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Updated: 26 फरवरी, 2019 09:22 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की है. भारतीय वायुसेना 1971 के युद्ध के बाद पहली बार पाकिस्तान की सीमा में घुसी है. जी हां, 1971 का वही युद्ध, जिसने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे और बांग्लादेश को आजादी दिलाई थी. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस सर्जिकल स्ट्राइक से पहले ही कहा था कि भारत का हमला हुआ तो पाकिस्तान चुप नहीं बैठेगा. ऐसे में लोग ये भी सोच रहे हैं कि क्या अब पाकिस्तानी वायुसेना भारत पर हमला कर सकती है? जवाब है 'नहीं'. पाकिस्तानी सेना ऐसी बेवकूफी अब नहीं करेगी. पिछली बार 1971 में पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत में घुसने का दुस्साहस किया था और नतीजा ये हुआ कि वहां की सेना को भारत ने धूल चटा दी और पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए. इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को वो टीस दी थी, जिसे चाहकर भी पाकिस्तान भुला नहीं सकता.

भारतीय वायुसेना ने सर्जिकल स्ट्राइक अपनी धौंस जमाने के लिए नहीं की, बल्कि कश्मीर के पुलवामा हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ के 40 जवानों की मौत का बदला लेने और आने वाले हमलों से खुद को बचाने के लिए की है. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि ये 'हमला' नहीं, बल्कि 'आत्मरक्षा' है. भारत ने पीओके के मुजफ्फराबाद और चाकोथी में चल रह आतंकी कैंप तो तबाह किए ही, साथ ही पाकिस्तानी सीमा के बालाकोट में चल रहे आतंकी कैंप को भी नहीं बख्शा.

यहां ये जानना जरूरी है कि बालाकोट में ही जैश-ए-मोहममद के आतंकियों को ट्रेनिंग दी जाती थी. जैश-ए-मोहम्मद पुलवामा से भी बड़े हमले की चेतावनी पहले ही दे चुका है, ऐसे में पाकिस्तानी सीमा में घुसकर आतंकियों को मारना भारतीय वायुसेना के लिए बहुत जरूरी हो गया था. 1971 में भी पाकिस्तान की गलती की वजह से ही भारतीय वायुसेना को पाकिस्तान में घुसना पड़ा था और इस बार भी करीब 48 साल बाद पाकिस्तान की गलती के चलते ही सर्जिकल स्ट्राइक की गई. आइए आपको बताते हैं 1971 की वो कहानी, जब पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत में घुसने की गलती की थी और धूल चाटने पर मजूर हुए थे.

पाकिस्तान, सर्जिकल स्ट्राइक, युद्ध16 दिसंबर 1971 को महज 14 दिनों में ही भारत ने ये युद्ध पाकिस्तान से जीत लिया.

पाकिस्तानी अत्याचार से शुरू हुई ये कहानी

इस कहानी की शुरुआत होती है 1970 से, जब पाकिस्तान में चुनाव हुए. इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टी पूर्वी पाकिस्तानी आवामी लीग प्रचंड बहुमत से जीती और 169 में से 167 सीटों पर कब्जा कर लिया. लेकिन पूर्वी पाकिस्तान को कंट्रोल करने वाले आज के पाकिस्तान यानी पश्चिमी पाकिस्तान को ये नागवार गुजरा और उन्होंने जीते हुए नेता मुजीबुर रहमान को सरकार नहीं बनाने दी और जेल में डाल दिया. इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में बगावत की आग फैलना शुरू हो गई, जिसे कुचलने के लिए 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना प्रमुख तानाशाह याहिया खान ने सैनिक तैनात कर दिए. सेना का अत्याचार इस कदर बढ़ा कि लोग पूर्वी पाकिस्तान से भागकर भारत में शरण लेने लगे. देखते ही देखते करीब 1 करोड़ लोग भारत के पश्चिम बंगाल में शरणार्थी बनकर पहुंच गए. इन सबकी वजह से भारत पर सैन्य हस्तक्षेप का दबाव बना.

दुनिया से मदद मांगने के बाद इंदिरा गांधी ने सख्त कदम उठाया

पाकिस्तान में बिगड़े हालातों पर हस्तक्षेप करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से बात की, लेकिन ये बातचीत बेनतीजा रही. आखिरकार इंदिरा गांधी ने भारतीय थल सेना के प्रमुख जनरल मानेकशॉ से बात कर के 29 जुलाई 1971 को बांग्लादेश यानी पूर्वी पाकिस्तान के लड़ाकों की मदद करने का फैसला किया और बांग्लादेश में सेना भेजी. भारतीय सेना की तरफ से बांग्लादेश के लड़ाकों को ट्रेनिंग भी देना शुरू किया गया, जिसके चलते वहां मुक्तवाहिनी सेना बनी, जो बांग्लादेश के हक के लिए लड़ी. इस दौरान इंदिरा गांधी ने रूस के साथ मिलकर एक अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत दोनों देशों ने एक दूसरे की सुरक्षा का वादा किया.

जब पाकिस्तान ने किया भारत में घुसने का दुस्साहस

नवंबर अंत में पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान के लड़ाकों की मदद करने पर भारत को चुनौती देते हुए हमले की धमकी दी. जब इससे भी बात नहीं बनी तो पाकिस्तानी वायुसेना ने 3 दिसंबर 1971 को भारतीय सीमा में घुसने का दुस्साहस किया. उस समय खुद इंदिरा गांधी ने इस हमले की सूचना रेडियो के जरिए जनता को दी और कहा- 'पाकिस्तानी हवाई जहाजों ने हमारे अमृतसर, पठानकोट, श्रीनगर, अवंतीपुर, जोधपुर, अंबाला और आगरा के हवाई अड्डों पर बमबारी की.' इस हमले के तुरंत बाद भारत की ओर से जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी गई.

14 दिन तक चला युद्ध

उस दौरान पूर्वी पाकिस्तानी सेना के प्रमुख थे जनरल नियाज़ी और भारतीय सेना के प्रमुख थे जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा. भारतीय सेना को युद्ध के लिए हरी झंडी मिल चुकी थी. थलसेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एस के सिन्हा कहते हैं कि उस समय भारतीय सेना पहले से ही युद्ध के लिए तैयार थी, जिसे पाकिस्तान ने एक बहाना दे दिया और फिर शुरू हो गया युद्ध. जल, थल और वायु, तीनों ही सेनाओं ने पाकिस्तान से लोहा लेना शुरू कर दिया. 5 दिसंबर को नौसेना ने कराची बंदरगाह पर बमबारी कर के नौसेना के मुख्यालय को तबाह कर दिया. जहां एक ओर भारत की सेना ने ढाका को तीन तरफ से घेर लिया वहीं दूसरी ओर भारतीय वायुसेना ने 14 दिसंबर को ढाका के गवर्नमेंट हाउस पर बम गिरा दिया. आपको बता दें, उसी समय गवर्नमेंट हाउस में एक अहम बैठक चल रही थी, जिसमें पाकिस्तान प्रशासन के बड़े-बड़े अधिकारी थे. इस हमले से पाकिस्तानी फौज के हौंसले टूट गए और जनरल नियाजी ने युद्ध विराम का प्रस्ताव भिजवा दिया. लेकिन भारतीय थलसेना के प्रमुख जनरल मानेकशॉ ने साफ कर दिया कि अब युद्ध विराम नहीं, बल्कि सरेंडर होगा.

दो टुकड़ों में बंट गया पाकिस्तान

आखिरकार 16 दिसंबर 1971 को महज 14 दिनों में ही भारत ने ये युद्ध जीत लिया और जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के प्रमुख जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने ही सरेंडर के कागजात पर हस्ताक्षर किए. और इसी के साथ इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश को स्वतंत्र देश होने की घोषणा कर दी. जिस बांग्लादेश पर पहले पाकिस्तान का कब्जा था, एक गलती के वजह से वह अब एक अलग देश बन चुका है. अब अगर पाकिस्तान दोबारा भारतीय वायुसेना में घुसने की कोशिश भी करता है, तो इसका खामियाजा कितना बड़ा होगा, इसका तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. क्योंकि 1971 में तो पाकिस्तान को अमेरिका का साथ मिला हुआ था, लेकिन अब तो अमेरिका भी उसके खिलाफ है.

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