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Updated: 29 जुलाई, 2021 04:12 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एकाएक अपनी तरफ ध्यान खींचने लगे हैं - और बिलकुल ऐसा भी नहीं कि पेगासस के रूप में राहुल गांधी को राफेल जैसा हथियार हाथ लग गया है - क्या आपने भी ऐसा कुछ महसूस किया है?

ये तो नहीं कह सकते कि ऐसा पहली दफा देखने को मिल रहा है, लेकिन ये जरूर कह सकते हैं कि इस बार ये सब बगैर किसी PR कवायद के होता हुआ लगता है. चुनावों के पहले राहुल गांधी का अक्सर एक विदेश दौरा होता रहा है - और छुट्टियों के बाद वो सक्रिय राजनीति में पहले के मुकाबले ज्यादा सक्रिय नजर आते रहे हैं. कई बार सैम पित्रोदा ने विदेशों में राहुल गांधी के लिए कुछ इवेंट भी कराये थे, जो एक तरीके से भारतीय राजनीति में बेहतर प्रदर्शन के लिए रिहर्सल साबित हुआ है. एक खास वजह तो इस बार भी है, लेकिन पहले वाले कारणों से पूरी तरह अलग.

मॉनसून सत्र से कुछ दिन पहले तो यहां तक खबरें आयी थीं कि कांग्रेस अधीर रंजन चौधरी को हटाकर राहुल गांधी को ही लोक सभा में पार्टी का नेता बना सकती है - और उसके पीछे अधीर रंजन चौधरी के ममता विरोध की दलीलें भी दी गयीं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. अधीर रंजन अब भी अपनी जगह बने हुए हैं और राहुल गांधी के मोर्चा संभाल लेने के बाद वो बस पीछे पीछे लगे रहते हैं.

संसद सत्र के दौरान पहले भी राहुल गांधी सत्ता पक्ष पर बोलने न देने के इल्जाम लगाते सुने गये हैं, तो कभी यहां तक बोल गये के बोल देंगे तो भूकंप आ जाएगा. कांग्रेस के नेताओं में डरपोक और निडर का फर्क तो पहले ही बता चुके थे, शायद इसीलिए अभी सुनने को नहीं मिला - मैं किसी से नहीं डरता या वो मुझसे डरता है... आंख में आंख मिला कर बात नहीं कर सकता. राहुल गांधी के ऐसे बयानों की बदौलत अक्सर सुर्खियां बनती रही हैं, लेकिन इस बार तो कांग्रेस नेता ने अपनी तरफ लोगों का ध्यान खींचने का अलग की तरीका अपनाया.

राहुल गांधी अचानक ट्रैक्टर पर सवार होकर संसद पहुंच गये - ड्राइविंग सीट पर भी खुद ही बैठे हुए थे. कृषि कानूनों के विरोध में राहुल गांधी पहले भी ट्रैक्टर चला चुके हैं, लेकिन दिल्ली से बाहर पंजाब में.

हाई सिक्योरिटी जोन में बगैर अनुमति लिये राहुल गांधी के ट्रैक्टर से पहु्ंचते ही होश से उड़ गये. ट्रैक्टर पर बैठे कांग्रेस नेता कृषि कानूनों के खिलाफ तख्तियां लिये हुए थे. ट्रैक्टर को पुलिस ने जब्त कर लिया या राहुल गांधी के साथी नेताओं की गिरफ्तारी हुई ये चीजें बहुत मायने नहीं रखती हैं. ट्रैक्टर से उतरने के बाद राहुल गांधी सीधे संसद में चले गये. पुलिस ट्रैक्टर को जब्त कर कानूनी कार्रवाई कर रही है. दिल्ली पुलिस ने मोटर व्हीकल ऐक्ट, महामारी ऐक्ट जैसी धाराओं में केस दर्ज कर अपना काम कर रही है.

क्या ये महज संयोग है कि 25 जुलाई को ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) दिल्ली पहुंची हैं और 26 जुलाई को राहुल गांधी ट्रैक्टर से संसद? ममता बनर्जी के दिल्ली दौरे के वक्त राहुल गांधी का नये अंदाज में हद से ज्यादा ऐक्टिव हो जाना यूं ही तो नहीं लगता!

ऐसा क्यों लगता है कि ममता बनर्जी अगले आम चुनाव को ध्यान में रख कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से मुकाबले के लिए विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रही हैं - और राहुल गांधी है कि बीजेपी और मोदी विरोध के नाम पर ममता बनर्जी को ही टक्कर देने लगे हैं - असल वजह जो भी हो लगता तो ऐसा ही है जैसे राहुल गांधी किसी और वजह से नहीं बल्कि ममता बनर्जी से राजनीतिक रेस के चलते ऐसा कर रहे हैं.

क्या राहुल गांधी विपक्ष का नेता बनना चाहते हैं?

26 जुलाई को सड़क से संसद तक ट्रैक्टर की सवारी के बाद 27 और 28 जुलाई को विपक्षी नेताओं की दो दिनों में ताबड़तोड़ दो बैठकें हो चुकी हैं. ऐसी बैठकों को लेकर कांग्रेस की तरफ से ये इम्प्रेशन देने की कोशिश की जा रही है जैसे राहुल गांधी विपक्ष का नेतृत्व कर रहे हों.

ऐसी ही एक मीटिंग के बाद जब राहुल गांधी मीडिया के सामने आये तो उनके साथ विपक्षी दलों के कई नेता भी खड़े थे - और बोलने में भी राहुल गांधी ही सबको लीड करते नजर आ रहे थे.

सबसे दिलचस्प बात तो ये रही कि विपक्षी दलों के साथ मीटिंग करने के मकसद से दिल्ली पहुंची ममता बनर्जी का शामिल होना तो दूर, तृणमूल कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि भी नहीं शामिल हुआ - और यही वो बात रही जो सबसे ज्यादा खटक रही थी. ये बात अलग है कि मीडिया से बातचीत में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के नेता भी विपक्ष के सत्ता पक्ष के खिलाफ एकजुट होने के दावे करते रहे.

mamata banerjee, rahul gandhiऐसे कम ही मौके रहे हैं जब सोनिया गांधी से ममता बनर्जी की मुलाकात में राहुल गांधी भी मौजद रहे हों, लेकिन राहुल गांधी की लेटेस्ट मौजूदगी खुद उनकी तृणमूल कांग्रेस नेता से ट्यूनिंग के लिए अनिवार्य रूप से महत्वपूर्ण लगती है.

राहुल गांधी ने विपक्षी खेमे के सांसदों के साथ हुई मीटिंग की तस्वीरें भी ट्विटर पर शेयर की - और लिखा, "पूरे विपक्ष के साथ बैठना बड़ा ही सुखद क्षण होता है. जो मौजूद रहे उनका गजब का अनुभव है, गजब की बुद्धिमत्ता और गजब का विजन भी.'

कहने को तो मीटिंग में 14 राजनीति दल शामिल हुए. खास बात ये रही कि कांग्रेस की अगुवाई वाली विपक्षी दलों की बैठक से बाहर रखी जाने वाली आम आदमी पार्टी भी शामिल हुए, लेकिन ऐसी बैठकों में अरविंद केजरीवाल को शामिल किये जाने की पैरवी करने वाली न ममता बनर्जी थीं और न ही उनके प्रतिनिधि के तौर पर तृणमूल कांग्रेस का कोई नेता ही.

मीडिया से मुखातिब होते ही बाकी बातों के बीच राहुल गांधी का एक ही बात पर ज्यादा जोर दिखा, 'हमारा सिर्फ एक सवाल है कि क्या हिंदुस्तान की सरकार ने पेगासस को खरीदा - हां या ना? क्या हिंदुस्तान की सरकार ने अपने लोगों पर पेगासस हथियार का इस्तेमाल किया?'

तभी मीडिया की तरफ से एक सवाल पर राहुल गांधी भड़क ही गये. पूछा गया था कि पैगासस के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव जब जवाब देने आते हैं तो तृणमूल कांग्रेस के सांसद पर्चा ही फाड़ देते हैं - फिर चर्चा कैसे होगी?

राहुल गांधी ने काफी गंभीर होकर जवाब दिया, 'देखिये आप डिस्ट्रैक्ट मत कीजिये... मैं जानता हूं आप किसके लिए काम करते हो. आपको डिस्ट्रैक्ट करने की जरूरत नहीं है... जनता जानती है कि हिंदुस्तान के लोकतंत्र पर आक्रमण हुआ है.'

केंद्रीय मंत्री के साथ ऐसे व्यवहार के लिए तृणमूल कांग्रेस सांसद शांतनु सेन को तब से लेकर पूरे मॉनसून सत्र तक के लिए सस्पेंड कर दिया गया है. साथ ही, टीएमसी और कांग्रेस के कई और सांसदों पर भी ऐसे ही एक्शन की तलवार लटक रही है.

राहुल गांधी ने मीडिया के सवाल का तो जबाव नहीं दिया, लेकिन बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने मंत्री का कागज छीन कर फाड़ डालने और फेंकने की याद दिलाते हुए वही सवाल राजनीतिक स्टाइल में पूछ लिया, 'राहुल गांधी ने कहा है कि उनके फोन में पेगासस नाम का हथियार डाल दिया गया है.अगर हथियार डाल दिया गया तो इतने दिन तक राहुल गांधी चुप क्यों बैठे रहे? आप थाने गये? आपने FIR की? कोई हथियार नहीं है... जो चीज नहीं है उसका हथियार बनाकर संसद को रोकना है.'

...और ममता कह रही हैं - 'मैं नेता नहीं बनना चाहती!'

राहुल गांधी अपने लेटेस्ट एक्शन से जो भी मैसेज देने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन ममता बनर्जी ने तो अपनी तरफ से साफ ही कर दिया है, मैं एक साधारण कार्यकर्ता ही बने रहना चाहती हूं. बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा बनने के सवाल पर ममता बनर्जी साफ तौर पर तो कुछ नहीं बता रही हैं, लेकिन इतना जरूर कह रही हैं - ये तब की परिस्थिति पर निर्भर करेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से औपचारिक मुलाकात के बाद ममता बनर्जी विपक्षी नेताओं से लगातार मुलाकात कर रही हैं. एनसीपी नेता शरद पवार से तो शहीद रैली के दौरान ही ममता बनर्जी ने कह दिया था कि दिल्ली में उनके पहु्ंचते ही विपक्षी नेताओं की मीटिंग बुलायी जाये. प्रधानमंत्री मोदी के साथ मीटिंग को शिष्टाचार मुलाकात बताया है और ममता बनर्जी ने कहा कि वो पश्चिम बंगाल के लिए वैक्सीन और बाकी जरूरी चीजों को लेकर चर्चा करने गयी थीं.

ममता बनर्जी ने 10, जनपथ जाकर इस बार भी सोनिया गांधी से मुलाकात की. सोनिया गांधी और ममता बनर्जी की मुलाकात के दौरान वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भी मौजूदगी की भी खबर आयी है. ममता गांधी लगभग हर बार दिल्ली आने पर सोनिया गांधी से मिलने जाती रही हैं.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष से मिलने के बाद ममता बनर्जी ने बताया कि सोनिया गांधी ने उनको चाय पर बुलाया था. ममता बनर्जी ने ये भी बताया कि चाय पर क्या क्या चर्चा हुई.

ममता बनर्जी बोलीं, 'हमने राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चा की... पेगासस जासूसी कांड और कोरोना संक्रमण से पैदा हुए हालात को लेकर भी चर्चा की.'

ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाकात को बहुत अच्छी और पॉजिटिव बताया, लेकिन अगले आम चुनाव को लेकर चर्चा के सवाल पर बस इतना ही कहा कि हमारी चर्चा विपक्षी एकता को लेकर हुई.

सोनिया गांधी से पहले ममता बनर्जी ने कांग्रेस नेता कमलनाथ और आनंद शर्मा से भी मुलाकात की थी. कमलनाथ का मुलाकात के बाद कहना रहा, 'ममता में शक्ति है' - जबकि आनंद शर्मा ये याद दिलाना नहीं भूले कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता कारगर नहीं होने वाली. हालांकि, आनंद शर्मा ने माना कि बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए समान सोच वाले राजनीतिक दलों को साथ जरूर आना चाहिये.

दिल्ली पहुंचते ही ममता बनर्जी ने कहा था कि विपक्षी दलों की एकता अपनेआप शेप ले लेगी - और तभी से बीजेपी ही नहीं, उसका स्लोगन भी ममता बनर्जी के निशाने पर नजर आ रहा है, 'मैं सच्चा दिन देखना चाहती हूं... बहुत दिन देख लिया... अच्छा दिन.'

मीडिया के सामने आकर ममता बनर्जी ने हर बार विपक्षी एकता की बात तो की, लेकिन 2024 में विपक्ष का नेता कौन होगा - ये सवाल हमेशा टाल जा रही हैं. कहती हैं, 'मैं कोई पॉलिटिकल ज्योतिषी नहीं हूं... ये परिस्थितियों पर निर्भर करता है. कोई और नेतृत्व करे तो मुझे कोई परेशानी नहीं है. जब चर्चा होगी तो हम फैसला कर लेंगे.'

और लगे हाथ एक दावा भी, 'पूरे देश में खेला होगा. ये चलते रहने वाला है. जब अगला आम चुनाव होगा तो वो मोदी और पूरे देश के बीच होगा.'

एक ही सवाल सबसे बड़ा है और वही ममता बनर्जी का पीछा नहीं छोड़ रहा है, लेकिन हर बार ममता बनर्जी का गोलमोल जवाब ही सुनने को मिलता है, 'मैं विपक्षी दलों की मदद कर रही हूं. मैं नेता नहीं बनना चाहती... एक साधारण कार्यकर्ता रहना चाहती हूं.'

बात बात पर भड़क जाने वाली ममता बनर्जी क्या ये सब विपक्षी एकता में फूट न पड़े इसलिए ऐसी बातें कर रही हैं? क्या ममता बनर्जी दिल्ली पहुंचते ही राहुल गांधी के एक्टिव हो जाने के चलते ऐसी बातें कर रही हैं? क्या ममता बनर्जी विपक्ष के नेता को लेकर ऐसी बातों के जरिये राहुल गांधी को कोई खास संदेश देने की कोशिश कर रही हैं?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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