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योगी आदित्यनाथ के मुख्य सचिव कहीं अरविंद शर्मा जैसी नयी मुसीबत तो नहीं
दूध का जला छाछ फूंक कर पीता है, लेकिन दुर्गाशंकर मिश्रा (Chief Secretary DS Mishra) की नियुक्ति के मामले में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने उलटा कर दिया है - कहीं हड़बड़ी में अरविंद शर्मा (Arvind Sharma) जैसी नयी मुसीबत तो नहीं मोल ली है?
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बेशक योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने ही दुर्गाशंकर मिश्रा की नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर किया है. राज्यों में चीफ सेक्रेट्री की नियुक्ति का आखिरी फैसला मुख्यमंत्री ही करता है. केंद्र सरकार ने तो डेप्युटेशन से बस वापस भेजा होगा - लेकिन एक्सटेंशन देकर.
दुर्गाशंकर मिश्रा (Chief Secretary DS Mishra) और अरविंद शर्मा ने मिलते जुलते अंदाज में ही लखनऊ में कदम रखे. एक साल की शुरुआत में, दूसरा साल के आखिर में. एक एक्सटेंशन पाकर और दूसरा वीआरएस लेकर - लेकिन दोनों ही मामलों में ऐसा लगा जैसे सब कुछ काफी जल्दी में किया गया हो.
अरविंद शर्मा (Arvind Sharma) तो डिप्टी सीएम नहीं ही बन सके, लेकिन दुर्गाशंकर मिश्रा चीफ सेक्रेट्री बन गये. जैसे दुर्गाशंकर मिश्रा की डायरेक्ट रिपोर्टिंग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को है, अरविंद शर्मा डिप्टी सीएम बने होते तो भी ऐसी ही स्थिति होती.
एमएलसी बनने के बाद यूपी बीजेपी उपाध्यक्ष बनाये गये अरविंद शर्मा के मामले में तो लगा जैसे योगी आदित्यनाथ छाछ को फूंक फूंक कर पी रहे हैं - दुर्गाशंकर मिश्रा के मामले में योगी आदित्यनाथ ने कहीं गर्म दूध का गिलास तो नहीं थाम लिया है?
मिश्रा जी में शर्मा जी का अक्स क्यों
तकनीकी तौर पर तो दुर्गाशंकर मिश्रा की नियुक्ति संयोग ही है, लेकिन राजनीति के लिहाज से समझने की कोशिश करें तो अच्छी तरह सोचा समझा प्रयोग भी लगता है. ये संयोग और प्रयोग वाला जुमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से ही दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान पहली बार सुनने को मिला था - और ये नियुक्ति भी तभी हुई है जब जल्दी ही यूपी में विधानसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं.
यूपी की बिसात पर क्या योगी को नेतृत्व की तरफ से फिर से शह मिल चुकी है?
दुर्गाशंकर मिश्रा उत्तर प्रदेश के मऊ के रहने वाले हैं, उसी मऊ के जहां से आने वाले पूर्व नौकरशाह करीब साल भर पहले लखनऊ पहुंचे थे - और योगी आदित्यनाथ को उनसे निजात पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा. नेतृत्व की नाराजगी जो मोल लेनी पड़ी वो तो अलग ही है.
हो सकता है चुनावी माहौल के चलते, दुर्गाशंकर मिश्रा की नियुक्ति काफी गोपनीय रखा गया था. अमूमन पहले से ही चर्चा में ऐसे दो चार नाम आ जाते हैं, लेकिन 29 दिसंबर की शाम को अचानक यूपी के मुख्य सचिव के रूप में दुर्गाशंकर मिश्रा के नाम ऐलान किया गया.
1984 बैच के यूपी काडर के आईएएस अफसर दुर्गाशंकर मिश्रा डेप्युटेशन पर केंद्र में शहरी विकास मंत्रालय में सचिव रहे - और तभी उनको लखनऊ पहुंच कर रिपोर्ट करने का आदेश मिला. दो दिन बाद ही वो 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले थे. मिश्रा ने 1985 बैच के आईएएस अफसर राजेंद्र कुमार तिवारी की जगह ली है.
सरकारी कामकाज का अपना एक सिस्टम होता है और ऐसी नियुक्तियां भी उसी दायरे में होती हैं, लेकिन ये सब राजनीतिक प्रभाव से बेअसर भी हों, गारंटी कौन दे सकता है. और अगर ये सब चुनाव काल में हो रहा हो तो यूं ही हजम कर पाना भी संभव नहीं होता.
जैसे कोई चुनावी रैली हो
कामकाज संभालने के बाद जिस अंदाज में दुर्गाशंकर मिश्रा मीडिया से मुखातिब हुए, उनकी बातें सुन कर तो ऐसा ही लगा जैसे किसी चुनावी रैली में किसी कोई नेता राजनीतिक भाषण दे रहा हो.
कोई भी अफसर, चाहे कोई भी ओहदा हो. नियुक्ति के बाद अक्सर मीडिया से मुखातिब होते हैं. अब चाहे इसके लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलायी जाये, या खबर की खोज में रिपोर्टर एक दूसरे को सूचना देते खुद ही पहुंच जायें. ऐसे अवसरों पर एक कॉमन सवाल जरूर पूछा जाता है - आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?
लगता है यूपी का चीफ सेक्रेट्री बनते ही दुर्गाशंकर मिश्रा ने पहले से ही अपनी प्राथमिकताएं तय कर ली थी. बताये भी, काफी विस्तार से, 'मैं दफ्तर में बैठकर नहीं फील्ड पर जाकर काम करने वाला हूं.'
भला और क्या चाहिये. ऐसा होगा तभी तो काम होगा. ऐसा होने पर ही तो सूबे का विकास होगा, लेकिन दुर्गाशंकर मिश्रा तो ऐसे बताना शुरू किये जैसे सब कुछ पहली बार होने वाला हो - आप भी जान लीजिये.
1. राजनीति में जाने की तैयारी तो नहीं: चीफ सेक्रेट्री बोले, 'यूपी में पिछले साढ़े चार साल में बड़ा परिवर्तन हुआ... आज यूपी देश में विभिन्न पायदान पर आगे बढ़ा है.' ऐसी बातें तो अब तक मोदी-शाह की चुनावी रैलियों में ही सुनने को मिला करती थीं.
चुनाव के दौरान सर्विस प्रोटोकॉल भी खत्म हो जाते हैं क्या? ऐसी बातें तो 2020 के बिहार चुनाव से पहले तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे से सुनने को मिली थी. दुर्गाशंकर मिश्रा को भी मालूम तो होगा ही कि नीतीश कुमार की घोर चापलूसी के बावजूद उनको टिकट तक नहीं मिला - और ऐसा दूसरी बार हुआ था. सुना है वृंदावन पहुंच कर धार्मिक प्रवचन करने लगे हैं.
2. क्या सात साल पहले कुछ भी नहीं हुआ: दुर्गाशंकर मिश्रा ने एक और खास बात बतायी, 'बीते सात साल में देश में विकास की अभूतपूर्व लहर है.'
ये बताने से पहले चीफ सेक्रेट्री प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के प्रति पूरी श्रद्धा से आभार प्रकट कर चुके थे - जहां मैं पैदा हुआ वहां मुझे काम करने का मौका मिला है.
ये क्या बात हुई भला. जहां पैदा हुए आईएएस बने तो भी यूपी काडर ही मिला था. उसी यूपी के आगरा और सोनभद्र के डीएम भी रह चुके हैं - फिर ऐसा क्यों बोल रहे हैं जैसे ये सब अभी अभी हुआ हो.
3. यूपी पहले पिछड़ा हुआ क्यों था: दुर्गाशंकर मिश्रा की मानें तो, 'यूपी पहले पीछे हुआ करता था... सभी को मकान देने का बड़ा काम हुआ... आज यूपी 17 लाख से ज्यादा मकान दिए गये.'
नौकरशाही का काम राजनीतिक नेतृत्व की तरफ से तैयार की जाने वाली नीतियों का पूरी तरह अनुपालन होता है - सरकार चाहे जिस किसी भी राजनीतिक दल की क्यों न हो. वैचारिक झुकाव और निजी निष्ठा की बात और है, लेकिन चुनावों के पहले अगर कोई अफसर राजनीतिक नेतृत्व को लेकर भेदभावपूर्ण बात करे तो क्या समझा जाएगा.
दुर्गाशंकर मिश्रा की बातें सुन कर तो ऐसा लगा जैसे वो प्रधानमंत्री मोदी का पांच साल पुराना भाषण याद दिला रहे हों - 'अरे काम नहीं आपका कारनामा बोलता है.' प्रधानमंत्री मोदी ने 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चुनावी स्लोगन पर ये टिप्पणी की थी. समाजवादी पार्टी का चुनावी स्लोगन था - काम बोलता है और प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, 'अरे काम नहीं आपका कारनामा बोलता है.'
भला कोई नौकरशाह सेवा में रहते सार्वजनिक तौर पर ये कैसे समझा सकता है कि मौजूदा शासन से पहले की सरकारों में कोई काम नहीं हुआ. क्या वो ये बताना चाहते हैं कि पहले कोई नीतियां ही नहीं बनती थीं जो काम करने की जरूरत पड़े - तो क्या ये समझा जाये कि खुद जिलाधिकारी रहते उनके जिम्मे विकास का कोई काम ही नहीं होता था?
अगला स्टेशन क्या है
मेट्रो मैन ई. श्रीधरन जैसी तो नहीं लेकिन दुर्गाशंकर मिश्रा की भी मिलती जुलती ही छवि है - और राजनीतिक इरादे भी मिलते जुलते ही लगते हैं. ई. श्रीधरन ने तो अभी अभी संन्यास भी ले लिया. वैसे श्रीधरन की ऐसी कोई राजनीतिक पारी भी नहीं रही जो संन्यास लेने की जरूरत थी, लेकिन एंट्री का ऐलान किया था तो एग्जिट के बारे जानकारी देना तो फर्ज बनता है. इसी साल केरल विधानसभा चुनाव के दौरान ई. श्रीधरन अचानक काफी एक्टिव हो गये थे. सूबे में बीजेपी की सरकार बनने पर खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी बताने लगे थे, लेकिन जब बीजेपी नेतृत्व ने हाथ खींच लिया तो क्या कर सकते थे - बीजेपी का खाता भी नहीं खुल सका क्योंकि श्रीधरन अपनी सीट भी नहीं बचा पाये थे.
दुर्गाशंकर मिश्रा को दूसरे मेट्रो मैन के तौर पर समझ सकते हैं. दुर्गाशंकर मिश्रा के केंद्र में सचिव रहते पूरे पांच मेट्रो रेल प्रोजेक्ट पूरे हुए हैं - लखनऊ मेट्रो 2017, हैदराबाद मेट्रो 2017, नोएडा मेट्रो 2019, नागपुर मेट्रो 2019 और कानपुर मेट्रो 2021.
ये दुर्गाशंकर मिश्रा की काबिलियत और मेहनतकश होना ही प्रधानमंत्री मोदी के भरोसेमंद और करीबी अफसरों में शुमार करता है. गुजरात काडर के आईएएस अधिकारी रहते अरविंद शर्मा ने भी अपनी काबिलियत के चलते ही प्रधानमंत्री मोदी का भरोसा हासिल किया था.
चुनावों के दौरान दुर्गाशंकर मिश्रा भी कोविड कंट्रोल और प्रोटोकॉल का पालन कराने के साथ ही मतदान कर्मियों के वैक्सीनेशन की बातें कर रहे हैं. अरविंद शर्मा ने तो यूपी में ऐसे दौर में कोविड कंट्रोल का जिम्मा हाथ में लिया था जब दूसरी लहर में हालात बेकाबू हो चुके थे. तब वो सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय को रिपोर्ट किया करते थे - और कोविड कंट्रोल का ऐसा वाराणसी मॉडल पेश किया कि प्रधानमंत्री मोदी तारीफ करते नहीं थकते थे, लेकिन तभी तक जब तक कोरोना संकट के दौरान बेहतरीन प्रदर्शन का सर्टिफिकेट योगी आदित्यनाथ को नहीं दिया था.
यूपी चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी को चैलेंज करने के मामले में सबसे आगे नजर आने वाले समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव भी चीफ सेक्रेट्री की नियुक्ति को राजनीतिक चश्मे से देख रहे हैं. वैसे ये तो उनका पहला हक भी है.
अखिलेश यादव नाम तो नहीं लेते लेकिन इशारा बीजेपी एमएलसी अरविंद शर्मा की तरफ ही होता है, 'लखनऊ वालों ने दिल्ली वालों को उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया था... एक अधिकारी को दो साल पहले रिटायर कर दिया गया और ये भरोसा दिलाया गया कि आप लखनऊ जाओगे तो उपमुख्यमंत्री बन जाओगे... वो भागते रहे... एक कमरा मिला, फिर बंगला मिला लेकिन भटकते रहे - मंत्री नहीं बनाया गया और कूड़ेदान में फेंक दिया गया.'
और फिर आगे जोड़ देते हैं, 'अब दिल्ली वालों की बारी थी... पहले उन्हें पैदल-पैदल चलाया... फिर दिल्ली वालों ने... जो अधिकारी दो दिन बाद रिटायर होने वाला था, उसे एक साल का एक्सटेंशन देकर चीफ सेक्रेटरी बना दिया - क्योंकि यूपी में चुनाव है.'
असल में अखिलेश यादव पैदल चलाने की बात कर योगी आदित्यनाथ की तरफ इशारा कर रहे थे. एक बार प्रधानमंत्री मोदी के यूपी दौरे में एयरपोर्ट पर योगी आदित्यनाथ के पैदल चलने का 6 सेकंड का वीडियो शेयर करते हुई भी अखिलेश यादव ने ऐसी ही टिप्पणी की थी. वो वीडियो तब का था जब योगी आदित्याथ अपनी गाड़ी में बैठने जा रहे थे.
योगी आदित्यनाथ ने दुर्गाशंकर मिश्रा को चीफ सेक्रेट्री ऐसे दौर में बनाया है जब चुनावों की घोषणा होने के साथ आचार संहिता लागू होते ही सारा कंट्रोल चुनाव आयोग के हाथ में चला जाएगा. अगर अरविंद शर्मा को वो डिप्टी सीएम बना देते तो भी वो कभी आउट ऑफ कंट्रोल नहीं हो पाते!
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