासिल करने की मुहिम चला रहे हैं - ममता बनर्जी भी बीजेपी के ही रास्ते उसे शिकस्त देने में जुट गयी हैं.

बड़ा सवाल ये है कि ममता बनर्जी के मिशन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी कहां ठहरते हैं? पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तो राहुल गांधी ममता बनर्जी के लिए मददगार की ही भूमिका में देखे गये, लेकिन बंगाल की एक ही रैली में जो बोल आये वो सुन कर तो ऐसा लगा जैसे दोनों आपस में भी कोई प्रतियोगिता कर रहे हों - आने वाले दिनों में ममता बनर्जी की राह में राहुल गांधी का क्या रोल रहने वाला है?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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