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Updated: 14 नवम्बर, 2020 02:09 PM
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की नयी पारी की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. एनडीए नेताओं की बैठक में आगे की रणनीतियों को लेकर एक दौर की चर्चा भी हो चुकी है - लेकिन इसी बीच कुछ ऐसी चीजें भी हो रही हैं जो नीतीश कुमार के आगे आने वाली मुश्किलों की तरफ इशारा कर रहा है.

नीतीश कुमार की नयी कैबिनेट को लेकर बीजेपी का क्या इरादा है ये तो अभी नहीं मालूम हो सका है, लेकिन डिप्टी सीएम (Sushil Modi) की कुर्सी पर बीजेपी की तरफ से बदलाव की जो चर्चा है उसके भी राजनीतिक मायने समझने होंगे. ऐसी भी चर्चा रही कि बीजेपी इस बार अपनी पार्टी का स्पीकर चाहती है.

आने वाले दिनों में नीतीश कुमार की एनडीए में हैसियत का आकलन करना हो तो चिराग पासवान (Chirag Paswan) बैरोमीटर जैसे लगते हैं - बीजेपी का चिराग पासवान के प्रति क्या स्टैंड होता है, वही बताएगा कि सियासी हवा का दबाव कितना और किसके ऊपर हो रहा है. बिहार चुनाव के दौरान चिराग पासवान से जुड़े सवालों पर नीतीश कुमार को जो संकोच देखने को मिलता था वैसा अब नहीं है - मतलब, साफ है नीतीश कुमार भी अब चिराग पासवान को यूं ही नहीं जाने देना चाहते हैं, लेकिन बीजेपी ऐसी चीजों को कितनी अहमियत देने के मूड में है ये भी देखना होगा.

चिराग पासवान पर बीजेपी का फैसला क्या होगा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावों के दौरान ही साफ कर दिया था कि चिराग पासवान बिहार एनडीए का हिस्सा नहीं हैं - और केंद्र को लेकर फैसला चुनाव बाद होगा. बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बताया कि एनडीए में कौन कौन है, लेकिन चिराग पासवान को लेकर उनका भी रुख नरम ही नजर आया.

चुनाव नतीजे आने के बाद चिराग पासवान हथियार डाल चुके हैं. हर इंटरव्यू में यही कह रहे हैं कि अब बीजेपी जो चाहे नीतीश कुमार के साथ करे. अगर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनते हैं तो चिराग पासवान पहले से ही शुभकामनाएं देने लगे हैं. व्यक्तिगत तौर पर हर मुलाकात में वैसे ही पैर छूने की बात भी कर रहे हैं जैसे अपने पिता के श्राद्ध के मौके पर नीतीश कुमार के घर आने पर किया था.

चुनाव के दौरान चिराग पासवान नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे थे और बीजेपी के साथ सत्ता में आने पर जेडीयू नेता को जेल भेजने तक के दावे कर रहे थे. सवाल जवाब के बीच चिराग पासवान अपनी मजबूरियां भी जाहिर कर रहे हैं कि अब तो वो नीतीश कुमार के खिलाफ कुछ कर पाने की स्थिति में भी नहीं हैं.

हाल ही में जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी का सीधा आरोप रहा कि चिराग पासवान की वजह से जेडीयू को भारी नुकसान हुआ है और इस बारे में बीजेपी और जेडीयू दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व को बैठकर विचार करना चाहिये. केसी त्यागी की बातों से नीतीश कुमार के कड़े रुख को समझा जा सकता है.

sushil modi, nitish kumarये दोस्ती क्या रंग लेने वाली हैं?

बिहार चुनाव में चिराग पासवान के नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक रुक को लेकर पहले से ही डिमांड रखने लगे हैं कि चिराग पासवान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में रामविलास पासवान वाली जगह दिये जाने को लेकर नये सिरे से विचार किया जाना चाहिये. नीतीश कुमार ने भी बीजेपी को इशारों इशारों में समझाना शुरू कर दिया है कि चिराग पासवान की केंद्र में भी एनडीए से छुट्टी की जाये.

पहले नीतीश कुमार से चिराग पासवान को लेकर कोई सवाल पूछा जाता था तो वो गोलमोल बातें बोल कर आगे बढ़ जाते थे, लेकिन अब ठहर कर जवाब देने लगे हैं. चिराग पासवान के एनडीए में बने रहने या बाहर किये जाने को लेकर पूछे जाने पर नीतीश कुमार कहते हैं, ‘ये तो बीजेपी को निर्णय लेना है... मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है.’

बीजेपी ने अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वो चिराग पासवान को लेकर क्या सोच रही है - लेकिन दलित राजनीति को लेकर बीजेपी की नयी रणनीति पर से परदा जरूर हटता नजर आ रहा है. वैसे एक बात तो मान कर चलना होगा कि चिराग पासवान के मामले में बीजेपी का अगल एक्शन ही एनडीए में नीतीश कुमार की हैसियत का पैमाना बताएगा.

ये दोस्ती टूटने वाली तो नहीं है

बिहार में बीजेपी की तरफ से डिप्टी सीएम के पद पर एक नये नाम की चर्चा शुरू हो गयी है - ये हैं बीजेपी नेता कामेश्वर चौपाल. कामेश्वर चौपाल, दरअसल, बीजेपी के दलित नेता हैं और वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने कार्यकर्ता भी हैं. कामेश्वर चौपाल का नाम नवंबर, 1989 में अयोध्या में धर्मगुरुओं की तरफ से हुए शिलान्यास में पहली ईंट रखने लेकर भी दर्ज है.

राजनीतिक महत्व को समझा जाये तो कामेश्वर चौपाल अपने आप में 2-इन-1 पैकेज हैं - राम मंदिर आंदोलन से जुड़े होने के कारण हिंदुत्व की राजनीति के साथ साथ दलित नेता भी - मान कर चलना चाहिये कि बीजेपी जिस मकसद से रामविलास पासवान को अपने साथ जोड़े हुए थी, कामेश्वर चौपाल उस वोट बैंक के अगुवा के तौर पर पेश किये जा सकते हैं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे आरजेडी के यादवों में प्रभाव को कम करने के लिए नित्यानंद राय, वैश्य समुदाय को साथ बनाये रखने के लिए बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल - और भूमिहारों के नेता गिरिराज सिंह तो हैं ही मौका मिलते ही दहाड़ने के लिए.

सवाल ये है कि कामेश्वर चौपाल आखिर किसके लिए खतरे की घंटी हैं - चिराग पासवान के लिए या फिर बरसों से नीतीश कुमार के साथ डिप्टी सीएम रहे सुशील मोदी के लिए?

पटना के सत्ता के गलियारों में ये सवाल काफी लोगों को खाये जा रहा है - कहीं सुशील कुमार मोदी की कुर्सी खतरे में तो नहीं है?

अभी न तो ये कंफर्म है कि कामेश्वर चौपाल डिप्टी सीएम बन ही रहे हैं या फिर सुशील मोदी केंद्र में बुलाये जाने वाले हैं - होने को तो ये भी हो सकता है कि एक की जगह दो-दो डिप्टी सीएम बनाये जायें, फिर भी जब तक औपचारिक घोषणा न हो जाये सवाल तो उठेंगे ही.

असल में नीतीश कुमार और सुशील मोदी की दोस्ती जग जाहिर है. सिर्फ 2013 में नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ देने और फिर महागठबंधन बना लेने के दौरान दोनों के रिश्तों में सार्वजनिक तौर पर रिजर्वेशन देखने को मिले थे, वरना नीतीश कुमार के महागठबंधन का मुख्यमंत्री रहते हुए भी सुशील मोदी के साथ दही-च्यूड़ा और खिचड़ी खाने की खासी चर्चा रही. बिहार बीजेपी में भी कई खेमे बने हुए हैं - और सुशील मोदी विरोधी खेमा नीतीश कुमार के साथ उनके अतिशय प्रेम की वजह से भी काफी नाराज रहता है - ध्यान देने वाली बात ये है कि बीजेपी नेताओं का ये धड़ा सुशील मोदी के साथ जेडीयू नेता जैसा ही समझता और व्यवहार भी करता है.

कहीं ऐसा तो नहीं कि बीजेपी नीतीश कुमार को कमजोर करने के मकसद से सुशील मोदी को अलग करने की योजना बना रखी हो?

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