New

होम -> सियासत

 |  2-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 02 जनवरी, 2022 05:00 PM
रीवा सिंह
रीवा सिंह
  @riwadivya
  • Total Shares

सत्ता का नशा और कुर्सी की लालसा ने राजनीति की जो दुर्गति की है वह किसी से छिपी नहीं है. इसी क्रम में एक और उदाहरण पेश है. मानवीय मूल्यों की बातें करते नेताओं पर अब कम ही भरोसा होता है और हो भी कैसे, कार्यकर्ता जो इतने होनहार हैं. हाल ही में कानपुर का एक वीडियो वायरल हुआ था. कुछ होनहारों ने मोदी की कानपुर रैली के दौरान हंगामा करने की कोशिश की और कोशिश में रंग लाने के लिये कार से तोड़-फोड़ की. कार पर भाजपा का झण्डा लगा था, वीडियो वायरल हुआ तो पार्टी कार्यकर्ता कटघरे में आ गये.

सवालों की बौछारें हुईं. तकनीक बड़ी अजीब चीज़ है, आप पलक झपकते हिट हो जाते हैं. पहले की तरह चप्पलें नहीं घिसनी पड़तीं लेकिन उसी तकनीक ने इन कार्यकर्ताओं को औंधे मुंह गिरा दिया.

UP, Assembly Elections, Rally, Chief Minister, Yogi Adityanath, Samajwadi Party, Flagकुछ होनहारों ने मोदी की कानपुर रैली के दौरान हंगामा करने की कोशिश की और कोशिश में रंग लाने के लिये कार को भी निशाना बनाया है 

वायरल वीडियो से जो चेहरे सामने आये उन्हें दामाद की तरह ढूंढा गया. पांच कर्मठ योद्धा जब पकड़े गये तो पुलिस ने सांस ली लेकिन यह क्या! ये तो भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं हैं! तो फिर भाजपा का झण्डा लगे कार संग तोड़-फोड़ क्यों कर रहे थे? हीरो बनने वाले ये होनहार हैं कौन? जवाब है - अखिलेश भैया की समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता.

अब सवालों का मुख भाजपा से सपा की ओर घूम गया. सपा कार्यकर्ता तोड़-फोड़ कर क्यों रहे थे, पहली बात. दूसरी बात यह कि कार्यकर्ताओं ने अनुशासन की घुट्टी पी रखी हो ऐसा कहीं नहीं लिखा लेकिन गुंडागर्दी ही करनी थी तो अपने नाम पर करते, भाजपा के नाम पर क्यों? छवि-निर्मिति हेतु? ब्राण्ड मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम में इसे एक अध्याय के रूप में जोड़ा जाना चाहिए.

नाम में कुछ रखा हो न हो लेकिन धरती पर जो भी आया उसे नाम ज़रूर मिला है. सो, इन होनहारों के नाम हैं - चिन केसरवानी, अंकर पटेल, अंकेश यादव, सुकान्त शर्मा और सुशील राजपूत. कोई जातिगत भेदभाव नहीं है, निकृष्टता में सब अव्वल हैं. अब समाजवादी पार्टी ने इनपर कार्रवाई करते हुए इन पांचों को निष्कासित कर दिया है. पुलिस अन्य उपद्रवियों की तलाश में है.

ये भी पढ़ें -

योगी आदित्यनाथ के मुख्य सचिव कहीं अरविंद शर्मा जैसी नयी मुसीबत तो नहीं

बीआर आंबेडकर से वामन मेश्राम तक, जिन्होंने गांधी को महात्मा नहीं माना

सऊदी विदेश मंत्री के आगे हेकड़ी करना शाह महमूद को भारी पड़ना ही था...

लेखक

रीवा सिंह रीवा सिंह @riwadivya

लेखिका पेशे से पत्रकार हैं जो समसामयिक मुद्दों पर लिखती हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय