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Updated: 20 जुलाई, 2020 09:03 PM
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समय की एक अच्छी बात होती है कि वह परिवर्तनशील होता है. लेकिन इसे दूसरी तरफ से अगर देखें तो यह गलत बात भी लगती है. आखिर अच्छा समय कौन बदलना चाहता है. खैर आज का दिन भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) के लिए और अगर ज्यादा स्पष्ट रूप से कहें तो बैंकिंग (Banking) के लिए ऐतिहासिक रहा है. इसी दिन सन 1969 में सरकार ने 14 सबसे महत्वपूर्ण बैंकों का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation Of Banks In India) किया था. दरअसल वह बैंकिंग को जनसामान्य को उपलब्ध कराने की दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण कदम था जिसने देश के कोने कोने में बैंक शाखाओं का जाल बुन दिया. साधारण से साधारण व्यक्ति की पहुंच में बैंकिंग सेवा उलब्ध हुई और इसकी वजह बैंकों का राष्ट्रीयकरण ही था. अगर देश में सिर्फ निजी क्षेत्र के बैंक रहे होते तो शायद ही उनकी शाखाएं ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में खुली होती और हमारे देश के लगभग दो तिहाई लोग इस सेवा से वंचित रह जाते.

Nationalisation, Bank, Reserve Bank Of India, SBI. Indira Gandhiबैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद भारतीय बैंकिंग सेवाओं में एक बड़ा परिवर्तन दिखाई दिया

देश के विकास के लिए बैंकिंग कितनी आवश्यक है, इसपर चर्चा करने की जरुरत नहीं है. लेकिन इस बात का जिक्र जरुरी है कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी अगर लोगों के पास बचत करने की सुविधा है, उनके पास व्यवसाय और कृषि के लिए कर्ज की सहूलियत है, तो इसके लिए बैंक की उपस्थिति का ही योगदान है. सरकार ने जब बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया तो उसके पीछे यही सोच थी कि बैंक हर आम जन की पहुंच में होने चाहिए. सरकार को जनकल्याण की योजनाओं को लागू करने के लिए सबसे ज्यादा जरुरत बैंकों की ही थी और बैंकों ने यह काम पिछले 51 वर्षों में बखूबी किया.

लेकिन समय का पहिया घूमकर वापस उसी जगह पहुंच रहा है जहां से यह शुरू हुआ था. आज सरकार फिर से बैंकों को प्राइवेट करने के बारे में सोच रही है और इसके पीछे जो तर्क दिया जा रहा है वह यह है कि बैंकों की स्थिति लगातार खराब हो रही है और सरकार के पास इनकी सेहत को सुधारने के लिए पैसे नहीं हैं. दरअसल ये सरकारी बैंक सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए कभी काम नहीं करते, ये गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी ऋण देते हैं जिनको कोई भी प्राइवेट बैंक ऋण नहीं देता.

बैंकों की खराब आर्थिक हालत के लिए कौन जिम्मेदार है, शायद आम जनता नहीं समझती हो, लेकिन पढ़े लिखे और समझदार लोगों को इसकी पूरी जानकारी है. जरुरत से ज्यादा दखलंदाजी, बड़े बड़े कारपोरेट घरानों को ऋण देने के लिए दबाव और लोक लुभावन योजनाओं को बैंकों द्वारा लागू कराना इसकी कुछ वजहें हैं. हर सरकार द्वारा ऋण माफ़ी की घोषणा, कर्ज वसूली के लिए सरकारी बैंकों को पूरा अधिकार नहीं दिया जाना और तमाम तरह की रोक टोक भी इन बैंकों को लगातार परेशानी में डालती रहती है.

आजकल जिस तरह से प्राइवेट बैंकों के पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है उससे लगता है कि अगर बैंकों को निजी क्षेत्र में दे दिया जाए तो इनकी दशा सुधर जायेगी. लेकिन ऐसा कहने वाले भूल जाते हैं कि पिछले दस सालों में ही दसियों प्राइवेट बैंक डूब चुके हैं और लोगों की जमापूंजी भी इनमें अटक गयी है. जबकि एक भी सरकारी बैंक डूबा नहीं है, अलबत्ता उसको दूसरे बैंक में मिला जरूर दिया गया है और आम जनता की पूंजी इसमें सुरक्षित है. यस बैंक इसका ताजा उदहारण है और इसको बचाने के लिए भी एक सरकारी बैंक को ही आगे लाया गया है.

खैर आज बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस पर सरकारी बैंकों के योगदान को याद करने की जरुरत है जिन्होंने देश के आर्थिक विकास में अपना भरपूर योगदान दिया है. कुछ कमियां भी रही होंगी लेकिन समय के साथ साथ उनमें सुधार भी हुआ है. बहरहाल देश का आमजन आज भी प्राइवेट बैंक से दूर है और आगे भी रहेगा क्योंकि उनके लिए पहला और अंतिम लक्ष्य मुनाफा कमाना ही है और इसीलिए आम जनता के लिए सरकारी बैंक हमेशा आगे रहेंगे.

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