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Updated: 14 नवम्बर, 2020 09:05 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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खुशियों का पर्व, दीपों का पर्व, रोशनी का पर्व और ऐतिहासिक पर्व दीवाली का इंतज़ार लोग सालों साल करते हैं. इस पर्व को बेहद खुशियों के साथ बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. कोई भी शुभ काम शुरू करने के लिए भी दीवाली (Diwali ) का इंतज़ार शिद्दत के साथ किया जाता है. दीवाली मर्यादा पुरषोत्तम भगवान राम के चौदह वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या (Ayodhya) वापस आने की खुशी में मनाया जाता है, माना जाता है कि दीवाली अपने साथ कई खुशियां लेकर आता है इसीलिए इसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. यह पांच दिनों तक चलने वाला त्योहार है जिसमें प्रथम दिन धनतेरस, दूसरे दिन नरक चतुर्दशी, तीसरे दिन दीपावली, चौथे दिन गोवर्धन पूजा और आखिरी दिन यम द्वितीया का पर्व मनाया जाता है. यह सभी दिन बेहद शुभ माने जाते हैं. आज भारत समेत दुनिया भर में यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है लेकिन अभी बिहार में चुनावी नतीजे (Bihar Assembly Election Results ) सामने आए हैं तो वहां की दीवाली कैसी होगी ये सोचकर ही लोग उत्सुकता से लबरेज़ हुए जा रहे हैं. बिहार की जनता ने जो जनादेश दिया है उसके अनुसार तो सिर्फ भाजपा (BJP) का खेमा ही ऐसा है जो शानदार तरीके से दीवाली मना सकता है. भाजपा के दोनो हाथों में लड्डू ही लड्डू हैं. एक तरफ तो अधिक सीटें जीतने की खुशी है तो दूसरी ओऱ सरकार में हिस्सेदारी बढ़ने की भी खुशी है. उनके साथी नीतीश बाबू (Nitish Kumar) की बात की जाए तो जनाब को मुख्यमंत्री (Chief Minister) बनने की खुशी तो होगी लेकिन सरकार में वह सिर्फ अपनी न चला पाएंगें, इसका भी उन्हें ज़बरदस्त तरीके से दुख होगा. नीतीश बाबू जब दो साल पहले लालू जी की पार्टी को छोड़कर आए थे तो भाजपा पर पूरी तरीके से हावी थे, उस वक्त भाजपा महज सरकार का ही हिस्सा थी, वह कोई रौब धौब नहीं जमा सकती थी सरकार में.

Bihar Election, Bihar, Diwali, Festival. Nitish Kumar, Tejasvi Yadavसही मायनों में देखा जाए तो बिहार में दिवाली की मुबारकबाद की असली हक़दार भाजपा है

वक्त ने मारी है ज़बरदस्त पलटी, अब जो हाल कभी भाजपा का हुआ करता था अब वह हाल हो गया है नीतीश कुमार का. कहते हैं राजनीति में जनता के हाथों में ही सबकुछ हुआ करता है और जनता का फैसला तो यही है कि नीतीश कुमार अब सिर्फ सरकार का चेहरा रहें बाकी सरकार भाजपा के मनमुताबिक चले. भाजपा के साथी और जदयू के बागी चिराग पासवान की दीवाली तो कशमकश में गुज़रेगी बाबू, चिराग पासवान के पिताजी रामविलास पासवान जी को मौसमी नेता कहा जाता था, यानी कब कौन सी हवा किसके पक्ष में है और किसके विपरीत इसका अंदाज़ा उऩ्हें काफी पहले ही हो जाया करता था.

इसीलिए बिहार में उनकी तूती बोला करती थी. लेकिन कहते हैं कि ज़रूरी नहीं है कि जो कला बाप को मिली हो वही बेटे को भी मिल जाए. इसके दर्जनों उदाहरण हैं आप किसी का भी उदाहरण ले सकते हैं. चिराग पासवान के दावे थे वादे थे, लेकिन चुनावी नतीजों में वह वही साबित हुए जो उनको जदयू कहा करती थी, क्या कहा करती थी, वोटकटुआ. जी हां चिराग पासवान महज वोटकटुआ ही साबित हो पाए हैं. चुनाव के जो नतीजे आए हैं उसमें उनका किंगमेकर होना तो दूर की बात है वह पिछली बार से भी एक सीट पीछे चले गए हैं.

पिछले चुनाव में उनको मिली थी दो सीट अबकी बार एक भी पार नहीं कर पाए हैं. बस कह लीजिए खाता खोल डाला है. चिराग पासवान दीवाली मनाएंगे कि नहीं इसका भी क्या पता, अरे भई दिवाली खुशी के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है और चिराग तो फिलहाल परेशान हैं कि वह सरकार का हिस्सा होंगें या नहीं होंगें. खैर भाजपा का साया उनके सिर पर है तो बहुत ज्यादा चिंतित होने की ज़रूरत तो नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार के ही होंगें ऐसे में चुनाव में उनको कमजोर करने वाले चिराग पासवान के साथ उनका बर्ताव कैसा होगा ये तो आने वाले दिनों में ही मालूम चल पाएगा.

ये तो ठहरी खुश रहने वालों की दीवाली लेकिन दूसरी ओर कैसी दीवाली होगी इसकी बात भी तो होनी चाहिए. सबसे पहले तो मुख्यमंत्री बनते बनते चूक जाने वाले तेजस्वी यादव के दीवाली की बात करते हैं. बेचारे तेजस्वी यादव, खूब मेहनत की, दौड़ दौड़ कर रैलीयां की लेकिन दहलीज से बस हल्का सा दूर रह गए. चुनाव होने तक तो मेहनत की बहुत, उसके अगले दिन आए एग्जिट पोल में तो खुशी से लबरेज़ हो गए रहे होंगें. दीवाली के दिन क्या क्या करेंगें कैसे जश्न होगा इसके सपने ही नहीं पाले रहे होंगे बल्कि तैयारियां भी शुरू कर दी रही होगी.

लेकिन जो चुनावी नतीजा आया उसे वह अब तक हज़म नहीं कर पा रहे हैं और अब तक मंथन कर रहे हैं कि चूक आखिर हुई कहां होगी. अब उनके लिए क्या होली क्या दीवाली. एक बड़ा सपना पूरा होते होते रह गया. हालांकि बिहार में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में तो उभर गए और खुद की सीट भी जीत गए, लेकिन ऐसी भी क्या जीत जब जीत भी जीत न दिला पाए. तेजस्वी यादव को अब अपना सपना पूरा करने के लिए और इंतजार करना पड़ेगा. फिलहाल उनको खुशियों के पर्व को धूमधाम से मनाना चाहिए. अब थोड़ी सी बात उनकी भी कर लेते हैं जो चुनाव के बाद से चर्चाओं में हैं.

सबसे पहले सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की बात करते हैं. चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही कांग्रेसी नेता, समर्थक परेशान हैं कि हार की दलील क्या दी जाए बहाने क्या बनाए जाएं. कांग्रेस बिहार में चुनाव हारी नहीं है, करारी हार हारी है. उनकी दीवाली कैसे होगी ये तो आप जानिए लेकिन पार्टी में कल लात-घूसे चल गए हैं ये शर्मनाक घटना है कांग्रेस के लिए. अब आलाकमान दीवाली मनाएंगे या नेताओं को, इसका फैसला आलाकमान को करना है.

दीवाली जैसे पर्व के मौके पर मारपीट अच्छी बात नहीं है कांग्रेसी नेताओं को संयम बरतना चाहिए और दीवाली मनानी चाहिए. उसके बाद हार पर मंथन कर नए सिरे से मेहनत करनी चाहिए वरना कांग्रेस धीरे-धीरे बिहार से गुमनाम हो जाएगी. बिहार के मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे उपेंद्र कुशवाहा, पप्पू यादव और पुष्पम प्रिया चौधरी को तो कोई सदमा होना ही नहीं चाहिए. नतीजे में उनकी हार ज़बरदस्त तरीके से हुई है लेकिन इनका सपना बड़ा था जो पूरा ही नहीं होना था.

ऐसे में उन्हें नतीजों से परेशान होने की ज़रूरत भी नहीं है. इसलिए अब चुनावी नतीजों को भूलकर सभी को दीवाली का खास पर्व धूमधाम से मनाना चाहिए और भगवान राम के आशिर्वाद से अगले चुनाव के लिए तैयारियां करनी शुरू कर देनी चाहिए. बुरा-भला माफ कीजे, और आइये साथ दीवाली का त्योहार मनाते हैं. दीवाली के शुभ अवसर पर आईचौक के सभी पाठकों को खूब ढ़ेर सारी बधाई.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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